कट्टो रानी-3

कट्टो रानी-3

कहानी का दूसरा भाग : कट्टो रानी-2

मैं सोचने लगा कि पूजा मेरे बारे में क्या सोच रही होगी और इस वक्त क्या कर रही होगी, मैंने छुप कर पूजा को देखने की सोची. मैं दरवाज़े के पास गया और धीरे से थोड़ा-सा दरवाज़ा खोल कर अंदर झांकने लगा तो मैं दंग रह गया. जो तकिया मैंने अपने लंड के नीचे लगाया था, पूजा उसे बड़ी मदहोश होकर सूंघ रही थी और अपने एक हाथ से कभी अपनी चूची तो कभी अपनी चूत को मसल रही थी. मैं समझ गया कि माल एक दम तैयार है. मैंने भी झटके से दरवाज़ा खोला तो पूजा उसी तरह घबरा गई जैसे मैं घबरा गया था. उसने तकिया एक तरफ फ़ेंका और खड़ी हो गई.

पूजा- अरे…समीर तुम आ गए.
मैं- जी हाँ, मगर तुम इतनी घबराई हुई क्यों लग रही हो, क्या तुम्हारा भी गला सूख गया है क्या…?
पूजा ने शरमाकर अपना मुँह नीचे कर लिया.
पूजा- नहीं ऐसा कुछ नहीं है.
मैं- तुम मुझे फ़िल्म दिखाने वाली थी.
पूजा- इतना कुछ तो तुमने देख लिया अब क्या बाकी रह गया.

दोनों का सच एक-दूसरे के सामने आ चुका था, पूजा अब खुल कर बात करने लगी थी. तो मैंने भी थोड़ी हिम्मत की और जाकर दरवाज़े की कुंडी लगा दी.
पूजा- यह क्या कर रहे हो समीर, अगर कोई आ गया तो…?
मैं- कोई नहीं आएगा यार, डरो मत.

हम दोनों कुर्सी पर बैठ गए, और लैपटोप को मेज पर रख दिया. फिर मैंने सेक्सी फ़िल्मों की लिस्ट निकाली तो पूजा कुर्सी से उठने लगी, मैंने पूजा का हाथ पकड़ कर उसे दोबारा बिठा दिया.
मैं- क्या हुआ पूजा, कहाँ जा रही हो?
पूजा- नहीं समीर, हम ये फ़िल्में साथ में नहीं देख सकते.
मैं- मगर क्यों यार?
पूजा- यह बहुत गंदी फ़िल्म हैं, मैं इन्हें अकेले में देखती हूँ, तुम्हारे साथ नहीं देख सकती, मुझे शर्म आती है.
मैं- और जब तुम उस तकिये को इतनी मदहोशी से सूंघ रही थी तब तुम्हारी शर्म कहाँ थी.
पूजा शर्म से लाल हुई जा रही थी…

मैंने पूजा का चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर कहा- देखो पूजा, तुम मुझे बहुत पसंद हो, मैं तो तुम्हें पहली बार देखते ही तुम पर फ़िदा हो गया था. यह कहकर मैंने अपने होंठ पूजा के रसीले होठों से लगा दिए और उनका रस पीने लगा. पूजा ने मुझे बीच में ही अपने से अलग किया, उसके चेहरे पर उसके अंदर की खुशी साफ झलक रही थी.
मैं- कैसा लगा…?
पूजा- समीर… बहुत अच्छा-अच्छा महसूस हो रहा है, यह मेरी ज़िंदगी का पहला चुम्बन है.
मैं- तो बीच में ही क्यों रोक दिया मेरी जान, आज मुझे अच्छी तरह अपने होठों का रस पीने दो.
पूजा- यह मेरा पहली बार है इसलिए मुझे लंबा चुम्बन लेने का अनुभव नहीं है.
मैं- तो अनुभव ले लो ना… इतना कहकर मैंने फिर से उसके होंठ अपने होठों से पकड़ लिये.

हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने लगे, कभी मैं उसकी जीभ को पकड़ कर चूसता तो कभी वो मेरी जीभ को. उसके गालों पर रखे मेरे हाथ अब धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगे और उसके कंधों से होते हुए उसकी कामुक, मोटी-मोटी और रसदार चूचियों पर आ गये, तो वो एकदम से सिहर उठी. मैं उसके चूचों को धीरे-धीरे सहलाने व दबाने लगा, वो कसमसाती हुई मुझे चूम रही थी. हम काफ़ी देर तक एक दूसरे को चूमते रहे, हमारी सांसें तेज होती जा रही थी, पूजा की गर्म-गर्म सांसें मेरे चेहरे से टकरा रही थी, हम एक-दूसरे से लिपट कर जाने कहाँ खो गये थे.

तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी तो हमारा सारा नशा उड़ गया और हम दोनों बुरी तरह घबरा गए. पूजा ने फ़ुर्ती से उठ कर अपना दुपट्टा ठीक किया और दरवाज़े की ओर बढ़ी. मैंने लैपटोप को संभाला और उसमें जल्दी से एक विडियो गाना चला दिया. पूजा ने दरवाज़ा खोला तो देखा कि बाहर मोनू खड़ा है.
पूजा- अरे मोनू तुम…
मोनू- समीर भईया, को नीचे बुलाया है.
और इतना कहकर वो नीचे चला गया.

हमारी तो जान में जान आई कि मोनू ने हमसे कोई सवाल नहीं किया, अगर कोई बड़ा होता तो हम बुरी तरह फ़ंस जाते क्योंकि दरवाज़ा अंदर से बंद था और जवान छोरा-छोरी अकेले…

पूजा हंसते हुए बोली- बच गए यार… मेरी तो सांस ही अटक गई थी.
मैंने भी हंसते हुए कहा- तो फिर दोबारा से शुरु करें.
पूजा- जी नहीं, तुम्हें नीचे बुलाया गया है.
मैं- तो मैडम, फिर यह अधूरा काम कब पूरा होगा?
पूजा- इतनी भी क्या जल्दी है, अभी तो हम मिले हैं, सही वक्त आने पर इस अधूरे काम को पूरा करेंगे, अभी तुम जाओ, नहीं तो फिर से कोई आ जायेगा.
मैं- ठीक है… अभी तो मैं जा रहा हूँ लेकिन मौका मिलते ही इस अधूरे काम को पूरा करुँगा.

इतना कहकर मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और एक लंबा व गहरा चुम्बन लिया और नीचे चला गया.

नीचे पहुँच कर मैंने देखा कि भात की रस्म की तैयारी चल रही थी, काफ़ी सारी औरतें इकटठी हैं, मेरी गाँव वाली बुआ भी आई हुई थीं. कुछ देर बाद हम बुआ के घर पहुँचे और भात की रस्म पूरी की. घर पहुँच कर मैं अपने सारे रिश्तेदारों से मिला और फिर मैं औरतों वाले कमरे में गया अपनी प्यारी-प्यारी भाभियों से मिलने.

अंदर जाकर देखा तो मेरी सभी भाभियाँ वहाँ इकट्ठी थीं और उनके बीच एक ऐसा चेहरा था जिसे देख कर मैं हैरान रह गया और साथ ही साथ मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा. मेरी खुशी की वजह सुलेखा भाभी थीं, वो मेरी गांव वाली बुआ के साथ शादी में आई थीं. मैंने सभी भाभीयों को नमस्ते की, मुझे देख कर मेरी सारी भाभियाँ बहुत खुश हुईं और एक ने मुझे हाथ पकड़ कर अपनी बगल में बिठा लिया और हम सभी आपस में हंसी-मजाक करने लगे.

मेरी बगल वाली भाभी बोली- देवर जी, अब आप आ गये हो तो शादी में और भी मजा आएगा.
तो मैंने उन्हें खोआ मारते हुए कहा- क्यों नहीं भाभी जी, आपको तो पूरा-पूरा मजा दूंगा!
और इस पर सभी भाभियाँ जोर से हंस पड़ीं.

सुलेखा भाभी भी मेरे एक तरफ बैठी हुई थीं, फिर मैंने सुलेखा भाभी को छेड़ने के लिए अपनी एक भाभी से पूछा- भाभी, ये कौन हैं?
तो उन्होंने बताया कि ये बुआ के गांव से आई हैं, बुआ की पड़ोसन हैं और उनके साथ आई है, ये भी तुम्हारी भाभी लगती हैं.
मैंने कहा- अच्छा… तो ये बुआ के साथ आई हैं, तभी तो कहूँ इन्हें पहले कभी नहीं देखा.
सुलेखा भाभी ने मेरी बाजू पर चुटकी काटी और मेरी तरफ आँख निकालते हुए बोली- अच्छा जी, इतनी जल्दी भूल गये… ये मुझे 2 साल पहले से जानते हैं, जब गांव आए थे तब इनसे मुलाकात हुई थी और अब देखो कैसे बातें बना रहे हैं.

