रोहतक के मलंग ने हिला दिया पलंग-1

रोहतक के मलंग ने हिला दिया पलंग-1

मैं अंश बजाज अपनी किसी प्रशंसिका की कहानी भेज रहा हूँ. मजा लीजिये उसी के शब्दों में!

अंतर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है। पिछले दो तीन वर्षों से कहानियाँ पढ़कर मैंने यहाँ पर अपना मन बहलाया लेकिन एक दिन मेरा भी दिल किया कि मैं भी अपनी एक घटना पाठकों के साथ शेयर करूं।

भले ही अपनी कहानी मैं आपके साथ शेयर कर रही हूं लेकिन पति की इज्जत का भी ख्याल है इसलिए नाम नहीं बता रही हूँ। आख़िर उनसे और उनके परिवार से रिश्ता जो जुड़ा है।

मैं दिल्ली के एक पॉश इलाके में रहती हूं। मेरी शादी 22वें साल में हो गई थी। शादी के समय तो मेरी फिगर काफी अच्छी थी। मेरी हाइट 5.6 फीट की है। उस समय मेरी ब्रा का साइज़ 34 का था और कमर 30 की, जबकि नितम्बों का माप 36 था। वज़न भी संतुलित था और शरीर भी भरा हुआ था लेकिन शेप में।

वैसे तो मेरी जिंदगी में हर एश-ओ-आराम था। मैं भी बड़े घर से थी और पति भी बिज़नेस से अच्छा ख़ासा कमाते थे। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी लेकिन पति से सम्भोग के मामले में मेरी किस्मत मुझे ज्यादा कुछ नहीं दे पाई। ऐसा भी नहीं था कि उनका सेक्स करने का मन नहीं करता था। वो सेक्स तो करते थे लेकिन मेरी कामना फिर भी अधूरी-सी रहती थी। शादी के शुरूआती दौर में तो मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। क्योंकि नई-नई शादी हुई थी तो लगभग हर रोज़ ही सेक्स होता था।

जैसे-जैसे समय बीतने लगा इसमें धीरे-धीरे कमी आने लगी। रोज़ हमबिस्तर होने वाली रातों ने पहले तीन महीने के अंदर ही 2 दिन बाद आना शुरू किया फिर 4 दिन बाद। साल भर बीतने के बाद ये बात सप्ताह में पहुंच गई। फिर 10 दिन से 15 दिन हो गए और डेढ़ साल बाद महीने में दो रातें ही सेक्स के लिए आती थीं। 2 साल बाद तो महीना भी सूखा बीतने लगा। इसी बीच मैंने इंटरनेट से मन बहलाना शुरू कर दिया था।

अंतर्वासना पर कामुक कहानियाँ पढ़कर अपनी उंगलियों से ही नीचे वाली गर्म भट्टी में संतोष का पानी डालती रहती थी। फैमिली प्लानिंग के चलते मेरे पति कॉन्डॉम लगाकर ही अंदर डालते थे। किंतु ढाई साल बाद काम सिर्फ डालने और निकालने का ही रह गया था। जैसे उनकी एक ड्यूटी है जो उनको बस पूरी करनी है।

इसका कारण भी मैंने जानने की कोशिश की। मैंने सीधे तौर पर तो उनसे नहीं पूछा, परंतु कई बार प्रयत्न किया कि बहाने से कोई बात सामने निकल कर आए लेकिन वो इस बारे में कभी खुलकर कुछ बोलते भी नहीं थे।

शादी को 4 चार साल हो चुके हैं और गुज़रते समय के साथ मेरी रातें बिल्कुल तन्हा रहने लगी हैं। इसी तन्हाई ने की सूखी धरती के अंदर कामनाओं की जो गर्मी मैंने दबाकर रखी थी, वो एक दिन मेरे काबू से बाहर होकर मेरी योनि के अंदर ज्वालामुखी बनकर फूंट गई जिससे निकले लावा ने संयम की हर डोरी को जलाकर राख कर दिया।

कुछ ही दिन पहले मैं एक दिन शाम को मार्केट से शॉपिंग करके लौट रही थी। चांदनी चौक से मैंने कश्मीरी गेट के लिए मेट्रो ली। मेट्रो में बहुत भीड़ थी और मेरे दोनों हाथों में सामान था। मैं किसी तरह अंदर घुस गई और पलटकर दरवाज़े की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई। पीछे से बार-बार धक्के लग रहे थे। कभी कोई अगले स्टेशन पर उतरने के लिए भीड़ को धकेलते हुए निकलने की कोशिश करता तो कोई अंदर घुसने की। बहुत दिक्कत हो रही थी। दोनों हाथों में सामान होने की वजह से मैं बैलेंस भी नहीं बना पा रही थी।

