ससुर और बहू की कामवासना और चुदाई-4

ससुर और बहू की कामवासना और चुदाई-4

मेरा बेटा दही लेकर आ गया था. मैं भी फ्रेश हो के नहा के आ गया और सबने मिल के नाश्ता किया. हमारी ट्रेन अगले दिन शाम को थी.
तो रात को सोने के पहले मैं बहूरानी के नाम के मुठ मारी और सो गया.
तो अगले दिन…

अगले दिन शाम को साढ़े सात बजे ही हम लोग स्टेशन पहुंच गये और दस मिनट बाद ही राजधानी प्लेटफोर्म पर लग गई. यूं तो मैं हमेशा ही ऐ सी में सफ़र करने का प्रयास करता हूं, कभी मजबूरी में स्लीपर कोच में जाना पड़ा हो तो वो अलग बात है. लेकिन फर्स्ट ऐ सी में वो भी प्राइवेट कूपे में यात्रा करने का वो मेरा पहला मौका था और बहूरानी के साथ आने वाले छत्तीस घंटे बिताने के ख़याल से ही मुझे रोमांच होने लगा था.

ट्रेन के प्लेटफोर्म पर लगते ही हम अपनी कोच में चढ़े और कूपे में जा पहुंचे. वाह क्या शानदार नजारा था कूपे का. ऊपर नीचे दो हाई क्वालिटी मटेरियल से बनी बर्थ थीं, नीचे वाली बर्थ सोफे में भी कन्वर्ट हो जाती थी; कोच में बड़ी सी खिड़की, पर्दे और बड़ा सा शीशा लगा था, साथ में ऐ सी का टेम्प्रेचर अपने हिसाब से कंट्रोल करने के लिए स्विच थे, फर्श पर बढ़िया मेट्रेस बिछी थी.
कुल मिला कर उम्मीद से भी बढ़िया सुख सुविधा युक्त डिब्बा था.

ठीक आठ बजकर पांच मिनट पर ट्रेन ने बंगलौर स्टेशन से रेंगना शुरू कर दिया और जल्दी ही प्लेटफोर्म और शहर की लाइट्स पीछे छूटने लगीं और खिड़की के बाहर अँधेरा दिखने लगा. ट्रेन एकदम स्मूथली बिना आवाज किये दिल्ली की तरफ दौड़ रही थी.
मैंने कूप भीतर से लॉक कर दिया. बहूरानी सोफे पर बैठी अभी कूपे की साज सज्जा को देख ही रही थी कि मैंने उसे अपनी गोद में खींच लिया और उसके दोनों गालों को बारी बारी से चूमने लगा. बहूरानी जी बार बार अपना चेहरा अपनी हथेलियों से छुपाने का जतन करती लेकिन मैंने उसकी एक न चलने दी और अब उसके दोनों स्तन अपने अधिकार में करके अपनी मनमानी करने लगा.

तभी किसी ने दरवाजे पर धीरे से तीन बार नॉक किया. मैंने दरवाजा खोला तो बाहर टी सी खड़ा था.
“गुड इवनिंग सर, आपकी टिकेट दिखाइए प्लीज!” वो भीतर आते हुए बोला
“गुड इवनिंग” मैंने भी जवाब दिया और अपने टिकट उसे चेक करा दिए. उसने चार्ट में कहीं टिक किया और मुझे हैप्पी जर्नी विश करता हुआ चला गया.

मैंने तुरन्त कूपे को फिर से लॉक किया और बहूरानी को अपने आगोश में भर लिया. उसके जिस्म से उठती भीनी भीनी महक मुझे मदहोश करने लगी.
“पापा जी अब बस भी करो ना, चलो पहले खाना खा लो फिर ये सब बाद में कर लेना अब तो टाइम ही टाइम है अपने पास!”

“अरे बेटा, इतनी जल्दी नहीं अभी आठ बीस ही तो हुए हैं. नाइन थर्टी पर खायेंगे. तब तक मैं एक दो ड्रिंक ले लेता हूं.” मैंने कहा.

फिर मैंने बैग में से व्हिस्की की बोतल निकाल ली और डिस्पोजेबल गिलास में बढ़िया सा पटियाला पैग बना के सिप करने लगा.
बहूरानी ने फ्राइड काजू कागज़ की प्लेट में सजा के मुझे परोस दिए.

“पापा जी, मुझे कपड़े चेंज करने हैं मैं बत्ती बुझा रही हूं अपना गिलास संभालना आप!” बहूरानी बोली.
“अरे बेटा, चेंज क्या करना. उतार ही डालो सब कुछ, वैसे भी अभी कुछ देर बाद उतारना ही है न” मैंने हंस कर कहा.

“पापा अब आप रहने भी दो. आप बन जाओ नागा बाबा मैं ना बनने वाली!” बहूरानी ने कहा और अपने बैगेज से रात के कपड़े निकालने लगीं. फिर उसने लाइट ऑफ कर दी और चेंज करने लगी. उसके कपड़े उतारने की सरसराहट मुझे सुनाई दे रही थी.

