कमाल की हसीना हूँ मैं-46

कमाल की हसीना हूँ मैं-46

शहनाज़ खान

इस दौरान मैं कई मर्तबा झड़ी और मेरी चूत ने हर बार इस कदर पानी छोड़ा कि मेरी दोनों टाँगें बुरी तरह भीग गई थीं। साशा की भी करीब-करीब यही हालत थी। हम दोनों ही हाँफती हुई ज़मीन पर टाँगें पसारे दिवारों से पीठ टिका कर बैठ गई। ब्लू-फिल्म कब पूरी होकर रुक गई थी पता ही नहीं चला।

“वॉव ! दैट वाज़ सो गुड !” कहते हुए साशा स्कॉच की बोतल मुँह से लगाकर सिप लेने लगी। (वाह, बहुत मज़ा आया !)

उसमें अभी भी आधे से थोड़ी ज्यादा स्कॉच बाकी थी। दो-तीन सिप लेकर उसने बोतल मेरी तरफ बढ़ा दी और हम दोनों के लिये सिगरेट जलाने लगी।

“यस… रियली ग्रेट ! थैंक यू साशा फोर ब्रिंगिंग मी हेयर !” मैं बोतल में से सिप लेते हुए बोली। (हाँ, बहुत बढ़िया ! मुझे यहाँ लाने के लिये शुक्रिया साशा !)

हम दोनों इसी तरह ज़मीन पर बैठे-बैठे बातें करती हुई सिगरेट और स्कॉच पीने लगीं। ज़िंदगी में कभी मैंने एक सिगरेट भी स्मोक नहीं की थी लेकिन पिछले चौबीस घंटों में ही मैं करीब दो दर्जन सिगरेट स्मोक कर चुकी थी। चेन स्मोकर साशा की सोहबत में मैं भी शाम से उसके साथ-साथ लगातार सिगरेट स्मोक कर रही थी।

“ओह शिट! वी डिड नॉट यूज़ कंडोम्स व्हाइल फकिंग दोज़ ज्यूसी कॉक्स!” टेबल पर रखे कंडोम के पैकेट देखकर साशा को ख्याल आया।

“ओह कम ऑन साशा… वी वर हैविंग सो मच फन सकिंग एंड फकिंग दोज़ कॉक्स… हॉव कुड वी केयर अबॉउट यूज़िंग कंडोम्स ओर एनिथिंग एल्स!” मैं सिगरेट का धुँआ छोड़ते हुए बे-परवाही से बोली। (अरे साशा, हम इतने सारे लण्डों से चुद कर इतना मज़ा कर चुकी पर हमने कॉण्डोम इस्तेमाल करने के बारे में तो सोचा तक नहीं !)

पंद्रह मिनट बाद उठ कर बड़ी-मुश्किल से जैसे-तैसे हमने अपने कपड़े पहने क्योंकि नशे में कुछ सूझ नहीं रहा था। पहले से ही हम नशे में लड़खड़ाती यहाँ आई थीं और अब तो हम दोनों मिलकर स्कॉच की आधी बोतल गटक चुकी थीं।

कंधों पर अपने पर्स लटकाये और बाँहों में बाँहें डाले हम दोनों झूमती हुई नीचे आईं। साशा के हाथ में करीब आधी भरी स्कॉच की बोतल भी थी। रिसेप्शन पर वही औरत मौजूद थी।

“डिड यू हैव अ गुड टाइम?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा। ( तुम्हारा समय अच्छा बीता ना?)

“येस द बेस्ट टाइम!” हम दोनों नशे में खिलखिलाती हुई बुलंद आवाज़ में बोलीं और बाहर सड़क पर आ गईं। (हाँ लाजवाब !)

