पराये मर्द के लण्ड का नशा-2

पराये मर्द के लण्ड का नशा-2

फिर नहाने के वक़्त भी दिमाग अपनी जगह नहीं था, झटका तब लगा जब किसी के दरवाज़े पर जोर देने से वो खुल गया। मैंने पीछे घूम कर देखा तो सामने ही रफीक खड़ा उलझी-उलझी साँसों से मुझे देख रहा था।

“क्या है? तुम अन्दर कैसे आये?” मुझे एकदम से तो गुस्सा आया पर साथ ही एक डर भी समा गया मन में।

“कुछ नहीं मैडम, बस आपको नहाते हुए सामने से देखना चाहता था।”

“दिमाग ख़राब हो गया है क्या? बाहर जाओ फ़ौरन…जाओ।” मैं एकदम से ऐसे घबरा सी गई थी कि खुद को समेटने के लिए घुटनों के बल बैठ गई थी, अपना सीना हाथों से छुपाये थी और टांगें चिपका ली थीं कि योनि न दिखे।

“कोई बात नहीं मैडम, मैं किसी को बताऊँगा थोड़े ही, आप नहाओ न।” वो मेरे पास आ कर बैठ गया और मेरे कंधे पकड़ लिए।

“मैं साहब को बता दूँगी, जाओ यहाँ से।” बेबसी से मेरी आँखों में आँसू आ गए।

पर वह नहीं गया और मेरे अपने वक्षों को ढके हाथ हटाने के लिए जोर लगाने लगा। मैंने उसे हाथ खोल कर उसे दूर धकेलने की कोशिश की, मगर वो मुझसे ज्यादा ताक़तवर था, नहीं हटा बल्कि फिर मेरी कलाइयाँ पकड़ कर ऐसा जोर लगाया कि मैं बाथरूम के गीले फर्श पर फैल गई। मेरी समझ में नहीं आ रह था कि मैं कैसे खुद को बचाऊँ।

“मुझे छोड़ दो…प्लीज़ !”

“हाँ मैडम, छोड़ दूँगा, आप डरो नहीं, कुछ नहीं होगा… मैं अभी चला जाऊँगा।” वह मुझ पर छाता चला गया। उसने मेरे ऊपर लदते हुए मेरे हाथ ऊपर करते हुए, एक हाथ से उन्हें जकड़ लिया और दूसरे हाथ से मेरे स्तन मसलने लगा और मेरे होंठ चूसने की कोशिश करने लगा। मैंने चेहरा इधर-उधर करके अपने होंठों को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन बचा न सकी और उसके होंठों ने मेरे होंठ पा ही लिए। मुझे सिगरेट की गंध आई, पर अब बचना मुश्किल था।

अपने तन पर एक अजनबी के बदन के एहसास के साथ यह एहसास भी था कि जो हो रहा था, वह अनचाहे मैंने ही होने का मौका दिया था। बदन में अजीब सी सनसनाहट भर रही थी।

मेरी मांसपेशियों का तनाव ढीला पड़ते देख उसने दोनों हाथों से मेरे वक्षोभारों को आटे की तरह गूंथना शुरू कर दिया। मैंने फिर एक कमज़ोर से विरोध के साथ उसे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी न मिली।

उसने मेरी बाँहों को अपनी पकड़ में लेकर अपने होंठों से मेरे होंठ आज़ाद किये और मेरी ठोढ़ी और गर्दन से होते मेरे भरे-भरे वक्ष तक पहुँच गया और चूचुकों को एक-एक कर चूसने लगा। अब मेरे जिस्म में भी चिंगारियाँ उठने लगीं।

मगर अब भी मेरे शरीर में विरोध रूपी ऐंठन बाकी थी, जिसे वह भी महसूस कर रहा था इसलिए उसने अपनी पकड़ ढीली न होने दी और मेरे वक्षों से अपना मुँह हटाया तो उन्हें दोनों हाथों से थाम कर खुद एकदम से नीचे चला गया और जब मेरे यौनांग तक पहुँच गया, तो हाथ सीने से हटा कर मेरी जाँघों में ऐसे फँसा लिए कि मैं पैर न चला सकूँ।

फिर वो होंठों से चूमने लगा और मैंने अगले कुछ पलों में उसकी खुरदरी जीभ का अनुभव अपनी योनि के ऊपरी सिरे पर किया।

एकदम से मेरी सिसकारी छूट गई।

कुछ देर की चटाई में ही मैं ढीली पड़ गई और मेरा विरोध कमज़ोर पड़ते देख उसने भी अपनी पकड़ ढीली कर दी और अब एक हाथ तो ऊपर ले आया, जिससे मेरी छाती सहला सके और दूसरे की बीच वाली उंगली मेरी योनि के गर्म छेद में उतार दी।

