सेक्स से वंचित शादीशुदा भाभी से दूसरी मुलाकात

सेक्स से वंचित शादीशुदा भाभी से दूसरी मुलाकात

दोस्तो, मैं डा. दलबीर फिर से हाज़िर हूँ मेरी पिछली कहानी
यौनसुख से वंचित पाठिका से बने शारीरिक सम्बन्ध
आप सब लोगों ने बहुत पसंद की और बहुत से मेल भी आए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद और आभार!

मन तो बहुत करता है कि आप लोगों से जल्दी मिलूं अपनी कहानियों के मध्यम से… परंतु जीवन की व्यस्तताएँ और रोटी कमाने में ही इतना समय निकल जाता है कि लिखने का समय निकलना मुश्किल हो जाता है और मैं इतना सुन्दर भी नहीं हूँ कि मेरे सेक्स सम्बन्ध बहुत ज़्यादा बनें। जो भी सम्बन्ध बनते हैं, उनमें और अपनी परिवारिक ज़िंदगी में सामंजस्य भी बैठाना होता है, क्योंकि मैं कोई पुराने ज़माने का राजा महाराजा भी नहीं हूँ कि कई स्त्रियाँ रख सकूँ या कई सारे सम्बन्ध रख सकूँ।

बेशक मेरी पत्नी सेक्स सम्बन्धों में मुझे सहयोग नहीं दे पाती परंतु फिर भी वह अपना एकाधिकार तो समझती ही है मुझ पर… और मैं भी कोई काम अपने परिवार की कीमत पर नहीं करना चाहता।
इसके अलावा मैं कोई काल्पनिक कहानी भी नहीं लिखना चाहता! हाँ… जो भी कहानियाँ लिखता हूँ, मैं उनमें कुछ रोचकता लाने के लिए कुछ मिर्च मसाला तो लगाता हूँ पर कहानी सत्य पर आधारित ही लिखता हूँ और जैसा कि मैंने पहले लिखा कि मैं इतना भाग्यशाली भी नहीं हूँ कि हर हफ्ते कोई नया सम्बन्ध बन जाए।

बात वहीं से शुरू करता हूँ जहाँ पिछली कहानी में छोड़ी थी.

मंजरी से मिले हुए मुझे करीब एक महीना होने वाला था, इस बीच में एक दो बार फोन पर तो बात हुई पर मैं उसके यहाँ जा नहीं पाया और वो भी बहुत समझदार महिला है जो मेरी मज़बूरी और व्यस्तता को समझती है.

ऐसे ही एक दिन लैब में बैठा था, उसकी कॉल आई, मैंने नंबर देखे बिना ही फोन उठाया और बोला- हेलो?
उधर से आवाज़ आई- क्या हाल है मेरे हज़ूर का?
मैंने भी आवाज़ तुरंत पहचानी और बोला- ओह! तुम!
तो उसका जवाब आया- क्यों. किसी और की उम्मीद थी क्या?
मैंने कहा- नहीं यार, ऐसी किस्मत कहाँ है? एक मिल गई है आजकल उसे ही पूरा समय नहीं दे पाता हूँ… और किसी को टाइम कहाँ दे पाऊँगा?

मंजरी- क्या बात है? भूल गये हो या मेरा साथ अच्छा नहीं लगा जो कि दोबारा नहीं आए?
मैंने जवाब दिया- नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है, बस समय की कमी रहती है! तुम तो जानती ही हो!
तब उसने कहा- हाँ, मैं समझती हूँ, पर फिर भी महीने में एकाध बार तो टाइम निकाल ही सकते हो?
मैंने कहा- हाँ, ये तो है!

तो उसका जवाब आया- सरदार जी, जब से आप गये हो, अभी तक आपने एक बार भी फोन नहीं किया, हर बार मैंने ही किया है.
इस बात को सुन कर मैं चुप हो गया क्योंकि वो सच बोल रही थी.
फिर कुछ सेकेंड तक चुप रह कर वो बोली- आप चिंता मत करो, आपके गले नहीं पड़ूँगी! आपका परिवार और आपकी ज़िम्मेवारी को मैं समझती हूँ, इसलिए आपके गले नहीं पड़ूँगी!

उसकी यह बात सुन कर मुझे उसकी समझदारी पर गर्व हुआ और अपने ऊपर थोड़ी सी शर्म भी आई, मुझे वास्तव में लगा कि मुझे कुछ टाइम तो निकलना चाहिए मंजरी के लिए… मैंने उसे कहा- यार माफ़ कर दो, मैं एक आध दिन में ही टाइम निकलता हूँ, एक दिन पहले बता दूँगा और खाना भी साथ खाएँगे!
मेरे इतना कहते ही वो एकदम खुशी से बोली- सच?
मैं बोला- हाँ पक्का!
वो बोली- ठीक है मैं आपके फ़ोन का इंतज़ार करूँगी.

