शर्बत-ए-आजम

शर्बत-ए-आजम

प्रेषिका : लक्ष्मी कंवर

मेरा देवर नरेन्द्र बहुत ही सीधा सादा और भोला भाला था। मैं तो प्यार से उसे नरेन् कहती थी। आप जानते हैं ना, इसी सादगी पर तो हम हसीनाएँ मर मिटती हैं। जो हमें लिफ़्ट देता है, हमारी चूत के पीछे भागता है उन्हें घास डालने में मजा नहीं आता है। अरे मजा तो तब आता है जब हम खुद ही मनचाहा माल पटाए और फिर मजे करें। ये भोली सी सूरत वाले मर्द, सच कहती हूँ राम जी, मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।

यह नरेन् भी ऐसा ही था। बेफ़िक्रा सा, मस्ती में रहने वाला, जो उससे कहो सर झुका कर बात मानने वाला। अधिकतर जीन्स पहनने वाला लड़का, मन को अन्दर तक गुदगुदाने वाला मादक लड़का था। पर बहुत ही नासमझ, समझ में नहीं आता था कि इस अनाड़ी का मैं क्या करूं? साले को कैसे पटक कर अपने आप को चुदवा डालूँ।

आज भी मैंने उसे सर दबाने के बहाने रात को सोने से पहले उसे बुला लिया था। सोचा उसके साथ जरा सी मस्ती कर लूँगी। फिर उससे ना केवल सर ही दबवाया बल्कि अपनी पीठ और पैर तक दबवा डाले। बेदर्द मुआ, जरा भी नहीं समझा और पैर दबाते दबाते यहीं सो ही गया। यहाँ तक तक कि मैंने अपना पेटीकोट जांघ तक उठा लिया था, पर बस, उसने जांघें तक दबा डाली पर उसका लण्ड तक टस से मस तक नहीं हुआ। उसके सोते ही मैंने लाईट बन्द कर दी और उसके पास ही सो गई। मैंने जान कर के सोते समय अपना पेटीकोट जांघ से ऊपर तक उठा दिया था, कि शायद रात को जब उसकी नींद खुले तो उसे मुझे देख कर गर्माहट आ जाए। पर हाय राम, कुछ नहीं किया उसने। सवेरे मेरे पति महेन्द्र के आने का समय हो गया तो मैंने ही उसे उठाया और उसे चाय पीने को कहा।

मैं दिन भर उनके सुहाने सपने देख कर ही अपना मन बहला लेती और मेरी चूत टसुये बहा कर अपनी गर्मी निकाल देती।

नरेन् ने सोने से पहले आज बस यूँ ही पूछ लिया- भाभी, कमर, पैर दबवाना हो तो बोल देना, मैं सोने जा रहा हूँ।

“अरे हां, नरेन्, बस थोड़ी सी कमर को दबा देना, आराम मिल जाएगा।”

“बस आया भाभी, कपड़े बदल लूँ !”

कुछ ही देर में वो अपना पायजामा और बनियान पहन कर आ गया। पर आज मुझे उसका लण्ड कुछ फ़ूला फ़ूला सा लगा। आज उसमें कुछ जोर नजर आ रहा था। मुझे लगा उसे छू कर देख लेना चाहिए। जब आज उसने मेरी पीठ सहलानी शुरू की तो उसका लण्ड सख्त सा होने लगा। मुझे कुछ आशा की किरण नजर आई। मैंने अपना पेटीकोट चूतड़ों से थोड़ा नीचे सरका दिया ताकि उसे मेरे चूतड़ों के ऊपर की दरार आराम से नजर आए।

वो जब मेरी कमर दबा रहा था तो मैंने उसे अनजान बनते हुए उसके लण्ड पर धीरे से हाथ रख दिया।