जब मेट्रो चलती तो धक्का और रुकती तो धक्का।

जब कश्मीरी गेट स्टेशन आने वाला था सब लोग उतरने के लिए गेट की तरफ ही इकट्ठा हो गए थे। जिससे पीछे से भीड़ का दबाव आता हुआ महसूस हो रहा था। मैं मुश्किल से खुद को गिरने से रोक रही थी। कश्मीरी गेट से पहले ही मेट्रो में अचानक एकदम से ब्रेक लगे और मैंने गिरने से बचने के लिए अपने पीछे वाले का सहारा लेकर उसको पकड़ लिया। मेरे हाथ में उसका टी-शर्ट आ गया जिसको मैंने कसकर मुट्ठी में पकड़ लिया और उसका हाथ मेरे कंधे पर आकर कस गया।
उसने मुझे संभालते हुए कहा- आराम से मैडम।

मैंने पीछे नज़र घुमाई तो 26-27 साल का कोई नौजवान लड़का था। चेहरे से अच्छा दिख रहा था लेकिन थोड़ा घबराया हुआ। हाइट करीब 6 फीट के आस-पास।
मैंने दोबारा देखा तो वो हल्के से मुस्कुरा दिया।
थोड़ा घबरा भी रहा था कि कहीं मैं उस पर गुस्सा तो नहीं हो रही हूं।
मैंने अपने कंधे की तरफ नज़र घुमाई उसने हाथ हटा लिया लेकिन पीछे से मैंने अपने हाथ में आई उसकी टी-शर्ट को नहीं छोड़ा।

मेरे हाथ मैं पॉलिबैग भी था लेकिन फिर भी मैंने मुट्ठी में उसकी टी-शर्ट को भी पकड़े रखा।
तभी उद्घोषणा हुई ‘इस यात्रा सेवा में थोड़ा विलम्ब होगा, असुविधा के लिए हमें खेद है।’
मैंने मन ही मन कहा कि एक तो इतनी भीड़ है और ऊपर से ये मेट्रो का ड्रामा शुरू हो गया।

2-3 मिनट तक मेट्रो वहां से नहीं हिली और मैं उसकी टी-शर्ट को पकड़े हुए अपनी जगह से। जब दोबारा से मेट्रो चली तो मैंने उसकी कमर को और कस कर पकड़ लिया और उसके खिंचते टी-शर्ट के साथ उसके शरीर का भार थोड़ा-थोड़ा मेरे शरीर की तरफ बढ़ने लगा। दोबारा से ब्रेक लगा और मेरी लेफ्ट वाली बगल में मेरी कमर पर उसका हाथ हल्के से टच कर गया। जब मैंने कोई रेस्पोन्स नहीं दिया तो उसने हाथ आराम से कमर पर रख दिया।

उसका हाथ मेरी कमर पर अच्छे से सेट हो रहा था। मैंने महसूस किया कि मेरे नितम्बों पर उसकी जांघों वाला भाग भी टच हो रहा है जो धीरे-धीरे मेरे नितम्बों पर अपना दबाव बना रहा है। अब उसका सीधा हाथ पीछे मेरे नितम्बों पर टच होने लगा। जब मेट्रो चली तो उसने झटके से मेरे दाएं नितम्ब को अपनी मुट्ठी में लेकर भींच दिया।
मेरे अंदर की फीलिंग जागने लगी।

फिर ब्रेक लगे और उसने फिर से मेरे नितम्ब को दबा दिया। अब धीरे-धीरे उसने मेरे नितम्ब को लगातार प्रेस करना शुरू कर दिया। उसका पूरा शरीर मेरे बदन से सट गया था और वो बार-बार अपनी मजबूत पकड़ से मेरे नितम्ब को दबाकर फिर से पकड़ ढीली कर देता।

घोषणा हुई ‘अगला स्टेशन कश्मीरी गेट है… यहां पर रेड लाइन के लिए बदलें।’

