कांच का टूटना अधूरा शुभ होता है

कांच का टूटना अधूरा शुभ होता है

नमस्कार दोस्तो.. मैं आपके लिए परिचित तो नहीं हूँ.. पर अन्तर्वासना से जुड़ा हुआ आपका अनजान साथी जरूर हूँ।
मेरा नाम विधू है.. मैं पुणे में रहने वाला 25 साल का युवक हूँ। मैं पिछले पांच सालों से इस मंच का नियमित पाठक हूँ.. और मैंने तकरीबन सारी कहानियाँ पढ़ी हैं।

इस साईट के बारे में मुझे कॉलेज में अपने दोस्त से पता चला था। हम कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठ कर कहानियाँ पढ़ा करते थे और रात को कहानियों के हादसे हमारे साथ हो रहे हैं.. यह सोचकर मुठ मार लिया करते थे।

पर कितने दिन यूं ही मुठ मारते हुए गुजारते.. आखिर वो सुख तो हमें भी अनुभव करना था।

यूँ ही साल बीतते गए.. सन 2013 में मैंने अपनी स्नातक की पढ़ाई खत्म करके आगे पढ़ने के लिए महाराष्ट्र के पुणे शहर में दाखिल हुआ।
मैंने वहीं पुणे में अपने दोस्त की पहचान से पुणे के चिंचवड़ इलाके में एक कमरा ले लिया।

वैसे कमरा कुछ ज्यादा बड़ा नहीं था, दस गुणा दस का कमरा और उससे लग के एक बाथरूम भी था।

मेरा रूम पार्टनर भी मुझसे 4 साल बड़ा था, वो किसी कंपनी में नौकरी किया करता था.. तो वो सुबह 8 बजे चला जाता और रात को 9 बजे के आस-पास लौटता था।
अब क्या पूरे कमरे पर मेरा ही कब्जा होता था।

कॉलेज के शुरूवाती दिन थे.. तो मुझे बहुत वक़्त मिलता। मैं अपने कमरे में ही दिन भर नंगा घूमता और अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़कर उन्हें क्ल्पनाओं में ला कर मुठ मारा करता था।
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए।

हमारा कॉलेज काफी नामी था.. तो वहाँ कैम्पस सिलेक्शन की तैयारी शुरू हो गई। मैंने भी बड़े जोरों-शोरों से अपनी तैयारी शुरू कर दी।

नसीब से विद्यार्थी प्रतिनिधि की कमेटी में मेरा चयन हुआ। उस कमेटी की हेड मेरे ही क्लास की एक छात्रा पूनम थी, वो दिखने में कुछ खास नहीं है.. देखा जाए तो रंग गोरा और साफ है.. ऊँचाई में 5 फिट और गोलमटोल माल थी।

मैं ठहरा लम्बा 5 फुट 10 इंच का एकदम गोरा रंग और गठीला जवान। मैं कॉलेज में दिखने वाली सुन्दर-सुन्दर लड़कियों को ताकने वाला, मेरा ध्यान कहाँ उस पर जाना था।

हर हफ्ते कमेटी की बैठक होती थी।
मैंने कई बार बढ़िया सुझाव दिए थे.. तो पूनम मुझे ज्यादा महत्व देने लग गई, वो हर छोटे से छोटे निर्णय के लिए मुझसे फोन पर विचार-विमर्श करने लगी थी।

अब तो आलम यूं था कि दिन में उसके 4 फोन और रात को 2-3 घंटे चैट किए बिना दिन खत्म ही नहीं होता था।
काम की बातों से हमारी बातें कहीं और पहुँच जाती थीं।
मैं भी फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं छोड़ता.. और न ही वो पीछे रहती।

वो रोज रात सोने से पहले मुझे कोई भी रंग चुनने को कहती और दूसरे दिन उसी रंग का टॉप पहन कर आती।
फिर पूरा वक़्त हमारा एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने में गुजरता।

दो-तीन महीने ऐसे ही बीत गए। अब शायद मुझे उसकी आदत लग गई थी या कुछ और..
यह पता नहीं..
पर दिल में उसके लिए एक जगह बन चुकी थी, अब वो मुझे पसंद आने लग गई थी।

