खेत में लंड की होली भौजाई की गांड में

खेत में लंड की होली भौजाई की गांड में

दोस्तो, मेरा नाम अभिषेक यादव है मैं गाँव का रहने वाला हूँ। बीएससी करने के लिये मैं गाँव छोड़कर गाज़ीपुर शहर चला आया। मैं पढ़ाई की शैली और शरीर की बनावट, इन दोनों में निपुण हूँ।

मैं पिछले 5-6 सालों से अन्तर्वासना डॉट काम की कहानियों को नित पढ़ता आ रहा हूँ, कभी झूठी कहानियाँ लिखने का मन करता मग़र अनुभव न होने के कारण लिख नहीं पाता था।
यह मेरे पहले सेक्स की पहली कहानी है जो बिल्कुल सच्ची है।

पिछले दिनों मैं होली की छुट्टी में गाँव आया था, गाँव की खुशबू ही अलग होती है।
मैं गाँव का छोकरा, उम्र 20 साल, लंबा कद, गोरा रंग, हृष्ट-पुष्ट गठीला शरीर, लिंग मोटा-सुडौल 8 इंच का लिये हुए भी मूठ मारता था।
अक्सर गाँव के लड़के शर्मीले टाइप के मजनू होते हैं मैं भी उनमें से एक था।

वैसे तो गाँव की लड़कियाँ मेकअप नहीं करती मगर कुदरत का करिश्मा होती हैं साहब ! मैं गाँव का सबसे शर्मीला, यूँ कहे तो मैं किसी को आज तक भरी निगाहों से देखा नहीं था।
मगर मूठ मारते वक्त गाँव की सभी कुंवारी बालाओं व भौजाईयों की चूत मारता था।
मजाल क्या थी साहब जो किसी भौजाई को छू भर सकूँ!
लेकिन भौजाइयाँ होती ही ऐसी हैं जिनके एक एक शब्द से लंड खड़ा होकर, गोटियों से 135 डिग्री का कोण बना ले।

हाँ तो मुद्दे पे आते हैं, मैं गाँव आया हुआ था, गाँव के लोग अपने कामों में व्यस्त थे और मैं अन्तर्वासना डॉट काम की सीमा सिंह की चूत पर।
लगभग पहला भाग पढ़ने तक मैं दोबारा मूठ मार चुका था।
मेरा लंड चूहे की तरह सिकुड़ कर 4 इंच का हो गया था।

जब कहानी खत्म हुई तो मैं गाँव के बाहर घूमने निकल पड़ा।
कुछ देर टहलने के बाद मैं अपने गेहूँ के खेत तक पहुँचा। पेशाब लगी थी मगर हो नहीं रहा था, दो बार मूठ जो मारी थी, मैंने देर तक पेशाब करने का असफल प्रयास किया तब तक गोटिया शिथिल हो गई थी।

कुछ देर बाद मुझे चर-चराहट की आवाज़ सुनाई दी, आगे बढ़ कर देखा तो कोई अपने ही गाँव की औरत थी जो गेहूँ काट रही थी।
पीछे से गांड इतनी मोटी थी कि क्रिकेट के बल्ले का निचला सिरा भी डाल दे तो उसकी गांड जस की तस।
मूठ मारने के बाद लोगों की वासना वैसे ही कम हो जाती है मगर मेरे भीतर की आग उस मोटी गांड को देखकर चार गुने उत्साह से धधक रही थी।

मैं तुरन्त गेहूँ की फसल में छिप गया और झुरमुट से उसकी गांड उठा-उठाकर फसल की कटाई को देख रहा था।
इधर डर भी लगा रहता कि कहीं कोई गाँव का आदमी न आ जाए, वरना होली से पहले ही मेरी खून की होली कर देगा, उधर वो आइटम उसी भाव में कटाई कर रही थी।
कुछ देर बाद वो उठी और बगल के खेत में अपना पेटिकोट उठा कर मूतने लगी।

