दिन को सिस्टर रात को बिस्तर : जैसी सोच पाई.. वैसा ही पाया

दिन को सिस्टर रात को बिस्तर : जैसी सोच पाई.. वैसा ही पाया

एक और सेक्स स्टोरी लेकर मैं रमेश देसाई आपके सामने हाजिर हूं।

यह उस दफ्तर की सेक्स स्टोरी है, जहाँ मैं काम करता था। रश्मि भी टेलिफोन ऑपरेटर की हैसियत से यहाँ काम करती थी। हमारे साथ नेन्सी भी काम करती थी। मैं उसे अपनी बहन मानता था। वह हर साल मेरी कलाई पर बड़ी श्रद्धा से राखी बाँधती थी। हमारे बीच का यह पवित्र रिश्ता न जाने क्यों रश्मि को एक आँख नहीं भाता था। वह सदा हमारे इस रिश्ते से जलती रहती थी। एक या दूसरी तरह अपनी भड़ास निकलती रहती थी।

मैंने अपनी बिरादरी को छोड़कर किसी गैर बिरादरी में यह रिश्ता बनाया था। यह बात रश्मि बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मैंने उसे यह गौरव प्रदान नहीं किया था.. इस बात का उसे बेहद अफसोस होता था।

उसने हमारे रिश्ते की तौहीन भी की थी, उसका क्रूर उपहास भी किया था। वो कहती फिरती थी कि दिन को सिस्टर रात को बिस्तर!

दफ्तर में एक किशन नाम का लड़का भी काम करता था। वह थोड़ा सा ओवर स्मार्ट था। नेन्सी को लेकर मेरी उसके साथ कुछ कहा-सुनी भी हो गई थी।

वह रश्मि को बहन मानने का दावा करता था। दोनों के बीच दफ्तर में अच्छी बनती थी। दोनों की मिली भगत की काफी चर्चा होती थी। उसने भी रश्मि की संगत में रह कर ऐसी ही कोई गंदी बात करके हमारे रिश्ते पर कीचड़ उछाला था।

क्या भाई-बहन के रिश्ते का यही मतलब होता है?

मेरे दिमाग में हरदम यह सवाल होता था।

दोनों शाम को इक्कठे कहीं जाते थे। उनके बारे में मैंने बहुत कुछ सुना भी था। लेकिन मुझे ऐसी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

मेरा रश्मि से केवल बातचीत का नाता था। इन सब फ़ालतू बातों से आहत होकर नेन्सी जॉब छोड़कर चली गई थी।

इसके पीछे किशन का पूरा हाथ था। मैं उसी से बदला लेना चाहता था। इसलिए मैंने रश्मि से भी बातचीत का नाता रखा था। कभी-कभार मुझे स्टेशन तक उसका साथ मिल जाता था। किशन भी साए की तरह उसके साथ होता था। स्टेशन तक आते ही बाय कहकर दोनों मुझसे अलग हो जाते थे।

इस से सिद्ध होता था कि दोनों के बीच कुछ चल रहा था। मैंने जानकारी भी की थी कि मुझसे अलग होने के बाद वे दोनों किसी गेस्ट हाउस में ही जाते थे।

मैंने कभी किसी के रिश्ते के बारे में ऐसा सोचा भी नहीं था। लेकिन उन दोनों की हरकतें बार-बार मुझे ऐसा सोचने के लिए उकसा रही थीं।

मैं किशन से बदला लेना चाहता था, लेकिन उसका रवैया मेरी तरफ बदलने लगा था। वह मेरे दोस्त होने का दिखावा कर रहा था। मैं भी उसकी बातों में आ गया था। तब भी मैं नहीं जानता था कि न जाने उसके शैतानी दिमाग में क्या चल रहा था?

एक दिन स्टेशन पर अलग होते हुए उसने मुझे इन्वाईट करते हुए कहा- आज मेरा जन्मदिन है.. तुम मेरी पार्टी में आओगे तो मुझे बड़ी खुशी होगी।
मुझे जल्दी घर जाना था, फिर भी मैं उसे मना नहीं कर पाया, मैंने घर में फोन कर दिया और दोनों के साथ होटल में दाखिल हुआ।

‘मैं तुम्हें आज कुछ दिखाऊंगा, कुछ नया अनुभव करवाऊंगा जो तुम्हें विश्वास दिलाएगा कि रिश्ते केवल नाम के होते हैं।’

लेडीज फर्स्ट के नाते रश्मि सबसे पहले होटल के कमरे में दाखिल हुई। उसके पीछे मैं था और मेरे पीछे किशन। उसने सब कुछ प्लान करके रखा था। दरवाजा बंद होते ही रश्मि ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए।

यह देखकर किशन ने मुझसे कहा- आज हम सब बिना कपड़े पहने ही जन्मदिन मनाएंगे।
मैं हतप्रभ था.. मेरे लिए यह पहला अनुभव था। हालांकि मुझे भी मजा आने लगा था। मैंने कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा। वैसे भी मुझे कुछ खोना नहीं था, मैं तो एक मेहमान था।

