एक सुन्दर सत्य-5 – Antarvasna

एक सुन्दर सत्य-5 – Antarvasna

आख़िरकार उसके लौड़े ने लावा उगल दिया, गर्म गर्म वीर्य की धार जब ज़न्नत की चूत की दीवारों पे लगी तो उसका बाँध भी टूट गया
और फिर ज़न्नत की चूत गरम गरम वीर्य से भरी हुई थी।

दोनों का वीर्य अब एक-दूसरे में विलीन होने लगा।
यह एक नये युग की शुरुआतत थी, अश्लीलता को आम आदमी तक लाने के लिए एक हिरोइन का त्याग था।

दोनों वैसे ही एक दूसरे से लिपटे हुए पड़े रहे काफ़ी देर तक… लंड धीरे धीरे छोटा होता जा रहा था, और जैसे जैसे वो छोटा होता जा रहा था, वो चूत से बाहर निकलता जा रहा था।

जन्नत- क्यों मेरे सरताज… आपको मज़ा आया या नहीं? देखो मैंने अपना सब कुछ आपको दे दिया… अब मेरी फिल्म आपके हाथ में है।

सुप्रीमो ज़न्नत के ऊपर लेटा लेटा बोला- ज़न्नत, तुमने मुझे ज़न्नत दिखाई तो तुम्हारी फिल्म रिलीज होगी लेकिन एक बात कहूँ, तुमने
मुझे ऐसा क्या खास दे दिया जो कह रही हो कि अपना सबकुछ आपको दे दिया? पता नहीं कितने मर्दों की झूठी चूत मेरे सामने परोसी है तुमने…
सुप्रीमो की बात सुनकर जन्नत थोड़ी चौंक सी गई, उसको ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि सुप्रीमो ऐसा कहेगा।

मगर ज़न्नत तो एक अदाकारा है ना उसके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी, उसके जीवन में ना जाने ऐसे कितने मौके आए होंगे, उसको सब अच्छी तरह संभालना आता था।

वो बड़ी अदा के साथ सुप्रीमो के लौड़े को सहलाने लगी और अपना सर उनके सीने पे रख दिया।

ज़न्नत- मेरे सरताज, अपने ऐसा सोच भी कैसे लिया… माना कि यहाँ तक पहुँचने के लिए मुझे कई बार अपने जिस्म की नुमाइश करनी पड़ी, कईयों को अपनी जवानी का स्वाद चखाया। मगर आप शायद भूल रहे हैं कि मैं इस देश की सबसे सुन्दर लड़की हूँ और मैं एक हिरोइन हूँ, कोई ऐसी वैसी वेश्या नहीं जो हर रात किसी नये मर्द के साथ सोती है।

सुप्रीमो- मेरी जान, तुम्हारी इसी अदा पर तो हम फिदा हो गये हैं।

अब सुप्रीमो का हाथ ज़न्नत के चूतड़ों पर फ़िर रहा था कि ज़न्नत ने उसकी एक उंगली अपनी गाण्ड के छेद पर महसूस की।

ज़न्नत ने घबरा कर अपना सर सुप्रीमो के सीने से उठाया और साथ ही सुप्रीमो के काथ को अपने कूल्हे से हटा दिया।

वो बेड से नीचे उतर कर खड़ी हो गई और अपने कपड़े समेटने लगी।

सुप्रीमो बस उसे देख रहा था कि यह क्या करने वाली है?