फिर वो एक एक करके अपने उतारे हुए कपड़े बर्थ पर फेंकने लगीं जो मेरे ही ऊपर गिर रहे थे; पहले साड़ी फिर ब्लाउज… फिर पेटीकोट… पैंटी और अंत में उसकी ब्रा मेरी गोद में आन गिरी. मैं तो जैसे इतना धन पा के धन्य हो गया और अंधेरे में ही बहूरानी की ब्रा और पैंटी को मसल मसल के सूंघने लगा.

जब लाइट जली तो बहूरानी एक झीनी सी पिंक नाइटी में नजर आयीं और अपनी पहनी हुई साड़ी वगैरह तह करके रखने लगी.
बहूरानी की पारदर्शी नाइटी, जो सामने से खुलने वाली थी, में से उसके गुलाबी जिस्म की आभा दमक रही थी; उसने ब्रा या पैंटी कुछ भी नहीं पहना था. उसके तने हुए ठोस मम्मों पर नाइटी ऐसी लग रही थी जैसे खूँटी पर टंगी हो और उसकी पुष्ट जांघें देख कर और उसके मध्य स्थित उसकी रसीली गद्देदार चूत की कल्पना करके ही लंड में तनाव भरना शुरू हो गया.

बहूरानी चेंज करने के बाद मेरे सामने ही बैठ गयी और किसी मैगज़ीन को पलटने लगी. इधर मैं अपनी ड्रिंक सिप करता रहा और अपने फोन से बहूरानी को शूट करता रहा. कभी उसकी नाइटी घुटनों तक सरका के उसको शूट करता रहा कभी उसका एक पैर ऊपर मोड़ के जिससे उसकी जांघ का कुछ हिस्सा मेरे कैमरे के हिस्से में भी आ जाए.

मेरे यूं उसके फोटो शूट करने से बहूरानी मुझे कभी गुस्से से देखती हुई मना करती. लेकिन उसने मुझे मेरी मनमानी करने दी. बहूरानी अपने भाई की शादी में जा रही थी तो उसके हाथ पैरों में रची मेहँदी, आलता नाखून पोलिश और ऊपर से गोरे गोरे गुलाबी पैरों में सोने की पायल… मेरा एक एक शॉट लाजवाब निकला.

कोई एक घंटे बाद मेरी ड्रिंक्स खत्म हुई तो बहूरानी ने खाना निकाल लिया और बर्थ पर अखबार बिछा कर कागज़ की डिस्पोजेबल प्लेट्स और कटोरियाँ सजा दीं. फिर अल्युमिनियम फोइल्स में लिपटे हुए परांठे, सब्जी, पिकिल्स, प्याज, नमकीन सेव और स्वीट्स परोस लिया.
हम लोगों को ट्रेन का खाना पसन्द नहीं आता इसलिए कोशिश हमेशा यही रहती है कि हमेशा अपना घर का खाना पानी साथ ले के चलें; हालांकि राजधानी और शताब्दी ट्रेन्स में चाय नाश्ता खाना मिलता ही है और उसका चार्ज पहले ही टिकट के साथ ही वसूल लिया जाता है.
अब जो भी हो अगली सुबह से तो हमें ट्रेन पर मिलने वाले दाना पानी पर ही निर्भर रहना था.

खाना सजाने के बाद बहूरानी ने पहला कौर मुझे अपने हाथों से खिलाया; ऐसा पहली बार था कि उसने यूं मुझे खिलाया हो फिर मैंने भी उसको एक छोटा सा निवाला उसको खिलाया. फिर मैं खाने पर टूट पड़ा क्योंकि ट्रेन के सफ़र में मुझे भूख नार्मल से कुछ ज्यादा ही लगती है.

खाना समाप्त करते करते दस बजने वाले थे. खाने के बाद मैंने एक चक्कर पूरे कोच का लगाया ताकि कुछ टहलना हो जाय.

वापिस अपने कूपे में लौटा तो बहूरानी जी शीशे के सामने अपने उलझे हुए बाल संवार रही थी. मैंने कूपे को भीतर से लॉक किया और बहू रानी की पीठ से चिपक के उसको अपने बाहुपाश में कैद कर लिया और उसके स्तन मुट्ठियों में दबोच के उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को चूमने चाटने लगा.

बहूरानी एकदम से घूम के मेरे सामने हुई और उसने हाथ में पकड़ी कंघी फेंक कर अपनी बाहें मेरे गले में पहना दीं, मैंने भी उसको अपने सीने से लगा लिया. उसके पुष्ट स्तन मेरे सीने से दब गये और मैंने अपनी बाहों का घेरा उसके गिर्द कस दिया. हमारे प्यासे होंठ मिले जीभ से जीभ मिली इधर मेरे लंड ने अंगड़ाई ली और उधर शायद उसकी चूत भी नम हुई क्योंकि वो अपना एक हाथ
नीचे ले गयी और उसने नाइटी को अपनी जांघों के बीच समेट कर दबा ली.