वह मेरे कपड़े उतार रही थी और किशन उसका ब्लाउज उतार चुका था। रश्मि की ब्रा में से उसके चूचे बाहर आने को तड़प रहे थे। उसके पहले कि रश्मि मुझे पूरी तरह नंगा कर दे, किशन ने उसकी साड़ी ब्रा और चड्डी को भी निकालकर उसे पूरी तरह नंगी कर दिया और उसके मम्मों को चूमते हुए उसे अपने आगोश में जकड़ लिया।

किशन ने रश्मि के दूध मसलते हुए उससे कहा- आज की पार्टी का पूरा दारोमदार तुम पर है। इस पार्टी को शानदार बनाने का तुम्हारा पूरा उत्तरदायित्व है।
किशन ने इन्टरकॉम उठाकर आदेश दिया- ग्रुप सेक्स की बढ़िया सी सीडी लगाओ।
और कुछ ही पलों में टीवी के मॉनीटर पर ब्लू-फिल्म चलना शुरू हो गई।

किशन पलंग पर बैठ गया। उसने इशारा करके रश्मि को अपने पास बुलाया। उसके मम्मों को सहलाते हुए आदेश के स्वर में कहा- डार्लिंग.. रमेश आज हमारा मेहमान है। उसकी खातिरदारी में कोई कमी न रह जाए। सिस्टर की आड़ में तुम्हें उसे बिस्तर की जन्नत का नजारा करवाना है। तुम्हारा दूध नेन्सी से भी मीठा है। तुम्हारे चूचे भी चोदने चूसने में भी उससे कई गुना बेहतर हैं। तुमें इस बात का रमेश को एहसास कराना है। आज के बाद उसको नेन्सी की कोई कमी महसूस नहीं होनी चाहिए।
किशन कुछ भी बड़बड़ा रहा था, उसकी बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन बहस करने का कोई समय ही नहीं था।

रश्मि मुझसे चुदवाने के लिए उत्सुक हो रही थी, वो मेरा सर अपनी गोद में लेकर वह एक बच्चे की तरह मुझे स्तन पान कराने लगी और मेरा लंड पकड़कर उसने मुझसे एक सवाल किया- तुम कितनी देर तक नेन्सी का दूध पीते हो? कितने समय तक अपना लंड उसकी चूत में रख सकते हो? कभी तुमने उसे अपना पेशाब पिलाई है? या तुमने कभी उसकी पेशाब को भी चखा है?

रश्मि के सवाल सुनकर मुझे बड़ी घिन आ रही थी, उसको हमारे बीच ऐसा क्या नजर आया, जिसने उसे ऐसी बेतुकी बेबुनियादी बात करने को प्रेरित किया था।

चुप रहने से भी मैं उनकी सोच को बदल नहीं सकता था… मेरी खामोशी मेरा इकरार बन सकती थी… मैं लाचार विवश था।

वह मुझे अपना दूध पिला रही थी, उसके स्तन के भीतर दूध का मानो कुआं था। मैं यह बात मानने के लिए विवश हो गया था।

अब मैं सोच रहा था कि मुझे यहाँ आना नहीं चाहिए था। मुझे इस बात का अफसोस भी हो रहा था। लेकिन एक बात अच्छी हुई थी। मुझे रश्मि की असलियत का पता चल गया। उसका कोई चरित्र नहीं था, कोई ईमान नहीं था। वह शादीशुदा थी। फिर भी ऐसी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी। उसकी करतूतें एक धंधे वाली काल गर्ल को भी शरमा रही थीं।

अभी तो खेल शुरू नहीं हुआ था और मेरा लंड रश्मि के छूने से दो-तीन ईंच बढ़ गया था। मेरे तन्नाए हुए लंड को देख कर वह भी चकित हो गई थी।

‘आपका लंड सचमुच दुनिया का आठवां अजूबा है। अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं है और आपका लंड तो एक घोड़े को रेस में पीछे छोड़ रहा है। आगे न जाने मेरी चुत का क्या होगा?’
‘बस खुदा की मेहरबानी है। तुम्हारी मेहमान नवाजी का शुक्रिया। मैं शुरुआत के तौर पर तुम्हारे रसीले होंठ चूमना चाहता हूं। तुम्हारे मम्मों को दबाना चाहता हूँ। बाद में तुमको मेरे लंड के साथ जो कुछ भी करना हो.. वह तुम कर सकती हो।’
‘यू आर वेलकम हनी.. तुम मेरे होंठों को कम से कम तीन मिनट तक चूम सकते हो। मेरे मम्मों को जितना चाहो उतना दबाकर मसलकर अपने अरमान निकाल सकते हो.. अभी तो पूरी की पूरी फिल्म बाकी है।’

