जी भर के चुदी मैं

जी भर के चुदी मैं

मैं अन्तर्वासना डॉट कॉम की नियमित पाठिका हूँ इसमें कोई शक नहीं है. मैं एक भी दिन ऐसा नहीं जाने देती जब मैं अन्तर्वासना पर ना आती होऊँ. एक एक चुदाई जिस्म में आग लगा देती है, चूत की प्यास बढ़ने लगती है, दिल करता है जल्दी से सलवार का नाड़ा खोल लूँ और पास पड़ी कोई चीज़ घुसा दूँ या अपनी उंगली ही घुसा दूँ, अपने किसी आशिक को बुला कर रंगरलियाँ मना लूँ!

मेरी उम्र बीस साल की है, मैं बी.ए प्रथम वर्ष की छात्रा हूँ. जैसे जैसे जवानी ने दस्तक देनी शुरु की, तैसे तैसे मेरा ध्यान लड़कों में लगने लगा, मेरी दिलचस्पी अपनी तरफ देख उनकी हिम्मत बढ़ने लगी. पहले तो आते जाते कोई कुछ बोल देता, कोई कुछ, कोई कहता- देख कितनी छोटी है अभी साली फिर भी नैन-मटक्का करने से बाज नहीं आती! उम्र से पहले मेरी छाती कहर बनने के लिए तैयार हो चुकी थी, लड़कों की बातें सुन-सुन कर अब कुछ कुछ होने लगता, मैं मुस्कुरा देती, उनके हौंसले बढ़ने लगे और फिर :

जिंदगी में अब तक मैं बहुत से लौड़े ले चुकी हूँ. मैं तब स्कूल में थी जब मैंने अपनी सील तुड़वाई थी और फिर उसके बाद कई लड़के कॉलेज लाइफ में आये और मेरे साथ मजे करके गए. मैं खुद भी कभी किसी लड़के के साथ सीरियस नहीं रही हूँ. आज मैं आपके सामने अपनी एक सबसे अच्छी चुदाई के बारे लिखने लगी हूँ ज़रा गौर फरमाना!

शाहनवाज नाम का मेरे दोस्त था वो दिखने में सुंदर और गोरे रंग का है, वो हमारे घर मेरे साथ पढ़ने आया तो उसको देख कर मेरा मन मचल उठा. उसने भी जब मुझे देखा तो वो भी मेरी तरफ़ आकर्षित हो गया था. शाहनवाज भी मेरी जवानी के जलवों से बच नहीं पाया, वो मुझसे बार बार बातें करने के बहाने आ जाता, मेरी सेक्सी हरकतों से उसका मन डोल गया.

एक दिन शाहनवाज ने वो हरकत कर ही दी जिसका मैं इंतज़ार कर रही थी. मम्मी पापा के ऑफिस चले जाने के बाद मैं अपने कपड़े बदल कर सिर्फ़ कुरता पहन लेती थी, अन्दर कच्छी भी नहीं पहनती थी. कुरता लम्बा होता था इसलिए पजामा भी नहीं पहनती थी. इसके कारण मेरे चूतड़ों की उठान, उरोजों का हिलना और बदन की लचक नजर आती थी. मैं चाहती थी कि वो किसी तरह से मेरी ओर आकर्षित हो जाए और मैं उसके साथ अपने तन की प्यास बुझा लूँ.

रोज की तरह शाहनवाज आया, उसे मैंने बैठाया और मुझसे बात करने लगा. मेरे बूब्स कुरते में से थोड़े बाहर झांक रहे थे, उसकी निगाहें मेरे स्तनों पर ही गड़ी हुई थी. मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गई. इस बीच में हम बातें भी करते जा रहे थे.

मैंने एक किताब हाथ में ले ली और उलटी हो कर लेट गई… और उसे खोल कर देखने लगी. अब मेरे नंगे स्तन मेरे कुरते में से साफ़ झूलते हुए दिखने लगे थे. मैंने तिरछी नजरों से देखा कि उसका लंड अब खड़ा होने लगा था, मेरे हिलने डुलने से मेरा कुरता मेरी जांघों तक चढ़ गया था. उसके पजामे का उठान और ऊपर आ गया. मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी. शाहनवाज़ अपने होश खो बैठा, वो उठा और मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया.