‘अरे ई का? सुकुमारी भौजी…? एकाएक मुंह से निकल पड़ा।
असल में ये वही सुकुमारी भौजी हैं जो 3-4 होली से मेरी पैंट खोल कर रंग डालती और गरियाती भी खूब थी, इनका मर्द दुबई कमाता है।

मैं खड़ा हुआ और अपने चारों तरफ सिवान में देखा कोई नहीं था, पशु-पक्षी यहाँ तक कि हवा भी नहीं चल रही थी। सिवाय घड़ी के; घड़ी में एक बजने को है और पूरा एरिया सुनसान; हो भी क्यों न खेत और गाँव के बीच 3 किलोमीटर का फासला जो था।
सुकुमारी भौजी उठी और अपने काम में लग गईं।
इधर मेरा लण्ड बम्बू की तरह खड़ा होकर उस मोटी गांड को बेधने के लिये तत्पर हो रहा था।

‘सुकुमारी भौजी’, उम्र यही कोई 32-33, रंग गेंहुआ, जुलजुला शरीर, चूचियों का उभार सामने की तरफ, चेहरे का ‘नूर’ तमतमाया हुआ मानो आज भी शहर की लौंडियों को मात दे दे, काले-रेशमी बाल, भौंहे धनुष की तरह, गांड के बारे में तो पहले ही बता चुका हूँ।
साहब, रह गयी चूत तो देखिये आगे क्या-क्या होता है…

इधर मैं अपने लंड को सहला सहला कर चर्मोत्तकर्ष की स्थिति में आते ही छोड़ देता, लंड की नसें उग आई थी, सिसकरियाँ निकल रही थी मगर उस सुकुमारी भौजी की गांड अभी भी घुसक-घुसक के मुझे चैलेंज दे रही थी मानो मैं कुछ कर नहीं सकता।

उधर सुकुमारी भौजी गेहूँ काट रही थी इधर मैं समय।
कुछ देर बाद मैं वासना से लिप्त मदान्ध की स्थिति में पहुँच गया और धीरे से उठकर सहमे-सहमे कदमों से उस ललचाती गांड की तरफ चल दिया… न घर वालों का डर, न गाँव का डर, अगर किसी चीज का डर था तो वो थी कामवासना।

ज्यों-ज्यों मैं नजदीक जाता, दिल की धड़कने त्यों-त्यों बढ़ने लगती थी।
आख़िरकार मैं सुकुमारी भौजी के पीछे तक पहुँच गया और धीरे से झुककर बड़े झटके के साथ उनकी दोनों चूचियों को दबोच लिया।
मेरे द्वारा अचानक से हुये हमले से सुकुमारी भौजी सहम गईं और जोर से चीखने लगी, यहाँ तक की उन्होंने अपने काटने वाले औज़ार से प्रहार तक कर दिया मगर मैं बाल-बाल बचा।

मेरे द्वारा बलपूर्वक किये गए इस दुःसाहस से सनी लियोन भी बुर देने से इन्कार कर दे, वो तो ठहरी गंवई सुकुमारी भौजी।
सुकुमारी भौजी ने जोरदार थप्पड़ जड़ दिया मगर मुझे अहसास तक नहीं हुआ और बे-हिचक उनके दोनों संतरों को हठपूर्वक दबाने लगा।
कभी हाथ से कभी पैर से तो कभी जोरदार गाली से सुकुमारी भौजी मुझ पर वार करती, तब तक मैं दूसरा हाथ उनकी बुर पे रख कर खुजाने लगा।

कुछ देर बाद चीखना-चिल्लाना बन्द हुआ और उन्होंने अपने आप को खुला छोड़ दिया, इधर मैं अपने आगोश में आ चुका था, मैं फटाक से सुकुमारी भौजी की चोली खोलकर उनके दोनों मोम्मे को सहलाने लगा, कभी जीभ से चाटता तो कभी मुंह पिचका के उन निप्पल को चूसता था।