हम दोनों यूं ही देर तक चूमा चाटी करते रहे; मैं उसके मम्में नाइटी के ऊपर से ही दबाता रहा और वो मेरी पीठ को सहलाती रही.
अब मेरा लंड भी पूरे तैश में आने लगा था.

फिर मैंने बहूरानी की नाइटी उसके बदन से छीन के बर्थ पर फेंक दी; नाइटी के भीतर तो उसने कुछ पहना ही नहीं था तो उसका नग्न यौवन मेरे सामने दमक उठा. उसके पहाड़ जैसे स्तन जैसे मुझे चुनौती देने वाले अंदाज में मेरे सामने तन के खड़े हो गये.
मैंने भी उसकी चुनौती स्वीकार की और उसको दबोच लिया, उसको मीड़ने गूंथने लगा… अंगूरों को चुटकियों में भर के उमेठने लगा, नीम्बू की तरह निचोड़ने लगा… प्यार से हौले हौले. बहूरानी कामुक सिसकारियाँ लेने लगीं और मुझे अपने से लिपटाने लगी.

फिर उसने मेरी शर्ट के बटन जल्दी से खोल दिए जिसे मैंने खुद ही बनियान सहित उतार के फेंक दिया और बहूरानी के नंगे जिस्म को पूरी ताकत से भींच लिया.
“आह… पापा जी. धीरे धीरे… मेरी पसलियाँ टूट जायेंगी इतनी ताकत से तो!” बहूरानी अत्यंत कामुक स्वर में बोली और उसने मेरे चौड़े सीने में अपना मुंह छुपा लिया और वहीं चूमने लगी.

फिर उसका एक हाथ नीचे मेरे लोअर के ऊपर से ही मेरे लंड को टटोलने लगा. उसने मेरे लोअर में हाथ घुसा के लंड को पकड़ लिया उसके ऐसे करते ही मेरा लंड और तमतमाने लगा.

मैंने अपना लोअर और अंडरवियर नीचे खिसका के निकाल फेंका. अब मेरा फनफनाता लंड पूरी तरह से आजाद होकर हवा में लहराया और फिर उसने एक हाई जम्प लगा कर बहूरानी को जैसे सलाम ठोका, बहूरानी ने भी इस अभिवादन को स्वीकार करते हुए इसे प्यार से अपनी चूत पर टच किया और फिर पकड़ कर इसकी फोर-स्किन को पीछे करके टोपा को दबाने मसलने लगी, फिर
लंड को जड़ के पास से पकड़ कर दबाया सहलाया साथ में अण्डों को भी दुलारा.

रात धीरे धीरे गुजर रही थी और राजधानी अपने पूरे दम से दिल्ली की ओर भाग रही थी जिसके किसी डिब्बे में भीतर ससुर बहू के नंगे जिस्म सनातन यौन सुख का रसपान करते हुए एक दूसरे में समा जाने को मचल रहे थे. हमारे जिस्मों की ताप पर ऐ सी की कूलिंग भी कोई असर नहीं डाल पा रही थी.

फिर जो प्रतीक्षित था बहूरानी ने वही किया; वो नीचे झुकी और पंजों के बल बैठ कर मेरे लंड को तन्मयता से चाटने चूमने लगी. फिर उसने अपना मुख खोल दिया और मेरा लंड स्वतः ही उसकी मुख गुहा में प्रवेष कर गया और फिर बहूरानी के होंठ और जीभ मेरे लंड पर क़यामत ढाने लगे.
मेरे लिए एक तरह से यह यौन सुख की पराकाष्ठा ही थी. जो सुख मुझे मेरी सगी बीवी, मेरे बेटे की माँ नहीं दे सकी थी वो सुख उसकी बीवी, मेरी पुत्रवधू… कुलवधू मुझे दे रही थी.

बहूरानी के लंड चूसने चाटने का तरीका भी कमाल का था… खूब चटखारे ले ले कर, अपनेपन और पूरे समर्पण भाव से बिना किसी हिचकिचाहट के लंड पर अपना प्यार उड़ेलती और उसके यूं लंड को पुचकारने चूमने से निकलती, पुच पुच की आवाज मुझे मस्त करने लगी.

“अदिति बेटा, शाबाश, ऐसे ही… हां… आह मेरी जान बहूरानी जी तू तो कमाल कर रही है आज!” मैंने मुग्ध होकर कहा.
“पापा जी, आज पूरे डेढ़ साल बाद ये मेरे हाथ आया है. इसे तो मैं जी भर के प्यार करूंगी.” बहूरानी मेरी तरफ देख के बोली और फिर से लंड को चाटने चूसने में मगन हो गयी.

कुछ ही देर बाद :
“बस मेरी जान रहने दे. अब तू बर्थ पर बैठ जा.” मैंने बहूरानी के सिर को सहलाते हुए कहा.
“ठीक है पापा जी!” बहूरानी बोली और लंड को छोड़ के बर्थ पर जा बैठी.

ससुर बहू में मधुर समागम की कहानी जारी रहेगी.
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