देसी लड़की लवलीन का इलाज़

देसी लड़की लवलीन का इलाज़

सम्पादक :  इमरान

हेलो दोस्तो, तो आपको पता है कि डाक्टरी का पेशा जिसमें चूचे दबाने व फ़ुद्दियाँ चोदने की अपार संभावनाएँ होती हैं, उसमें किस प्रकार से हम अपने लण्ड को निजी तौर पर रोज नई नई खुराक दे सकते हैं। तो आएए आपको अपना एक निजी अनुभव बताता हूँ।

देहरादून के पास एक छोटे से कस्बे में मैं एक क्लिनिक चलाता हूँ आयुषी क्लिनिक के नाम से।

मेरी डिग्री तो कोई खास नहीं है, बस पहले एक बड़े डाक्टर के पास में सहायक कम्पाउंडर था और बाद में आर एम पी का लाइसेन्स और एक जगह थोड़ी जमीन लेकर एक कमरा बनाकर प्रैक्टिस करना शुरु कर दिया।

धीरे धीरे बीएएमएस की डिग्री खरीद ली और फिर एलोपैथिक प्रैक्टिस करने लगा, कुल मिला के मेरी गाड़ी बढ़िया चल निकली और आज मैं बड़े हास्पिटल का मालिक हूँ।

आइए करते हैं मुद्दे की बात।

चूत और लण्ड के माया जाल से तो कोई न बच सका है और इसलिए मैं आपको सुनाता हूँ नवीनतम घटना।

मैंने बाद में अपने को स्त्रीरोग विशेषज्ञ भी घोषित कर दिया था जिससे कि लोग मेरे पास अपनी निजी जीवन की समस्याएँ लेकर भी आने लगे थे।

डिलीवरी कराना और स्त्रियों का अंतरंग परीक्षण करना मेरा रोजाना का काम था।

महिलाओं में आंटियाँ, भाभियाँ और कुंवारी लड़कियाँ भी शामिल होती थीं जिनको कि मैं  चेकअप-रूम में ले जाकर के परीक्षण स्वयं करता था।

और एक दिन एक ऐसी लड़की आई जिसने अपने चूचे दिखाकर मेरा लण्ड खड़ा कर दिया, उसने अपना नाम लवलीन बताया।

उस लड़की की समस्या थी कि उसका मासिक नियमित नहीं आता था, ऐसे में उसे बहुत दर्द होता था।
उसने मुझसे अपनी समस्या बताई।

मैं उसकी समस्या सुनता रहा पर मेरी नजर उसके दमकते बदन और हुस्न पर थी। उसे देख कर मेरा लण्ड पहले से एकदम खड़ा हो गया था।

मैंने देखा उसके कुंवारे चूचे शान से कमीज के अंदर से सर उठाए खड़े थे। उसके कठोर निप्पल कपड़े के नीचे से भी महसूस किये जा सकते थे और उसकी कातिल जवानी के कंटीली कमर की अदाएँ उसके बैठने पर भी साफ नुमाया थीं, गहरी नाभि चिपकी हुई कमीज के ऊपर से दिख रही थी, आश्चर्य यह कि उसने कोई ओढ़नी नहीं ली थी।

मैं उसे चेकअप-रूम में ले गया। वहाँ ले जाकर उसको अपनी कमीज ऊपर करने को कहा।

पहले तो वो हिचकिचाई पर जब मैंने कहा कि ऐसे कैसे पता चलेगा कि तुम्हें क्या रोग है, दिखाओ !

