गन्ने के जंगल में मेरी चूत का मंगल

गन्ने के जंगल में मेरी चूत का मंगल

दोस्तो, मैं जो कहानी लिखने जा रहा हूँ, यह मेरी दोस्त सुजाता की कहानी है। सुजाता ने मेरी कहानी ‘बरसों की प्यास पर प्यार की बरसात’ पढ़ी और मुझे ईमेल में लिखा कि वो अपनी आप-बीती कहानी मुझसे लिखवाना चाहती है।
मेरा लण्ड उसकी ईमेल पढ़ कर ही सर उठाने लगा और मैंने शुरू किया सुजाता से उसकी चूत चुदाई की सिलसिला जानना और वो भी अपना लण्ड हाथ में लिए।

आगे की कहानी सुजाता की ज़ुबानी:

बात कुछ साल पुरानी है जब मैं बिहार में एक सरकारी स्कूल में टीचर के तौर पे प्राइमरी क्लास को पढ़ाती थी। स्कूल एक गाँव में था और स्कूल से एक छोटा पर कच्चा रास्ता खेतों से होकर मेरे कमरे तक जाता था।
स्कूल की छुट्टी शाम छः बजे होती थी।

आम तौर पे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के माता पिता बच्चों का ज़्यादा ध्यान नहीं रखते पर मेरी एक स्टूडेंट चारु, जो क़रीब छः साल की होगी, उसके पिता मटरू अक्सर स्कूल आते और अपनी बेटी की पढ़ाई के बारे में पता करते।
मुझे भी उनसे मिलके उनके एक ज़िम्मेदार पिता होने का आभास होता।

वो रोज़ अपनी बेटी को छुट्टी के समय स्कूल से लेने आते और उसी कच्चे रास्ते से, मेरे आगे पीछे ही वापस जाते।
इसी बीच वो मेरे से अपनी बेटी के बारे में बात भी कर लेते और कभी कभी मेरी सुंदरता की तारीफ़ भी कर देते। जब वो मेरी तारीफ़ करते तो मुझे अच्छा लगता और मैं हल्के से मुस्कुरा भी देती जिसको शायद उन्होंने कई बार भाँप भी लिया था।

मटरू पेशे से किसान था और क़द काठी में मज़बूत, लम्बा क़द, सिर गंजा, बहुत साँवले और इकहैरे बदन का आदमी था मटरू!
उनकी बोली थोड़ी अक्खड़ थी, जैसे कि बिहारियों की अक्सर होती है।

मैं अपने बारे में भी बता दूँ। मैं 42 साल की एक साँवली, 5′ 9″ लम्बी, 38-36-42 के आकर्षक जिस्म वाली औरत हूँ जिसका कुछ समय पहले तलाक़ हो चुका है।
हाइट लम्बी होने के कारण, आप मुझे ना पतली कहेंगे और ना मोटी पर एक सामान्य औरत जो देखने में आपका मन लुभा ले। मैं जिस्म से बहुत गरम हूँ और पति से अलग होने के बाद से किसी लण्ड को ना खाने के कारण बहुत भूखी भी।
मैंने कुछ समय से महसूस किया था कि एक अच्छे, गठीले मर्द को देख कर मेरी चूत एकाएक पानी छोड़ने लगी थी।

एक दिन चारु स्कूल नहीं आई पर शाम को मटरू रोज़ की तरह स्कूल के बाहर खड़े थे।
मैं अपने रास्ते चलने लगी और वो मेरे पीछे पीछे उसी कच्चे रास्ते पे थे। कुछ दूर जाकर मैंने उनसे चारु के बारे में पूछा तो वो बोले की चारु अपनी माँ के साथ अपनी नानी के गई है।
उन्होंने यह भी बताया की उनकी पत्नी पेट से है और वो अब डिलिवरी के बाद वापस आएगी।

सर्दी के दिन थे तो अँधेरा हो चुका था। वो चलते हुए मेरी तारीफ़ कर रहे थे और मुझे कुछ अलग महसूस हो रहा था। मुझे ठोकर लगी और मेरे हाथ से एक फ़ाइल ज़मीन पे गिर गई।
मैं उसको उठाने के लिए नीचे बैठी तो मैंने देखा कि मटरू मुझे घूर रहा था। मेरी नज़र मटरू की धोती पे पड़ी तो उसके खड़े लण्ड को मैं भाँप गई।

मैंने पूछा- आप ऐसे क्या देख रहे हैं?
तो मटरू बोला- आप बहुत सुंदर हो मैडम जी और मैं आपको चाहने लगा हूँ।

