अंधी चाहत-2

अंधी चाहत-2

रोनी सलूजा
मैंने अपने ऊपर संयम रखते हुए उसे फिर कुर्सी पर बिठा दिया और बात को बदल कर माहौल को खुशनुमा बनाने में लग गया। कुछ देर बाद दीप्ति मेरी बातों से आश्वस्त होकर चली गई और मैं अपनी एकतरफा चाहत में किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया था।
मैंने भी इंतजार करना मुनासिब समझा !
अब मैं अक्सर अपनी साइट से दोपहर में खाना खाने के बहाने कुछ समय के लिए घर आने लगा। दीप्ति कभी कभी मेरे पास आकर बैठ जाती थी। मैं निश्चिन्त होकर उसकी मस्त जवानी को घूर घूर कर देखता रहता था, उसके चुच्चे और नाभि को बड़े ही करीब से निहारता रहता !
बातों बातों में मैं उसे कभी कंधे पर कभी उसके हाथों पर अपने हाथ रख देता था।
एक दिन दीप्ति भाभी बोली- रोनी, तुम मुझे बार बार हाथ लगाकर छूने की कोशिश क्यों करते रहते हो?
मैं इसी मौके की तलाश में था, मैंने कहा- भाभी, आप हो ही इतनी सुन्दर की तुम्हे बार बार छूने को मन करता है।
तो मुस्कुराते हुए बोली- मुझे तो लगता है तुम कोई शरारत करने की फ़िराक में रहते हो, इसलिए मुझे तुम्हारे पास आने में भी डर लगता है !
मैं बोला– भाभी, आपको मुझ पर विश्वास नहीं होता तो यूँ इस तरह मेरे पास आकर न बैठती, न ही मुझसे इतना बाते करती।
वो खामोश रही तो मैंने अगला तीर चलाया- भाभी, एक बात कहूँ, आप बुरा न मानो तो !
“हाँ कहो, बुरा नहीं मानूँगी !” भाभी बोली।
“आपने कभी अपने आप को देखा भी नहीं, शायद किसी ने आपको बताया हो या न बताया हो पर आप बेहद सुन्दर हो, मैं आपको छूकर महसूस करना चाहता हूँ और आपकी ही सुन्दरता से आपको परिचित कराना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे छूने की इजाजत दे सकती हो?”
“नहीं रोनी, मेरे लिए तुम पराये मर्द हो और ऐसा करना मुझे अच्छा नहीं लगेगा। फिर यह भी तो गलत है कि तुम मुझे बार बार छूते हो !”
मैं– भाभी सच कहूँ तो उस दिन नहानी में आपको पूरी तरह से बेपर्दा देख तो चुका हूँ, आपके हर अंग को कुदरत ने कितने जतन से बनाया है जैसे सांचे में ढालकर बनाया हो ! आपके नख से शिख तक के हर अंग में जादू है, आपके यौवन के उभार और कटाव में किसी को भी आकृष्ट करने की क्षमता है जिन्हें देखने के बाद एक ही बार स्पर्श करने की तमन्ना किसी को भी हो सकती है, जिसे आपकी अनुमति बिना पूरा नहीं किया जा सकता !
यह सुनकर कि उसके बेपर्दा बदन को मैं देख चुका हूँ, उसके चेहरे पर शर्म और आश्चर्य के स्पष्ट भाव थे, उसके होंठ कांप रहे थे, उसने सिर्फ इतना ही कहा- नहीं रोनी, यह नहीं हो सकता !
मैंने तपाक से बोल दिया- नहीं हो सकता तो कोई बात नहीं, आपकी इच्छा नहीं है तो उम्मीद करूँगा कि मेरी बातों को धयान में मत रखना और मुझे माफ़ कर देना !
फिर मैं अपने काम पर चला गया और अगली योजना बनाने लगा।
इतना तो स्पष्ट था कि भाभी से खुलकर बातें होने लगी थी !
एक दिन काम कुछ जल्दी ख़त्म हुआ तो 5 बजे मैं कमरे पर आ गया।
भाभी से बात करने का कुछ समय था अभी क्यूंकि छः बजे उसके ससुर के आने का समय होता है।
मेरी आहट सुन भाभी बाहर गलियारे में आकर बोली- रोनी, तुम आज जल्दी आ गए?
मैंने कहा- हाँ, अभी कुछ देर पहले ही आया हूँ !
उसके हाथ में हरिराम की शर्ट और सुई धागा था हमारे दरवाजे के पास बैठकर बड़े ही सही अंदाज से शर्ट में बटन टांकने लगी उसके बैठने के तरीके से साड़ी के अन्दर टांगों का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा था।
मैं भी उसके सामने वही बैठ गया बहुत कोशिश की पर उससे ज्यादा कुछ नहीं देख पाया !