ऐसे ही एक दिन चैट करते-करते उसने मुझे इशारे में बताया कि वो भी मुझे पसंद करती है। पर मैंने जान बूझ कर न समझने का नाटक किया।

बात उस रात आई-गई हो गई।
पूनम सोच रही होगी कि मैं कुछ कहूँगा.. पर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।

फिर 2 दिन बाद उसने बताया कि कल वो कॉलेज नहीं आएगी। उसे उसकी माँ को छोड़ने बस अड्डे जाना है।

मैंने भी उससे मजाक में कह दिया- मैं भी कॉलेज नहीं जाऊँगा.. तुम्हारे बिना कॉलेज में मेरा भी दिल नहीं लगेगा।
ऐसे ही कुछ देर और बातें होती रहीं।

उसने पूछा- कल का रंग तो बताओ।
मैंने कहा- कल का दिन तो बेरंग है.. इसीलिए कोई रंग नहीं।

तो उसने पलट कर जवाब दिया- अरे बाप रे.. कोई रंग नहीं.. तो फिर तुम्हारे रूम पर ही दिखाना पड़ेगा.. ये बिना रंग वाला..

मुझे समझने के लिए इशारा काफी था। मैंने उसे कमरे पर आने का न्यौता दे दिया।

दूसरे दिन सुबह-सुबह 7 बजे उसका फोन आया कि वो 9 बजे तक मेरे कमरे पर आ जाएगी।
मैं बहुत खुश हुआ।

मैंने नहाते हुए अपनी झाँटें अच्छे से साफ कर लीं.. खूब रगड़ कर नहाया।
नहाते हुए ख्याल आया कि पूनम के साथ आज अन्तर्वासना की बाथरूम वाली कहानी जैसा रोमांस जरूर करूँगा।

मैं तैयार होकर उसका इंतजार करने लगा।
करीब 9 बजे के आस-पास वो मेरे कमरे पर आ गई।
मैंने उसे अन्दर बुलाया।

मेरा रूम पार्टनर जॉब पर गया था.. तो किसी और के आने की कोई गुंजाईश नहीं थी।

आते ही उसने मेरे कमरे के साफ-सुथरेपन की तारीफ की।

मैंने उसे एक गिलास पानी दिया।

वो सफेद रंग के टॉप में गजब लग रही थी। उसके अन्दर आते ही टल्कम पावडर की हल्की सी खुशबू पूरे कमरे में छा गई।

हमने 5-10 मिनट यहाँ-वहाँ की बातें की.. फिर एक चुप्पी सी खामोशी छा गई। कोई कुछ नहीं बोल रहा था।

हम दोनों एक-दूसरे की दिल की बात जानते थे.. पर कोई पहल नहीं कर रहा था।

वो मेरे बिस्तर पर बैठी थी।
थोड़ी देर बाद मैंने थोड़ी एक्टिंग वाले अंदाज में अपने घुटनों पर बैठकर उसको फिल्मी प्रपोज किया।

उसने कहा- जरा शांत रहो.. मैं नर्वस हूँ।

मैं उठकर उसके करीब बिस्तर पर जाकर बैठ गया.. तो कुछ टूटने की आवाज आई।

मैंने देखा तो मैं गलती से आईने पर बैठ गया और उसके अन्दर का कांच के दो टुकड़े हो गए थे।

वो मुस्कुराने लगी.. उसने कहा- कांच का टूटना शुभ होता है।
मैंने कहा- ऐसा कैसे शुभ हो सकता है?
पूनम ने जवाब दिया- अरे होता है।

मैंने जल्दी से अपने होंठों से उसके होंठों को चूमते हुए कहा- ऐसे?
उसने शर्मा कर आँखें नीचे झुका लीं और कुछ नहीं कहा।

मेरा हौंसला और बढ़ गया, मैं उससे सट कर बैठ गया.. उसका हाथ मैंने अपने हाथ में ले लिया।
वो अभी भी नीचे देख रही थी।

