हुस्न के जलवे

हुस्न के जलवे

नमस्कार मेरा नाम करन है, मैं देहरादून का रहने वाला हूँ, मेरी उम्र 19 साल है। लंड, चूत, गांड, चूचे जैसे शब्द सुन कर ही हमारे यौन-अंग उत्तेजित हो जाते हैं, कैसे चूत तरस जाती है लंड के लिए, कैसे लंड तड़प उठता है एक योनि के लिए।

तो लीजिये पेश है एक ऐसा सच्चा वाकया जिसे सुन कर महिलाओं की चूत बह उठेगी और पुरुषो के लंड झड़ जायेंगे।

मेरे पिताजी पी.सी.एस. अफसर हैं, सरकारी नौकरी होने के कारण उनका 2-2 साल में तबादला हो जाता है, तो हमें भी बार-बार घर बदलना पड़ता है। मैं 18 साल का था जब हम नॉएडा आये। यहाँ हमें बहुत अच्छे पड़ोसी मिले।

हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता था। जिसमे एक आंटी, उनके पति तथा उनका बेटा जो दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था, रहते थे। अंकल आई.ए.एस. अफसर थे तो वो सदा काम में व्यस्त रहते। उनका एक बड़ा लड़का भी था जो इंजीनियरिंग कर रहा था पुणे में रह कर। आंटी की उम्र 40 के आसपास होगी, पर शायद आप माने न माने, वो एक अप्सरा से कम नहीं थी। उन्होंने अपने आप को संवार कर रखा था जैसे 16 साल की लड़की ! चूचियाँ एकदम भरी हुई, गाण्ड एकदम गोल आकार में, थोड़ी मोटी, टाँगें-हाथ ऐसे कि उन पर पत्थर भी फिसल जाये।

वो बहुत बड़े घराने की लगती थी जैसे दूध में नहाती हो, जैसे हजारों नौकर शरीर की देखभाल के लिए रखे हो। उनका पहनावा भी ऐसा था कि अच्छे अच्छों के मुँह से पानी आ जाए। आंटी टाईट सूट पर मैचिंग सेंडल पहन कर जो चलती थी ! हाय ! हजारों सुइयाँ चल जाती थी लंड पर !

आंटी से मेरा मेलजोल काफी ज्यादा था। वो अक्सर मुझे अपने बेटे की पढ़ाई में मदद करने क लिए बुलाती थी। उनके बेटे को पढ़ाने से ज्यादा मेरा ध्यान आंटी पर रहता। वो भी अपने बेटे को भुला कर मुझसे लगी रहती। वो मुझे बहुत गौर से देखती थी, जैसे मुझे जाँच रही हो।

कभी कभी मेरे सामने लिपस्टिक लगाती, पैरों में नेल पोलिश लगाती, बॉडी लोशन लगाती, जैसे मुझे दिखाने के लिए ही ऐसा करती हो। मेरा मन करता था कि उनके होंठ चूम लूँ, हाथों-पैरों पर शहद लगा कर चाट जाऊँ !

और क्या कहूँ बस पूछिए ही मत। मैंने अन्तर्वासना की सभी कहानियाँ पढ़ी है तो मुझे काफी कुछ मालूम है। मैंने उनके घर में कई बार उनकी पैंटी देखी पर कभी हिम्मत नहीं हुई कि उसे उठा कर चूम या चाट लूँ।

मुझे यकीन है उनके कई नौकर ऐसा करते भी होंगे। मैंने तो कई बार यह भी देखा है कि उनका सफ़ाई वाला कमरे की सफाई करते समय आंटी के वाशरूम से कान लगा कर आंटी की पेशाब करने की आवाज़ सुन रहा है। कई बार तो मुझे उनके खुद के बेटे पर भी शक हुआ, क्योंकि वह अपनी ही माँ को दूसरी नज़रों से देखता था। शायद आंटी को भी लगने लगा था कि मेरा ध्यान उनकी तरफ अति अधिक है। सो वो भी अपने हुस्न के जलवे दिखाने से बाज़ नहीं आती थी। वो मुझसे दिन प्रतिदिन खुलती ही जा रही थी। हम पिक्चरों के नग्न चित्रों के विषय में भी खूब चर्चा करते। आलम यह था किआंटी मेरे आगे अपना गाऊन उठा कर अपनी टांगों, जान्घों पर क्रीम लगा लेती। उनका बेटा सब देख कर भी अनदेखा कर देता।