रात के करीब एक बज रहे थे लेकिन पिगाल डिस्ट्रिक्ट इलाके में इस वक्त भी पूरी रौनक थी। जगह-जगह नशे में झूमते आधे नंगे लोगों के झुँड या खुले आम चूमाचाटी करते लोग दिख जाते। ग्राहकों को उकसाती रंडियाँ और ज़िगोलो भी हर जगह मौजूद थे।

हमें मेट्रो स्टेशन जाना था लेकिन नशे में कुछ होश नहीं था कि हम जा कहाँ रही हैं। सिगरेट स्मोक करती हुई और बोतल से स्कॉच के सिप लेती हुई हम दोनों नशे में चूर और मस्ती में झूमती लड़खड़ाती और एक दूसरे को सहारा देती हुई पिगाल डिस्ट्रिक्ट की मेन रोड पर चली जा रही थीं।

नशे में चूर हम दोनों बहकी-बहकी बातें करती हुई जोर-जोर से बेवजह ही हंस रही थीं। ऐसे ही बीच-बीच में रुक कर एक दूसरे के होंठ चूम लेतीं या फिर खुलेआम दूसरे टॉप में हाथ डाल कर मम्मे भींच देती।

इसी बीच में अचानक मुझे ज़ोर से पेशाब लगी तो साशा खिलखिला कर हंसते हुए बोली कि पेशाब करना है तो वहीं खड़े-खड़े पेशाब कर लूँ। मुझसे भी रहा नहीं गया। पैंटी तो वैसे ही स्ट्रिप क्लब से ही नदारद थी। बेशर्मी से हंसते हुए एक दुकान के सामने ही खड़े-खड़े ही मैंने अपनी स्कर्ट उठा कर पेशाब की धार छोड़ दी। मेरी दोनों टाँगें, पैर और सैंडल बुरी तरह पेशाब में भीग गये और पेवमेंट पर नीचे मेरे पैरों के पास पेशाब फैल गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

सच कहूँ तो इस टुच्ची हरकत में भी मुझे बहद रोमाँच आया। मेरे बाद साशा ने भी अपनी स्कर्ट उठा कर पेशाब करना शुरू कर दिया। वो बिल्कुल मेरे समने खड़ी थी और जानबूझ कर उसने पेशाब की धार मेरी टाँगों और मेरे पैरों पर भी छोड़ी।

धीरे-धीरे हम दोनों ने मिलकर वो स्कॉच की वो पूरी बोतल गटक डाली और हम इस कदर नशे में चूर हो गईं कि चार-पाँच कदम भी चल पाना मुश्किल हो गया। कभी साशा लुढ़क जाती तो मैं उसे किसी तरह उठाती और तो कभी मैं लुढ़क जाती और वो मुझे सहारे देकर उठने की कोशिश करती।

साशा ने तो उल्टी करनी शुरू कर दी और नशे में धुत्त होकर पेवमेंट पर ही आँखें बंद करके पसर गई। मेरी खुद की हालत उससे ज्यादा बेहतर नहीं थी। मैं भी लुढ़कते हुए उसके पास बैठ गई। नसीब से एक टैक्सी हमारे पास आकर रुकी। टैक्सी वाले ने फ्रेंच में और टूटी फूटी सी इंगलिश में कुछ कहा लेकिन मैं तो नशे में बुरी तरह धुत्त थी और उसकी कोई बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी। वो उतर कर मेरे पास आया तो मैंने बड़बड़ाते हुए अपने होटल का नाम दो-तीन बार बताया। उसने ही साशा को और मुझे सहारा दे कर टैक्सी में बिठाया और फिर हमें होटल पहुँचाया।

होटल पहुँच कर होटल स्टॉफ किसी बंदे ने सहारा दे कर हम दोनों को मेरे रूम में पहुँचाया। सुबह दस बजे मेरी आँख खुली तो साशा को भी अपने ही बिस्तर में पाया। वो भी मेरी तरह सिर्फ सैंडिल पहने बिल्कुल नंगी बेखबर होकर सो रही थी। मुझे बिल्कुल होश नहीं कि हम कब, कहाँ और कैसी नंगी हुईं। मुमकिन है कि टैक्सी वाले ने या फिर हमें कमरे तक पहुँचाने वाले बेल-बॉय्ज़ ने हमारी बेहोशी का फायदा उठाया हो।

शाम तक ससुर जी और हैमिल्टन भी टूर से लौट आये। कॉन्फ्रेंस दो दिन और चली। जाहिर सी बात है कि इन दो दिनों में भी मैं ससुर जी और हैमिल्टन से चुदी और साशा के साथ लेस्बियन चुदाई का लुत्फ भी उठाया। इनके अलावा ससुरजी से छिपा कर मैंने होटल में और भी कई लोगों के साथ जम कर अय्याशी की।

