बोनस में चूत के साथ दस करोड़ भी

बोनस में चूत के साथ दस करोड़ भी

सुबह के 4 बज रहे थे और मैं रोज़ की तरह अपनी सास के कमरे की ओर जा रहा था।
दरवाज़ा खुला ही रहता है.. तो आज भी खुला ही था।
नजदीक जाकर देखा तो मेरी सास राखी.. जिन्हें मैं लोगों के सामने आंटी बुलाता हूँ.. गाण्ड आसमान की तरफ किए हुए औंधी सोई थीं। मैंने जाते ही एक धौल उनकी गाण्ड पर जमाई और अपना रोज़ का डायलाग दोहराया।

‘सो रही हो सलवार पहने.. यहाँ आपको किस काम के लिए लाया हूँ?’
वो हड़बड़ा कर उठीं.. वाशबेसिन पर हाथ-मुँह धोया और मेरे इशारों पे नाचने के लिए तैयार हो गईं।

ऐसा कैसे हुआ.. ये जानने के थोड़ा पीछे चलते हैं।

मेरी शादी बेबी नाम की लड़की से हुई थी। शादी के बाद खूब मज़े किए लेकिन मेरा दिल उस की माँ पे आ गया। बेबी 4 साल की थी.. तो उसके पिता जी की मृत्यु हो गई थी। उनकी जायदाद बहुत थी.. तो उसके मायके वालों ने उसकी माँ की दोबारा शादी नहीं की थी।

जब हमारी शादी हुई थी.. उस वक्त बेबी की उम्र 24 बरस की थी और मेरी 28 साल की उम्र थी।
मेरी सास राखी की उम्र उस वक्त 45 बरस की थी।

बेबी और उसकी माँ दोनों बहुत ही सेक्सी हैं और ऊपर से दस करोड़ की जायदाद जिसकी मालकिन बेबी को ही होना था। लेकिन मेरा दिमाग कहता था कि अगर राखी को किसी और ने फाँस लिया.. तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। इसलिए इस सोने की मुर्गी को सम्भालना ज़रूरी था और इसका सबसे बढ़िया तरीका उनकी चुदाई ही था।

मैं हनीमून के बाद ससुराल गया.. तो बेबी की गाण्ड टांगें उठा कर चोदने की वजह से बाहर को निकल आई थी।

राखी जैसी तजुर्बेकार औरत को ये तो पता चल ही गया था कि बेबी की चुदाई मस्त हुई है.. और रही-सही कसर मैंने बेबी को दिन-रात दोनों टाइम अपने साथ सुला कर पूरी कर दी।

इसकी वजह बिल्कुल साफ़ थी.. मैं आंटी को गर्म करना चाहता था।
दो दिन ससुराल में बिता कर हम वापिस आ गए, आंटी की तरफ से कोई लिफ्ट नहीं मिली थी, इतनी जल्दी कुछ होना भी नहीं था। मगर शिकार तो मुझे करना ही था.. तो जुगत भी मुझे ही लगानी थी।

कोई एक महीने बाद बेबी को अपने एग्जाम के सिलसिले में मायके जाना था और दो-तीन दिन वहाँ रुकने का प्रोग्राम था।

मैंने चाल चल दी और बेबी के बार-बार मना करने पर भी जाने से एक रात पहले उसकी गाण्ड फाड़ दी। मैंने उसको बहुत बेरहमी से पीछे से चोदा.. उसको तकलीफ तो हुई ही थी.. साथ ही उसकी चाल भी बदल गई थी। इस बार भी वजह फिर से साफ़ थी.. आंटी को गर्म करना।
मायके जाते हुए भी बेबी गाड़ी में सीट पर गद्दी रख कर गई।

रात में दोनों माँ-बेटी इक्कठी सोईं.. सुबह बेबी को उसके एग्जाम हॉल तक छोड़ कर मैं वापिस आ गया।
मैं अपने-आपको उखड़ा-उखड़ा सा दिखा रहा था.. जिससे ऐसा लगे कि मुझे बेबी से कोई प्रॉब्लम है।

मेरा यह तीर निशाने पर लगा।
सासू अम्मा ने मुझसे पूछ ही लिया- बेबी आपके मम्मी-पापा से तो सही व्यवहार करती है ना?
‘हाँ जी.. बिल्कुल सही.. वो बहुत अच्छे से सभी के साथ व्यवहार करती है।’ मैंने जवाब दिया।

‘और आपके साथ?’ उसका अगला सवाल था।
‘हाँ जी बिल्कुल सही.. पर आप ऐसा क्यूँ पूछ रही हैं?’