अंधी होने के वजह से उसे तो ज्ञात ही नहीं था कि कहीं से थोड़ी साड़ी अस्त व्यस्त होगी !
मैं बोला– भाभी, आप आज किस तरीके से बैठी हो? अपनी साड़ी ठीक करो न ! अन्दर तक सब दिख रहा है।
सकपकाकर उसने अपनी साड़ी को सुधार लिया, मैं भी अचंभित था कि कहीं मुझे दिखाने के लिए भाभी की कोई चाल तो नहीं थी पर
उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी !
उसे यह अहसास दिलाने के लिए कि मैंने कुछ देख लिया है, तुरंत ही मैंने कहा- भाभी, एक बात बताओ, आप ये नीचे के बालों को साफ
क्यों नहीं करती हो? कितने बड़े बड़े हो गए हैं। यदि इनको साफ नहीं करोगी तो यौनसंक्रमण होने का खतरा रहता है ! जिसके कारण बदबू और बीमारी हो सकती है !
शर्म के कारण उसको मेरी बात का कोई जबाब देते नहीं बन रहा था, मैंने दोबारा पूछा तो मुश्किल से बोल पाई- मुझ अंधी को नहीं आता ये सब, और कहीं धोखे से ब्लेड या कैंची लग गई तो !
मेरी इच्छा हुई उससे कह दूँ कि तुम्हारे नीचे के बाल मैं बना देता हूँ पर मैं बनती बात को बिगड़ना नहीं चाहता था, मैंने तुरंत कहा- अरे इसके लिए हेयर रिमूवर आता है, उसको अपने नीचे के बालों पर लगा लेना, फिर धो लेना, बस बाल साफ हो जायेंगे। मैं तो उसी का उपयोग करता हूँ !
बोली- तुम्हारे पास रखा है क्या?
मैंने मन में सोचा कि वैसे भी अब छह बजने वाले हैं, इसे परसों बुधवार तक टालना होगा, मैंने कहा- अभी तो नहीं ही मेरे पास, परसों जरुर लाकर दूँगा !
बुधवार का इंतजार करने में मेरे को लगा जैसे महीनों लग रहे हो।
आज सुबह जल्दी नीद खुल गई पर बिस्तर पर ही नौ बजने का इंतजार करता रहा। जब तसल्ली हो गई कि हरिराम और उनके पिताजी जा चुके हैं, तो धीरे से दरवाजा खोला।
उस समय दीप्ति नहानी में अपने कपड़े खूंटी पर लटका रही थी और नहाने की तैयारी में थी।
दांतों पर ब्रश करते हुए मैंने कहा- भाभी, पहले मैं मुँह हाथ धो लूँ, फिर आप नहा लेना !
तो वो नहानी के बाहर आकर रुक गई, बोली- आज काम पर नहीं गए?
तो मैंने कहा- आज छुट्टी ले रखी है।
मुँह धोकर मैं बोला- कल मैं आपके लिए वो रिमूवर ले आया था, अभी आपको देता हूँ, चलो मेरे कमरे में !
वो मेरे पीछे आ गई तो मैंने उसे वो डिब्बी थमा दी।
उसने खोलकर सूंघा और बोली- इसमें तो गुलाब जैसी खुशबु आ रही है।
मैंने कहा- हाँ यह कई खुशबुओं में आती है। मुझे गुलाब ही पसंद है इसलिए इसे ले आया !
वो बोली- इसे कैसे लगाना है, कोई नुकसान तो नहीं करेगी?
“लगाना तो बड़ा आसान है !”
सारी विधि समझाते हुए कहा कि बस यह ध्यान रखना की आपकी योनि में न लग पाए। तो कोई नुकसान नहीं करेगी क्योंकि यह त्वचा के बाल साफ करने के लिए है !
डिब्बी लेकर वो नहानी में चली गई और दरवाजा लगा लिया।
मुझे कहीं से भी अन्दर का कुछ नजर नहीं आ रहा था !
पंद्रह मिनट बाद जब वो नहा कर निकली तो मुझे आवाज लगाई।
मैं बाहर आया और पूछा- कर लिए बाल साफ?
तो डिब्बी मुझे देकर बोली- हाँ वो तो साफ हो गए पर मुझे अन्दर बहुत जलन हो रही है !
मैंने कहा- लगता है कि यह दवा अन्दर न लग गई हो, उसे साफ करना पड़ेगा।
तो बोली- मैंने अन्दर भी धो लिया पर जलन कम नहीं हुई !
मैंने कहा- चलो मैं अच्छे से साफ करके जलन मिटने वाली क्रीम लगा देता हूँ !