स्टेशन पर पहुंचकर मेट्रो ने ब्रेक लगाए और उसके साथ ही उसने अपने लिंग वाले भाग को मेरे नितम्बों की खाई के बीच में लगाकर धक्का दे दिया। गेट खुला और भीड़ धक्का मुक्की के साथ बाहर निकलने लगी। भीड़ हम दोनों को अंदर से बाहर धकेल रही थी और उसके हाथ इसी बीच मेरे दूधों को तीन बार दबा चुके थे। भीड़ में आगे सरकते हुए वो अपने लिंग वाला भाग लगातार मेरे नितम्बों की बीच वाली दरार में सटाए हुए धकेलता जा रहा था। धक्कम-धक्का होते हुए मैं भीड़ के बहाव में गेट से बाहर निकल गई और बाहर आते ही उसका बदन मेरे गरम हो चुके जिस्म से अलग हो गया।

मैंने मुड़कर नहीं देखा और भीड़ के पीछे-पीछे सामने स्वचालित सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगी। सारी भीड़ एस्केलेटर के सामने झुंड बनाकर इकट्ठा होकर धीरे-धीरे ऊपर जाती हुई दिखाई दे रही थी। मैं भी भीड़ के झुंड के साथ लगकर आगे बढ़ने लगी। एस्केलेटर पर पैर पहुंचते-पहुंचते एक मजबूत हाथ पीछे से फिर मेरे नितम्बों को कई बार दबा चुका था। मैं समझ गई कि वो पीछे ही है। लेकिन मैंने फिर भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पैर स्वचालित सीढ़ियों पर टिकते ही मैं अपने सामान के साथ ऊपर बढ़ने लगी। ऊपर पहुंचकर मुझे दूसरी मैट्रो चेंज करनी थी। मैं रिठाला की तरफ जाने वाली मेट्रो के प्लेटफॉर्म पर पहुंच गई और ट्रेन का इंतज़ार करने लगी। मेरे हाथ भी दुखने लगे थे। मैंने सामान को एक तरफ रखा और स्वयं को व्यवस्थित करने लगी। मैंने अपनी चुन्नी को ठीक किया जो मेरे कंधे पर एक तरफ ही पड़ी हुई थी।

चुन्नी ठीक करते हुए मेरी नज़र मेरे उभारों की दरार पर गई। दरार के अंदर पल भर के लिए झांका और चुन्नी को ठीक करने की बजाय ऐसे ही पड़े रहने दिया। बहुत दिनों बाद अपने अंदर एक नई जवान लड़की जैसी फीलिंग महसूस कर रही थी। अब मैं चाहती थी कि कोई मेरे दूधों की दरार को देखे, उनको देखकर लार गिराए और ललचाए। इसलिए मैंने सूट के गले को थोड़ा और नीचे की तरफ खिसका लिया। अब दरार और अच्छी तरह दिखाई देने लगी थी।

मैंने बालों में हाथ फिराया और पीछे जूड़ा बांध लिया ताकि पीछे की तरफ पीठ भी दिखाई दे जिसका गला पीछे से काफी चौड़ा था। गले के पेंडेंट को मैंने दूधों की दरार के ठीक बीच में लाकर छोड़ दिया जो अंदर ही नीचे की तरफ लटक कर ये बता रहा था कि नीचे गहरी खाई है।

मैंने फिर से सामान हाथ में उठा लिया।

‘रिठाला की ओर जाने वाली गाड़ी जिसमें 4 डिब्बे हैं, प्लेटफॉर्म नम्बर 2 पर आने वाली है!’

लोगों की भीड़ से भरे प्लेटफॉर्म पर हॉर्न बजाती हुई मेट्रो आकर थम गई, लोग उतरने लगे लेकिन उनसे पहले चढ़ने वालों को ज्यादा जल्दी थी। धक्का मुक्की फिर से शुरू हो गई। जैसे-तैसे करके मैं भी अपने सामान के साथ अंदर घुस गई। दूसरे डिब्बे का आख़िरी दरवाज़ा था। दो तीन स्टेशन के बाद भीड़ कम होने लगी और एक बुजुर्ग के उठने के बाद मैंने सीनियर सिटीजन वाली सीट पर बैठने के लिए सोचा, साथ में ही एक कम उम्र की लड़की खड़ी थी, मुझसे पहले वो बैठ गई। लड़की की बगल में एक 19-20 साल का लड़का था। मुझे खड़े देखकर उसने मुझे सीट ऑफर कर दी। क्योंकि मैं तो लेडीज़ थी न। उससे देखा नहीं गया कि लेडीज़ खड़ी है।
और वैसे मैं अगर सीट पर बैठना चाहती तो वो मना भी नहीं कर सकता था क्योंकि मैं तो लेडीज़ हूं ना..