एक दिन पापा और अंकल को किसी कारण वश लखनऊ जाना पड़ा कुछ दिनों के लिए। साथ ही हमारे स्कूल का ट्रिप भी शिमला जा रहा था तीन दिन के लिए। आंटी ने अपने बेटे को शिमला भेजने की मंज़ूरी दे दी स्कूल ट्रिप पर। पर मेरी कुछ साथियों के साथ जयपुर जाने की योजना थी। जाने से एक दिन पहले जब मैं आंटी के घर गया उनके बेटे को पढ़ाने तो उन्होंने मुझे छुपकर एक पर्ची दी, उसमें उनका फ़ोन नंबर था और लिखा था- रात 12 बजे के बाद कॉल करना।

मैंने वैसा ही किया। उनकी कामुक आवाज़ सुनकर तो मेरा वैसे ही खड़ा हो गया।

उन्होंने पहले पूछा- कोई है तो नहीं आस पास?

मैं समझ गया, मैंने कहा- नहीं।

पहले तो उन्होंने इधर उधर की बातें की, फिर मुद्दे पर आई।

आंटी : कल राहुल शिमला जा रहा है, तुम भी जा रहे हो?

मैं : नहीं आंटी, मैं जयपुर जा रहा हूँ दोस्तों के साथ।

आंटी : कब तक लौटोगे ?

मैं : दो तीन दिन में जब स्कूल का ट्रिप भी शिमला से वापस आ जायेगा।

आंटी: किन दोस्तों क साथ जा रहे हो?

मैं : मेरे स्कूल कुछ दोस्त हैं।

धीरे धीरे बात मेरी समझ में आने लगी। मैं समझ भी गया था और मन ही मन तैयार भी हो गया था। बस आंटी के कहने का इंतज़ार था।

आंटी : तुम्हारा जाना ज़रूरी है?

मैं : यह आप क्या कह रही हैं?

आंटी : बेटा, सीधे सीधे कहूँ तो क्या तुम ये तीन दिन मेरे साथ बिताना चाहोगे?

मैं : मैं कुछ समझा नहीं आंटी?

आंटी : मेरा कहने का मतलब है तुम जयपुर न जाकर मेरे घर आ जाओ .. अपनी माँ को बिना बताये और मेरे साथ ही तीन दिन रहो। अगर तुम चाहो तो।

मैं तो यही चाहता था पर अनजान बन रहा था।

मैं : पर माँ को पता चला तो ?

आंटी: नहीं पता चलेगा यह तीन दिन बस तुम मुझमें … तुम बस अपने दोस्तों को समझा देना किसी तरह। नौकरों को मैं छुट्टी दे दूंगी।

मैं तो फूले नहीं समा रहा था।

मैंने उनसे कहा- ठीक है !

और फिर उन्होंने मुझे अपनी योजना समझाई।

वो सच में काम देवी थी।

अगले दिन सुबह मैंने अपने दोस्तों को किसी तरह समझाया, वह सब समझ गए। फिर मैं सुबह घर से अपना सामान लेकर निकल पड़ा। मैं अपने एक दोस्त के घर पहुँच कर आंटी के फ़ोन का इंतज़ार करने लगा। आंटी के फ़ोन के बाद में सामान लेकर घर के पास वापस गया और चुपके से आंटी के घर पीछे के दरवाज़े से अन्दर घुस गया। किसी को कानो-कान खबर भी नहीं हुई। उनका बेटा शिमला के लिए निकल चुक था। अब सिर्फ मैं और आंटी अकेले थे घर में। आंटी को देख कर तो मेरे मुँह से पानी आ रहा था। क्या कहूँ कि क्या लग रही थी वो।

टाईट सफ़ेद गाऊन नीचे सफ़ेद हील वाले सेंडल, बाल खुले। हाय क्या लग रही थी वो- काम देवी।

मैंने उनके शरीर का रोम रोम कामरस में डुबाया। क्रीम, शहद, केले, बियर आदि का इस्तेमाल करके मैंने उस देवी के साथ कामसूत्र की नई परिभाषा लिखी।

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