चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए-2

चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए-2

अभी तक मेरी कहानी के पिछले भाग
चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए-1
आपने पढ़ा कि बीवी के साथ सुहागरात में मेरे लंड ने मेरा साथ नहीं दिया, पहली रात बीत जाने के बाद सुबह हुई; मैं निराशा के चंगुल से निकलने की कोशिश कर रहा था और मन को बार बार यह कहकर दिलासा दे रहा था कि पहली रात तो जोश में ऐसा हो ही जाता है, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।

लेकिन साथ में ये बात भी मुझे खाए जा रही थी कि पता नहीं मेरी बीवी मेरे बारे में क्या सोच रही होगी, मैंने अपने दोस्त विक्की को फोन किया और सारी बात उसको बता दी। विक्की मेरा खास था और वो मेरी हर बात जानता था, हमने कई बार साथ में पॉर्न फिल्म देखते हुए मुट्ठ भी मारी हुई थी।
विक्की ने मुझे दिलासा देते हुए कहा- चिंता करने की कोई बात नहीं है, पहली रात में एक्साइटमेंट में ऐसा हो जाता है। वैसे भी कविता जैसी सुंदर लड़की को देखकर तो किसी का भी अंडरवियर गीला हो सकता है।

विक्की की बातों से मुझे थोड़ी तसल्ली हुई, अगले दिन अपने मायके से आने के बाद जब दूसरी रात को हमने सेक्स करना शुरु किया तो फिर से वही हालत हो गई। उस रात को मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं दोबारा कविता के बदन को छू सकूं। निराशा और चिंता ने मुझे घेर लिया, मैं करवट बदल कर सो गया।

सुबह उठकर देखा तो कविता बेड पर नहीं थी। मैं फ्रेश होकर बाहर गया तो सब लोग नाश्ता करने में लगे हुए थे। कविता मेरी माँ के साथ नाश्ता बनाने में हेल्प कर रही थी। मैं हॉल में जाकर टीवी देखने लगा, मन को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन ध्यान बार-बार उसी शर्मिंदगी पर जाकर अटक जाता था।

मैं नाश्ता करने के बाद नहा-धोकर विक्की के पास उसके घर चला गया। वो पहले तो मुझ पर खूब हंसा लेकिन जब मैं सीरीयस दिखाई दिया तो वो भी सीरीयस हो गया।
विक्की ने कहा- अगर इतनी ही दिक्कत है तो किसी ड़ॉक्टर से सलाह ले ले, आजकल तो बहुत सारी दवाइयाँ आती हैं तो जो इस तरह की प्रॉब्लम को ठीक कर देती हैं।
विक्की की बात मेरी समझ में आ गई।

हम दोनों एक देसी हकीम के पास गए, मुझे बात करने में हिचक हो रही थी इसलिए विक्की ने ही मेरी तरफ से बात की। हकीम ने कुछ पुड़िया बनाकर दे दी और बोला- इनको बिस्तर पर जाने से एक घंटा पहले दूध के साथ ले लेना, अगर कोई परेशानी आए तो मुझे बताना।
4 हजार की 10 पुड़िया थी वो… पैसों के हिसाब से तो लग रहा था कि वाकयी दवाई असरदार होगी और दवाई ने असर दिखाया भी।

उस दिन जब मैं पुड़िया खाकर कविता के पास बिस्तर पर पहुंचा तो वो टीवी देख रही थी। मुझे घबराहट भी थी कि कहीं फिर से बीवी के सामने शर्मिंदा न होना पड़े। लेकिन लंड कविता की चूचियों के बारे में सोचकर पहले ही पजामे में तन चुका था। दवाई का आज पहला दिन था और मैं डर रहा था कि अगर दवाई ने काम नहीं किया तो बात बिगड़ जाएगी।

मैं धीरे से कविता के पास जाकर लेट गया और टीवी देखने लगा। मैंने एक दो बार गले में खराश की आवाज़ की लेकिन उसने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। वो सीरियल देखने में बिज़ी थी। या फिर हो सकता था कि मुझे जान-बूझकर इग्नोर कर रही थी क्योंकि उसे भी पता था कि मेरा लंड चूत के अंदर जाते ही थूक देगा।
इसलिए मेरे मन में डर बना हुआ था कि आज क्या होगा।

मैंने कविता के बालों में हाथ फिराना शुरु कर दिया, उसने कुछ रेस्पोंस नहीं दिया। मैंने उसके गालों को अपनी उंगली से छेड़ा लेकिन तब भी उसने कुछ रेस्पोंस नहीं दिया। मैंने उसके कानों को छेड़ा और उसके गालों पर हल्के से किस कर दिया।
कविता की नज़रें अब भी टीवी की तरफ लगी हुई थीं।