मैंने बड़ी बेताबी से रश्मि के होंठों को पाँच मिनट तक चूमना जारी रखा। बाद में अपना एक हाथ उसके चूचे पर रखकर बड़ी बेरहमी से उन्हें मसलने लग गया। रश्मि मेरा साथ एन्जॉय कर रही थी। मैं फिर से उसका स्तन पान करना चाहता था। मेरा इरादा समझते ही उसने मुझे गोद में सर रखकर लेटने का इशारा किया। लेकिन मैंने उसे अपनी गोदी में बिठाकर ही उसका स्तन पान करने लगा। कुछ ही पलों में रश्मि मुझसे ज्यादा गरमा गई थी।

यह बात किशन बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। अपनी दिलेरी दिखाने के इरादे से वह भी हमारे पास आया और रश्मि के दूसरे चूचे को मुँह में लेकर उसका दूध पीने लगा। अब हम दोनों ही एक साथ उसके दोनों दूध चुसक रहे थे।

चुदाई का अजीबोगरीब नजारा जारी था। सेक्स का ज्वर हम सब पर बुरी तरह से हावी हो गया था। स्तन पान का दौर खत्म होते ही रश्मि पलंग पर लेट गई। मैं उसके नंगे शरीर पर सवार हो गया और उसके दोनों मम्मों को अपने हाथों से दबाते हुए अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ दिया। दूसरी बाजू में रश्मि की बगल में सोकर वह भी उसके चूचे को चूसने लगा। मैं भी पीछे रहना नहीं रहना चाहता था। मैं भी उसका दूसरा चूचा पकड़ कर चूसने लगा।

फिर से एक बार हम दोनों एक साथ रश्मि के मम्मों पर हमला कर रहे थे। सामने टीवी पर ब्लू-फिल्म चल रही थी। हम दोनों जिस तरह से उसके स्तनों पर हावी हो गए थे, इसे देखकर रश्मि ने मानो हम दोनों को ही उकसाते हुए कहा- तुम दोनों स्तन पान में माहिर हो। देखते हैं आज कौन ज्यादा देर तक मेरा स्तन पान करता है। जो जीतेगा मैं उसे इनाम दूंगी और जिन्दगी भर उसकी रखैल बन कर रहूंगी।

कुछ ही देर में मैं मुकाबला जीत गया था। हम दोनों ने मिलकर रश्मि को काफी देर तक चोदा था। उसे कुतिया बनाकर उसकी गांड को भी चोदने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी।

एक घंटे में रश्मि मुझ पर मानो फिदा हो गई थी। उसमें मेरे प्रति जो बदलाव आया था.. उस बात ने किशन को अचंभित कर दिया था। उसने ही मुझे अपने जन्मदिन की पार्टी की आड़ लेकर मुझे इन्वाइट किया था। उसने ऐसा करके अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी। इस बात का अफसोस उसकी आँखों से टपक रहा था।

हम दोनों के बीच रश्मि की सामूहिक चुदाई का करार हुआ था, उसको नंगी करने भी हमारी साझीदारी थी। लेकिन मैं हर एक फील्ड में किशन से आगे निकल गया था। रश्मि भी मुझे ज्यादा भाव देने लगी थी। उसे खो बैठने का डर किशन की आँखों से साफ झलक रहा था।

किशन ने रश्मि को पाने के लिए काफी पापड़ बेले थे। उसके पीछे पानी की तरह पैसा बहाया था। रश्मि ने भी बदले में उसको सब कुछ दे दिया था। लेकिन किशन उसे अपनी मिलकियत मानता था।

यही बात रश्मि बर्दाश्त नहीं कर पाती थी, जिसके कारण दोनों के बीच दरार सी पड़ गई थी। रश्मि को किशन से भी ज्यादा अच्छा चोदने वाला मिल गया था। इसलिए किशन को उसने उसके जन्मदिन पर ही सदा के लिए अलविदा कर लिया था।

उसके बाद सालों तक रश्मि ने मेरे साथ अपना वादा निभाया था। मैं उसे जितना मन चाहूँ.. जहाँ चाहूं.. जब भी चाहूं.. चोद लेता था। उसके फलस्वरूप मेरे लंड रस से दो बच्चे की आबादी भी हमने बढ़ा ली थी। रश्मि का पति यह बात कभी नहीं जान पाया था।

आखिर इस सबके पीछे बदले की भावना ही काम कर गई थी। किशन ने मेरे नेन्सी के रिश्ते को लेकर गंदगी फैलाई थी। नेन्सी तब भी मेरी बहन थी.. इस बात का आखिरकार रश्मि को साक्षात्कार हुआ था। उसने अपने कान पकड़कर अपनी गलती मान ली थी। हमारे रिश्ते का बड़ी श्रद्धा से आदर भी किया था।
दिन को सिस्टर रात को बिस्तर… यह उसकी सोच थी। मैंने उसी की सोच मुताबिक उसको मेरी रखैल बनाया था। वह मेरे लंड से चुद कर अपनी सोच का जुर्माना अदा कर रही थी। लेकिन वह अपने आपको बदलने को तैयार नहीं थी।

कोई उसकी मदद नहीं कर सकता था। क्योंकि उसको अपनी सोच का कोई अफसोस नहीं था.. उसकी चुत की खाज जो बड़ी हुई थी और इस तरह ये सेक्स स्टोरी बन गई।

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