उस दिन सोमवार था और बुधवार को श्रीमती जी ने कहीं जाना था और फिर शाम को ही आना था तो मैंने प्रोग्राम बनाया और अपने लैब के साथी को फ़ोन किया कि भाई साहब आप बुधवार को जल्दी आ जाना, मुझे कहीं काम से जाना है और मैं शाम को ही वापस आ पाऊँगा.
तो मेरे साथी ने कहा- ठीक है भईया!

अगले दिन मैंने करीब 11 बजे मंजरी को फ़ोन किया कि मैं कल आऊँगा और जल्दी ही आऊँगा… पर टाइम बता दो कि किस टाइम आऊँ?
उसने बताया कि काम वाली 10 बजे तक चली जाती है, उसके बाद कभी भी आ जाना!
मैंने कहा- ठीक…

वो बोली- बाइक वहीं लगाना जहाँ पिछली बार लगाई थी, मैं वहाँ से आपको पिक कर लूँगी.
मैंने हाँ कह दिया और यह भी बता दिया कि जब लैब से निकलूंगा तो तुम्हें कॉल कर दूँगा.
वो बोली- ठीक है!

बुधवार को सुबह पत्नी को भाभी जी के साथ जहाँ जाना था वो सुबह 9 बजे तक चली गई और मैंने दिन का अपना खाना बनाने के लिए मना कर दिया था।

मैं भी घर से सुबह 9 बजे निकल गया और लैब पर पहुँच गया, लैब पर पहुँच कर मैंने मंजरी को फ़ोन किया कि मैं 10 बजे लैब से निकलूंगा और सवा दस तक पहुँच जाऊँगा.
उसने मुझे कहा कि वो सही टाइम पर पहुँच जाएगी।

पौने दस बजे तक मेरा लैब का साथी आ गया और मैं दस बजे निकल गया पर चलने से पहले मैंने 2 डेरी मिल्क चॉकलेट ले ली क्योंकि अभी मुझे उसकी पसंद ना पसंद का ज़्यादा पता नहीं था।

मुझे रामप्रस्थ की लाइट पर थोड़ा टाइम लग गया था पर फिर भी मैंने जब पेसिफिक पहुँच कर टाइम देखा तो 10:30 हो चुके थे मैंने बाइक पार्किंग में लगाई और बाहर आने में मुझे 7-8 मिनट और लग गये थे।

जैसे ही बाहर आ कर मैंने नज़र इधर उधर घुमाई तो मंजरी ने अपनी कार मेरे सामने ला कर रोक दी, मैं बिना कुछ बोले गाड़ी मैं बैठ गया.
करीब 15 मिनट में हम उसके घर पर थे, रास्ते में हमारे बीच में हाल चल पूछने के अलावा कोई खास बात नहीं हुई।

घर पहुँच कर हम लोग ड्राइंग रूम में पहुँचे मैंने उसके पहनावे पर अब गौर करा, फ़िरोज़ी रंग की साड़ी में वो बहुत सुंदर लग रही थी, रंग गोरा हो और नयन नक्श तीखे हों तो इंसान को हर एक कपड़ा ही जॅंच जाता है।

मैं सोफे पर बैठ गया तो वो रसोई में चली गई और वहाँ से एक ट्रे में ड्राइ फ्रूट का डिब्बा और दो गिलास ठंडाई वाला शरबत ले आई.
हमने बिना किसी जल्दबाज़ी के आराम से वो पिया और घर के बारे में बात करने लगे।

उसने काम के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि काम आज कल थोड़ा हल्का ही है.
हम आराम से बात कर रहे थे क्योंकि आज मेरे पास भी खुला टाइम था, लगभग 6 घण्टे थे मेरे पास, इसलिए कोई जल्दी नहीं थी.