‘बस ऐसे ही.. अब बेबी की कोई बहन या भाभी तो है नहीं.. जो आपसे खुल कर बात कर सके.. लड़की बसानी है तो सौ तरह की ऊँच-नीच सहनी पड़ती है।’
‘अरे नहीं नहीं.. आप ऐसा ना सोचें..’ यह कहते हुए मैंने उनके दोनों कन्धों पर हाथ रख दिए।

यह शुरुआत थी।

दस करोड़ की जायदाद का सवाल था। चुदाई की प्यासी वो भी होगी.. इसमें कोई शक ना था.. पर जल्दबाज़ी नुकसान पहुँचा सकती थी। तीन महीने की मशक्क्त के बाद मैंने उसे अपने साथ रहने के लिए मना ही लिया।

बहाना था सेवा का और देखभाल करने का। मैं बेबी के साथ चंडीगढ़ शिफ्ट हो गया और वहाँ के दो कमरे के फ्लैट में अब तीन लोग रहने लगे थे.. मैं.. बेबी और राखी..

उधर प्रॉपर्टी का धंधा ज़ोरों पर था और मैंने बेबी व उसकी माँ को कुछ ज़मीन बेच कर प्रॉपर्टी के धंधे में पैसा लगाने के लिए राजी कर लिया। जिस दिन बेची हुई ज़मीन की रजिस्ट्री होनी थी.. उस दिन मैं सासू आंटी को कार में बिठा कर पटियाला ले गया। उन दिनों बेबी पेट से थी.. तो उसको घर पर छोड़ कर जाने का अच्छा बहाना था।

हम दोनों 11 बजे तहसील पहुँच गए। खरीददार पार्टी ने सारे कागज़-पत्र तैयार करवा रखे थे। हमको तो बस पैसा और ड्राफ्ट लेकर रजिस्ट्री पर दस्तखत करने थे। तहसीलदार दोपहर बाद यह काम निपटाता था।

मैं आराम करने के बहाने सासू आंटी को एक बड़े होटल ले आया।
मेरे पास मिशन-चुदाई को पूरा करने के लिए तीन-चार घंटे थे।

हम दोनों उस होटल के कमरा नंबर 106 में पहुँच गए। सासू को इधर-उधर की बातें करके उनको गर्म करने में एक घंटा लग गया था। एक घंटे बाद मैं अपना लण्ड निकाल कर उसके सामने खड़ा था, वो रिश्ते की दुहाई दे रही थीं।
मुझे पता था कि यह सिर्फ दिखावा है.. अन्दर से वो भी अपने जमाई राजा की रखैल बनने के लिए तैयार हो चुकी थीं।

वो चुदास के चलते छटपटा रही थीं और मेरे चंगुल से निकलने की झूठ-मूठ कोशिश भी कर रही थीं। मैंने उनकी सलवार उतार दी.. गज़ब का गोरा और चिकना बदन था.. मोटी-मोटी जांघें.. मस्त उठी हुई गाण्ड और सालों से अनचुदी चूत।

उनकी कमीज़ निकालते ही उन्होंने अपने आपको मुझे सौंप दिया।

बस अगले पांच मिनट बाद हम दोनों नंगे थे.. अल्फ नंगे। मैं उनके मस्त मम्मे चूस रहा था और वो मेरा लण्ड को हाथ में ले कर मसल रही थीं। उनके होंठ.. गरदन.. पेट को चूम-चूम कर मैंने उन्हें पूरी तरह से गर्म कर दिया।

उनके हाथ का दबाव मेरे लण्ड पर लगातार बढ़ रहा था। जब लोहा पूरा गर्म लगा.. तो मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया। टांगें उठा कर कन्धों पर रख लीं और लण्ड अपने चिर-परिचित अंदाज़ में चूत में समा गया।

‘आह.. आह.. मैं मर गई.. क्या कर दिया आपने.. आह.. ओह्ह..’
‘मेरी जान.. मत रोक मुझे.. चोद लेने दे.. बहुत तड़पा हूँ इस दिन के लिए!’

‘हाय बेबी.. तुझसे अपना खसम नहीं सम्भलता.. आह अई.. तेरी माँ को चुदना पड़ रहा है.. हाय मेरे चोदू राजा.. चोद दे.. पर धीरे-धीरे चोद.. बहुत दिनों से प्यासी थी।’

‘राखी रानी.. आज न रोक.. बहुत तड़पा हूँ तेरा मस्त बदन देख-देख कर.. ले.. ले.. खा.. अपने आशिक का लण्ड..’

पता नहीं क्या-क्या आवाजें हम दोनों के मुँह से निकल रही थीं.. पूरा कमरा सिसकारियों से भर गया था। दस मिनट की चुदाई के बाद हम दोनों एक-दूसरे की बाँहों में पड़े निढाल थे।
चुदाई का मिशन कामयाब रहा और मैं दोनों काम फतह करके उस दिन घर लौटा।

फिर तो यह रूटीन बन गया.. रात को बेबी और सुबह उसकी माँ.. दोनों को कोई एतराज़ भी नहीं था और मेरी तो जैसे लाटरी लग गई थी।

जायदाद भी मिल गई.. और बीवी भी और साथ में एक बोनस में सास की चूत भी थी.. मतलब एक के साथ एक फ्री थी और मुँह में सोने का चम्मच भी था।

आपके बहुमूल्य विचारों के लिए ईमेल पर इन्तजार कर रहा हूँ।

जोगी पंजाबी
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