साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-3

साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-3

मेरी सेक्सी कहानी के पिछले भाग
साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-2
में अपने पढ़ा कि मैं अपने चाचा ससुर का लंड देख कर पागल सी हो गयी थी, मैंने चाचा से चुदने के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे, मैं उन्हें अपना बदन दिखाने लगी थी.
अब आगे:

धीरे धीरे चाचा जी लाइन पे तो आ रहे थे, मगर बहुत ही स्लो स्पीड में… वो मुझसे हंसी मज़ाक करते, कभी कभी कोई कोई नॉन वेज जोक भी सुना देते, मुझे कंधे पे, बाजू पे छू भी लेते। मगर मैं तो चाहती थी कि वो मेरे बूब्स पकड़ें, आते जाते मेरी गांड पर भी मारें।
मगर इतना आगे वो नहीं बढ़ रहे थे।

तो मैंने उन्हें और उत्तेजित करने के लिए अपना और नंगापन दिखाने की ठानी।

दिन में चाचाजी अक्सर हाल में बैठ कर अखबार पढ़ते या कोई किताब पढ़ते थे। हाल में से मेरा बेडरूम बिल्कुल साफ दिखता था, बाथरूम से ड्रेसिंग टेबल तक सब दिखता था। मेरे दिमाग में एक विचार आया.
एक दिन जब वो हाल में बैठे पढ़ रहे थे तो मैं नहाने चली गई और अच्छी तरह नहा के, सर के बाल धोकर सिर्फ एक तौलिया अपने बदन पर लपेट कर मैं बाथरूम से बाहर आई।

मुझे पता था कि सामने बैठे चाचाजी मुझे घूर रहे हैं, मगर मैं बिल्कुल अंजान बनी रही। तौलिया मेरे बूब्स पर काफी नीचे कर के बंधा था, क्योंकि नीचे भी मुझे अपने गोरी चूत को छुपाना था, इसलिए तौलिया मेरे बूब्स को पूरी तरह से नहीं ढक पा रहा था.

अपने गीले बालों को ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर सँवारने लगी, मगर निगाह मेरी बाहर ही थी और चाचाजी भी अखबार उठा कर अपने मुँह के आगे करके चोरी चोरी मुझे ताड़ रहे थे।
मैंने अलमारी से अपनी एक काली साड़ी निकाली। यह साड़ी मेरे हसबेंड ने मुझे हमारी शादी की पहली सालगिरह पर तोहफे में दी थी। साड़ी के साथ सुर्ख लाल रंग का ब्लाउज़ था। ब्लाउज़ क्या था, स्लीवलेस, पीछे से बैकलेस, और आगे ने 9 इंच का गला। अगर ब्लाउज़ में कहीं कपड़ा था, तो सिर्फ बगलों पर। इस ब्लाउज़ के साथ ब्रा नहीं पहना जाता, ब्रा वाले कप इसमें लगे हुये थे।

मैंने चोर निगाह से देखा कि चाचाजी से उधर हाल में बैठे अपने पजामे में अपने लंड को पकड़ कर सहला रहे थे और उनका उठा हुआ पजामा उनके खड़े, तने हुये लंड का पता बता रहा था।

मैं अच्छा सा मेकअप करके किचन में चली गई चाय बनाने। मैं जानबूझ कर यह जता रही थी कि मुझे तो कुछ पता ही नहीं कि चाचाजी ने मुझे इस अधनंगी हालत में देखा है। जबकि मैं चाह रही थी कि आज तो चाचाजी अपनी मर्दानगी मुझ पर दिखा ही दें।

मैं चाय बनाने लगी और सोच रही थी कि आज चाय देते हुये अपना पल्लू गिरा कर चाचाजी को अपने हुस्न का पूरा जलवा दिखा देना है।