शरबत ख़त्म करने के बाद वो ट्रे लेकर चली गई, वापस आकर वो मेरे पास बैठ गई.
मैंने उसे प्रदीप के बारे में पूछा उसके बेटे के बारे में पूछा, इन सब बातों के बाद मैंने पूछा- अब आप बताओ आपका क्या हाल है?
वो बोली- मेरा हाल तो आप समझ ही सकते हो!
यह कह कर वो मेरे पास सरक गई और अपनी जांघें मेरी जांघों से सटा कर बैठ गई और मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया।

शायद ईश्वर ने औरत को यही खूबी और यही कमी भी दी है कि वो सेक्स में पहल नहीं कर पाती. जब मैंने उसकी आँखों में देखा तो एक मिनट तक मेरी आँखों में देखने के बाद उसने शर्मा कर अपना सिर झुका लिया.
मैंने अपनी हाथ उसकी ठुड्डी के नीचे लगा कर उसका चेहरा ऊपर को उठाया तो उसने एक सेकिंड से भी कम समय के लिए मेरी ओर देखा और फिर से आँखें झुका लीं, वाकयी शर्म किसी भी औरत का सबसे सुंदर गहना होता है।

मैंने धीरे से अपना चेहरा आगे किया और उसकी आँखों को बारी बारी चूम लिया. जैसे ही मेरे होंठों ने उसकी आँखों को छूआ, उसके पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई और वो मुझसे लिपट गई।

मैंने उसे धीरे से अपने से अलग किया और जेब से चॉकलेट निकल कर रेपर फाड़ कर एक टुकड़ा तोड़ा और उसके मुँह में डाल दिया उसने भी वो टुकड़ा दाँतों में ही पकड़ लिया और अपना मुँह मेरी ओर बढ़ा दिया.
मैं समझ गया कि वो क्या चाहती है तो मैंने भी अपना मुँह उसकी ओर बढ़ा दिया और चॉकलेट के टुकड़े को अपने मुँह में ले लिया पर उसने अपने वाला टुकड़ा छोड़ा नहीं तो हम दोनों उस एक टुकड़े को ही चूस रहे थे और गर्मी की वजह से वो पिघलने लगा था और पिंघल कर उसके निचले होंठ से ठुड्डी की तरफ को बह गया तो मैंने उसके निचले होंठ से ले कर उसकी ठुड्डी की ओर चाटना शुरू कर दिया।

मैं सही से भूमिका बनाने की सोच रहा था क्योंकि जाकर एकदम से सेक्स करना शुरू कर दो या एकदम से चूमा चाटी करो तो थोड़ा अजीब सा लगता है.
पर हम लोग अचानक ही शुरू हो चुके थे, बदले में उसने भी मुझे सहयोग देना शुरू कर दिया और मेरे होंठों को पूरे ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

मैंने भी बारी बारी से उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया था, एक हाथ मैंने उसकी पीठ पर लपेट लिया था और दूसरे से उसके स्तन को सहलाना और दबाना शुरू कर दिया.
कुछ ही देर में उसकी सिसकारियाँ निकलनी शुरू हो गईं।

मैंने दूसरे हाथ से उस पर पीछे लेटने के लिए दबाव बनाया तो उसने कहा- रूको!
मैंने उसकी तरफ प्रश्न सूचक नज़रों से देखा तो वो बोली- यहाँ नहीं, बेड रूम में चलते हैं!

हम दोनों उठ कर खड़े हो गये और बेडरूम में चले गये।

बेडरूम में मैंने उसके कपड़े उतारने शुरू कर दिए, पहले उसकी साड़ी उतारी, फिर ब्लाऊज़ खोला और पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया. पेटीकोट उसके पैरों में गिर गया, ब्लाऊज़ उसकी बाहों में झूल रहा था, मैंने उसे भी उतार दिया.
अब वो आसमानी रंग की पेंटी और उसी रंग की ब्रा में बहुत सेक्सी लग रही थी. 36 साइज़ के स्तन बीच में गदराया हुआ पर सपाट पेट जिस पर नाभि भी ऊपर ही रखी हुई दिख रही थी और नीचे करीब 40 साइज़ के कूल्हे उसे बहुत सेक्सी बना रहे थे.
वो बिल्कुल ऐसे ही दिख रही थी जैसे खजुराहो को कोई मूरत!

अब फिर से मैंने उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए कभी ऊपर वाला, कभी नीचे वाला… और कभी मैं अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता था, कभी वो अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर अच्छे से घुमा रही थी.
मैं जीभ की नर्मी और गर्मी दोनों को ही महसूस कर रहा था.

