अनजानी दुनिया में अपने-5

अनजानी दुनिया में अपने-5

दोस्तो, अन्तर्वासना के सभी पाठकों को जॉर्डन का प्यार भरा नमस्कार।
प्रस्तुत है मेरी रोमांटिक स्टोरी ‘अनजानी दुनिया में अपने’ का अगला भाग!
मेरी कहानी के पिछले भाग
अनजानी दुनिया में अपने-4
में आपने पढ़ा कि मैं दिव्या की मां कामिनी की कामवासना को एक बार संतुष्ट कर चुका था और अब दूसरी बार की चुदाई चल रही थी.

लगभग दस मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मेरा लन्ड फूलने लगा, इस बात का अहसास उसे भी होने लगा तो वो भी नीचे से धक्के मारने लगी, कुछ देर बाद दोनों एक साथ स्खलित हो गये, उसकी टांगें कांप रही थी, शावर चल रहा था लेकिन हम दोनों के शरीर तप रहे थे।

दोनों ने एक दूसरे को नहलाया, नहा कर बाहर आ गए। मैंने कमरे में जाकर दिव्या को देखना चाहा, लेकिन वो तो वहाँ नहीं थी, मैंने दौड़कर रसोई में देखा तो वो वहां भी नहीं थी, मैंने जब कामिनी को बताया तो वो रुंधे गले से बदहवास होकर दिव्या दिव्या चिल्लाने लगी।

दिव्या को अपने कमरे में ना पाकर हम दोनों का बुरा हाल हो गया था। कामिनी तो बदहवासी में इधर उधर भाग रही थी, मैंने पहले उसे एक तरफ बैठाया, फिर मैं दिव्या को बाहर देखने निकल गया।

मैंने दिव्या को हर जगह तलाश किया लेकिन वो मिल ही नहीं रही थी, ना नीचे गली में, ना सीढ़ियों पर, ना ही नीचे और ऊपर वाले फ्लोर पर! पन्द्रह बीस मिनट तक खोजने पर भी नहीं मिली तो मेरे पैर कांपने लगे, मैं वहीं सीढ़ियों पर बैठ गया.

अचानक मेरे दिमाग में आया कि एक बार सबसे ऊपर छत पर भी देख लेता हूँ, क्या पता वहीं हो!
मैं लंबे लंबे कदमों से सीढियां चढ़ते हुए छत पर गया तो देखा कि दिव्या वहीं पानी की टंकी के पास बैठी थी, मैं दौड़ कर गया उसके पास, मुझे देखते ही वह खड़ी हो गई।
यह क्या … वह रो रही थी।

मैंने उससे पूछा- दिव्या, क्या हुआ, तुम यहां क्यूँ आ गई और रो क्यूँ रही हो?
उसने नाराजगी भरे लहजे में कुछ देर मेरी आँखों में देखा, फिर मुझसे पूछा- क्यों? आपको नहीं पता मैं क्यूँ रो रही हूं?

उसकी यह बात सुनकर मैं तुरन्त समझ गया कि निश्चित ही इसने मुझे और कामिनी को सेक्स करते हुए देख लिया है। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर नीचे चलने को कहा, तो उसने बोला- यहां क्या समस्या है?
तो मैंने उसे समझाया कि जो भी बात करनी है नीचे चल कर करना, अभी तुरंत नीचे चलो, तुम्हारी माँ बहुत परेशान हो रही है।
मेरी यह बात सुनकर वह नीचे जाने लगी, मैं भी उसके पीछे पीछे चलने लगा।

फ्लैट में आकर मैंने दरवाजा बंद कर दिया, दिव्या को देखते ही उसकी माँ उठ खड़ी हुई और उसके पास जाकर एक जोरदार थप्पड़ दिव्या के गाल पर जड़ दिया, फिर साथ ही उसे जोर से अपने गले लगा लिया और दोनों रोने लगी।
माहौल गमगीन हो गया था और मैं भी बुत बना खड़ा था, माहौल को हल्का करने के लिए मैंने उन दोनों माँ बेटी से कहा- चलो यार, कोई मूवी देखने चलते हैं।
लेकिन वो दोनों ही कुछ नहीं बोली.