मैंने धीरे से उसकी छाती पर हाथ रख दिया और उसके दूधों को प्यार से सहलाते हुए दबाने लगा। वो थोड़ी सी कसमसाई और फिर से टीवी देखने लगी।

मैंने आगे बढ़ते हुए उसके चूचों को सूट के ऊपर से ही दबाना शुरु कर दिया और अपनी दाईं टांग को उसकी टांगों पर चढा़कर उसके गालों को धीरे-धीरे किस करने लगा। लंड तो पहले से तना हुआ था और उसकी जांघों से जाकर टकराकर झटका दे रहा था मानो उसको सलवार खोलने के लिए उकसा रहा हो।

उसके कोमल बदन की छुअन से मेरे जिस्म की गर्मी भी बढ़ने लगी थी। मैंने कविता के हाथों से रिमोट लेते हुए एक तरफ डाल दिया और उसके चेहरे को अपनी तरफ घुमाते हुए उसके होठों को चूसना शुरु कर दिया। कुछ पल तो वो बेमन से मेरा साथ देती रही लेकिन धीरे-धीरे उसने भी मेरे होठों को अच्छे से चूसना चालू कर दिया।

वो पूरी तरह से मेरी तरफ करवट लेकर लेट गई और उसके हाथ मेरे बालों में आकर पीछे से मेरे सिर को सहलाने लगे। मैंने एक हाथ से उसके सूट को उसको कूल्हों से हटाकर उसकी सलवार के ऊपर से ही उसके बड़े गद्देदार नितम्बों को दबाना शुरु कर दिया। मेरी टांग पूरी तरह से कविता की टांगों पर चढ़ी हुई थी। दोनों के जिस्म गर्म हो चुके थे।

कविता ने पजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़ लिया, उसके कोमल हाथों की पकड़ में आते ही लंड ने अपना कड़ापन और बढ़ा दिया। लंड उसके हाथों में झटके पर झटके देने लगा। एक बार तो लगा कि झड़ जाऊंगा लेकिन शायद दवाई असर हो रहा था, उसके कोमल हाथों की मसलन के बाद भी लंड यूं का यूं अड़ा हुआ था। मेरे अंदर की हिम्मत के साथ खुशी भी बढ़ती जा रही थी।

मैंने कविता के लाल शर्ट को निकलवा दिया और उसकी गुलाबी ब्रा में उसके सफेद दूध मेरी नज़रों पर कहर ढहाने लगे। मैंने उसके चूचों को ब्रा के ऊपर से ज़ोर से दबा दिया और कविता की टांगें भी मेरी टांगों पर चढ़ने की कोशिश करने लगीं।

मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसको नीचे सरका कर उसकी गुलाबी पैंटी के पीछे हाथ डालकर उसके चूतड़ों की दरार में उंगलियां चलाते हुए दरार को अपनी तरफ खींचने लगा।
कविता ने खुद ही मेरा हाथ पकड़ा और चूतड़ों से हटाकर आगे पैंटी में डलवा दिया।

उसकी गरमा गरम चूत गीली हो रही थी जिसकी चिकनाहट मुझे अपनी उंगलियों पर महसूस हुई। चूत पर हाथ लगते ही फिर से फीलिंग आई कि अब तो लंड पिचकारी मार ही देगा लेकिन 2 मिनट बाद तक भी उसकी चूत को सहलाने का आनंद लेकर मेरा लंड मैदान में डटा हुआ था।

मैंने उस देसी डॉक्टर को मन ही मन दुआएं देना शुरु कर दिया। मेरी खुशी और जोश दोनों ही बढ़ते जा रहे थे।

कविता भी पूरी गर्म हो चुकी थी, मेरी होठों को चूम-काटकर लाल कर चुकी थी और मेरे बनियान को ऩिकालने लगी थी।
मैंने बनियान निकालकर एक तरफ फेंक दी और उसको ब्रा का हुक खोलने के लिए इशारा किया।

उसने मेरा हाथ पैंटी से निकलवाया और बैठते हुए ब्रा का हुक खोल दिया। उसके मोटे गोरे चूचे नंगे हो कर मेरी नज़रों के सामने हवा में झूल गए। मेरे कड़क हाथों के दबाव ने निप्पलों को तानकर नुकीला कर दिया था।