उसके मुँह का स्वाद मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था मीठा या नमकीन, मैं नहीं कह सकता पर इतना ज़रूर है कि वो स्वाद मुझे बहुत अधिक मस्त कर रहा था, मेरे जोश को दोगुना चौगुना बढ़ा रहा था।
मुझे लग रहा था जैसे मेरी जीभ और लंबी होती तो मैं उसके गालों को भी अंदर की तरफ से चाटता।

लगभग 3-4 मिनट तक हमारी यह किस चली और जब मुंह थक गया और सांस भारी हो गई तो मैंने एक मिनट के लिए अपना मुंह उसके मुंह से दूर किया, एक लम्बा सांस लिया, अपने हाथ उसकी पीठ पर दोबारा से ले गया और फिर से उसके होंठ चूसते हुए पीछे से उसकी ब्रा भी खोल दी जो ढीली होकर उसके बाजुओं में झूल गई।

मैंने धीरे से उसकी ब्रा उतारी और उसे पीछे की ओर धकेल कर बेड से लगा दिया. जैसे ही उसकी टाँगें बेड से टकराईं तो मैंने उसे आँख से इशारा किया और थोड़ा सा और पीछे को धक्का मार कर बेड पर बैठा दिया और फिर से उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया पर इस बार 10-15 सेकिंड तक चूसने के बाद अपने होंठों को मैं उसके गाल और फिर कान के नीचे ले गया और जैसे ही मैं वहाँ पर अपनी जीभ फेरी तो मंजरी के मुंह से एक लम्बी सिसकारी और उसने भी मुझे कस कर भींच लिया और मेरे कंधे में दांत गड़ा दिए।

मैंने एकदम से चौंक कर कहा- दाँत मत मारो, घर से निकलवाओगी क्या?
वो एकदम से शर्मिंदा होकर बोली- सॉरी!
पर मैंने कहा- सॉरी की कोई बात नहीं है, बस ज़रा ध्यान रखो कि कोई निशान ना पड़े!
उसने सहमति में सिर हिलाया।

इसके बाद उसने भी मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए और जैसे ही सारे बटन खुले, मैंने शर्ट उतार कर साइड टेबल पर रख दी, फिर उसने मेरी पेंट की बेल्ट खोल कर हुक भी खोल दिया और ज़िप भी खींच दी तो मैंने पेंट भी उतार कर वहीं पर रख दी।
बनियान मैंने खुद ही उतार दी अब मैं अपने अंडरवियर में और वो पेंटी में थी।

करीब 8-10 मिनट तक एक दूसरे को चूमने चाटने के बाद मैंने उसे बेड पर सीधी लिटा दिया, मैं उसके पैरों की तरफ आ गया और उसकी पिंडली के बिल्कुल नीचे वाले हिस्से को चूसना शुरू कर दिया, यह बहुत सेंसेटिव जगह होती है, जैसे ही मैंने वहाँ पर जीभ फेरी और चूसना शुरू किया मंजरी उत्तेजना के मारे एकदम छटपटा गई और उसकी टाँगों पर पूरे रोंगटे खड़े हो गये, वो एक सिसकारी भरते हुए एकदम से मुझे बोली- हाय… ऐसे मत करो ना मुझे गुदगुदी होती है।
मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं और धीरे धीरे चूसते हुए ही ऊपर की ओर आने लगा.

जब मैं घुटने के पास पहुँचा तो उसे हाथ से सहारा देकर उल्टा होने का इशारा किया जिसे वो समझ गई और पलट कर उल्टी लेट गई. जैसे ही वो पलटी, मैंने उसकी पेंटी भी नीचे खींच कर उतार दी, मैंने अब उसके घुटने के पीछे चाटना शुरू किया और फिर मुँह में भर कर चूसने लगा. फिर सीधे हाथ की पहली उंगली उसकी योनि में डाल दी. उंगली डालते ही पता चला कि उसकी योनि अंदर से बहुत गर्म थी और गीली भी… मेरी उंगली एक उसकी योनि में ऐसे घुसी जैसे मक्खन में गर्म छुरी।

जैसे ही मैंने उंगली अंदर करी, वो अंदर से और भी ज़्यादा गीली हो गई। मैंने उंगली को बहुत नर्मी से अंदर गोल गोल घूमना शुरू किया, उसके मुँह से आह निकली ‘आआआ आआअहह…’ और उसका पूरा शरीर काँप गया।

मैं धीरे धीरे चाटते हुए ऊपर की ओर बढ़ रहा था, जैसे ही मैं उसके भरे हुए कूल्हे तक पहुँचा, मैंने उसके कूल्हे के माँस को मुँह में भर लिया और चूसने लगा, मेरी उंगली पहले की तरह ही अपना काम जारी रखे हुए थी, उसे मैं कभी आगे पीछे चलाता और कभी गोल गोल घुमाता!
उसके मुँह से निरंतर सिसकारियाँ निकल रही थीं।

3-4 मिनट तक उंगली करने के बाद मैंने दूसरी उंगली भी अंदर डाल दी और पहले से अधिक तेज़ी से आगे पीछे करने लगा, साथ ही अपना अंगूठा उसकी क्लिट पर रगड़ना शुरू कर दिया. उसके शरीर में एकदम इतनी अधिक उत्तेजना भर गई कि वो बहुत ज़ोर से चिल्लाई- आआहह मररर गई!
और बहुत बुरी तरह से मचलने लगी… इतने ज़ोर से कि वो मुझे धकेलते हुए सीधी हो गई.