तो मैंने उनके पास जाकर पूछा- क्या हुआ दिव्या? कुछ बोल क्यों नहीं रही हो?
दिव्या जैसे मेरे इसी प्रश्न का इंतजार ही कर रही थी, अपनी मां की ओर देखते हुए मुझे बोली- मैं जानती हूँ कि मेरी माँ एक औरत है, उसके शरीर की भी कुछ जरूरतें हैं. लेकिन आप दोनों को एक दूसरे के साथ देखा तो न जाने क्यूँ … मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ, इसलिए मैं ऊपर छत पर जा कर रोने लगी थी।

दिव्या अपनी माँ के हाथ को पकड़ते हुए बोलने लगी- मां, मैं जॉर्डन से प्यार करने लगी हूँ, न जाने कब, ना जाने कैसे ये मुझे अच्छे लगने लगे हैं, मैं जानती हूं कि ये मुझसे 5-6 साल बड़े हैं, दिखने में भी कोई राजकुमार नहीं हैं लेकिन इनके पास सबसे अच्छा दिल है और मन ही मन इन्हें मैं अपना सब कुछ मान चुकी हूं।

यह सुनकर कामिनी अपनी बेटी को प्यार से देखकर उसके दाएं गाल पर हाथ रखते हुए बोली- बेटा, जॉर्डन भी तुमसे बहुत प्यार करता है, यह पहले ही मुझे बता चुके हैं, हम दोनों ने जो कुछ भी किया वो बस भावनाओं का बहाव था, आगे से हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे।

दिव्या मेरी और देखने लगी, मैंने सहमति में गर्दन हिला दी। यह सही वक्त था दिव्या से सब कुछ कह देने का, तो मैं बाथरूम से ब्लेड ले आया और दिव्या के पास गया, एक हाथ में ब्लेड पकड़ी हुई थी और एक हाथ से दिव्या का हाथ पकड़ लिया तो दिव्या मेरी और प्रश्न भरी नजरों से देखने लगी, साथ ही दिव्या की माँ कामिनी भी आंखें फाड़ के देख रही थी।

मैं दिव्या का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला- दिव्या, जिन हालातों में तुम लोग जीये, उन हालातों में जिंदा रहना बहुत मुश्किल था, लेकिन ऊपर वाले को हम लोगों को ऐसे ही हालात में मिलवाना था, तुम लोग भी जिंदगी की अहमियत जान चुके हो और मुझे भी तुम दोनों के रूप में जीने की वजह मिल चुकी है, तुम जैसी मासूम और सुंदर लड़की किसी की जिंदगी में आना किस्मत की बात है। दिव्या क्या तुम मुझे जिंदगी भर के अकेलेपन से बचाओगी जैसे तुमने मुझे उस तेंदुए से बचाया?

मेरी ये बातें सुनकर दिव्या की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और वो मेरे गले लग गयी, मैंने भी उसे अपनी बांहों में ले लिया. कामिनी अपनी बेटी को मेरे से लिपटी हुई देख कर खुश हो रही थी. उसे पूरा भरोसा था मुझ पर कि मैं उसकी बेटी का पूरा पूरा ख्याल रखूँगा.
काफी देर तक दिव्या मेरे कंधे पर ठोड़ी रख कर रोती रही. मैंने भी उसे नहीं छेड़ा, मैंने सोचा कि रोकर इसका दिल हल्का हो जाएगा.