बोली नहीं- ये कैसे हो… …
उसके वाक्य पूरा होने के पहले ही मैंने कहा- जो सब मैं पहले ही देख चुका हूँ, अब उस पर क्या पर्दा करोगी। फिर कोई नुकसान होने से तो अच्छा होगा कि मेरे से ही दवा लगवा लो।
और मैंने उसे कंधे से पकड़कर पलंग पर बिठा दिया।
उसके चेहरे पर डर के भाव आने लगे और किसी अनहोनी की आशंका से वो वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई और दरवाजे को अन्दर से बंद कर लिया।
मुझे लगा ‘गई भैस पानी में’
शायद अब कुछ नहीं हो सकता !
फिर कुछ देर बाद आकर बोली- रोनी, इस विश्वास के साथ कि तुम कुछ गलत नहीं करोगे तुमसे दवा लगवाने को तैयार हूँ !
मैंने उसे पलंग पर बिठाकर कहा- अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर कर लो, तब तक मैं क्रीम उठाता हूँ।
परन्तु अब तक भाभी ने साड़ी पेटीकोट को घुटनों तक ही उठाया था और जांघों को फैलाकर गुफानुमा ऐसी जगह बना दी थी कि मेरा हाथ अन्दर चला जाये !
मेरी हृदय की गति बढ़ गई, लंड अंगड़ाई लेने लगा था।
तुरंत ही मैंने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रखा और दूसरे हाथ को उसके पेटीकोट की गुफा में डालकर सीधा चूत को टटोलने लगा। वाकयी बिल्कुल चिकनी हो गई थी, अंगुली से सहलाते हुए उसके दाने को दबा दिया और योनि द्वार के पट खोलते हुए अंगुली को अन्दर प्रविष्ट करने की जैसे ही चेष्टा की तो भाभी बोली- यह क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- आप लेट जाओ तो अन्दर तक आसानी से साफ करके क्रीम वाली दवा लगा दूंगा !
जैसे ही उसे पलंग लिटाया उसके घुटनों से साड़ी पेटीकोट सरककर कमर तक चले गए और उसकी उजली जंघाएँ उजागर होकर चमक उठी।
मोटी मांसल चिकनी जांघों को थोड़ा खींचकर पृथक किया तो उनके बीच स्थित चिकनी चूत के दर्शन हो गए।
मेरा लौड़ा तो कड़क होकर झटके मारने लगा, एकदम अन्दर घुसने के लिए उतारू हो रहा था, पर इस चूत रूपी रणभूमि में उतरने से पहले बहुत कुछ बाकी था।
यदि जल्दबाजी की तो रणभूमि छोड़कर भागना भी पड़ सकता है, यह सोचकर बुर के गुलाबी गुलाबी योनिद्वार को एक गीले मुलायम कपड़े से साफ करने लगा, बीच बीच में बहाने से छेद को खोल खोल कर उसमें अंगुली डालते हुए चूत के दाने को भी मसलने लगा।
उसके चेहरे पर भाव बड़े तेजी से बदल रहे थे, शायद उसे अच्छा लग रहा हो !
फिर एक अंगुली में क्रीम लगाकर भट्टी जैसी तपती बुर में डालकर अन्दर बाहर करने लगा और दाने को भी सहलाते जा रहा था।
अचानक भाभी की चूत से चिकना रस निकलने लगा और मेरी अंगुली को भिगोने लगा, साथ ही दीप्ति भाभी के मुँह से ‘बस करो रोनी… बस्स… अह्ह्ह…’ जैसी ध्वनि निकल रही थी।
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मैंने पूछा- अब जलन कम हुई क्या?
बोली- नहीं अभी भी हो रही है !
मैंने हिम्मत जुटाकर उसकी जांघों को फैलाया और अपने मुँह से भाभी की चूत पर पप्पी करके जीभ से चूत को चाटना शुरू कर दिया !
भाभी- ओह्ह… स्स्स्स… रोनी, यह क्या करने लगे?
मैंने कहा- जब अंगुली में चोट लग जाती है तो उसे अपने मुँह में लेने से कितने जल्दी आराम हो जाता है। वैसे ही बस देखती जाओ जल्दी ही तुम्हारी जलन कम हो जाएगी !
और जीभ की नोक से ही उसके दाने को सहलाते योनि में अन्दर-बाहर करने लगा।
भाभी की आहें कराहें पल प्रतिपल बढ़ रही थी। यह जानते हुए भी कि अब जो होगा गलत ही होगा, मुझे रोकने का पूरा प्रयत्न कर रही
थी पर शारीरिक रूप से कोई विरोध नहीं किया उसने !
कुछ ही समय बाद उसके बदन में तेज हरकत होना शुरू हो गई, मैं समझ गया कि भाभी स्खलित होने वाली है, मैंने अपनी तमाम गतिविधि रोक दी अन्यथा स्खलन के बाद उसे अच्छे बुरे का आभास हो गया तो काम बिगड़ सकता है !