जैसे ही वो सीधी हुई, मेरी उंगलियाँ भी बाहर निकल गईं, पर मैं इस बार पूरा मजा लेने और देने के मूड में था क्योंकि पिछली बार हम पहली बार मिले थे तो कहीं ना कहीं थोड़ी सी झिझक थी पर इस बार मैं मानसिक रूप से पूरी तरह से तैयार था.
जैसे ही वो पलटी, मैंने फिर से दोनों उंगलियाँ अंदर डाल दीं और थोड़ा सा ऊपर हो कर उसके स्तनों को चूसना शुरू कर दिया।

करीब एक मिनट तक चूसने के बाद मैंने उंगलियाँ भी बाहर निकल लीं और उसके स्तन चूसना भी बंद कर दिया, थोड़ा सा ऊपर को उठ कर बैठ गया और मंजरी के जिस्म को निहारने लगा.
वो मेरी तरफ प्रश्न सूचक नज़रों से देख रही थी और मैं उसके शरीर का मुआयना कर रहा था.
वो प्रकृति की बनाई हुई बहुत सुंदर मूरत थी जैसे कि खजुराहो की किसी मूर्ति में प्राण डल गये हों। चौड़ा माथा, बड़ी बड़ी काली आँखें और पार्लर से बनवाई हुई कमानीदार भवें, भरे भरे गाल, लंबी सुराहीदार गर्दन, एकदम गोरा शरीर, ऊपर को उठे हुए करीब 36 साइज़ से स्तन… उन पर ब्रा का निशान अलग से चमक रहा था. गुलाबी रंग के कुँवारी लड़कियों जैसे निप्पल और एक रुपये के सिक्के के साइज़ का हल्के गुलाबी रंग का एरोला, पतली कमर करीब लगभग 30 या 31 इंच की… नीचे चौड़े होते हुए कूल्हे दोनों जाँघों के जोड़ पर स्वर्ग का दरवाज़ा… वो भी कुँवारी लड़कियों की तरह एक चीरा ही दिख रहा था, एकदम फूली हुई कचौरी की तरह से, उस पर तुर्रा यह कि उसने जंगल की सफाई भी आज ही करी लग रही थी. शायद कोई बढ़िया क्रीम इस्तेमाल की थी क्योंकि स्किन ऐसी लग रही थी जैसे किसी छोटे बच्चे के गाल, मानो बाल कभी उगे ही ना हों।

केले के तने जैसी चिकनी जांघें, वो भी बाल विहीन, मैं फ़ैसला नहीं कर पाया कि इसकी टाँगों पर बाल हैं ही नहीं या फिर इसने वैक्सिंग करवाई है… नीचे की ओर पतली होती हुई पिंडलियाँ और कमानीदार धावकों जैसे बीच में से घुमावदार पैर… कुल मिला कर एकदम परफ़ेक्ट शरीर… इतना सुंदर कि मेरे द्वारा किया गया ज़िक्र भी शायद अधूरा ही लग रहा है।

वो भी मुझे देख रही थी कि मैं क्या देख रहा हूँ पर समझ नहीं पाई तो आँखों के इशारे से पूछा, मैंने कहा- खुदा की कारीगरी देख रहा हूँ!
मेरे यह कहते ही वो शर्मा गई और उसने मेरा बाजू पकड़ कर अपनी ओर खींचा, मैं उसके ऊपर ही गिर पड़ा और फिर से पहले वाले काम में जुट गया और उसके स्तनों को फिर से बारी बारी से चूसना शुरू कर दिया।

लगभग 10 मिनट मैंने उसे और चूसा चाटा और फिर एकदम से मैं नीचे की ओर बढ़ने लगा, पहले पसलियां चाटता रहा फिर पेट की साइड वाली जगह यानि कमर के पास… फिर ऐसे ही चाटते हुए मैं उसकी जांघों के जोड़ तक पहुँच गया… जैसे जैसे मेरी जीभ अपना काम करती, उसके मुँह से सिसकारी निकल जाती और उसके हाथ मेरी पीठ पर बहुत जोर से मुट्ठी भर लेते.
ऐसे ही एक बार उसका हाथ लगा तो मेरी पगड़ी भी ढीली हो गई जो मैं बिना देर करे ही खोल दी.
अब मैं और ज़्यादा उन्मुक्त हो कर अपनी क्रियाएँ कर रहा था।