ऐसा लगा जैसे चिंगारियाँ सी उड़ने लगी हों। थोड़ी देर में ही मैं आग का गोला हो गई, जायज नाजायज़, सही गलत, अपना गुस्सा, नफरत सब कुछ भूल गई और रह गया तो दिमाग में बस यही कि वो ब्लू फिल्मों जैसा स्थूलकाय लिंग अब मेरे पास है।

जब उसने यह महसूस कर लिया कि मैं अच्छी तरह गर्म हो गई हूँ, तब उसने मुझे छोड़ा। बाथरूम के गीले फर्श के कारण उसके कपड़े भी जहाँ-तहाँ गीले हो गए हो गए थे, मैं देखती रही और उसने मुझे अपनी बांहों में उठा लिया और बाथरूम से बाहर निकाल लाया। मैंने अब कोई ऐतराज़ करने वाली हरकत नहीं की। वह मुझे बेडरूम में ले आया और बिस्तर पर डाल दिया। बेटी अपने पालने में सो रही थी।

फिर उसने अपने कपड़े उतारे। मेरे दिमाग पर एक अजीब सा नशा हावी हो रहा था और बदन में एक आनन्ददायक सनसनाहट भर रही थी। मेरी नज़र उसके जिस्म के उसी हिस्से पर थी जहाँ मेरे मतलब की चीज़ थी। फिर वो मुझे दिखी, अब इस वक़्त पूरी उत्तेजित अवस्था में उसकी जननेंद्रिय उतनी ही विशालकाय थी, जितनी मैंने अपनी कल्पना में कई बार देख डाली थी।

मेरी नज़रों ने उसे बता दिया कि मुझे वह चीज़ बहुत पसन्द आई थी, वह मेरे सर के पास आकर घुटनों के बल बैठ गया और अपना मोटा सा लिंग मेरे चेहरे पर रगड़ने लगा।

मैं समझ रही थी कि वह क्या चाहता था, मगर मैं उसे ग्रहण नहीं कर पा रही थी। उसने मेरे बाल पीछे से पकड़ कर मेरा चेहरा एक जगह रोक कर जब उसे मेरे होंठों पर रगड़ा तो होंठ जैसे खुद-ब-खुद खुल गए और उसके शिश्नमुंड के छेद से रिसता नमकीन द्रव्य मेरी जुबान पर लगा।

पहले तो उबकाई सी होने को हुई पर फिर उसे ग्रहण कर लिया और उस गैर मर्द के लवड़े को अपने मुँह में कबूल कर लिया।
फिर मुझे खुद ही यह एहसास न रहा कि कब मैं उस पूरे लिंग को मज़े ले-ले कर पूरी दिलचस्पी से चूसने लगी… वो एक हाथ से मेरा सर संभाले था, तो दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था, मेरी भग्न को रगड़ रहा था।

कुछ देर बाद एक ‘प्लाप’ की आवाज़ के साथ उसने अपना लिंग बाहर खींच लिया और मेरी टांगों के बीच पहुँच गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैं थोड़ी घबराहट के साथ एक हमले के लिए तैयार हो गई।

“कुछ चिकनाहट के लिए लगा लूँ क्या मैडम जी, आप को दर्द न हो !” उसने बड़े प्यार से कहा।

“नहीं, ज़रूरत नहीं, मैं एक बच्चा पैदा कर चुकी हूँ।”

उसने अपने सुपारे को योनि पर कुछ देर रगड़ा और फिर बीच छेद पर टिका कर हल्का सा धक्का दिया। यह और बात है कि इस हल्के धक्के के बावजूद भी मेरी ‘कराह’ निकल गई और उसका लिंग करीब एक इंच तक योनि में धंस गया।

उसने इससे ज्यादा घुसाने की कोशिश करने के बजाय खुद को मेरे बदन पर गिरा लिया और एक हाथ से एक वक्ष दबाते हुए दूसरे वक्ष को अपने मुँह में ले लिया और चूचुक को चुभलाने लगा। मेरे हाथ भी खुद-बखुद उसकी पीठ पर फिरने लगे।

दर्द पर आनन्द हावी होने लगा। मैं महसूस कर रही थी कि उसका XL साइज़ का लिंग लगातार योनि के संकुचित मार्ग को धीरे-धीरे फैलाता अन्दर सरक रहा है। मैंने आँखे भींच ली थी और खुद को उसके हवाले कर दिया था।

फिर शायद आधा अन्दर घुसाने के बाद, वो ऊपर से हट कर अन्दर घुसाए-घुसाए ही वापस उसी पोजीशन में बैठ गया। फिर उसने लिंग को वापस खींचा, ऐसा लगा जैसे राहत मिल गई हो लेकिन यह राहत क्षणिक थी, उसने वापस एक जोरदार धक्का मारा और इस बार तीन चौथाई लिंग योनिमार्ग को भेदता हुआ अन्दर धंस गया।

कहानी जारी रहेगी।

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