थोड़ी देर बाद सब भाभियाँ कमरे से बाहर चली गईं, अब कमरे में सिर्फ़ मैं और सुलेखा भाभी थी.
अब हम दोनों अकेले थे तो मैंने कहा- हमारा बेटा कहाँ है?
तो उन्होंने बताया कि वो बाहर बाकी बच्चों के साथ खेल रहा है. मैंने मोका देखकर सुलेखा भाभी के गाल पर एक चुम्बन ले लिया.
भाभी- यह क्या कर रहे हो समीर? कोई देख लेगा तो, दरवाज़ा भी खुला हुआ है.
मैं- तो लो दरवाज़ा बंद किए देता हूँ…
यह कहकर मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया.

भाभी- अरे नहीं, कोई आ गया तो उसे शक हो जाएगा कि दरवाज़ा बंद क्यों है.
मैं- किसी को शक नहीं होगा मेरी जान, मैंने कुंडी नहीं लगाई है बाकी मैं सब संभाल लूँगा.
भाभी- तुम भी ना! एकदम बेशर्म हो, तुम्हें पकड़े जाने का भी कोई डर नहीं है…
मैं- अब तुम्हारे सामने भी कैसी शर्म…

इतना कहकर मैं सुलेखा भाभी के रस भरे होठों को रगड़ने लगा और उनका रस चूसने लगा. मैं यह देखकर बहुत खुश हुआ कि भाभी मुझसे भी ज्यादा उतावली थी मेरे होठों को चूसने के लिए, वो मेरे होठों को जोर-जोर से अपने होठों में पकड़ कर चूस रही थी और अपने दांतों से भी काट रही थी. जिससे मेरे होठों में दर्द होने लगा.
मैं भाभी से अलग हुआ- क्या कर रही हो यार? खा जाओगी क्या मेरे होंठों को!
तो भाभी मेरी तरफ देखकर हंसने लगीं.
मैंने पूछा- अब क्या हुआ? हंस क्यों रही हो तुम?

भाभी ने मुझे उठाया और शीशे के सामने ले गईं, शीशे में देखकर मेरा माथा ठनका. मेरे होंठ, गाल, माथा लगभग पूरा चेहरा भाभी के होंठों की लाली से गुलाबी हो गया था.
मैंने कहा- अब क्या होगा भाभी? मेरे चेहरे का तो तुमने पोस्टर बना दिया है, यह तो आसानी से साफ भी नहीं होगा, किसी ने देख लिया तो?
भाभी ने कहा- पहले किसी कपड़े से पौंछ लो फिर साबुन से धो लेना, आसानी से साफ हो जायेगा.

भाभी ने एक रुमाल लेकर बड़े प्यार से मेरे चेहरे को पौंछा, जिससे मेरा चेहरा कुछ साफ हुआ. फिर मैं कमरे से बाहर निकला और बड़ी मुश्किल से सभी से अपना मुँह छुपा कर बाथरुम में घुस गया. मैंने अपने चेहरे पर साबुन लगाया और फिर पानी से अच्छी तरह धोया, जिससे चेहरा एकदम साफ हो गया. मैंने तौलिए से अपना मुँह पौंछा और फिर वापस कमरे में चला गया.
भाभी हंसते हुए- आ गए देवर जी, अब मुझसे कभी पंगा मत लेना, नहीं तो इससे भी बुरा हाल करुंगी.
मैं- वो तो यहाँ इतनी भीड़भाड़ है वरना अकेले में मैंने तुम्हारा क्या हाल किया था भूल गईं क्या.
इस पर भाभी मुझे कातिल मुस्कान देने लगी.
भाभी- और सुनाओ समीर, कोई मिली या नहीं?