और जैसे ही ज़न्नत पैंटी पहनने लगी, सुप्रीमो ने उसे एक झटके से पकड़ा और बोला- जानेमन अभी तो खेल बाकी है, आगे की ज़न्नत तो दिखा दी तुमने, पीछे की ज़न्नत के दरवाजे में घुसना अभी बाकी है।

ज़न्नत घबरा कर बोली- नहीं सर… वहाँ नहीं… मैंने कभी नहीं किया वहाँ…

सुप्रीमो- अरे वाह… फ़िर तो खूब मज़ा आयेगा… ज़न्नत की पिछली ज़न्नत अभी तक कुंवारी है? मुझे उम्मीद नहीं थी…

सुप्रीमो ने ज़न्नत को अपनी तरफ़ चूतड़ करके झुका दिया तो ज़न्नत का घबराया, सहमा, भूरे रंग का छेद, जो कभी थोड़ा खुल रहा था, कभी सिकुड़ रहा था, सुप्रीमो के सामने आ गया।

सुप्रीमो ने अपनी एक उंगली उस पर फ़िराई तो ज़न्नत घबरा कर बोली- मैं मर जाऊँगी सर…

लेकिन सुप्रीमो ने उसकी बात अनसुनी कर दी और उसकी गान्ड पर अपनी उंगली गोल गोल घुमाने लगा।

ज़न्नत समझ चुकी थी कि अब विरोध करना बेकार है तो उसने इस मौके का ज्यादा से ज्यादा फ़ायदा उठाने की सोची।

उसने नीचे खड़ी होकर आगे झुक कर अपने पैरों को फ़ैला दिया और जिससे उसकी गाण्ड का छेद खुल कर सुप्रीमो की आँखों के सामने था।

सुप्रीमो कुछ बोलता, उससे पहले ज़न्नत बोल पड़ी- मेरे मेहरबाँ, देख लो अपनी आँखों से, आज तक जिस चीज को मैंने इतना सम्भाल कर रखा, आज आपके हवाले करती हूँ, मुझे क्या पता था कि इस शौहरत की दुनिया में कभी ऐसा मौका जरूर आएगा जब मेरी चूत की चमक भी फीकी पड़ जाएगी।

सुप्रीमो की आँखों की चमक बढ़ गई, उसने ज़ोर ज़ोर से ताली बजानी शुरू कर दी और बोला- वाह ज़न्नत वाह… मान गए तुमको… अब तुम देखना कि मैं अपने लौड़े से तुम्हारी कोरी गाण्ड पर तुम्हारी फ़िल्म पास करने का ऑर्डर कैसे लिखता हूँ।

ज़न्नत खुश हो गई कि अब तो फ़िल्म पास होने से कोई नहीं रोक सकता।

फ़िल्म पास होने की खुशी में वो अपने गाण्ड के उद्घाटन में होने वाली तकलीफ़ को सहने को तैयार थी।

उसे याद आ गया वो दिन जब उसने भारत सुन्दरी बनने के लिये अपने खूबसूरत बदन को उस सौन्दर्य प्रसाधन बनाने वाली कम्पनी के मैनेज़िंग डयरेक्टर के सामने परोस दिया था…

लेकिन तभी वर्तामान में ज़न्नत झट से बेड पे चढ़ कर सुप्रीमो के लौड़े को चूसने लगी।

सुप्रीमो ने उसके चूतड़ों पे हाथ घुमाया कुछ देर बाद जन्नत को घोड़ी बना दिया।

सुप्रीमो का लण्ड तो पहले ही जन्नत ने थूक से लबालब कर दिया था, सुप्रीमो ने बस ज़न्नत के चिकने चूतड़ों के बीच खुलते- बन्द होते छेद पर अपना लौड़ा टिकाया और दबाव बनाया।

ज़न्नत- आईई… अह… उईई… मेरे जानू… आराम से करना… आह… कुँवारी गाण्ड है… बस आज आपके लिए इसके दरवाजे खुल रहे हैं आह…

सुप्रीमो भी पक्का चोदू था, लौड़ा धीरे धीरे ज़न्न्त की कसी गाण्ड में सरकने लगा।

ज़न्नत कसमसाती रही और सुप्रीमो का लण्ड उसकी गाण्ड फ़ाड़ कर अपना रास्ता बनाता रहा।

और आख़िरकार धीरे धीरे पूरा लौड़ा ज़न्न्त की गाण्ड में कैद हो गया।

जन्नत-. आइह… आह… मेरे जानू… आज ज़न्नत की गाण्ड आपकी हो गई… आपने भारत की सबसे सुन्दर लड़की की गाण्ड को अपना बना लिया… अह…

