अंतहीन प्यास-3

अंतहीन प्यास-3

आपकी सारिका कंवल
बारिश इतनी तेज़ हो चुकी थी कि 4 लोगों का एक छाता के नीचे बच पाना मुश्किल था, पर आस-पास कोई जगह नहीं थी कि हम छुप सकें इसलिए हम जल्दी-जल्दी चलने लगे।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए, जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
हम लोग लगभग पूरी तरह भीग ही चुके थे क्योंकि बारिश और तेज़ होती जा रही थी। बच्चे तो पूरे भीग ही चुके थे और दिसंबर का महीना था सो ठण्ड लगने लगी थी।
उसने कहा- जल्दी चलो कहीं छुपने की जगह देखो वरना बच्चे बीमार पड़ जायेंगे।
और हम तेज़ी से चलने लगे। ठण्ड की वजह से मैं काँपने लगी थी क्योंकि मैं पूरी भीग चुकी थी और सलवार-कमीज के ऊपर कुछ पहनी भी नहीं थी।
चलते समय उसका जिस्म मुझसे छुआ जा रहा था तो मुझे उसके जिस्म की गर्मी अच्छी लग रही थी।
शायद उसे भी अच्छा लग रहा था और वो जानबूझ कर शायद ऐसा कर रहा था।
अचानक तेज़ी में चलते हुए मेरा पैर फिसल सा गया तो उसने मुझे बचाने के लिए कमर से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचा, मैं खुद को उसके सहारे सँभालते हुए उसकी बाँहों में चली गई।
हम दोनों की नजरें दो पल के लिए मिलीं और मैंने शर्म से अपनी निगाहें नीची कर लीं। उसने मेरे जिस्म की खुशबू को सूंघते हुए एक लम्बी साँस ली और कहा- आराम से.. चलो उस दीवार के पास छिप जाते हैं कुछ देर…!
मैंने देखा कि वो जगह इतनी बड़ी तो नहीं थी कि छुपा जा सकें, पर बच्चों को छुपाया जा सकता था, तो हम जल्दी से चले गए।
वो जगह ऐसी थी कि सर से कमर तक बारिश से बचा जा सकता था।
मैंने खुद के कपड़े देखे, एक झलक में तो मुझे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हुई और मैं जल्द से जल्द बारिश बंद होने की प्रार्थना करने लगी। मेरे स्तनों के नीचे का पूरा हिस्सा बाईं तरफ से भीग चुका था और उसमें से मेरी ब्रा और पैन्टी साफ़ झलक रही थी। मुर्तुजा भी अपने दाईं तरफ से भीगा हुआ था।
हम जल्दी से उस आड़ के नीचे जाकर छिप गए और बच्चों को छाता थमा दिया ताकि वो बच सकें। बच्चे हमारे आगे थे और मैं और मुर्तुजा पीछे।
वहाँ इतनी तेज़ बारिश हो रही थी कि मैं न चाहते हुए भी उससे चिपकती चली जा रही थी। तभी मैंने गौर किया कि वो छुपी नजरों से मेरी जाँघों और स्तनों को देख रहा है।
मैंने उन्हें अपनी हाथों से छुपाने की कोशिश की, तो उसने अपनी नजरें घुमा लीं।
हम काफी देर तक वहीं बारिश बंद होने का इंतज़ार करते रहे। हम दोनों ही शर्म से एक-दूसरे से नजरें छिपा रहे थे और खामोशी से बारिश के थामने का इंतज़ार कर रहे थे।
उसने तभी मुझसे नजरें दूसरी तरफ कर धीरे से कहा- सारिका जी.. अपने कपड़े ठीक कर लीजिए!
मैंने तपाक से अपने कपड़ों की ओर देखा तो सब कुछ ठीक लगा, फिर भी मैंने उन्हें संवारने की कोशिश की।
तब उसने कहा- उधर नहीं पीछे!