कॉन्फ्रेंस से वापस लौटते हुए मुझे बहुत दुख हुआ। वापस आने के बाद मेरा तो काया पलट ही चुका था। हर वक्त दिमाग में बस चुदाई का ख्याल रहता। हर जगह हर मर्द को मैं बुरी नज़र से ही देखने लगी।

ससुर जी तो मेरे दीवाने हो ही चुके थे और हमारे बीच अब कोई शर्म या रिश्ते का लिहाज बाकी नहीं रह गया था। इसलिये सासू जी की नजरें बचा कर कभी रात को तो कभी घर से बाहर, किसी होटल में तो कभी उनके केबिन में मिलते थे। सासूजी को हमारे जिस्मानी ताल्लुकात की भनक नहीं लगी।

चुदाई के अलावा मुझे दूसरी बुरी आदतें भी लग गई थीं। शराब पीने की तो मैं पहले से ही शौकीन थी लेकिन रोज़ाना पीने की आदत नहीं थी। अब तो हर रोज़ सिगरेट-शराब की तलब होने लगी। ससुरजी को फुसला बहका कर शराब का इंतज़ाम तो हो जाता लेकिन सिगरेट तो मुझे बहुत छुपछुपा कर कभी-कभी ही स्मोक करने को मिलती।

ससुर जी के साथ चुदाई में मज़ा तो बहुत आता था पर वो हर वक्त तो मेरे साथ हो नहीं सकते थे। वैसे भी मैं तो इतनी बिगड़ गई थी कि अक्सर मेरा मन करता कि दो या तीन मर्दों से एक साथ चुदवाऊँ। लेकिन ये मुमकिन नहीं था।

जब ससुर जी के साथ मौका नहीं मिलता तो अपने कमरे में ब्लू-फिल्मों की डी-वी-डी चला कर या फिर पैरिस की अय्याशियाँ याद करते-करते अपने नये डिल्डो से अपनी प्यास बुझाती। हालत यह थी कि घर के नौकरों तक को मैं गंदी निगाह से देखती लेकिन सास-ससुर की वजह से कुछ भी करने की हिम्मत नहीं होती थी।

अभी जावेद की वापसी में काफी वक्त बाकी था। इसी बीच में जेठ जी भी मुझे लेने आ गये। काफी दिनों से उनके पास आकर ठहरने के लिये ज़िद कर रहे थे, लेकिन मैं ही टालती रही। मगर इस बार ना कहा नहीं गया।

मैं उनके साथ उनके घर हफ़्ते भर रही। हम दोनों औरतें उनकी दो बीवियों की तरह उनके अगल-बगल सोती थीं। रात को फिरोज़ भाईजान हम दोनों को ही खुश कर देते, उनमें अच्छा स्टैमिना था।

नसरीन भाभीजान तो मुझ पर जान छिड़कने लगी थी। हमारे बीच अब कुछ भी राज़ नहीं रहा। मेरा डिल्डो देख कर तो वो बहुत उत्तेजित हुईं। फिरोज़ जब ऑफिस में होते तो हम दोनों शराब पीकर दिन भर लेस्बियन सैक्स एन्जॉय करतीं।

नसरीन भाभीजान को भी मैंने सिगरेट शुरू करवा दी। फिरोज़ जब ऑफिस से लौटते तो उसके पहले वो खुद बन संवर कर तैयार होती और फिर मुझे भी सजाती संवारती। हम दोनों उनके आने के बाद छोटे-छोटे सैक्सी कपड़ों में उनसे लिपट जातीं और उनके साथ चुदाई का खेल शुरू हो जाता।

जावेद के लौट आने के बाद हम वापस मथुरा शिफ़्ट हो गये। ताहिर अज़ीज़ खान जी ने मुझे चोदने का एक रास्ता खुला रखा। उन्होंने जावेद को कह दिया, “शहनाज़ एक बहुत अच्छी सेक्रेटरी है। अभी जो सेक्रेटरी है वो इतनी एफ़िश्येंट नहीं है। इसलिये कम से कम हफ़्ते-दो-हफ़्ते में इसे भेज देना दिल्ली। मेरे जरूरी काम निबटा कर चली जायेगी।”