इस दौरान मैं काग़ज़ उठा रही थी और मेरी पीठ उनकी तरफ़ थी। इससे पहले मैं कुछ कहती या करती, मटरू ने मेरे कूल्हे हाठों में भर के ज़ोर से दबा दिये और साथ ही मेरी चूत से गान्ड तक अपनी उँगलियाँ दौड़ा दी।
इससे मेरे रोंगटे खड़े हो गए और चूत में हलचल मच गई।

मैंने पलट कर मटरू को घूर के देखा और डाँटना शुरू ही किया था कि उसने मुझे आँख मारी और एक पप्पी हवा में उछाल दी।
उस समय उस कच्चे रास्ते पे दूर दूर तक कोई नहीं था और खेतों में लम्बी लम्बी गन्ने की फ़सल थी।
माहौल का फ़ायदा उठाते हुए मटरू ने मेरे स्तनों पे हाथ रख, मुझे अपनी आग़ोश में ले लिया।

मैं झटपटाई और ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी कि उन्होंने मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए।
मैंने उसको धकेलने की कोशिश की पर उसकी ताक़त के आगे मेरे प्रयास बेकार थे और वो मुझे अपनी गोद में उठा के खेतों के बीच ले गया।
वहाँ से दूर दूर तक ना कोई इंसान था ना इंसान की जात और मैं समझ गई थी कि आज हर हाल में मेरी चुदाई होकर ही रहेगी। क्यूँकि मेरी चूत भी पानी छोड़ रही थी और मैं बहुत समय प्यासी भी थी, मैंने मन बना लिया था कि इस मौक़े का पूरा फ़ायदा उठाऊँ।

अब तक हम खेतों के बीच पहुँच गए थे और मटरू ने मुझे ज़मीन पे पटक के मुझे ज़ोरदार दो थप्पड़ लगा दिए।
मैं होश में आती, उससे पहले उसने मेरी साड़ी मेरे बदन से अलग कर उसको ज़मीन पे बिछा मुझे उसके लेटने को मज़बूर कर दिया। मैं उसके थप्पड़ों से घबराई, जैसे उसने कहा वैसे करने लगी।

मटरू ने बड़ी बेरहमी से मेरे कपड़े मेरे शरीर से अलग किए और अपनी धोती कुर्ता उतार साइड में फेंक दिया, उसके आठ इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे काले लण्ड को देख कर मुझे कंपकँपी छूट रही थी और रोमांच भी हो रहा था कि मेरी चुदाई एक असली मर्द से होने वाली है।

मटरू ने मेरे स्तनों से खेलना शुरू कर दिया पर उसका खेलना मुझे दर्द दे रहा था क्यूँकि वो मेरे निप्पलों को बेदर्दी से मसल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो बहुत लम्बे समय से चूत ढूँढ रहा था और अब उसको हाथ आई तो वो सारी कसर पूरी करना चाहता था।

मैं यह सोचकर उसका साथ नहीं दे रही थी कि अगर इस बारे में किसी को पता चला तो मेरी इज़्ज़त ख़राब होगी और वैसे भी मैं वहाँ अकेली रहती थी तो मेरे लिए सावधान रहना बहुत ज़रूरी था। पर अब मैं दिखावटी ना को भूल अपनी अन्तर्वासना को पूरा करना चाहती थी।
तो मैंने सब लाज हया त्याग के मटरू का साथ देना शुरू कर दिया।

वैसे भी मैं बहुत लम्बे समय से प्यासी थी और मुझे इससे अच्छा मौक़ा और लण्ड शायद नहीं मिलता।
मटरू ने मेरे पूरे शरीर को अपने चुम्मों से ढक दिया और वो बीच बीच मुझे काट भी रहा था। जहाँ उसका एक हाथ मेरे शरीर पे ऊपर से नीचे तक मेरा मर्दन कर रहा था, वहीं उसका दूसरा हाथ मेरी चूत में ऊँगली कर मुझे चरम पे ले जा रहा था। उसका जंगली रवैय्या भी मुझे सुख दे रहा था।

मटरू ने मेरी चूत को चाटने के लिए जैसे ही अपना मुँह मेरी चूत पे रखा, मैं एक झरने की तरह बहने लगी और मैंने मटरू का पूरा मुँह अपने रस से भर दिया।
मटरू के होंठों से जहाँ मेरा रस बह रहा था, वहीं जितना सम्भव था, मटरू ने मेरे रसों को अपने गले से नीचे उतार लिया।