मैंने जोश में आते हुए कविता को बेड पर पटका और उसको निप्पलों को चूसते हुए दांतों से काटने लगा। वो कसमसाने लगी, मेरी नंगी कमर पर हाथ फिराने लगी। उसने मेरे पजामे का नाड़ा खोलने का प्रयास किया तो मैंने उसके चूचों को चूमते हुए ही नाड़ा खोलकर पजामा नीचे सरका लिया और साथ ही फ्रेंची भी सरका डाली।
उसका हाथ नीचे से मेरे लंड को सहलाने लगा।

ओहह्ह… क्या अहसास था वो… उसके नरम कोमल हाथों के सीधे संपर्क में आते ही लंड ने जन्नत का अहसास लेना शुरु कर दिया।

कविता एक हाथ से मेरे लंड को सहला रही थी और उसका दूसरा हाथ मेरे चूतड़ों को दबा रहा था। बहुत मज़ा आ रहा था।

कुछ देर लंड को सहलाने के बाद उसने मेरे लंड के टोपे को आगे पीछे चलाना शुरु कर दिया। लंड पगलाने लगा और साथ ही मैं भी… मैंने लंड को उसके हाथ से छुड़ाया क्योंकि अब शायद दवाई भी फेल होने वाली थी। मैंने उसके चूचों से मुंह हटाया और उसके पेट की तरफ नीचे बढ़ने लगा। उसकी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी। मैंने उसकी नाभि पर किस किया और दांतों से उसकी पैंटी को नीचे खींच दिया।
चूत पूरी भीगी हुई थी।

मैंने देर किए बिना होठों को उसकी चूत का फांकों पर रख दिया और उसकी टांगें फैल गईं। मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं। उसने मेरे सिर को चूत में धकेलना शुरू कर दिया और मैंने जीभ को उसकी चूत के अंदर।
कविता अपनी चूत को उछालते हुए मेरी जीभ को पूरा अंदर तक लेने की कोशिश कर रही थी। मैं उसकी तड़प को समझ गया था लेकिन अगले ही पल मैंने जीभ को निकाला और अपनी दो उंगलियों को उसकी चूत में डालकर अंदर बाहर करने लगा।

चूत की गर्मी मुझे पागल किए जा रही थी। ऊपर नज़र उठाकर देखा तो कविता के चूचों के निप्पल तनकर नुकीले पहाड़ के समान हो चुके थे और हवा में इधर-उधर हिल रहे थे और वो दोनों हाथों से पीछे बेड के सिरहाने को पकड़कर अपनी चूत को उठा-उठाकर मेरी उंगलियों को अंदर-बाहर करवा रही थी।

इतना मज़ा मुझे कभी नहीं आया। नंगी बीवी को अपनी नज़रों के सामने तड़पता हुआ देखने का अहसास निराला ही होता है।

मैंने उंगलियों की स्पीड बढ़ा दी और कविता की सिसकारियां भी बढ़ने लगी, मेरी नवविवाहिता बीवी कविता पागलों की तरह मचलने लगी। जब उसके सब्र की सीमा पार हो गई तो उसने मुझे कंधों से पकड़ा और ऊपर अपनी तरफ खींचते हुए मुझे अपने ऊपर लेटाकर मेरे होठों को चूस डालते हुए नीचे से अपने हाथ में लंड को पकड़ा और चूत पर लगाकर मुझे बांहों में भर लिया। लंड चूत के अंदर फिसलता हुआ गहराई में उतरने लगा।
ओह्ह्ह्ह… मेरे आनंद का ठिकाना नहीं था।

कविता मेरे होठों को चूस रही थी और लंड उसकी चूत में समाता जा रहा था। मेरी छाती उसके चूचों पर जाकर सट गई थी। उसकी टांगें मेरे चूतड़ों पर आकर लिपट गई थीं। अब मुझसे भी कंट्रोल नहीं हुआ और मैंने कविता की चूत को चोदना शुरु कर दिया। साथ ही हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने में लगे हुए थे। लंड गचा-गच अंदर बाहर होने लगा।

लेकिन 3-4 मिनट बाद लंड ने अकड़ना शुरु कर दिया और मेरे ना चाहते हुए भी कविता की चूत में पिचकारी मारने लगा। मैं पसीना-पसीना होकर कविता के ऊपर गिर गया और वो प्यार से मेरी कमर पर हाथ फिराने लगी।

2 मिनट बाद जब मैं उठा तो उसके चेहरे पर मुस्कान थी। मैं समझ गया कि आज मैंने उसको खुश कर दिया है। उस रात हम दोनों नंगे ही एक-दूसरे की बांहों में लिपटे पड़े रहे।