कुछ ही क्षणों में सुकुमारी भौजी के मोम्मे से दूध बाहर निकल आया।
कितना मीठा था ! वाह ! अनुपम !
इधर सुकुमारी भौजी सिसकारियाँ लेती खुले खेत में खुली तरह लेटी थी और मैं उनके ऊपर।
सुकुमारी भौजी के बेड़े जितना दूध 3 महीनों में न पिया होगा उससे अधिक दूध मैंने कुछ ही देर में निकाल दिया।

भौजी ऊपर से खुली हुई निढाल आँखें मींच रही थी और मेरा दूसरा हाथ उनके साड़ी के ऊपर से उनकी बूर को पनिया रहा था।
उधर मैं सुकुमारी भौजी के चूचियों को दबाते हुए उनकी साड़ी को धीरे-धीरे खीचने लगा, ईधर सुकुमारी भौजी मेरे पैंट का चैन खोलकर मेरे 8 इंच के तने लंड को मेरे कसे हुए पैंट से निकालने लगी।

‘हेतना बड़ !’ भौजी ने आश्चर्य से कहा।
इधर मैंने जल्दबाज़ी में सुकुमारी भौजी के सारे कपड़े निकाल दिये।
‘क्या चूत थी !’ चूत के पहले दर्शन से मनमुग्ध हो गया, चूत के चारों तरफ जंगल की भांति घास उसकी अनुपम छटा में चार चाँद लगा रही थी।

मैं आज तक मूठ मारते हुए लाखों पोर्न वीडियो देख चुका था मगर यह चूत उन वीडियो में दिखाई गई चूतों से कहीं अलग थी।

जिंदगी का पहला सेक्स वो भी ब्याही औरत से…
मैंने पूछ ही लिया- सुकुमारी भौजी, पिछली बार कब चुदवाई थी आपने?
‘तुम्हरे भैय्या जब दुबई से आये थे तब !’
मतलब चार बरस के करीब; मैंने मन ही मन हिसाब लगाया और बहुत खुश हुआ क्योंकि अब मुझे कुंवारी जैसी चूत का मज़ा जो मिलने वाला था।

मैंने झट से सुकुमारी भौजी को बाँहों में पकड़ा और उठा लिया, नीचे भौजी ने अपनी साड़ी-चोली और मेरे कपड़े बिछाते हुये बोली- जल्दी से चूत को चोदो वरना झड़ जाऊँगी।
अन्तर्वासना का पक्का पाठक हूँ तो इसलिये मैं भली भांति जानता था कि एक बार झड़ने के बाद स्टेमिना बढ़ जाता है।

मैंने तुरन्त सुकुमारी भौजी के मुंह तरफ अपना तना हुआ लंड किया और उनकी चूत पर अपना मुंह रखा।
गाँव की औरतें मुंह में लंड नहीं लेती होंगी ऐसा भ्रम मुझे पहले लगता था मगर ज्यों ही मैंने सुकुमारी भौजी की तरफ अपना लंड किया, उन्होंने तुरन्त मेरा आधा सुपाड़ा मुँह के भीतर ले लिया।

इधर मुझे चूत चाटने में बड़ी दिक्कत हो रही थी क्योंकि सुकुमारी भौजी की झांटें मेरे लंड की लम्बाई से थोड़ी ही छोटी होंगी।
भौजी की झांटे बार-बार मेरे मुंह में आ जाती फिर भी उनकी चूत की क्लिट को मेरी जिह्वा बहुत आसानी से रगड़ बना रही थी।