आह! सच में, वो सख्त ही था। उसने जरा भी उस बात की परवाह नहीं की और सहज ही रहा।

मैं तो उसके कड़े हाथों को अपने शरीर पर महसूस करके बहुत गर्म हो गई थी, नीचे चूत पनियाने लगी थी, मेरे उरोज कड़े हो गए थे। आँखों में नशा उतर आया था। फिर मुझे लगा कि एकाएक जैसे वो मेरी पीठ पर सवार हो गया है। उसके शरीर का भार मेरी पीठ पर आ गया है। मैं बहुत आनन्दित हो उठी। चलो देर से आया, पर आ तो गया।

अब मुझे चुदाई के पूरे आसार लगने लगे थे। उसका भारी सा सख्त लण्ड मेरी चूतड़ की दरार पर जोर डाल रहा था, जिसे मैंने उसे दरार को हल्का सा खोल कर उसे दोनों फ़ांकों के मध्य दबा लिया। उसकी गरम सांसें मेरी गरदन से टकराने लगी थी। फिर, धत्त तेरे की, उसके खर्राटे की आवाजें आने लगी।

वो मेरी पीठ पर ही सो चुका था। पर मुझे उसके शरीर का भार मस्त किए दे रहा था। मेरा जिस्म जैसे जलने लगा था। मेरी नरम सी गाण्ड में फ़ंसे हुए लण्ड को मैं अपने भीतर समा लेना चाहती थी। पर क्या करूँ?

तभी मैंने उसके पायजामें का नाड़ा खींच कर खोल दिया। उसे खींच कर एक ही हाथ से नीचे करने लगी। वो भी थोड़ा नींद में कसमसाया और उसका पायजामा कूल्हे से नीचे आ गया। फिर मैंने थोड़ा सा जोर लगा कर अपना पेटीकोट भी नीचे सरका दिया। अब मेरी नंगी गाण्ड में अब उसका नंगा भारी लण्ड फ़ंसा हुआ था। अनजाने में ही यह सब हुआ था, पर मुझे इसमें बहुत मजा आ रहा था। तभी मेरी चूत जोर से कसमसाई और मैं अति-उत्तेजना में झड़ने लगी। फिर मुझे जाने कब नींद आ गई। वो मेरे ऊपर ही पड़ा रहा।

जाने रात के किस पहर में मेरी नींद खुल गई। मेरी गाण्ड में नरेन् का कठोर लण्ड रगड़ मार रहा था। उसकी सांसें जोर जोर से चलने लगी थी। मेरी गाण्ड का कोमल फ़ूल उसके नरम सुपाड़े से कुचला जा रहा था। मुझे जबरदस्त रोमांच सा हो आया। हाय ! क्या मेरी किस्मत खुल गई ? पता नहीं, पर मेरी गाण्ड का फ़ूल कुचल कर अन्दर की और खुलने लगा था। उसका सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुस रहा था। फिर छेद ने उसके सुपाड़े को अपनी गिरफ़्त में जकड़ लिया। मेरा दिल धड़क उठा। मैं चुपचाप नीचे सोती सी, चुपके पड़ी रही। जाने मुझे जागते देख कर वो घबरा जाए और मैं अनचुदी रह जाऊँ। मैं अपनी गाण्ड को हमेशा की तरह ढीली करने लगी जैसे कि मेरे पति से गाण्ड चुदाते समय करती थी। इतनी कोशिशों के बाद मुझे मालूम हुआ कि वो तो ये सब नींद में ही कर रहा था। मैं एक बार फिर निराशा से सुस्त हो गई। मैंने वैसे ही अपनी गाण्ड में उसका लण्ड लिए सोने की कोशिश करने लगी।

मेरी नींद सवेरे ही खुली। नरेन् वहाँ पर नहीं था। हुह, साला कुत्ता कमीना, मर्द होते हुए भी मुझे चोद नहीं सका !