अब जांघों के जोड़ से आगे बढ़ते हुए जैसे ही मेरी जीभ उसके स्वर्ग द्वार पर पहुँची, उसके मुँह से एक लंबी आह निकली- आआआआ आआआ आआअहह उउइईईईई हाएएएए एएएएए माँआआआ आआआअ…
मैं भी बड़ी तन्मयता से उसकी योनि को चाट रहा था, मेरी जीभ उसकी योनि में चल रही थी, वो पूरी तरह से मचल रही थी.
4-5 मिनट हुए मुझे उसके शरीर को चाटते हुए कि अचानक वो मुझे पीछे को धकेल कर उठ कर बैठ गई, मुझे पीछे की ओर धकेल कर लिटा दिया और उल्टी होकर मेरे ऊपर आ गई यानि 69 की पोज़ीशन में… मेरे अंडरवियर को नीचे खींच कर गप्प से मेरे 6 इंच के लिंग को मुँह में भर लिया और बड़े प्यार से चूसने लगी.
अब सिहरने की और सिसकारियाँ भरने की बारी मेरी थी.

मैं आम तौर पर योनि चाटता नहीं हूँ पर यदि योनि में स्मेल ना हो तब ही ओरल सेक्स कर पाता हूँ।

अब हम दोनों एक दूसरे के यौनांगों को बड़े प्यार और शिद्दत से चूस रहे थे. कुछ मिनट चूसने के बाद मंजरी हाँफने लगी और पलट कर मुँह मेरी ओर कर लिया और झुक कर फिर से मेरे होंठ चूसने लगी, कभी मेरे होंठ चूसती, कभी मेरी आँखों को चूमने लगती.

फिर एकाएक वो रुक गई तो मैंने अपनी आँखें खोली, देखा तो उसका पूरा चेहरा लाल हो रहा था… आँखें तो ऐसी लाल थीं जैसे पूरी रात जागने से लाल हों!
मैंने उसे प्रश्न वाचक नज़रों से देखा तो उसने मुझे सिर हिलाकर इशारा किया, मेरे ऊपर से हट गई, सीधी लेट गई और मुझे अपने ऊपर खींचने लगी.

मैं उसके ऊपर आया तो मैंने उसके कूल्हों के नीचे तकिया लगाया और अपना लिंग सही जगह पर टिका कर धीरे से अंदर की ओर धकेला तो योनि गीली होने के कारण आराम से अंदर चला गया गया. एकदम टाइट पर गया बिल्कुल ऐसे जैसे कि अंदर कोई तेल या ग्रीस लगा रखी हो।

धीरे धीरे पूरा लिंग अंदर चला गया और मेरी पेडू के नीचे वाली हड्डी उसके क्लिट से टच होने लगी तो मैं बिना लिंग को बाहर निकाले आराम आराम से हिलने लगा और बारी बारी से उसके स्तन चूसने लगा. मेरा एक हाथ उसके कूल्हे के नीचे पहुँच गया और दूसरा हाथ उसकी गर्दन के नीचे था.
कुछ सेंकिंड तक ऐसे ही हल्का हल्का हिलने के बाद मैंने धीरे से लिंग को थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर 1 सेकिंड से भी कम समय में वापिस धकेल दिया।

जैसे ही मैंने धक्का मारा, उसने भी नीचे से अपने कूल्हे उचका कर मेरा साथ दिया. मैंने दूसरा धक्का मारा, उसने फिर से सहयोग किया. धीरे धीरे गति बढ़ने लगी और मैंने अपना हाथ उसकी गर्दन के नीचे से निकाल लिया और उसके स्तनों को बारी बारी से चूसना शुरू कर दिया, उसके मुख से सिसकारी निकलने लगी.

3-4 मिनट तक ऐसे ही संभोग करने के बाद मैंने लिंग बाहर निकल लिया और बेड की बैक से टेक लगा कर बैठ गया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया यानि अपने दोनों हाथ उसकी जांघों के नीचे से निकाल कर उसके कूल्हे पकड़ लिए और अपने हाथों के बल पर उसे ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया.

इस आसन में लिंग अधिक अंदर तक जाता है और गर्भाशय के मुँह से टकराता है जिससे स्त्री को अधिक उत्तेजना महसूस होती है.