मैं जिस किसी को जाकर सीट से उठा सकती हूं लेकिन मुझे सीट से उठने के लिए कोई नहीं बोल सकता। लेकिन उस लड़की पर मुझे भी गुस्सा आ रहा था। मैं उम्र में उससे बड़ी थी और मेरे पास सामान भी था फिर भी उसने मुझे बैठने के लिए नहीं कहा। लेकिन बेचारे लड़के तो उठ ही जाते हैं। क्योंकि न तो उनके पांव दुखते हैं और न ही उनको घंटा, दो घंटा खड़े रहकर सफर करने में थकान होती है। चाहे बस हो या ट्रेन।

लेडीज़ होने का कुछ तो फायदा होता ही है। हां लेकिन जब समाज में बात बराबरी की आती है तो महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली कहा जाता है। फिर पता नहीं उनके साथ खड़े होकर सफर करने में सरकार को हमारे अंदर कमज़ोरी कहां से दिखाई देने लगती है।
बुज़ुर्ग और गर्भवती के लिए तो मैं भी एक टांग पर खड़ी होकर सफर करने के लिए तैयार हो जाती लेकिन ये जो जवान लड़कियां हैं उनको तो कम से कम पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए न।

खैर, यह तो अपनी-अपनी समझ की बात है, सरकार ने कुछ सोच-समझकर ही बनाए होंगे नियम-कानून।

मैं सीट पर बैठी ही थी कि सामने नज़र गई तो वही लड़का ठीक मेरे सामने वाले दरवाज़े की से कमर लगाकर खड़ा था।
उसने ब्लैक जींस और गहरे आसमानी रंग की हाफ बाजू टी-शर्ट पहन रखी थी। मैंने उसको नज़र बचाते हुए अच्छे से देखा। ऊपर से नीचे तक… चौड़ी छाती, मजबूत भुजाएं जो उसने सामने लाकर क्रास करके पेट पर बांधी हुई थी।
उसका एक पैर पीछे दरवाजे़ से लगा हुआ था और वो कमर लगाकर दरवाज़े के साथ खड़ा हुआ था, टांगें भी काफी भारी थीं। खासकर जांघों वाला हिस्सा। टीशर्ट के नीचे उसकी पैंट में तना हुआ उसका लिंग भी अलग से दिखाई दे रहा था जिसे मैं ना चाहते हुए भी बार-बार देखने की कोशिश कर रही थी।

जब उसने भांप लिया कि मैंने उसके लिंग को देख लिया है तो उसने अपने लिंग को बहाने से छेड़ा और सहलाते हुए दोनों पैर सीधे करके खड़ा हो गया जिससे उसका लिंग अब उसकी जींस में तना हुआ अलग से ही दिखाई दे रहा था। जब मेरी नज़र उस पर पड़ती तो वो उसमें उछाला आ जाता तो मुझे साफ-साफ दिखाई दे रहा था।

फिर पता नहीं उसके मन में क्या आया वो मेरी सीट के साथ में ही दरवाजे़ के पास वाले पोल को पकड़कर खड़ा हो गया। उसका लिंग अभी भी तना हुआ था और वो जान-बूझकर उसमें उछाले दे रहा था। उसके हर उछाले के साथ मेरी योनि में सिरहन सी पैदा हो जाती थी। और मैं नज़रें वहां से हटा लेती थी।

नौजवान लिंग का तनाव अपने पूरे उफान पर था। मैं बहकने लगी, मैंने फोन निकाल लिया और डायलर में अपना ही नम्बर टाइप करने लगी। उसने मेरे फोन की स्क्रीन पर ध्यान से देखा और वो नम्बर अपने फोन में टाइप करता गया।

दो स्टेशन के बाद मेरा स्टेशन आने वाला था। मैंने अपने बालों में हाथ फिराने के बहाने से उसकी तरफ नज़र घुमाई तो उसकी नज़र मेरे दूधों की खाई की गहराई नाप रही थी जिसे देखकर उसके चेहरे पर वासना की लहरें उसे भी उसी बहाव में बहाए जा रही थीं जिस बहाव में अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के खूंटे से बंधी मर्यादा की रस्सी को तुड़वाकर वासना के बहाव में बही चली जा रही थी।