तो वो नर्म पड़ गई और उसने अपनी कमीज ऊपर की। लाख लाख शुक्र है, उसने कुछ नहीं पहना था। मैंने उसकी कमीज निकाल दी।

वो चुप रही, गांव की लड़कियाँ अक्सर चुप ही रहती हैं इस दौरान।

मैंने थर्मामीटर उसकी कांख में डाला और उसके मस्त चूचों पर आला रख कर के दबाते हुए मैं उसको उत्तेजित करने लगा।
मेरे कानों में उसके उत्तेजित होने पर बढ़ती सांसों की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं।

मैंने आले से उसको दबाते हुए उसके दूसरे चूचे को हाथ से दबाया।

वो बोली- डाक्टर साब, यह क्या कर रहे हो।

मैंने कहा- बाबू, डाक्टर के पास पहली बार आई हो क्या, जो ऐसे बोल रही हो? देख रहा हूँ तुम्हारे अंगों में खराबी तो नहीं है कोई।

इसके बाद मैंने उसके दूसरे चूचे पर आला लगाया और थर्मामीटर निकाल कर उसके दूसरी कांख में दबा दिया।

मैंने पहले चूचे को पकड़ कर दबाना शुरु कर दिया, पहले हल्के हल्के दबाया, वाह… क्या मस्त उरोज थे, इतने बढ़िया कि मैंने सोचे भी न थे, एकदम सख्त !

जैसे जैसे मेरे सामने वो नंगी होती गई, उसके चूचे और भी तगड़े होते गये।

मैंने दूसरे चूचे को भी पकड़ लिया और दोनों को दो मिनट तक दबाने के बाद बोला- ऊपर तो सब सही दिख रहा है। तुम्हारे चूचों में कोई दिक्कत नहीं है, अब जरा अपनी पाजामी खोलो।

उसने अपना नाड़ा ढीला किया।

मैंने उसको बेड पर बिठा दिया था, उसके नंगे चूचों को देख कर के मेरे मुँह में पानी आ रहा था। उसके चूचे एकदम कड़े हो चुके थे और मेरे दबाने से वो और भी तैयार हो गए थे, मुझे पता था कि उसके चूत में भी गीलापन आ ही गया था।

पर अब इसे चेक करना बाकी था।
उसकी पाजामी को नीचा करते ही मैंने उसके पेट को दबाया और पूछा- यहाँ दर्द हो रहा है?
तो वो बोली- नहीं, सब ठीक है।

फिर मैंने हाथ जरा सा नीचे किया तो देखा झांटों का झुरमुट मेरे हाथों में था।
मेरा लन्ड और सनसना गया, मैंने कहा- क्या तुम सफाई नहीं करती हो?
तो वो बोली- नहीं, मौका नहीं मिलता।

मैंने उसकी पाजामी पूरी खींच दी। वो उत्तेजित हो चुकी थी और उसके हाथ अपने वक्ष पर स्वतः चले गये थे।

मैंने देखा कि झांटों के बीच उसकी सुरक्षित चूत एकदम दिव्य दिख रही थी।

दबोचते हुए मैंने उसको अपने कब्जे में लिया और फिर थोड़ा रगड़ने के बाद देखा कि वो एकदम गीली हो चुकी है।

मैंने थर्मामीटर उसके चूत में डाल दिया और कहा- थोड़ी देर अंदर बाहर करती रहो, जितना अंदर ले सकती हो ले लो, मुझे तुम्हारे अंदर का तापमान नापना है।

उसने थर्मामीटर अपने चूत में अंदर डाल लिया और मैं उसके चूचे की तरफ फिर से घूमा।

स्टेथेस्कोप को जिसे कि लोग आला कहते हैं देसी भाषा में, उसको उसके मस्त चूचे के बीचो बीच उसकी घाटी में लगाकर के मैंने उसकी धड़कन सुनी, वो दोगुनी हो चुकी थी, उसकी सांसें एकदम तेज थीं।

मैंने बायाँ चूचा पकड़ कर दबाया और दायें को भी दबाने लगा, उसने कोई विरोध न किया।

तो मैंने उसे समझाया, इस तरह करने से तुम्हारे अन्दर का तापमान बढ़ेगा, तभी तो मैं जान पाऊँगा थर्मामीटर से कि कितना तापमान है, कहीं तुम्हारी अंदरुनी भागों में कोई खराबी या ज्वर तो नहीं है।