मैंने भाभी को अपने पेशे के बारे में कुछ भी नहीं बताया कि मैं एक जिगोलो बन गया हूँ, उनकी नज़रों में मैं अब भी एक सीधा-सादा इंजीनियरिंग का छात्र था.
मैं- नहीं भाभी… मेरी तो कहीं दाल ही नहीं गलती.
भाभी- दाल यूं ही नहीं गलती देवर जी, थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कभी कोशिश भी की है?
मैं- बहुत कोशिशें की मगर कोई मछ्ली नहीं फ़ंसी कांटे में… पर…
भाभी- पर क्या…?
मैंने भाभी को पूजा के बारे में सब कुछ बता दिया.
भाभी- ओ… तो मामला एकदम फिट है तो फिर दिक्कत किस बात की है.
मैं- पूजा तो एकदम तैयार है पर भाभी मौका ही नहीं मिल रहा है और शायद कल मैं यहाँ से चला जाऊँगा, पता नहीं हमारा मिलन हो पाएगा या नहीं. कुछ तो करो भाभी प्लीज…

भाभी ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा- मैंने सोच लिया देवर जी कि आपका पूजा के साथ मिलन करवा के रहूँगी वो भी आज रात ही.
मैं- भाभी मैं तुम्हारा बहुत आभारी रहूँगा, पर यह सब होगा कैसे? दोनों ही घरों में काफ़ी लोग जमा हैं.
भाभी- अभी तो भीड़ है पर रात को सब शादी में शरीक होने के लिए बैंक्वेट हाल जायेंगे, तब यहाँ तो कोई ना कोई रुकेगा क्योंकि शादी वाला घर है पर उस वक्त पूजा के घर कोई नहीं होगा.
वो समय ही तुम दोनों के मिलन के लिए एकदम सही रहेगा. यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं.

भाभी की यह योजना सुन कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने उनके गाल को चूम कर उनका धन्यवाद किया. धीरे-धीरे समय बीत गया और शाम को 8 बजे के करीब सभी लोग बैंक्वेट हाल चले गये. मैं भी संजू (बुआ का लड़का) के बैंक्वेट होल की तरफ रवाना हुआ, घर से 5 मिनट की दूरी पर ही था.

जैसा कि भाभी ने कहा था हमारे घर पर एक-दो बंदे रुके थे घर की देखभाल के लिए, पर पूजा के घर के बाहर मैंने ताला लगा हुआ देखा तो सोचा कि सब भाभी की योजना के मुताबिक चल रहा है.

बैंक्वेट होल पहुँच कर मैं सभी मेहमानों से मिला.
वहाँ मैंने पूजा को देखा तो मेरा चेहरा खिल उठा और हम खाना खाते-खाते एक दूसरे को दूर से ही प्यासी निगाहों से देख रहे थे और मुस्करा रहे थे.

तभी किसी ने पीछे से मेरी पीठ थपथपाई, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो सुलेखा भाभी थीं.
भाभी ने बताया कि उन्होंने पूजा को सब कुछ समझा दिया है कि क्या करना है और मुझे भी आगे की योजना बताई.

करीब 11 बजे तक लगभग सभी अन्य मेहमान सोने के लिए खिसक चुके थे, सिर्फ कुछ लोग ही बचे थे जिन्हें सारी रात वहीं रुकना था.
मैं बुआ के पास गया, वहाँ मम्मी और आंटी भी बैठी हुई थीं, मैंने बुआ से कहा- मुझे जोरों की नींद आ रही है. बताइए सोना कहाँ है? घर में तो काफी भीड़ होगी.
मैंने ये सब आंटी को सुनाने के किए किया था, उसका असर यह हुआ कि आंटी ने कहा- हाँ समीर, तुम वहाँ परेशान हो जाओगे, तुम हमारे घर जाकर सो जाओ, वहाँ कोई नहीं है!
और यह कहकर उन्होंने घर की चाबी मेरे हाथ में दे दी. मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मुझे किस्मत की चाबी मिल गई हो.

मैं पूजा के घर का ताला खोलकर अंदर गया और पूजा का इंतजार करने लगा.
योजना के अनुसार पूजा ने घर आने के लिए सुलेखा भाभी का सहारा लिया. उसने आंटी से कहा- मम्मी… भाभी और मैं सोने जा रहें हैं, घर की चाबी दे दो.

आंटी ने कहा- चाबी समीर ले गया है वो हमारे ही घर पे सो रहा है, तुम भाभी के साथ जाओ और मोनू को भी ले जाना उसको कल स्कूल भी तो जाना है.

थोड़ी देर में पूजा, भाभी और मोनू आ गए, पूजा ने मोनू से कहा- तू जाकर अपने कमरे में सो जा, हम तीनों नीचे ही सोएगें, अगर कोई आएगा तो दरवाज़ा भी तो खोलना है.
मोनू ऊपर चला गया और पूजा ने जीने का दरवाज़ा बंद कर दिया.
फिर हमारा खेल शुरु हुआ…

कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का चौथा व अंतिम भाग : कट्टो रानी-4

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