ऊपर मैं बारी बारी से उसके स्तनों को चूस रहा था और कभी उसके कान चूसने लगता था और कभी जीभ कान के भीतर की तरफ फेरता था, जिससे कि मंजरी का जोश देखते ही बनता था। उसका व्यवहार ऐसा हो गया था जैसे कोई नशा कर रखा हो!

4-5 मिनट तक ऐसे ही सेक्स करने के बाद हमने फिर से आसन बदल दिया, उसे अपने ऊपर से हटा कर बेड पर करवट से लेटा दिया और मैं उसकी जांघों के बीच आ गया और क्रॉस की अवस्था में आ गया जैसे X का निशान होता है, इससे भी लिंग योनि के भीतर उन स्थानों पर चोट मारता है जहाँ कि साधारण अवस्था में नहीं पहुँच पाता.

अब 2 -3 मिनट ही इस तरह से किया था कि मंजरी की आहें बढ़ गईं और उसके जोश भी मुझे लगा कि इसका काम हो जाएगा… तो मैं रुक गया और लिंग बाहर निकाल लिया. इस तरह रुक जाना थोड़ा मुश्किल होता है पर यदि आप अपने ऊपर इतना नियंत्रण कर पाएँ तो आप अपना सेक्स का समय बढ़ा सकते हैं।

इसके बाद मैंने फिर से उसे प्राकृतिक अवस्था (मिशनरी) पोज़ीशन में लिटा लिया और फिर से उसके ऊपर आ गया और अब मैंने पुनः लिंग प्रवेश करवा दिया और पूरे जोश से चुदाई करने लगा क्योंकि मुझे पता था कि अब अधिक देर तक मैं भी नहीं रुक पाऊँगा और वो भी नहीं!
जैसे जैसे मेरे धक्कों की गति बढ़ रही थी, मंजरी उतने ही ज़ोर से आवाज़ निकाल रही थी, उसकी आहों से मेरा जोश और ज़्यादा बढ़ रहा था और बीच बीच में मेरे मुँह से भी हुंकार भरी आहें निकल रही थी.
उधर वो भी पूरे जोश में आहें भर रही थी. उसके हाथ मेरी पीठ पर बँधे थे, वो उतनी ज़ोर से कसे जा रहे थे.

अचानक उसके मुँह से बहुत ज़ोर की चीख निकली ‘आआआ आआ आआआहह हह…’ और उसने मेरे शरीर को इतने ज़ोर से जकड़ लिया कि मुझे लगा जैसे मेरी साँस ही रुक जाएगी, पता नहीं कहाँ से इतना ज़ोर उसमें आ गया था।

इसके बाद उसका शरीर ढीला पड़ने लगा.

काम मेरा भी होने ही वाला था तो मैंने पुनः उसके मम्मों को चूसना शुरू कर दिया. इससे औरत की संवेदनशीलता बढ़ जाती है. जैसे मैंने ये किया, उसने मुझ फिर से कस लिया, 8-10 धक्के मैंने और लगाए कि मेरा शरीर भी पिघल कर उसके शरीर में समाने लगा, इसके साथ मैं भी निढाल सा उसके ऊपर ही लेट गया.

उठने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी तो वैसे ही पड़े पड़े दोनों की आँख लग गई, करीब 10 मिनट के बाद जब पेशाब का ज़ोर महसूस हुआ तो आँख खुली. जैसे ही मैं उसके ऊपर से हटा तो उसकी आँख भी खुल गई. उसने तुरंत गद्दे के नीचे हाथ डाला और एक साफ कपड़ा निकल लिया और बड़े ही प्रेम से पहले मेरा लिंग साफ किया और फिर अपनी योनि से बहता हुआ हम दोनों का रस भी साफ करा।

मैं उठा और बाथरूम जाने लगा तो वो बोली- रूको, मैं भी चल रही हूँ!
हम दोनों एक साथ ही बाथरूम में गये, पेशाब किया, उसके बाद उसने मग में पानी लिया और पहले अपनी योनि को धोया फिर पानी लेकर मेरे लिंग को भी बड़े प्यार से धोया.
उस दिन मुझे लगा कि काश यह औरत मुझे पत्नी के रूप में मिली होती तो जीवन स्वर्ग हो जाता।

बेड रूम में वापस आकर घड़ी देखी तो 12:30 बज चुके थे.