स्टेशन आने से पहले मैं खड़ी हो गई और सामान संभालकर दरवाज़े के पास आकर खड़ी हो गई। ट्रेन रुकी और मैं बाहर निकल गई। कॉनकोर्स की लिफ्ट तक पहुंचते हुए मैंने दो बार पीछे मुड़कर देखा कि वो आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लड़के तो चूत के पीछे पागल कुत्ते की तरह जीभ निकालकर लार टपकाते हुए फिरते रहते हैं… फिर मैं कहां चूक गई। मुझे थोड़ा अफसोस हुआ कि उससे मैट्रो में ही बात कर लेनी चाहिए थी।

उसके फोन के इंतज़ार में तीन-चार दिन निकल गए लेकिन मेरे नम्बर पर किसी भी बिना जाने-पहचाने नम्बर से कोई फोन नहीं आया।

एक दिन शाम को जब मैं खाना बना रही थी तो फोन की रिंग बजी। मैंने नम्बर देखा तो सविता (मेरी दोस्त) का कॉल था… फोन पिक किया और उसकी गप-शप शुरू हो गई… क्या बना रही है? मनोज जी क्या कर रहे हैं… फलां सीरियल में ये चल रहा है, मेरी सास ने आज क्या नया ड्रामा किया वगैरह-वगैरह…

हम दोनों कॉलेज टाइम से ही साथ रही हैं इसलिए आपस में हर तरह की बातें शेयर कर लिया करती हैं। उससे फोन पर बात कर ही रही थी कि मेरे फोन पर एक अन्जाने नम्बर से बीच में ही कॉल आने लगा।
मैंने सविता को होल्ड किया और उस नए नम्बर पर हैलो किया।

वहां से एक भारी सी आवाज़ आई- हैल्लो..
मैंने पूछा- कौन बोल रहे हैं?
उसने कहा- बड़ी जल्दी भूल गे मैडम आप तो। मैं दिनेश बात कर रा हूं। उस दिन रिठाला मैट्रो में… भूल गे के?
उसकी भाषा हरियाणवी थी। मेरे हाथ पांव फूल गए। मैं समझ गई कि ये उसी का फोन है।

मैंने किचन से हॉल की तरफ झांका तो मनोज (मेरे पति) टीवी में न्यूज़ देख रहे थे। मैंने बात घुमाते हुए कहा- अरे… सविता तू भी ना… क्यूं बोर कर रही है। मुझे अभी खाना बनाने दे, बाद में बात करना।
मैंने फोन रखते ही तुरंत एक मैसेज किया- अभी बात नहीं कर सकती, दिन में 2 बजे के बाद फोन करना।

वहां से कोई रिप्लाई नहीं आया। खाना खाने के बाद मैंने उस रात टीवी में कोई सीरियल भी नहीं देखा। मैं बेचैनी में बार-बार बिस्तर पर करवटें बदल रही थी। मैट्रो में मेरे सामने उसकी ब्लैक जींस में तना हुआ उसका लिंग मेरे दिमाग में घूम रहा था जिसे मेरी योनि अपने अंदर लेने की कल्पना किए जा रही थी।

मनोज की तरफ देखा तो वो खर्रांटे भर रहे थे। मैंने धीरे से अपनी नाइटी को जांघों तक ऊपर किया और चूत को एक हाथ से हल्के से मसाज करते हुए दूसरे हाथ से अपने दूध दबाने लगी। मेरी जांघें फैलकर चूत को और खोलने लगीं और हाथ की स्पीड बढ़ने लगी।

जब 5-7 मिनट के बाद चूत ने तरल पदार्थ छोड़ना शुरू कर दिया तो मैंने घुटने मोड़ लिए और नंगी हो चुकी जांघों के बीच में फूली हुई गरम चूत को तेज़ी से रगड़ने लगी। दिमाग ने उंगलियों को ही दिनेश का लिंग बना दिया और मेरी आंखें बंद होने लगी और होंठ आपस में एक दूसरे से रगड़़ने लगे। जब गर्मी और बढ़ी तो सिसकारियां भी शुरू हो गईं, मैं नीचे से बिल्कुल नंगी थी और चूत को मसले जा रही थी।

तभी एक दूसरा हाथ आकर मेरे दूधों को दबाने लगा, आंखें खुली तो मनोज बगल में लेटे हुए मुझे देखते हुए मेरे दूध सहला रहे थे।
मैंने उनका लिंग पकड़ लिया और जल्दी ही वो मुझ पर चढ़ गए… लेकिन जितनी जल्दी चढ़े थे उतनी ही जल्दी उतर भी गए।
मैं फिर प्यासी रह गई और चुपचाप करवट बदलकर सो गई।

कहानी जारी है.
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कहानी का अगला भाग: रोहतक के मलंग ने हिला दिया पलंग-2

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