वो मुझसे पूरी तरह सहमत दिखाई दी, मुझे लगा कि उसको मजा भी आने लगा था।
उसने कहा- जो भी करना हो करिये पर मुझे ठीक कर दीजिये।

मैंने कहा- हाँ हाँ !
अब मुझे आजादी मिल चुकी थी उसके साथ खुल के खेलने की। मैंने अपने हाथों से उसके चूचे को मसलते हुए अपना मुँह एक के निप्पल के पास ले गया।

वो मदहोशी में आंखें बंद किये बेड पर लेट गई, उसने चूत में थर्मामीटर घुसाया हुआ था और वो अपने आप उसे अंदर बाहर करने लगी थी।

मैं उसके कुंवारे चूचे का स्तनपान करने लगा। सच कहूँ तो कुंवारी लड़कियों का मासिक सिर्फ इसलिए भी रुक जाता है कि उनको लण्ड की उस समय दरकार होती है। एक बार जब मोटा लण्ड चूत के रास्ते को नाप जाता है उनकी मासिक अनियमितता की समस्या दूर हो जाती है।

मेरी यह मरीज इतनी सेक्सी थी कि इसे देखते ही चोदने का मन हो गया था और इसकी समस्या भी कुछ ऐसी थी कि बस बिना चोदे ठीक न होती।

तो मैंने उसकी चूत में थर्मामीटर कोंच दिया था और उसके चूचे को चूस रहा था।
मारे उत्तेजना के वह अपने चूत में थर्मामीटर को अन्दर बाहर करने लगी थी। अब उसको चुदास को चढ़ते देर न लगी, या फिर उसे चुदास चढ़ चुकी थी।

मैंने देखा कि उसकी चूत से निकला पानी थर्मामीटर पर चिपक रहा था।
मुझे खुशी थी कि वो गीली हो चली थी।

मैंने बायें चूचे को अच्छे से सहलाते हुए चूसा और फिर दायें को दबाना शुरु किया।

हर हालत में मुझे मजा आ रहा था। बायाँ चूचा एकदम कड़ा हो चला था और तन कर के अपने काले निप्पल के साथ मेरा सीना बेधने के लिए तैयार था।

मैंने दाएं चूचे को पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया, जितना ज्यादा भर सकता था उतना ज्यादा, अब वो लड़की पूरा थर्मामीटर अपनी चूत में कोंचने पर आमदा थी, पर अंदर की कौमार्य झिल्ली उसको ऐसा न करने दे रही थी।

मैंने उसके स्तन को अपने मुह में लेकर दोनों हाथों से ऐसे दबाया जैसे कि उसको अपने मुँह में दूह रहा हूँ।

वो एकदम से आहें भरने लगी थी।
मैं सिरहाने खड़ा था, दो तीन मिनट तक उसके चूचे में मुँह से हवा भरने के बाद मैंने अब अपना लण्ड पाजामे से बाहर निकाला।

वो मदहोशी में आंखें बंद किये हुई थी, उसके मुँह के पास लण्ड ले जाकर मैंने उसके बड़े से सुपाड़े को उसके होठों पर रगड़ा तो वो सुगबुगाई और अपना मुँह स्वयं खोल दिया।

मैंने उसके सिर को बेड के किनारे खींच कर और लटका दिया, उसका सिर बेड से नीचे उल्टा लटक रहा था और मैं अपना लण्ड लिये उसके मुख में पेलने पर आमदा था।

गच्च!! और ये पहला मुख मैथुन का शाट।
मेरे हाथ उसके चूचे मसल रहे थे और लण्ड अंदर मुह में घुसा था।

अब वो अपने थर्मामीटर को तेजी तेजी से अंदर बाहर कर के मजे भी ले रही थी। मैंने मोटे लण्ड को उसके मुँह में देकर धक्के मारने शुरु कर दिये।

हालांकि यह स्टाइल ज्यादा खतरनाक होता है और इसलिए संभल संभल कर मुख में चोदन करना चाहिए।