अब तो मेरे अंदर का आत्मविश्वास जागने लगा था। धीरे-धीरे 3-4 मिनट से बढ़कर सेक्स की टाइमिंग 6-8 मिनट तक पहुंच गई थी। कविता भी काफी खुश रहने लगी थी। मैंने सोचा कि मेरी सबसे बड़़ी परेशानी खत्म हो गई है। लगभग तीन महीने होने को आए थे और दवाई का कोर्स भी पूरा हो चुका था। दवाई खत्म होने के बाद मैंने और दवाई नहीं ली और उसके हफ्ते भर बाद तक सेक्स की टाइमिंग में कोई बदलाव नहीं आया।

लेकिन जब 15-20 दिन का समय बीत गया तो फिर से टाइम कम होना शुरु हो गया। मेरी चिंता फिर से बढ़ने लगी। मैं दोबारा हकीम के पास गया और दवाई लेकर आ गया। टाइम में थोड़ा इजाफा हुआ लेकिन जो फर्क पहले लगा था अबकी बार वो असर नहीं दिखा। अगले तीन महीने बीतने के बाद भी वही हालत रही। बल्कि अब तो कविता के हाथ में लंड आते ही कंट्रोल छूट जाता था और स्थिति बद से बदतर होती चली गई। मैं डिप्रेशन में जाने लगा।

इधर कविता प्रेग्नेंट हो चुकी थी, अब वो मुझमें इंटरेस्ट नहीं लेती थी और घर का काम करने के बाद टीवी और इधर-उधर की बातों में लगी रहती थी।

एक रात की बात है जब मैंने कविता को सेक्स के लिए उकसाया तो उसने ताना देकर कह ही दिया- रहने दो, आपके बस का नहीं है। मेरा मूड भी क्यों खराब करते रहते हो।
उस दिन मुझे काफी धक्का लगा।

धीरे-धीरे हमारी अनबन शुरु हो गई और लड़ाई भी हो जाती थी।

कुछ दिन बाद रोज़ ही झगड़ा होने लगा, सेक्स की पूर्ति ना होने की खुंदक जुबानी जंग के रूप में सामने आने लगी। मैं भी अक्सर रात के समय घर से बाहर दोस्तों के पास रुकने लगा क्य़ोंकि घर में अब मन नहीं लगता था।

एक दिन सुबह जब मैं घर लौटा तो घर वाले इकट्ठा हो रहे थे, सब सिर पकड़े हुए बरामदे में बैठे हुए थे।
मैंने पूछा तो माँ ने बताया कि बहू घर छोड़कर चली गई है।

मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई, मैंने कविता को फोन लगाया तो उसने फोन नहीं उठाया। मैं उसके घर गया तो वो सामने भी नहीं आई। उसकी माँ यानि कि मेरी सास से बात हुई तो पता चला कि कविता तलाक लेना चाहती है। वो इस शादी से खुश नहीं है।

मैंने कारण पूछना चाहा लेकिन शर्म के मारे पूछते-पूछते रह गया। कारण शायद मेरी सास भी जान चुकी थी और हम दोनों पति-पत्नी भी। मैं अपना सा मुंह लेकर वहां से आ गया।

मुझसे ये सदमा बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने यार दोस्तों के साथ दारू पीना शुरु कर दिया।

तलाक में अभी कुछ वक्त बाकी था लेकिन तलाक तो निश्चित हो ही चुका था। मैं अपना ग़म भुलाने के लिए दारू का सहारा लेने लगा। रात को देर तक दोस्तों के रूम पर पड़ा रहता था। और कई बार सुबह घर आता था।

मेरी इस हालत से घर वाले भी परेशान रहने लगे थे, वो मेरी दूसरी शादी करवाने का प्लान करने लगे लेकिन मैंने हाँ नहीं की क्योंकि खुद पर से मेरा भरोसा उठ गया था और मैं अब दूसरा सदमा बर्दाश्त करने की हालत में नहीं था।
न काम में मन लगता था और न आराम में… बस यहां-वहां टाइम पास करता फिरता रहता था।

जिंदगी बोझ सी लगने लगी थी।

6 महीने होने ही वाले थे कि एक दिन अचानक कविता की माँ हमारे घर पर आई। मैंने तो उनसे बात नहीं की लेकिन उनके जाने के बाद पता चला कि कविता अपना घर छोड़कर किसी और के साथ भाग गई है… जब मुझे ये बात पता चली तो मैं ज़ोर-जो़र से हंसने लगा लेकिन जल्दी ही आंखों में आंसू भी आने लगे। उसने अपने घर की इज्जत के साथ-साथ हमारे घर की इज्जत का भी फालूदा बना दिया, जिसे समाज बड़े मज़े से रोज़ चटखारे लेकर खाने लगा।

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
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