मैंने तुरंत अपना हाथ पीछे किया तो मेरी कमीज ऊपर उठी हुई थी। शायद जब मैं गिरने वाली थी और उसने मुझे बचाया तब हो गया होगा।
मैंने उसे जल्दी से ठीक किया और दूसरी तरफ देखने लगी और सोचने लगी कि इसने तो मेरा सब कुछ देख लिया होगा पर मैं करती भी क्या..! मैं बस खामोशी से सोचने लगी कि कहाँ आकर फंस गई, कब ये बारिश रुकेगी..! तभी बारिश कुछ कम हुई और मुझे थोड़ी ख़ुशी हुई कि अब बारिश रुक जाएगी, पर अगले ही पल जोरों से हवा आई और फिर बारिश की और मोटी-मोटी बूँदें तेज़ी से बरसने लगीं।
मैं तुरंत पीछे हुई और मुर्तुजा से जा टकराई। बारिश तो ऐसे आ रही थी जैसे मुझे पूरा भीगा देना चाहती हो। मैं बारिश से बचने की कोशिश में थी, पर बचना तो दूर की बात मैं और बुरी तरह फंस गई।
मेरे पीछे मुर्तुजा था और मेरे आगे बारिश आगे होती तो बारिश से बच नहीं सकती थी। पीछे होती तो मुर्तुजा से बच नहीं सकती थी। ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी कि रहा नहीं जा रहा था।
मैं मुर्तुजा से चिपक सी गई थी। उसके बदन की गर्मी मुझे महसूस होने लगी थी और जैसे-जैसे समय बीत रहा था, मुझे ठण्ड और ज्यादा लगने लगी। जिसके  कारण मैं उससे और भी ज्यादा सटने लगी। मैं सोचने लगी कि भगवान् कैसी मुसीबत में फंस गई हूँ।
तभी मुझे कुछ महसूस हुआ, मुझे लगा जैसे मुर्तुजा मेरे बदन को सूंघ रहा है। उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास झुका हुआ था और वो लम्बी-लम्बी साँसें ले रहा था।
मुझे भी उसके जिस्म की गर्मी बहुत अच्छी लग रही थी सो मैं भी ख़ामोशी से खड़ी रही।
तभी मुझे अपनी कमर पर कुछ सख्त चीज़ महसूस हुई, मैं समझ गई कि उसका लिंग है।
पहले तो मुझे लगा कि उसको डांट दूँ, पर पता नहीं, मैंने ऐसा क्यों नहीं किया। मुझे उस वक़्त कुछ भी समझ नहीं आया। शायद ये मेरी गलती ही थी, जिसकी वजह से उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसने मेरा हाथ थाम लिया।
उसने जैसे ही मेरा हाथ थामा मुझे करंट सा लगा और मैं और उसके करीब चली गई।
मेरे इस तरह के व्यवहार को देख कर उसने एक हाथ से मेरी जाँघों को छुआ। मुझे ऐसा लगा कि शायद इसी की जरुरत थी मुझे क्योंकि ऐसी ठण्ड में कहीं से कोई  गर्माहट मिल जाए, यही तो इंसान चाहता है।
मेरा कोई विरोध न देख, उसकी हिम्मत और भी बढ़ गई और उसने अपना लिंग मेरी कमर पर रगड़ना शुरू कर दिया। मैं तो जैसे सुध-बुध खो चुकी थी और उसे खुली छूट दे दी।
वो अपनी कमर को झुका कर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रगड़ने लगा, जैसे कि वो मेरी योनि को ढूँढ रहा हो।
उसका गर्म जिस्म मुझे बहाने लगा था और मैं भूल गई कि हम दोनों के आगे बच्चे हैं।
उसने अपना एक हाथ मेरे पेट पर रखा और मुझे अपनी ओर खींच लिया और लिंग को मेरे कूल्हों के बीच में घुसाने की कोशिश में रगड़ने लगा।
मुझे भी अच्छा लगने लगा और मेरी योनि भी गीली होने लगी थी। तभी उसने नीचे से अपना दूसरा हाथ मेरी कमीज के अन्दर डाल कर मेरे पजामे के ऊपर से मेरी योनि पर रख दिया।
मेरी हालत और भी बुरी हो गई।
उसने पजामे के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाते हुए पैंटी को खींच कर किनारे कर दिया। वो अपने लिंग को पूरी ताकत से मेरे कूल्हों के बीच दबाने लगा साथ ही मुझे जोरों से पकड़ अपनी और खींच रहा था और दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था।
उसने अपने मुँह से मेरे बालों को किनारे किया और गर्दन पर अपनी जीभ घुमाने लगा, जैसे कि मुझे चाट रहा हो।
तभी अचानक उसने मेरी योनि से हाथ हटाया और मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया।
मेरी अंतहीन प्यास की कहानी जारी रहेगी।
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