उसकी आँखों में नशा साफ़ नज़र आ रहा था और अब वो अपने लण्ड को मुझे चुसाना चाहता था।
मुझे उसके लण्ड से एक अजीब महक आ रही थी और वो बहुत साफ़ भी नहीं था पर मेरे मना करने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा और उसने मेरे बालों को पकड़, अपना लण्ड मेरे मुँह में ठूँस दिया।

उसको चूसने में मुझे धीरे धीरे मज़ा आने लगा पर वो इतना मोटा था कि उसको मुँह में लेने में मेरे मसूड़े दर्द करने लगे थे।
थोड़ी ही देर में मटरू के लण्ड ने अपना बहुत सारा पानी मेरे मुँह में छोड़ दिया। उसके झड़ते लण्ड ने मेरे मुँह के अलावा मेरे पूरे चेहरे, बाल, मेरे चूचों और पेट को भी चिपचिपा कर दिया था।

इतना पानी झाड़ने के बाद भी मटरु का लण्ड जैसे का तैसा खड़ा था।
अब मटरु ने ख़ुद को मेरे ऊपर लिया और अपने लण्ड को मेरी चूत पे टेक दिया।
मैं आँखें बन्द किए इंतज़ार कर रही थी कि कब ये धक्का लगाए और मुझे जन्नत की सैर कराए और वो अपने लण्ड को मेरी चूत से हल्के से छुआ के जैसे इंतज़ार कर रहा था।

मैंने आँखें खोल के उसका देखा और उसने एक ज़ोरदार प्रहार के साथ अपने मूसल को मेरी संकरी चूत में पेल दिया। इस अचानक हुए हमले से मेरे मुँह से चीख़ निकली जिसको सुनने वाला वहाँ दूर दूर तक कोई नहीं था।
मेरी आँखों से आँसू निकल गए थे पर जो सुख मुझे मटरु दे रहा था, उसका इंतज़ार मैं जाने कितने सालों से कर रही थी।
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मटरु एक साण्ड की तरह मेरे ऊपर चढ़ाई कर रहा था और मैं भी अब उसकी हर ठप का आनन्द ले रही थी। मैं मटरु के चेहरे को चाट रही थी और उसके पसीने के नमकीन स्वाद का आनन्द ले रही थी।
मटरु की ताबड़तोड़ चुदाई से मैं दो बार झड़ चुकी थी कि मटरु ने मेरे कंधे पे अपने दाँत गाड़ मुझे बहुत ज़ोर से काठते हुए एक चिंघाड़ के साथ मेरे अंदर ही अपना पानी छोड़ दिया और मेरे ऊपर ढेर हो गया।

झड़ने के बाद भी मटरु मेरी चूत में हल्के धक्के लगा रहा था और उसके लण्ड से गिरती हर बूँद मैं महसूस कर सकती थी।
मैंने मटरु को बोला- बहुत देर हो गई है, अब मुझे अपने कमरे के लिए चलना चाहिए।

पर उसका मन कुछ और था। बहुत अंधेरा हो चुका था पर उसको किसी बात की कोई परवाह नहीं थी। उसको जो चाहिए था वो उसके नीचे था – मैं और मेरी चूत।
मैंने उठने की कोशिश की तो उसने मुझे एक और थप्पड़ लगा दिया और बोला- आज रात भर तेरी चुदाई होनी है। फिर चाहे यहाँ खेतों में या मेरे घर या तेरे कमरे पे, पर चूदाई पूरी रात करूँगा और तब तक करूँगा जब तक तू यहाँ है।

मैंने मटरु को बोला कि वो जब चाहे मुझे और मेरी चूत को भोग सकता है पर उसका प्यार जताने का तरीक़ा कुछ अलग था, वो थोड़ा जंगली था और उसने बड़े अल्हड़ तरीक़े से मेरे गाल खींचते हुए कहा- अब तू मेरी रांड है और मैं जब चाहूँगा, जो चाहूँगा, वो करूँगा। मुझे तुझसे पूछने की ज़रूरत नहीं है साली!

मटरु का लण्ड फिर खड़ा हो चुका था और उसने एक बार फिर उसको मेरी चूत में पेल दिया।
उस रात मटरु में वहाँ खेत में मेरी तीन बार चुदाई की और जब सुबह होने को आई तो उसने मुझे उठा कर अपने कमरे पे जाने को बोला।
मेरी चूत और पेट में बहुत दर्द हो रहा था और मुझे चलने में भी दर्द हो रहा था, मैंने जैसे तैसे अपने कमरे तक का रास्ता पूरा किया और अपने बिस्तर पे जाकर सो गई।
मैं उसके बाद वहाँ क़रीब एक साल और रुकी और मटरु ने मेरी लगभग रोज़ ही बेदर्द चुदाई की।

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