जावेद राज़ी हो गया कि मैं हर दूसरे हफ़्ते में एक दो दिन के लिये ससुर जी के ऑफिस चली जाया करुँगी और सारे पेंडिंग काम निबटा कर आ जाया करुँगी। लेकिन असल में मैंने कभी भी ऑफिस में कदम नहीं रखा। ताहिर अज़ीज़ खान जी ने एक फ़ाईव स्टार होटल में सुईट ले रखा था जहाँ मैं सीधी चली जाती और हम दोनों एक दूसरे के जिस्म से अपनी प्यास बुझाते।

मथुरा में तो मेरी अय्याशियों पर कोई रोक-टोक नहीं थी। शुरू-शुरू में जावेद थोड़ा हैरान हुए और उन्होंने थोड़ा एतराज़ भी जताया पर धीरे-धीरे मेरी स्मोकिंग और रोज़-रोज़ शराब पीने की आदत को उन्होंने चुपचाप कुबूल कर लिया।

चुदाई के लिये मेरे नये जोश और खुलेपन से तो उन्हें बेहद खुशी हुई। सैक्स के मामले में तो जावेद भी काफी ओपन नज़रिये वाले हैं। अब तो सोसायटी पार्टियों में मैं पहले से भी ज्यादा बढ़चढ़ कर एन्जॉय करती और हम लोग अब वाइफ स्वैपिंग में भी शरीक होने लगे।

जावेद कई बार बिज़नेस टूर या और मसरूफियत की वजह से इन पर्टियों में नहीं जा पाते तो भी मैं इन पार्टियों में जाने का मौका नहीं छोड़ती। जब भी मौका मिलता मैं उनकी गैरहाज़री में भी अकेली ही क्लबों में और दूसरी पर्टियों में शरीक होती। इस तरह मुझे कई बार ग्रुप सैक्स का भी मौका मिल जाता।

जावेद को दूसरे मर्दों से मेरे ताल्लुकातों से बिल्कुल एतराज़ नहीं था। उनके बिज़नेस रिलेशन्स के लिये भी अच्छा था क्योंकि शायद ही उनका कोई क्लायंट या कॉन्ट्रक्टर होगा जिसके साथ मैंने अय्याशी ना की हो।

दो तीन महीने में हालत यह हो गई कि मैं अक्सर दिन में भी माली, दूध वाले, सब्ज़ी वाले से भी चुदवाने लगी, यहाँ तक कि कोरियर वाले या किसी सेल्समैन से चुदवाने से भी बाज़ नहीं आती।

मेरे इन ताल्लुकातों के बारे में जावेद अंजान नहीं थे लेकिन हमने कभी इस बारे में बात नहीं की। इस दौरान हम लोग कई बार फिरोज़ भाईजान और नसरीन भाभी जान के यहाँ भी गये या वो दोनों भी अक्सर हमारे यहाँ आ जाते और हम चारों खूब ऐश करते।

साल भर बाद की बात है कि एक दिन मुझे जोर की उबकाई आई। मैंने डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने प्रेगनेंसी कनफर्म कर दी। मैं खुशी से उछल पड़ी।

लेकिन इसका असली बाप कौन? ये ख्याल दिमाग में घूमता रहा। मैंने फैमिली में अपने तीनों सैक्स पार्टनर्स जिनसे मैं चुदती थी, यह खबर दी, तीनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। तीनों को मैंने कहा कि वो बाप बनने वाला है।

पहले के लिये: इस उम्र में बाप बनने की खुशी।

दूसरे के लिये: उसकी मर्दानगी का सबूत और,

तीसरे के लिये: उसके घर की पहली खुशी थी।

तीनों ने मुझे प्यार से भर दिया। पूरे घर में हर शख्स खुशी में झूम रहा था। सास, नसरीन भाभी, सभी व्यस्त थे घर के नये मेम्बर के आने की खुशी में। हमारा पूरा खानदान दिल्ली में ताहिर अज़ीज़ खान जी के बंगले पर सिमट आया था। बस मुझे एक अजीब सी उलझन कचोट रही थी कि मेरे होने वाले बच्चे का अब्बा कौन है।

मैं तो बस यही दुआ कर रही थी कि चाहे वो जिसका भी हो, अल्लाह करे हो वो इसी घर का खून। देखने बोलने में इसी परिवार का ही नज़र आये। वरना मैंने जितने लोगों के साथ सैक्स किया था, उनमें से किसी और का हुआ तो लोगों को समझा पाना मुश्किल होगा।

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