वो निशब्द थी क्योंकि मुँह में लण्ड था और इसलिए उसको कुछ कहे न बन रहा था। पर उसके रवैये से लग रहा था कि मेरे मोटे लण्ड को देख कर के वो और भी उत्तेजित हो गई थी।

तो बात यह थी कि अब उस कुंवारी लड़की की हायमन बोले तो कौमार्य झिल्ली मेरे आड़े थी। मैंने देसी मुखमैथुन का जी भर के मजा लेने के बाद उसके मुँह से लण्ड खींचा और उसके सीने पर सवार हो गया, उसके दोनों चूचों पर बारी बारी से सुपाड़े को पटकते हुए छड़ी की तरह से पीटते हुए लण्ड को मैंने पूछा- जानेमन !! कैसा लग रहा है तुम्हारा इलाज?

बोली वो- अग़र ऐसा करने से ठीक हो जाए तो रोज तुम्हारे पास आकर चुदाऊँगी डाक्टर साहब!!
मैंने कहा- अवश्य बालिके !!

और फिर उसके दोनों बड़े चूचे के बीच लण्ड को पेलने लगा।

वो समझ गई उसे क्या करना है। उसने अपने दोनों चूचे मेरे बड़े मोटे लण्ड के दोनों तरफ कस के दबा दिये और फिर खुद ही उनको दबाके मसलने लगी मेरे लौड़े को।

मैंने कहा- रानी !! अब आयेगा असली मजा !
और अपने लण्ड को जोर जोर से धक्के देकर उसको चोदना शुरु कर दिया।

यह था चूचीचोदन।
पांच मिनट तक इस पोजिशन में चोदने के बाद मैंने अब अपनी प्यारी कुंवारी देसी मरीज की टांगों के बीच में लण्ड को पोजिशन किया।
अपना एक हाथ उसके मुँह के अंदर कोंच कर चूसने के लिए कर दिया, जिससे कि पेलने पर उसके मुक्ग से चिल्लाहट न निकले और फिर लण्ड को भीगी चूत के भीगे होटों पर रगड़कर के एक जोरदार धक्का लगाया कि फनफनाते हुए लण्ड अंदर घुसा।

दो इंच अंदर जाने के बाद उसको दर्द होना शुरु हो गया।
आह्ह !

और फिर मैंने उसको अपने हाथों से मुँह पर ढक्कन लगा कर एक जबरदस्त झटका दिया। इस बार चूत के फाटक को चीरता मेरा मोटा लंबा लन्ड उसके बच्चे दानी के दरवाजे पर दस्तक दे चुका था।

वो अपने पैरों को सिकोड़े आँखों में आँसू समेटे अपने चीख को घुटी घुटी आवाज में ही व्यक्त कर सकी।

मैंने लण्ड को अब सरकाना शुरु किया।
हर पल के बाद हर शाट के बाद दर्द मजे में बदल रहा था और मेरी मरीज का दुख कम हो रहा था।

दो मिनट बाद मैंने उसके मुँह से हाथ हटाया तो बोली- आपने तो मुझे मार ही दिया था।

मैंने अब उसके चूचे मसलते हुए आम देसी मिशनरी स्टाइल में उसकी चूत मारनी शुरु कर दी थी।
उसने भी अपने उत्साह को व्यक्त करते हुए मौके पर हर शाट का जवाब एक उछाल के साथ दिया।

परफेक्ट टायमिंग के चलते लण्ड का आघात चूत पर अधिकतम था और फिर चुदते हुए उसको दोहरा मजा आ रहा था।

हाय रे कुंवारी चूत… इतनी टाईट थी कि पहले की मारी हुई सारी गांडों के सुराख का मजा भूल चुका था… मैं और सोच रहा था कि इसकी गांड अगली बार मार कर अलग से मजे लूंगा।

अरे भाई, इलाज एक दिन में कहाँ खत्म होता है।

मैंने आखिरी झटके के साथ लण्ड को बाहर खींच कर वीर्य को चूचों पर छिड़कते हुए उन्हें नहला दिया।

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