कुछ देर बाद जब हम अलग हुए तो मैंने ब्लेड से अपने दांय अंगूठे के ऊपर कट लगाया, एक नजर कामिनी की ओर देखा तो पाया कि वो मेरी मन्शा समझ चुकी थी औऱ अपनी सहमति दे चुकी थी, लेकिन दिव्या अब भी अनजान थी।
इससे पहले कि दिव्या कुछ समझ पाती मैंने खून लगे अंगूठे को उसकी मांग में रगड़ दिया।

हर्ष से दिव्या की आंखें बंद हो चुकी थी, साथ ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी। मैंने उसे फिर से गले लगाया, तो वह मुझसे चिपक गयी, मैंने दिव्या की मम्मी कामिनी को भी हमारे पास आने के इशारा किया तो वह भी हम दोनों से लिपट गयी।
माहौल खुशनुमा हो चुका था, मैंने और दिव्या ने मूवी जाने का प्लान बनाया, हम चाहते थे कि कामिनी भी हमारे साथ चले लेकिन कामिनी ने ‘मेरा मन नहीं है, तुम दोनों चले जाओ!’ कह कर मना कर दिया.
उसने घर पर रुकने की सोची, साथ ही हम दोनों के लिए एक सरप्राइज भी तैयार रखने का बोली।

मैंने सोचा कि कामिनी को पैसों की जरूरत हो सकती है तो मैंने उसे बीस हजार रूपये देते हुए कहा- कोई शॉपिंग करनी हो तो … ये रख लो!

उसके बाद मैं और दिव्या दोस्त वाली बाइक से मूवी देखने चले गए, हम दोनों बहुत खुश थे, इतने खुश कि मूवी में आधा ध्यान था और आधा ध्यान एक दूसरे की आंखों में था। मैं दिव्या का हाथ अपने हाथ में लेकर बैठा रहा पूरा समय! दिव्या भी अपने हाथ से मेरे हाथ को हल्के हल्के सहलाती रही. हम दोनों ही रोमांटिक हो रहे थे. हमारे दिलों में सिर्फ प्यार था!

जैसे तैसे हम मूवी खत्म करके घर आ गए। जैसे ही हम दोनों ने घर में कदम रखा तो पूरा घर फूलों की खुशबू से महक रहा था, कामिनी खाने की टेबल पर बहुत सारी डिशेज़ के साथ बैठी थी, मतलब कामिनी ने स्पेशल खाना बनाया है।

मैं और दिव्या बहुत खुश हुए, दिव्या तो सीधा टेबल के पास जाकर बैठ गई, मैंने कपड़े चेंज करने की सोची तो कमरे में गया, कमरा खोलते ही मैं आश्चर्यचकित रह गया, पूरा कमरा गुलाब की फूलों से महक रहा था, मतलब कामिनी ने इसी सरप्राइज की बात की थी।
बिस्तर भी लाल गुलाबों से सजा हुआ था।

दोस्तो आपको दिव्या और कामिनी की सुंदरता का अंदाजा लगाना हो तो बता दूं कि दिव्या दिखने में टीवी एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट की तरह है और उसकी माँ कामिनी एक पुरानी बॉलीवुड अभिनेत्री आयशा जुल्का की तरह दिखती हैं।

जब मैं कपड़े बदल के वापिस खाने की मेज के पास जाकर बैठा तो कामिनी ने मेरी ओर देखते हुए पूछा- कैसा लगा सरप्राइज?
इस पर मैंने उसे कहा- बहुत प्यारा, असल में बहुत खास भी!

दिव्या अभी अनजान थी इस सरप्राइज से, इसलिए उसने हम दोनों की ओर देखते हुए पूछा- कौन सा सरप्राइज?
मैंने बात को बदलते हुए दिव्या को खाना शुरू करने को कहा।

कामिनी ने गाजर का हलवा, खीर, दो तीन प्रकार की सब्जियां और पराँठे बनाये थे। मैंने सबसे पहले खाने का एक निवाला दिव्या को फिर कामिनी को खिलाया, फिर हम सबने खाना शुरू कर दिया।
खाने के दौरान मैंने कामिनी से पूछा- तुम दोनों अब आगे की जिंदगी में क्या करना चाहती हो?
मेरे इस प्रश्न पर कामिनी ने कहा- हम अपनी आगे की जिंदगी तुम्हारे साथ ही रहना चाहते हैं, लेकिन मैं घर पर हाथ पर हाथ रख के नहीं बैठ सकती।
दिव्या ने गंभीर होते हुए कहा- मैं अपने पापा की मौत का बदला लेना चाहती हूँ, मेरे चाचा को सजा दिलवाना चाहती हूँ, इसलिए मैं वकील बनना चाहती हूं।