तभी नरेन्द्र ने आवाज लगाई- चाय पी लो, भैया आते ही होंगे।

मैंने अपने आप को देखा। मेरा पेटीकोट सलीके से चूतड़ों पर ढकी हुई थी। यानि यह सब उसी ने किया होगा ना। महेन्द्र रात की ड्यूटी से आते ही अपना सामान पैक करने लगा। उसे दिल्ली जाना था। ग्यारह बजे की ट्रेन थी। मैंने उन्हें खाना वगैरह पैक करके दे दिया, नरेन्द्र उन्हें स्टेशन छोड़ आया।

मौका अच्छा था। अब मुझे रोकने टोकने वाला कोई ना था। एक मौका दिन को भी बनता था। दिन में भोजन से निपट कर नरेन् अपने कमरे में आराम कर रहा था। वही ढीला ढाला पायजामा और बनियान। हरामजादा बहुत ही सेक्सी लग रहा था ! हाय, कैसे भी करके मेरी चूत में अपना सख्त लण्ड फ़ंसा कर जोर से चोद दे, बस।

मैंने भी पेटीकोट और ब्लाऊज बिना चड्डी और ब्रा के पहना और पहुँच गई उसके कमरे में एक और कोशिश करने। बेशर्मी से मैं उसके बिस्तर पर लेट गई। वो एक तरफ़ खिसक गया।

“भाभी, एक बात बताऊँ?”

“हूं ! बता …”

“रात को आपका पेटीकोट ऊपर उठ गया था।”

“ओह्ह्ह ! फिर ..?.”

“सुबह उठ कर मैंने उसे ठीक किया था।”

“उई माँ, क्या सब कुछ देख लिया था?”

“अररररर ! नहीं तो भाभी, मैंने सब अपनी आँखें बन्द करके किया था।”

“अच्छा, तो आँखे बन्द करके और क्या क्या किया था?”

वो बुरी तरह से झेंप गया। मैं उससे धीरे से चिपकते हुए बोली,”मजा आया था क्या?”

“ओह भाभी…।”

“बहुत शर्माता है तू तो?”

उसने शर्म से अपना मुख मेरी छाती में सख्त चूचियों के बीच में छुपा लिया। मुझे मौका मिल गया। मैंने हौले से चूचियों को उसके मुख मण्डल पर दबा दिया। अपने शरीर को उसके और नजदीक से चिपका लिया। उसका चेहरा लाल होने लगा था। मेरे दिल की धड़कन भी तेज होने लगी थी। उसने अपना चेहरा उठा कर मुझे देखा। उसकी आँखों में ललाई थी। गाल तमतमा गए थे। उसका चेहरा मेरे चेहरे के बहुत नजदीक था। उसके होंठ अब फ़ड़फ़ड़ाने लगे थे। मेरे होंठों की पंखुड़ियाँ भी थरथराने लगी थी। हम दोनों की निगाहें एकटक बिना पलक झपकाए एक दूसरे में डूबी जा रही थी। फिर एक आह सी निकली,”भाभी…”

“हां मेरे भैया…”

और हमारे अधर एक दूसरे से चिपक गए। मेरी आँखें उत्तेजना के मारे बन्द होने लगी थी। उसने मुझसे दूर होने की कोशिश की। पर मैं तो अपना होश खो बैठी थी। भला ऐसे कैसे छोड़ देती उसको ? इतनी मुश्किल से तो पंछी काबू में आया था। मैं उससे लिपट गई। उसे अपनी बाहों में दबा लिया और उसके ऊपर चढ गई। उसके जवान लण्ड में सख्ती आ गई।

मैं अपनी आँखें बन्द किए उसके अधर को पिए जा रही थी और वो घूं घूं की आवाज से अपना विरोध प्रदर्शन कर रहा था।

“मेरे राजा, बहुत तड़पाया है तुमने मुझे !”

“भाभी बस, हो गई बहुत मस्ती, अब जाने दो मुझे !”

“अभी नहीं, मस्ताने दे ना मुझे … अभी तो मुझे नीचे की चुभन बड़े जोर से हो रही है … आह रे !”