मगर तभी मुझे एक झटका सा लगा। चाचाजी किचन में ही आ गए, उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ लिया, मैं एकदम शांत हो कर खड़ी हो गई, मेरे मन की मुराद पूरी हो गई थी और मैं इसे खोना नहीं चाहती थी।
मैं चुपचाप खड़ी रही तो चाचाजी ने मेरे कंधे और मेरी पीठ पर बालों से गिर रही पानी की बूंदों को अपने होंठों से उठाया, और उनके होंठों के इन चुम्बनों से मैं सिहर उठी। चाचाजी ने अपने दोनों हाथ आगे किए और मेरे दोनों मम्में पकड़ कर दबा दिये।

मैंने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमा लिया। हम दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और अगले ही पल चाचाजी ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये, यह एक छोटा सा चुंबन था, इसलिए कि कहीं मैं उनकी किसी हरकत का विरोध तो नहीं करती।

जब मैंने चुंबन भी दे दिया, तो चाचाजी ने मेरी साड़ी का पल्लू मेरे सीने से हटा कर नीचे गिरा दिया और मेरे दोनों मम्में अपने हाथों में पकड़ कर दबा दिये।
मैंने फिर भी कुछ नहीं कहा तो चाचाजी मेरे दोनों बूब्स को पकड़े पकड़े इतनी ज़ोर उनको दूर दूर किया कि मेरे ब्लाउज़ के सभी हुक टूट गए और मेरा ब्लाउज़ खुल गया।

ब्लाउज़ खुलते ही चाचाजी ने मेरे दोनों बूब्स को अपने हाथों में पकड़ा और मेरे निप्पल को चूस लिया। मैंने अपने दोनों हाथ किचन की शेल्फ पर रखे और अपना सर पीछे को गिरा दिया, यह मेरा पूरा समर्पण था, चाचाजी को।

जब चाचाजी ने मुझे देखा तो मुझे अपनी गोद में ही उठा लिया और बोले- चलो, मेरे बेडरूम में चलते हैं।
मुझे गोद में उठा कर वो चलने लगे तो मैंने गैस बंद कर दिया और चाचाजी मुझे माथे पर, गालों पर चूमते हुये अपने बेडरूम में ले गए। बेडरूम के लेजा कर किसी फूल की तरह उन्होंने मुझे बेड पे लिटाया।

ब्लाउज़ के हुक तो मेरे पहले ही तोड़ चुके थे, मेरे ब्लाउज़ को अपने हाथ से पकड़ कर खींचा और फाड़ कर मेरा ब्लाउज़ उतार दिया। अपने चाचा ससुर से सामने मैं आधी नंगी हो चुकी थी। मेरे दोनों मम्मों को उन्होंने अपने हाथों में पकड़ कर दबा कर देखा, चूसा, चूमा, जीभ से चाटा और दाँतो से काटा भी।
मेरी सिसकारियाँ इस बात की गवाह थी कि वो अपना काम बड़ी अच्छी तरह से कर रहे थे और मुझे तड़पा तड़पा कर इतना गर्म कर रहे थे कि मैं उनके पौरुष के आगे हार जाऊँ।

मगर कम मैं भी नहीं थी।

मेरे मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुये वो नीचे को आए और मेरी नाभि के आस पास अपनी जीभ से चाटने लगे, मेरी कमर के आस पास भी उन्होंने बहुत चूमा चाटा, मुझे बहुत गुदगुदी हुई, मैं मचल रही थी, उछल रही थी और वो मुझे इस तरह तड़पा कर मज़े ले रहे थे।

फिर मेरी साड़ी को उन्होंने मेरे पाँव के पास से ऊपर उठाया और मेरी टाँगें नंगी करने लगे। उठाते उठाते वो मेरी कमर तक मेरी साड़ी ऊपर उठा लाये। मैंने नीचे से पेंटी नहीं पहनी थी, तो साड़ी ऊपर उठाने से मैं उनके सामने नंगी हो गई।
मेरी नंगी चूत को देख कर वो खिल गए- वाह बहू, चूत को तो बहुत चिकना कर रखा है!
वो मेरी टाँगें चौड़ी करते हुये बोले।
मैंने कहा- बिल्कुल, जिस्म पर बाल न इन्हें पसंद हैं, न मुझे।

मेरी चूत की भग्नासा को अपने हाथ छूने के बाद वो नीचे झुके और मेरी भग्नासा को चूमा, और फिर अपने होंठों में मेरी भग्नासा ले कर चूसने लगे।
मेरे बदन में झनझनाहट सी होने लगी, मैंने खुद ही अपनी टांगें खोल दी पूरी तरह से कि ‘लो चाचाजी चाट लो, चाट लो अपनी बेटी जैसी बहू की चूत!’