मैं जान गई थी कि उसके इरादे अब नेक हो गए हैं. मैंने अपनी टांगें और फैला ली और किताब के पन्ने पलटने लगी. शाहनवाज ने मेरे पूरे बदन को देखा और फिर अचानक ही… वो बिस्तर पर चढ़ गया और मेरी पीठ पर सवार हो गया. मैं कुछ कर पाती, उससे पहले उसने मुझे जकड़ लिया. उसके लंड का जोर मुझे अपने चूतड़ों पर महसूस होने लगा था, मैं जानबूझ कर हल्के से चीखी- ..नवाज़… यह क्या कर रहो हो…?’
‘बुलबुल… मुझसे अब नहीं रहा जाता है…’
‘देखो मैं पापा से कह दूँगी…’

अब उसने मेरे स्तनों पर कब्जा कर लिया था, मुझे बहुत ही मजा आने लगा था. मुझे लगा ज्यादा कहूँगी तो कहीं यह मुझे छोड़ ना दे! इतने में उसके होंट मेरे गालों पर चिपक गए. उसने मेरा कुरता ऊपर कर दिया और अपना पजामा नीचे खींच दिया. अब मैं और शाहनवाज नीचे से नंगे हो गए थे, उसने एक बार फिर अपने लंड को मेरे चूतड़ों पर दबाया, मैंने भी चूतड़ों को ढीला छोड़ दिया… और उसका लंड मेरी गांड के छेद से टकरा गया.

‘अब बस करो… छोड़ दो ना यार… ऐसा मत करो… शाहनवाज… हट जाओ ना…’
पर उसका लंड मेरी गाण्ड के छेद पर आ चुका था, उसके लण्ड का स्पर्श चूतड़ों में बड़ा आनन्द दे रहा था.

मुझे पता चल गया था कि अब मैं चुदने वाली हूँ. इसी समय के लिए मैं ये सब कर रही थी और इस समय का इन्तजार कर रही थी. उसके हाथ मेरे कठोर अनछुए स्तनों को सहला रहे थे, बीच बीच में मेरे चुचूकों को भी मसल देते थे और खींच देते थे.

‘आह… सी सी मैं मर जाऊँगी… शाहनवाज!
शाहनवाज को उभरी जवानी मसलने को मिल रही थी… और वो आनन्द से पागल हुआ जा रहा था.

उसका लण्ड और जोर मारने लगा और लगभग मेरी गाण्ड के छेद पर पहुँच चुका था- अरे… हट जा न… हटो शाहनवाज…
‘मना मत करो… बुलबुल…’
‘देखो मैं चिल्ला पड़ूँगी..’
‘नहीं नहीं…ऐसा मत करना… तुम बदनाम हो जाओगी.. मेरा क्या है…’

उसी समय मेरी गाण्ड पर कुछ ठण्डा ठण्डा लगा. मैं समझ गई कि उसने मेरी गाण्ड में थूक लगाया है. मैं सोच रही थी कि अब मेरी गाण्ड पहली बार चुदेगी… इतना सोचा ही था कि उसने जोर लगा कर अपनी सुपारी मेरे छेद में घुसा दी. मेरे मुँह से आनन्द और दर्द भरी चीख निकल गई. उसने सुपारी निकाल कर फ़िर जोर से धक्का मार दिया. इस बार उसका लौड़ा और अन्दर गया.

‘आह शाहनवाज… मत करो…न… देखो तुमने…क्या किया?’
‘बुलबुल..कुछ मत बोलो… आज मैं तुम्हे छोड़ने वाला नहीं… मेरी इच्छा पूरी करूँगा!’

मुझे तो आनन्द आ रहा था… छोड़ने की बात कहाँ थी, वो तो मैं यूँ ही ऊपर से बोल रही थी, मेरे मन में तो चुदने की ही थी.

उसका लंड अब मेरे चूतड़ों की गहराइयों को चीरते हुए अन्दर बैठने लगा, मैं दर्द से भर उठी, उसके धक्के बढ़ने लगे.