वो फिर से शरमा गया। मैं मदहोश सी … पगलाई जा रही थी। उसके कठोर खड़े हुए लण्ड को मैंने अपनी दोनों टांगों के मध्य चूत द्वार पर दबा लिया और उसका सुख भरा अहसास लेने लगी। मेरी चूत बुरी तरह से गीली हो गई थी। वो थोड़ी देर तक तो नीचे दबा हुआ तड़पता हुआ विरोध करता रहा, फिर वो गर्म हो उठा। उसकी हलचल अब समाप्त हो गई। लगता था उसने अपने आप को अब मेरे हवाले कर दिया था। उसकी सांसें तेज होने लगी, गाल सुर्ख हो गए।

मुझे तो जैसे वासना का ज्वर चढ़ गया था। मैंने जल्दी से उसका पायजामा नीचे खींच दिया और उसका लण्ड स्वतन्त्र कर दिया, अपना पेटीकोट ऊपर खींच लिया। मैंने अपनी नंगी चूत का पूरा जोर उसके कठोर खड़े हुए लण्ड पर लगा दिया, उसके बाल मैंने जोर से पकड़ लिए।

अचानक वो चीख सा पड़ा। मेरी चूत ने उसका मस्त लण्ड ढूंढ लिया था और उसे कैद करने की कोशिश में थी। उसने मेरी चूतड़ों पर जोर जोर से थपकियाँ मारनी चालू कर दी थी।

“उह्ह्ह्ह ! मेरे राजा … बस अब हो गया … आह्ह्ह्ह्… बस हो गया !” मैं मस्ती में बड़बड़ाई।

उसका लण्ड मेरी चूत में अब अन्दर सरकता जा रहा था।

“भाभी … मुझे लग रही है … आप यह सब क्या करने लगी हो?” वो मुझे दोनों हाथों से दूर करने की कोशिश कर रहा था।

“अरे चुप … कभी चुदा नहीं है क्या?”

“अरे बस करो ना… हाय … भाभी !”

“तेरी तो साले …”

मुझसे नहीं सहा जा रहा था। मैंने अपने जबड़े भींच कर उसके मोटे लण्ड पर पूरा जोर दे कर धक्का मार दिया। हम दोनों ही चीख उठे। मुझे लगा कि जैसे चूत फ़ट गई हो। हम दोनों आँखें फ़ाड़े एक दूसरे को देखने लगे। फिर मैंने उसे चूम कर तसल्ली दी।

“मस्त मोटा लण्ड है रे…”

“श्श्श्… भाभी गाली मत दो !”

“हाय राम, मेरी चूत तो फ़ाड़ दी…”

“बहुत बेशर्म हो भाभी …”

“जब चूत में आग लगती है ना सारी बेशर्मी गाण्ड में घुस जाती है।”

वो जोर से हंस पड़ा…। मैंने उसके होंठों को चूमा और अपनी एक चूची निकाल कर उसके मुंह में ठूंस दी।

“ले राजा पी ले … फिर तुझे चूत का दूध भी पिलाऊंगी।”

अब वो भी खुलने लगा था। वो बहुत ही तन्मयता से मेरी चूचियों को गुदगुदाता हुआ पुच्च पुच्च करने पीने लगा। उससे मुझे भी चूत में तेज खुजली होने लगी। मैं उसके ऊपर चढ़े-चढ़े ही अपनी चूत में उसके लण्ड को अन्दर बाहर करने लगी। आह्ह्ह्ह ! बहुत तेज मजा आने लगा था। उसी मजे में उसकी आँखें भी बन्द होने लगी थी। साला लौण्डा फ़ंस ही गया।

उसका लण्ड भी धनुष की तरह ऊपर की ओर मुड़ा हुआ था एकदम गोरा, खिंची हुई नसें, फिर लाल सुर्ख सुपाड़ा। मैंने चूत का दबाव थोड़ा सा और बढ़ा दिया। चूत का रस चूने लगा था और लण्ड और चूत के आपस में टकराने से थप थप की आवाज आने लगी थी। आगे पीछे घिसते हुए, अन्दर बाहर लण्ड को लेते हुए बस मेरी जान निकलती जा रही थी। पति के साथ तो मुझे जबरदस्ती जोर लगा कर झड़ना पड़ता था पर यहां तो मेरी चूत पहले ही झड़ने को तत्पर थी। बस लगता था, जोर से चुदाई होगी तो कहीं रस ना छूट जाए, बहुत ही संयम से अपने आप को झड़ने स रोकने की कोशिश कर रही थी।