मेरी चूत के अंदर तक वो अपनी जीभ डाल डाल कर चाट रहे थे। मैं भी अपने पाँव से उनके पजामे में कैद उनके लंड को छेड़ने लगी। खड़ा लंड उनके पजामे को तम्बू की तरह उठाए हुये था, मुझे लंड से छेड़खानी करते देख, चाचाजी ने अपना पजामा और देसी कच्छा दोनों उतार दिये।

अरे वाह… चाचाजी ने पूरी तरह से लंड के आस पास सब झांट वगैरह शेव कर रखे थे।
मैंने पूछा- चाचाजी, ये आपने कब शेव किए?

वो बोले- अरे उस दिन जब तुम चुपके से मुझे और रजनी को देख गई थी, तो मैं भी चुपके से तुम्हारे पीछे पीछे आया था, तुम इतनी कामुक हो चुकी थी कि तुमने बिना अपने कमरे का दरवाजा बंद किए बेड पर लेट कर उंगली करनी शुरू कर दी थी. पहले तो मैं अंदर आने लगा था कि चलो बहू की प्यास भी मिटा दूँ। फिर मैंने सोचा कि अगर ये मुझे देख कर उंगली कर रही है, तो फिर एक न एक दिन ये मुझसे भी चुदवाएगी। मैं वापिस आ गया और रजनी को चोदने लगा। मगर मुझे पता था, एक न एक दिन तुम मेरे नीचे आओगी, तो मैं भी पहले से ही तैयारी कर रखी थी।
मैंने मचल कर पूछा- और अगर मैं ना आती तो?

वो हंस कर बोले- न आती तो न आती… रजनी तो है ही, वो तो कहीं नहीं गई।
मैंने मुस्कुरा कर अपना एक पाँव चाचाजी के सर पर रखा और और उनका सर अपने पाँव से नीचे को दबाया। चाचाजी मेरे किसी गुलाम की तरह सर झुका कर मेरी चूत को फिर से चाटने लगे.

मैंने अपनी कमर थोड़ी सी ऊपर को उठाई तो वो मेरी चूत का छेद, उसके नीचे और फिर गांड को भी चाटने लगे।
“खा जाओ चाचाजी, मेरी चूत को खा जाओ!” मैंने मदमस्त होते हुये कहा।
और वो मेरी चूत गांड सब चाटते हुये ऊपर को घूमे, और अपनी कमर मेरी तरफ ले आए।

मैंने उनका कड़क लंड अपने हाथ में पकड़ा और उसका टोपा बाहर निकाला। मोटा, गोल, सुर्ख लाल, चमकदार लंड का टोपा… मेरे सबसे टेस्टी डिश। तो मैं कैसे छोडती, मैंने अपना मुँह आगे किया और चाचाजी का लंड अपने मुँह में ले लिया।
मेरा पसंदीदा नमकीन स्वाद और पुराने पनीर जैसी तीखी गंध… मैंने चाचाजी के लंड को मुँह में लिया तो वो मेरे ऊपर ही आ चढ़े, उनका लंड मेरे मुँह में, उनके आँड मेरे माथे पे और ऊपर उनकी गांड का छेद।

मैंने उनके दोनों चूतड़ अपने हाथों में पकड़ लिए और उनका आधे से ज़्यादा लंड मेरे मुँह में था। चाचाजी ने मेरी टाँगे पूरी तरह से फैला रखी थी, और अपना सारा मुँह मेरी चूत से चिपका रखा था, और मेरी चूत आस पास की सारी जगह, और मेरी गांड, चूतड़ वो सब कुछ चाट रहे थे।