मैं बोलती रही ‘हाय रे… मत करो…लग रही है…हट जाओ शाहनवाज…’
‘आह… आह ह…मेरी रानी… क्या चिकनी गांड है… आ अह ह्ह्ह मजा आ रहा है…’

उसने कुछ नहीं कहा और थोड़ा सा निकाल कर जोर से धक्का मारा. उसका लण्ड पूरा मेरी गाण्ड में समा गया.
मैं चीख उठी- शाहनवाज बाहर निकालो… जल्दी… बहुत दर्द हो रहा है…
पर उसने तेजी से धक्के मारने चालू कर दिए. मैं दर्द से चीखती रही पर उसने मेरी एक ना सुनी. जब मैंने उसे जोर से अपने से अलग करना चाहा तो उसने अब लण्ड निकाल कर पीछे से खड़े खड़े ही मेरी गीली चूत में घुसा दिया. मुझे इसी का इन्तजार था. मुझे सच में मजा आने लगा और मेरे मुँह से निकल ही गया- शाहनवाज! आह… अब मजा आ रहा है… जरा जोर से चोदो ना…

मेरा मन खुशी के मारे उछल रहा था… उसके धक्के बढ़ते ही गए… मेरे चूतड़ अब अपने आप उछल उछल कर चुदवा रहे थे… मेरे मुँह से अपने आप ही निकलने लगा- ..हाय शाहनवाज, मुझे छोड़ना मत… चोद दे मुझे… रे चोद दे… हाय शाहनवाज, तुम कितने अच्छे हो… लगा… और जोर से लगा..
शाहनवाज ने अपनी कमर चलानी शुरू कर दी. मैं भी नीचे से अपने चूतड़ों को उछाल उछाल कर चुदवाने लगी.
‘हाय! मजा आ रहा है… लगा… जोर से लगा… ओई उ उईई…’
‘हाँ…मेरी रानी… ये ले… येस… येस… पूरा ले ले… सी…सी…’
‘शाहनवाज… मेरे शाहनवाज… हाय… फाड़ दे… मेरी चूत को… चोद दे…चोद ..दे… सी… सी… आअई ईएई… ऊऊ ऊऊ ओएई ईई…’
‘कैसा मजा आ रहा है… टांगे और ऊपर उठा लो…हाँ…ये ठीक है…’

उसने अपने आप को और सही पोजीशन में लेते हुए धक्के तेज कर दिए…
‘हाँ अब मजा आया न रानी… मजे ले ले… चुदवा ले जी भर के… हाँ… और ले…येस…येस…’
‘माँ आ..मेरी…हाय… माँ रीई… चुद गयी माँ..मेरी… हाय चूत फट गयी रे…चोद रे चोद…मेरी माँ आ…’

मेरे चूतड़ अपने आप ही तेजी से उछल उछल कर जवाब दे रहे थे. जोश के मारे मैं उसके चूतड़ हाथ से दबाने लगी, मैं उसे अपने से चिपका कर थोड़ी देर के लिए उसके होंट चूसने लगी, साथ ही मैंने अपनी एक उंगली उसकी गांड के छेद में घुसा दी.
‘धीरे से… डालना…’ वो हाँफता हुआ बोला…

मैंने और उंगली अन्दर घुसेड़ दी… और अन्दर बाहर करने लगी. मैंने महसूस किया कि उंगली गांड में करने से उसकी उत्तेजना बढ़ गई थी… मुझे महसूस हुआ कि उसका लंड चूत के अन्दर ही और कड़कने लगा था. मैंने धीरे से अपनी चूत सिकोड़ ली.. उसका लंड मेरी चूत में भिंच गया… वो सिसक उठा…’बुलबुल’… हा…मेरा निकल जाएगा… ये ले…और ले… अरे…अरे… मैं गया…

कहते हुए शाहनवाज मेरे ऊपर लेट गया और लंड का जोर चूत की जड़ में लगाने लगा.. उसने प्यार से मेरी पीठ सहलाई और कहा- बुलबुल! मैं तो समझा था कि तुम मुझसे नहीं चुदवाओगी… पर तुम तो खूब चुदी हो… मजा ले ले कर चुदी हो!