फिर धीरे से मैंने अपना लोअर उतार दिया और अपने मचलते लंड को खुल्ला कर दिया !
भाभी– ऊह्ह्ह… रोनी, रोक क्यों दिया? करो न… अब आराम लग रहा है… आह्ह्ह… स्स्स्स जल्दी करो न…
मैंने कहा- तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा है?
बोली- करते जाओ… अच्छा लग रहा है !
मैंने तुरंत उसका हाथ अपने लंड पर रखते हुए कहा- यह बहुत बेचैन हो रहा है, बाकी काम यह करेगा और तुम्हारी योनि में अन्दर तक अपनी क्रीम डाल देगा।
वासना में जलती भाभी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया।
सारे रास्ते खुले देख अपने लंड को उसकी चूत रूपी रणभूमि में उतार कर उसकी चूत से भिड़ा दिया और लंड से चूत को रगड़ते सहलाते उसके बहते रस में सराबोर करके योनिद्वार पर रख दिया !
भाभी फिर से सिस्कारने लगी- उई.. मा… स्स्स्स… अह्हाह्ह्ह…
उसकी कमर और गांड में होने वाली हरकत इशारा कर रही थी कि लंड को अन्दर पेलने का समय आ गया है।
एक झटका लगाते हुए आधे लंड को अन्दर ठेल दिया। घुटी सी चीख उसके हलक से निकल गई, बाकी का लंड अपने शरीर के वजन के दबाव से धीरे धीरे अन्दर सरका दिया।
भाभी की सांसों में तेजी आ गई थी जैसे कहीं से दौड़कर आई हों।
फिर मैंने लंड को अन्दर बाहर पेलना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में भाभी के बदन में एंठन उत्पन्न हुई और उसने अपना रज छोड़ दिया और मुझसे लिपट गई।
मेरा जोश बढ़ गया ! उसकी गीली चूत में मेरा लौड़ा पिस्टन जैसी गति से सटासट अन्दर बाहर होते हुए अति संवेदनशील होकर स्खलित होने लगा और सारा का सारा गर्म वीर्य दीप्ति की चूत में उगलने लगा !
उन क्षणों में दीप्ति भी सांसों के तूफान में उलझ गई, फिर वक्त के चलते तूफान भी थम गया !
मैं उसके ऊपर निढाल हो गया !
जब हम अलग हुए दोनों तृप्त हो चुके थे।
भाभी बोली- रोनी, ये सब क्या हो गया मैंने कभी भी ऐसा नहीं सोचा था !
मैंने कहा- यह तो होना ही होगा, सो हो गया पर एक समस्या जरूर हो गई है !
भाभी- क्या समस्या हो गई !
मैं- भाभी रात में जब हरिराम तुम्हारे साथ सेक्स करेगा तो तुम्हारी चिकनी चूत देखकर तुमसे जरूर पूछेगा कि ये बाल कैसे बनाये तुमने? तब तुम क्या जबाब दोगी?
भाभी- यह तो मैंने सोचा ही नहीं, अब तुम ही बताओ क्या कहूँगी?
मैंने कहा- अब तुम हरिराम से कहना कि नीचे के बालों से मुझे परेशानी हो रही है, पसीने से जलन होती है इसलिए इन्हें साफ करने के लिए हेयर रिमूवर बाजार से ले आना !
और जब तक वो रिमूवर न लेकर आये, उसे अपनी चूत को छूने भी मत देना, नहीं तो वो समझ जायेगा कि किसी बाहर वाले ने तुम्हें रिमूवर दिया है और वो तुम पर शक भी कर सकता है !
दीप्ति भाभी ने वैसा ही हरिराम से कहा तो उसने दो तीन दिन में रिमूवर लाकर दे दिया।
उसके बाद ही भाभी ने हरिराम को चुदाई का मौका दिया।
भाभी ने मुझे बताया था उसकी चिकनी चूत से हरिराम भी बहुत खुश था !
करीब एक साल तक मैं वहाँ रहा, तब तक दीप्ति भाभी की चूत का लुत्फ़ अक्सर दोपहर को, जब भी मौका मिला, मैंने उठाया, कई तरह से उसके साथ सम्भोग किया !
उसके साथ इतना तो जरूर ज्ञात हुआ कि हर इन्सान में सेक्स और यौन भावनाएँ होती हैं जिसकी जरूरत सभी को होती है जो किसी की शारीरिक असमर्थता से प्रभावित नहीं होती !
इस कहानी से किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे ! यह सिर्फ मनोरंजन के लिए है, इसी प्रयास के साथ आपके विचारों का स्वागत है !
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