मंजरी ने वार्डरोब से एक नाइट गाउन निकाल कर पहन लिया और रसोई में चली गई.
7-8 मिनट में वापस आई तो वो ट्रे में ड्राइ फ्रूट और केसर वाला दूध लाई थी. हम दोनों ने वो पिया, थोड़ी देर के लिए लेट गये और वो मेरे बाईं ओर थी, मैंने उसकी तरफ करवट ले ली और एक दूसरे के परिवार के बारे में बातें करने लगे.

35-40 मिनट तक बातें करने के बाद हमें फिर से जोश आ गया तो एक बार और संभोग किया. दूसरी बार जब संभोग से निबटे तो घड़ी 2:30 बजा रही थी. मंजरी ने जल्दी से वही गाउन पहना, रसोई में चली गई और मेरे लिए टी वी लगा कर गई.

15 मिनट में वो खाना ले आई तो मैंने कहा- खाना बहुत जल्दी तैयार कर लिया?
वो बोली- सब्ज़ी तो मैं पहले ही बना गई थी, ओवन में गर्म कर ली… आटा भी गूँध कर रखा था तो रोटी सेकने में टाइम ही कितना लगता है.
मैंने कहा- सही कह रही हो!

हम दोनों ने खाना खाया, वो बर्तन रसोई में रख कर आई और मेरे बगल में लेट गई.
मैंने उसे बाहों में भरा और हम दोनों चिपक कर लेट गये. दो बार की चुदाई ने थका दिया था तो थोड़ी ही देर में आँख लग गई और ऐसी गहरी नींद आई कि फिर करीब 5 बजे ही आँख खुली… वो भी मंजरी ने ही उठाया मुझे और बोली- आप गर्म पानी से नहा लो, थकावट उतार जाएगी.
मैंने कहा- इस गर्मी में गर्म पानी?
तो उसने कहा- थोड़ा गुनगुना पानी ले लो, थकावट दूर हो जाएगी! मैं तब तक चाय बना लेती हूँ।
मैंने उसे कहा- ठीक है.

5 मिनट में मैं नहा कर आ गया और ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ कर पगड़ी बाँध रहा था कि वो चाय ले आई।
जल्दी जल्दी करते भी 5:40 हो गये थे, जब मैं चलने लगा तो उसके चेहरे पर एक उदासी की छाया थी, उसने बड़ी मासूमियत से पूछा- अब कब आओगे?
मैं बोला- बहुत जल्दी… अब तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूँगा.

करीब 6 बजे तक मैं लैब में पहुँच गया।

अगले दिन शाम को फिर से प्रदीप का फ़ोन आया और उसने मेरा शुक्रिया अदा किया और कहा- भाई साहब, मैं कभी किसी भी तरह, आपके काम आ सकूँ तो मुझे ज़रूर बताना!
मैंने औपचारिकतावश कहा- ज़रूर भाई जी!
वो फिर से कुछ रुँधे हुए गले से बोला- भाई साहब, मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा!
कुछ और बातें कर के उसने फोन रख दिया।

इसके बाद मैं हर महीने में कभी 3 बार तो कभी 4 बार मंजरी के पास जाता रहा, इस वक्त में मेरी पिछले 8 साल की सेक्स की सारी कमी दूर हो गई थी।

फ़रवरी में एक दिन शाम को करीब 6 बजे मंजरी का फोन आया- दलबीर जी, मैं देहरादून जा रही हूँ, बेटे की तबीयत खराब है.
मैंने कहा- ठीक है, जाकर फोन करना!

3-4 दिन बाद फोन आया- दलबीर जी, मुझे यहाँ लंबे टाइम तक रहना पड़ेगा क्योंकि बेटे के एग्ज़ाम होने वाले हैं और उसकी तबीयत भी ठीक नहीं है, मैंने यहाँ एक फ्लैट रेंट पर ले लिया है.
मैंने कहा- ठीक है!

उसके बाद मैंने 6-7 दिन बाद उसका फोन मिलाया पर उसका फ़ोन नहीं लगा. कई दिन तक मिलाया पर नहीं लगा. मैं 2-3 बार उसके घर का चक्कर भी लगा आया पर वो वहाँ भी नहीं मिली।
इसके बाद मैं उसे बहुत याद करता रहा पर मैं समझ नहीं पाया कि उसकी इस बेरूख़ी की क्या वजह रही या क्या मज़बूरी रही।
तब से अब तक इस इंतज़ार में हूँ कि काश कोई और मिल जाए जिसे जिस्मानी ज़रूरत हो।
अभी तक तो कोई मिली नहीं… करीब सवा साल से भूखा ही हूँ.
ख़ैर जो रब की मर्ज़ी, होना तो वही है!

पाठकों की अमूल्य राय का इंतज़ार रहेगा.
आपका अपना
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