मैंने एकदम कहा- मजा आ रहा था… लेकिन तू फिसड्डी निकला रे! और चोद ना… हाय रे…

लेकिन वो तो झड़ चुका था, मेरी सन्तुष्टि नहीं हुई थी. यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

लेकिन बीस मिनट बाद ही शाहनवाज ने फ़िर से अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दिया और हौले हौले धक्के मारने लगा. मुझे अब चूत में मीठी मीठी गुदगुदी होने लगी, मेरे मुँह से निकल गया- शाहनवाज… लगा ना जोर से धक्का… और जोर से… अब फ़िर मजा आ रहा है.

शाहनवाज भी तेजी से करना चाहता था. उसने मुझे गोदी में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और कूद कर मेरे ऊपर चढ़ गया. मेरी चूत बहुत ही चिकनी हो गई थी और बहुत सा पानी भी छोड़ रही थी. उसका लण्ड फ़च से अन्दर घुस गया और घुसता ही चला गया. मेरे मुख से सिसकारी निकल गई- आह… घुस गया रे… स्…स्… अब रूकना नहीं… चोद दो मुझे…

उसने अब मेल इंजन की तरह अपना लंड पेलना शुरू कर दिया. मुझे भी अब तेज गुदगुदी उठने लगी…हाय ..हाय…मर गई… हाय…चुद गई… मेरे रजा… चोद दे… अरे…अरे… लगा.. जोर से… मेरे रजा .. फाड़ डाल…अआया…आ अ अ…एई एई एई…मैं गई…

‘रुक जाओ…अभी नहीं…’

‘मैं गई… मेरा पानी निकला… निकला… निकला… हाय ययय ययय… हाय राम…’ मेरी साँस फूल गई और मैंने जोर से पानी छोड़ दिया…
‘अरे नहीं…यह क्या… तुम तो..हो गयी…’

उसने मुझे तुंरत उल्टा करके…मेरी गांड पर सवार हो गया… मुझे थोडी ही देर मैं लगा कि उसका लंड मेरी गांड के छेद पर था, उसने जोर लगाया और लंड गांड की गहराइयों में उतरता चला गया.

मेरी चीख निकल गई- शाहनवाज…यह क्या कर रहे हो…निकाल लो प्लीज..
‘प्लीज… करने दो… मैं झड़ने वाला हूँ…’
‘नहीं नहीं. लण्ड निकालो…’

उसने सुनी अनसुनी कर दी और धक्के लगाता ही गया.
मैं दर्द से चीखती ही रही- बस बस छोड़ दो मुझे, छोड़ दो ना… छोड़ दो…’
मुझे मालूम था… वो मुझे ऐसे नहीं छोड़ने वाला है, मैं तकिये में मुँह दबा कर टांगें और खोल कर पड़ गई. वो धक्के मारता रहा, मेरी गाण्ड चुदती रही.

‘आह मेरी… रानी… मैं गया… मैं गया… हाऽऽऽ स्स निकला आ आ आह म्म्म हय रए…’
मेरी गाण्ड में उसका गर्म गर्म लावा भरने लगा. वो मेरी पीठ पर निढाल हो कर गिर गया… मैंने नीचे से अपनी गाण्ड हिला कर उसका ढीला हुआ लण्ड बाहर कर दिया. उसका सारा माल मेरी गाण्ड के छेद से निकल कर बिस्तर पर बहने लगा. शाहनवाज करवट लेकर बगल में आ गया.

मैं उठी और देखा, उसका पूरा लण्ड मेरे पानी और उसके वीर्य से चिपचिपा हो गया था… मेरी गाण्ड भी वीर्य से लथपथ थी…

मैं सुस्ती छोड़ नहाने चली गई. जब तक नहा कर आई तो शाहनवाज जा चुका था. एक कागज की स्लिप पर कुछ लिखा था- सोरी बुलबुल… मुझे माफ़ कर देना… मैं अपने आप को रोक नहीं पाया… शाहनवाज’

मैं मुस्कुरा उठी. उसे क्या पता था कि यह उसकी गलती नहीं थी… मैं खुद ही उससे चुदवाना चाहती थी.

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