मुझे महसूस हुआ जैसे उनके लंड से कुछ नमकीन नमकीन पानी आने लगा है। मैंने उनके लंड को अपने मुँह से निकाला, और उनके टोपे पर पेशाब वाले सुराख को उंगली से छू कर देखा, उसमें से गाढ़ा तार सा छूटा, मतलब चाचाजी का प्रीकम ( वीर्य गिरने से पहले छूटने वाला लेस) छूटने लगा था। मुझे तो ये भी टेस्टी लगता है। मैं फिर उनका लंडन चूसने लगी।

चाचाजी ने भी मेरी गांड को अपने थूक से गीला करके अपनी एक उंगली मेरी गांड में डाल दी- बहू, क्या भतीजा इस जन्नत का भी मज़ा लेता है?
चाचाजी ने पूछा।
मैंने कहा- जी पापा, एक दो बार किया है, मगर मुझे दर्द होता है, तो मैं मना कर दिया।
वो बोले- तू चिंता मत कर बहू, अब देखना मैं इतने प्यार से इस जन्नत का दरवाजा खोलुंगा कि तुझे न तो दर्द होगा, और मज़ा इतना आएगा कि अगर तू चूत मरवाएगी, तो गांड मरवाये बिना भी रह नहीं पाएगी।
मैंने कहा- नहीं यार, दर्द होगा।
वो बोले- चिंता मत कर मेरी जान, अगर दर्द हुआ तो नहीं करूंगा, ठीक है?
मैंने कहा- ठीक है.
और फिर से उनका लंड चूसने लगी।

वो भी बड़ी शिद्दत से मेरी चूत को चाट रहे थे और गांड में उंगली आगे पीछे कर रहे थे।

फिर जैसे मुझ पर बिजली गिरी हो, मैं तड़प उठी, कसमसा उठी, अकड़ गई, मेरी चूत से पानी की जैसे धार छूटी हो, जिससे चाचाजी का सारा मुँह भीग गया।
“अरे वाह!” वो बोले और मेरी चूत में मुँह डाल कर मेरी चूत से आने वाला पानी पीने लगे, चाटने लगे। उनके चाटते चाटते मैं तड़प तड़प कर शांत हो गई और जोश जोश में मैंने उनके लंड को अपने दाँतो से काट भी लिया, मगर उस मर्द के बच्चे ने सी तक नहीं की।

मैं शांत हुई, तो अब उनकी बारी थी, मैंने फिर उनका लंड चूसना शुरू किया, वो भी मेरे मुँह को चूत समझ कर चोद रहे थे. और फिर वो अकड़े, और करीब करीब अपना सारा लंड मेरे मुँह में ठूंस दिया- आह, मेरी जान, सविता, मादरचोद, खा जा मेरा लंड, कुतिया की बच्ची, साली रांड, खा खा खा इसे हरामज़ादी!
और उन्होंने ढेर सारा माल गिराया, कितना तो मेरे गले में सीधा ही उतर गया, कितना मेरे चेहरे बालों पर बिखर गया.

मैं मुस्कुरा रही थी, एक मर्द के माल से अपना मुँह धुलवा कर… वो भी खुश थे, अपनी ही बहू से मुख मैथुन करके।

ठंडे से हो कर वो मेरी बगल में ही गिर गए, उनका लंड धीरे धीरे ढीला पड़ रहा था, पर उससे कोई कोई बूंद वीर्य की अभी निकल रही थी, जिसे मैं अपनी जीभ से चाट चाट कर पी रही थी।
वो बोले- बहू, तुझे माल पीना बहुत पसंद है क्या?
मैंने कहा- जी पापा, मुझे ये बहुत टेस्टी लगता है, इनका तो मैं सारा पी जाती हूँ, पर आपका तो माल गिरता ही बहुत है, इसलिए पूरा नहीं पी पाई, थोड़ा इधर उधर भी बिखर गया है।

वो पलटे और मेरे मुँह के पास मुँह करके बोले- तेरी हर प्यास बुझा दूँगा मेरी जान, तू भी क्या याद करेगी, किस मर्द से पला पड़ा है!
और वो मेरे गाल से अपना ही माल चाट गए।

कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: साठा पे पाठा मेरे चाचा ससुर-4

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