अब सुप्रीमो दे दनादन लौड़ा पेलने लगा पर उसको बड़ी ताक़त लगानी पड़ रही थी।

ज़न्नत की गाण्ड मारने में सुप्रीमो को मज़ा बहुत आ रहा था, वो स्पीड से लौड़ा अंदर-बाहर कर रहा था।
अब उसकी उतेज्ना बढ़ती ही जा रही थी, ज़न्नत की कुंवारी गाण्ड पर खून भी छलक आया था।
सुप्रीमो ने ज़न्न्त की गाण्ड से रिसते खून को देख कर सोचा कि साली बहन की लौड़ी ये ज़न्नत सही ही कह रही थी, इसकी गाण्ड अभी अनचुदी थी।

ज़न्नत की कुंवारी गाण्ड की सोच सोच कर सुप्रीमो पर चुदाई का खुमार बढ़ता जा रहा था।

उधर इतनी ज़बरदस्त चुदाई से ज़न्नत की चूत फड़फड़ाने लगी, लौड़ा गाण्ड में चोट कर रहा था मगर उसका असर ज़न्नत की चूत पे हो रहा था।
ज़न्नत को दर्द तो बहुत हो रहा था मगर फ़िल्म पास करवाने के लिये वो दर्द सह कर गाण्ड मरवाये जा रही थी।

ज़न्नत- आह… आह… फास्ट मेरे जानू… आह… मैं जाने आह… वाली हूँ आह…

सुप्रीमो- मेरी जान… आह्… मज़ा आ गया तेरी ऐसी टाइट गाण्ड पेल के आह… मेरे लौड़े को निचोड़े जा रही है यह… मैं भी आज तेरी गाण्ड को आह… आह… आज अपने पानी से भर दूँगा… हू हू… आ…

ज़न्नत झर गई मगर सुप्रीमो अब भी अपने काम में लगा हुआ था।

थोड़ी देर बाद उसके लण्ड ने तेज़ धार ज़न्नत की गाण्ड में छोड़ी, वो हांफने लगा था… उसको बड़ा सुकून मिला आज…

इस थका देने वाली चुदाई के बाद दोनों आराम से बेड पे लेट गये।

उस रात सुप्रीमो ने ज़न्नत की खूब चुदाई की और अगले दिन ज़न्नत ख़ुशी ख़ुशी मुम्बई लौट गई।

आख़िर दो दिन बाद ही ज़न्नत के पास ताज़ गफ़्फ़ूर का फ़ोन अया कि फिल्म पास हो गई है।

कुछ दिन बाद ही फ़िल्म रीलीज़ हो गई और आम लोगों तक अश्लीलता को पहुँचा ही दिया गया।

यह उस जमाने की बात है तो विरोध भी बहुत हुआ, मगर मज़ा लेने वालों के तो मज़े हो गये।

उस फिल्म के बाद तो ज़न्नत सुपरस्टार बन गई, फ़िल्मों की लाइन लग गई उसके आगे और उस फिल्म के बाद बहुत से डायरेक्टर और हिरोइनें भी अब अंग-प्रदर्शन को सफ़लता का पैमाना समझ कर बढ़ावा देने लगे।

दोस्तो, यह कहानी तो ख़त्म हो गई मगर आज के दौर में यह कहानी अजीब सी लगती है…

और लग़ेगी ही क्योंकि आज का दौर तो ऐसी ऐसी हिरोइनों का है जिन्हें वो सब पर्दे पर करने में ज़्यादा मज़ा आता है जो ज़न्नत ने होट्क़ल के बन्द कमरे में किया था।
मेरा इशारा आप समझ ही गये होंगे।

अब आपसे विदा चाहूँगी और कहूँगी कि शौहरत और चमक दमक हर किसी को अच्छी लगती है।
मगर उस चमक के पीछे की सच्चाई उतनी ही काली होती है।

यही है आज के युग का एक सुन्दर सत्य…

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