उसकी इस बात पर मैं और कामिनी भी गंभीर हो गए क्योंकि हम दोनों ही उसको नहीं खोना चाहते थे, लेकिन उसके सपनों को भी नही तोड़ना चाहते थे, इसलिए मैंने उन दोनों से कहा- देखो, हमें सबसे पहले तुम दोनों को नई पहचान देनी होगी, मेरे पास जो भी सेविंग है उससे दिव्या की पढ़ाई के लिए और कुछ छोटा मोटा धंधा कामिनी जी को खोल देता हूँ।
इस पर कामिनी बोली- लेकिन आप इतना मत करो हमारे लिए, इतना तो कोई अपना भी नहीं करता, और कितना त्याग करोगे हमारे लिए?

मुझे कामिनी की बात बुरी लगी इसलिए मैंने नाराज होते हुए कहा- क्या मैं तुम लोगों का अपना नहीं हूँ?
ऐसा सुनकर दिव्या वहां से उठकर मेरे पास आकर मुझे अपने गले लगा कर कहा- तुम मेरे अपने हो, तुम मेरी जान हो।
यह कहते कहते मुझे माथे से गालों से आंखों से चूमने लगी। मैंने भी उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसे लगभग अपने से चिपकाते हुए आंखें बंद कर ली।

कुछ देर बाद हम अलग हुए तो कामिनी की आंखों में खुशी के आंसू थे।

खाना खाकर मैंने कुछ देर बाहर घूम कर आने की सोची। बाहर कुछ देर सड़क पर घूमते हुए मुझे एक ज्वेलरी शॉप खुली दिखी। मैं उसमें घुस गया, वहां से मैंने दिव्या के लिए गले की सोने की चैन, झुमके और 2 सोने की चूड़ियां ले ली ।
कामिनी के लिए भी नाक की लोंग ले ली और क्रेडिट कार्ड से पेमेंट कर दी।

घर आकर मैंने उन दोनों को आंखें बंद करने के लिए बोला और मैंने उनके दोनों के हाथ में उनके लिए लाये गहने रख दिये। जेवर देखकर दोनों बहुत खुश हुई और कामिनी मुझसे कहने लगी कि किसी वक़्त हमारे पास बहुत सोना हुआ करता था लेकिन उस वक़्त हमें उसकी कद्र नहीं थी और आज जो तुमने दिए हैं ये थोड़े से ही सही लेकिन ये अनमोल हैं।

दिव्या भी बहुत खुश थी, मैंने दिव्या की आंखों में देखा तो वो भी बहुत प्यार से मेरी आँखों मे देखने लगी, कुछ देर बाद वह शरमा गयी और दोनों हाथों के बीच अपने मुंह को छुपा लिया। शायद उसे इस बात का अहसास हो चला था कि आज उसकी सुहागरात है।

मैंने नहा लेना उचित समझा, जब मैं नहा कर वापस आया तो देखा कि कामिनी दिव्या को लेकर कमरे में जा चुकी थी।
कामिनी ने कमरे से बाहर निकलते हुए, मुझे अंदर जाने का इशारा किया और खुद बाहर आ गयी, साथ ही उसने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया।

बाकी की कहानी के लिए अगले भाग का इंतजार करें।

मुझे पता है कि मेरी कहानी के इस भाग में सेक्स वाला हिस्सा बहुत कम है लेकिन यकीन मानो दोस्तो, सच्चाई की कहानी पढ़ रहे हैं आप, वह भी सिर्फ अन्तर्वासना डॉट कॉम पर। आपको मेरी रोमांटिक स्टोरी कैसी लगी मुझे मेल करके जरूर बताएं और आप अपना प्यार बरसाते रहें।
मेरा मेल आई डी [email protected] है।
शुक्रिया।

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