तभी नरेन् ने अपनी ताकत दिखाई और मुझे लपेट कर अपने नीचे दबा लिया और मेरे ऊपर चढ़ गया, बदहवासों जैसा शॉट पर शॉट मारने लगा। ओह्ह्ह ईश्वर, मैं तो बुरी तरह से चुद गई …

“अह्ह्ह्ह्ह … मर गई रे भैया, मैं तो गई।” मैं अपने आप को अब रोक नहीं पाई और फिर जोर से झड़ने लगी पर वो अपना दम दिखाने लगा। मैं तो उसके लण्ड से चोट लगने से लगभग चीख ही उठी थी।

वो सहम गया और मेरे ऊपर से उतर गया- लग गई भाभी?

“अरे चल, अब तू मेरे ऊपर लेट जा और मेरी चूत का दूध तो पी ले ! जल्दी कर…”

“वो कैसे …?”

मैंने उसे समझाया और अपनी चूत पर उसका मुख चिपका दिया।

“अब चूस इस पानी को…”

वो धीरे धीरे मेरी चूत के रस को पीने लगा। उसका लण्ड मेरे मुख के आस पास ही लहरा रहा था। मैंने उसे धीरे से अपने मुख में लेकर चूसने लगी। अब मैंने उसे एक तरफ़ उतार कर उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया। उसका लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने मुख से भर लिया फिर उसे कस कर मुठ्ठी मारने लगी। वो तड़प कर बैठ गया और मेरे बाल खींचने लगा। मेरे हाथ और भी तेजी से चलने लगे थे। उसकी उत्तेजना भी चरमसीमा को छूने लगी थी।

“भाभी, बस करो, मेरा तो पेशाब ही निकल जाएगा !”

“ऊहुं, पेशाब नहीं, दूध निकलेगा … मुझे भी तो पीना है !”

“भाभी, बस छोड़ दो … हाय मर गया … अरेरेरे … उईईईईईई”

फिर उसका वीर्य सर्रर्रर्रर्रर्रर्र से निकल पड़ा। मैंने पास पड़ा गिलास उठा कर उसमें उसका लण्ड डाल दिया … धनुष जैसा लण्ड रह रह कर गिलास में माल उगल रहा था। कुआंरा लण्ड का शुद्ध माल था। फिर मैंने उसे निचोड़ कर पूरा माल गिलास में भर लिया। कोई अधिक तो नहीं था पर फिर भी ठीक ठाक था। मैंने अपने स्टाईल में उसमें थोड़ा सा पानी मिलाया और फिर उसमें दो चम्मच शहद मिलाया। उसे आधा किया और बाकी का आधा नरेन् को दे दिया।

“लो शर्बत है पी लो इसे !”

मैंने तो उसे बहुत स्वाद लेकर पिया। मीठा मीठा स्वाद बहुत ही भला लग रहा था। नरेन्द्र ने भी उसे धीरे धीरे पीना शुरू किया और फिर पूरा पी गया।

“भाभी, यह इतना स्वाद होता है, पर आपका वाला तो फीका था।”

“चूत के दूध को पीने का कोई तरीका ही नहीं है, लण्ड के दूध का तो गिलास में लेकर शर्बत बना कर पिया जा सकता है ना, इसे शर्बत-ए-आजम कहते हैं।” फिर मैं जोर से हंस पड़ी।

उस दिन के बाद से तो भैया मेरा दीवाना हो गया था। उसका लण्ड तो बस कुछ ही समय बाद बार बार खड़ा होने लगता था। मेरे ईश्वर, फिर तो खूब चुदी मैं उससे। वो तो साला मस्त साण्ड जैसा हो गया था। ईश्वर करे सभी मेरी जैसी भाभियों को मेरे जैसा ही देवर मिले और पीने को शर्बत-ए-आज़म …

लक्ष्मी कंवर

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