कुछ देर बाद मैं झड़ने वाला था, मैंने सुकुमारी भौजी के मुंह से हथौड़ा निकलना चाहा मगर उनकी पकड़ के आगे विवश था।
थोड़ी देर में मैंने अपना सारा वीर्य सुकुमारी भौजी के मुख में उड़ेल दिया और दूसरी ओर हो गया।
‘बस राजा, हतने जोर हव, बड़ी ताव से चूची धके झुलत रहला ह !’ भौजी ने चूत में अंगुली डालते हुवे कहा।
सुकुमारी भौजी के ऐसे कर्णभेदी शब्द मेरे लण्ड को खड़ा करने में पुरजोर समर्थन दिखाया और मैं उठ के खड़ा हुआ।
मैं हारा हुआ बाज़ीगर की तरह सुकुमारी भौजी पे टूट पड़ा।

इस बार मैं अपने लंड को भौजी के चूत पे रगड़ते, दूसरी ओर उनके निप्पल को दांतों से काटते हुए अपनी बहादुरी दिखाने का मौका ढूंढ रहा था।
मैं आहिस्ता-2 लंड को चूत में डालने की कोशिश करने लगा मगर चूत की सख्ती ने किये कराए पर पानी फेर दिया।
कुछ ही देर में दो-चार झटकों के बाद सुकुमारी भौजी के चूत के सारे दरवाजे मकड़ी के झाले की तरह हट गए।

इधर मेरे दोनों हाथ सुकुमारी भौजी की चूचियों पर उधर सुकुमारी भौजी का एक हाथ उनकी चूत की रगड़ में और दूसरा हाथ मेरे बालों को खींचते हुए।
मेरे लम्बे-2 झटकों से सुकुमारी भौजी का तन सिहर जाता।

मेरा पूरा लंड सुकुमारी भौजी की चूत गटक गई और दर्द ने सुकुमारी भौजी को रोने पे मजबूर कर दिया।
उन सुनसान खेतों में सुकुमारी भौजी की आवाज़ बहुत कटाह लग रही थी, मैंने अपने विजय रथ को यूँ ही कुछ देर तक जारी रखा।

कुछ देर बाद मेरी रफ़्तार में कई गुना बढ़ोत्तरी होने लगी और सुकुमारी भौजी भी मेरा भरपूर सहयोग देने लगी।
लगभग दस मिनट चलने के बाद मेरी बैटरी लो हो गई, उधर सुकुमारी भौजी भी।
हम लोग अभी एक दूसरे से लिपटे हुए थे।

‘एक बेर आउर…’ कहते हुए सुकुमारी भौजी मेरे होंठों को चूमने लगी।
मैं हैरान था मगर ताज्जुब की बात यह है कि 4 साल की वासना आज इस सिवान में कैसे भड़क उठी?
मरता क्या न करता?
कई धक्के मारने के बाद मेरे लंड में चोटें आ गई थी मगर वासना अभी भी अतृप्त।

‘अबकी बार गांड मारेंगे?’
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सुकुमारी भौजी ने हामी भर दी।
आखिर मेरी सफलता का मूल रहस्य इसी गांड से तो जुड़ा हुआ है।

इस बार फिर पूर्व की भांति सुकुमारी भौजी ने मेरा लंड मुंह में लेते हुए, बाहर-भीतर की क्रियाशैली में मेरे मन को रिफ्रेश कर दिया।
इस बार तिगुनी उत्तेजना के साथ सुकुमारी भौजी ने मेरे विश्वास को जगाया।
वही मोटी गांड जो कुछ देर पहले तक मुझे ललचाती थी, वही आज मेरे मोटे लंड का शिकार बनने जा रही है।

मैंने भी उस सुकुमारी भौजी की मोटी गांड के चैलेंज को हाथों हाथ लिया और इतनी जोरदार ठुकाई की कि सुकुमारी भौजी की बिलखने की आवाज़ आधे मील तक सुनी जा सकती थी।
धीरे धीरे मैं सुकुमारी भौजी के बदन को शहद की तरह चाटते हुए अपनी जीत पर ख़ुशी मना रहा था उधर सुकुमारी भौजी अपनी साड़ी के प्लीट बना रही थी।
शाम होने वाली है, सुकुमारी भौजी ने कराहते हुए कहा- चैत में तुमसे झांट कटवायेंगे’
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