मैंने दूसरे हाथ से उसका चेहरा ऊपर करते हुए पूछा- शुरूआत शुभ नहीं हुई?
उसने आँखें बंद कर लीं।

मैंने देर न करते हुए मेरे होंठों का मिलन उसके होंठों से करवा दिया।
जैसे ही मैंने उसके ऊपर वाले होंठ को अपने होंठों में लेकर चूसा.. पूनम के दोनों हाथ मेरे कंधे पर आ गए।

चुम्बन करते हुए ही मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया।
अब मैं उसके ऊपर आ चुका था, उसका जिस्म किसी मुलायम गद्दे सा अहसास था।

हमारे होंठ बेकाबू हो गए थे.. उसके दूध मेरे छाती पर दब रहे थे.. और मेरा लण्ड कड़ा होकर कपड़ों के ऊपर से ही उसकी जांघ को यहाँ-वहाँ लग रहा था।

मैंने उसे चेहरे पर.. गर्दन पर चूमना शुरू कर दिया।
उसके हाथ और कसते जा रहे थे, मानो वो मुझे अपने अन्दर दबाकर हमारे फासले को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा देना चाहती हो।

कुछ देर यह सिलसिला हुआ होगा कि मैंने ऊपर घुटनों के बल आकर मेरा शर्ट उतार दिया।

मैंने जैसे ही उसके पैर पकड़ कर अपनी ओर खींचा.. उसने मुस्कुरा दिया।

अब मेरे हाथ उसकी जांघ पर थे.. वो मेरा इरादा समझ गई थी, उसने खुद की जीन्स का बटन खोल दिया।

मैंने उसकी जीन्स उसके जिस्म से अलग कर दी। अब वो टॉप और लाल रंग की पैन्टी में थी।
उसने शर्मा कर कहा- तुम्हारा पसंदीदा रंग है।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मुझे इस वक्त उस पर बहुत प्यार आ रहा था, मैंने उसके पैरों पर चूमना शुरू कर दिया।

जब मैंने उसकी जांघ पर चूमना शुरू किया.. तो वो अपने हाथों से बिस्तर को कस कर पकड़ने लगी।

और जब मैंने धीरे-धीरे उसकी पैन्टी के ऊपर उंगली घुमाई.. तो वो झट से उठकर बैठ गई.. और मेरी उंगली पकड़ ली।

तो मैंने उसके हाथों का कब्जा लेते हुए अपने होंठ पैन्टी के ऊपर टिका दिए और जुबान से पैन्टी को चाटना शुरू कर दिया।

मैंने बड़ी देर तक यूं ही उसकी चूत को पैन्टी के ऊपर से ही चूसा, चूसते हुए मैं अपनी एक उंगली को पैन्टी के किनारे से हल्का सा अन्दर डाल देता.. वो सिसकारियाँ लेने लगती।

थोड़ी देर बाद वो अकड़ने लगी।
मैंने उंगली अन्दर घुमाई तो मुझे कुछ गीला-गीला सा लगा.. शायद उसका पानी निकल चुका था।

फिर मैंने अपना मोर्चा आगे की ओर बढ़ाया, मैंने उसके टॉप को निकाल फेंका।

उसकी लाल रंग की ब्रा में कैद उसके सफेद दूध.. आह्ह.. मुझसे रहा नहीं गया।

मैं अन्तर्वासना से मिले सारे सबक.. सारे तरीके भूल कर उन दो सफेद गोलों पर टूट पड़ा।
मैंने उनको आजाद कराया और एक को अपने मुँह से चूसना शुरू किया.. तो दूसरे पर मेरे हाथ चलने लगे।

वो अभी ‘हुश.. हुश..’ की आहें भर रही थी, उतने में उसका फोन बजा।
उसे अनदेखा कर हम दोनों अपने काम में लगे रहे.. तो एक बार फोन फिर से बजा।

मैंने रुक कर उसे फोन पर बात कर लेने को कहा।
वो उसके पिताजी का फोन था, उसने फोन उठाया तो वो रोने लगी।

उसकी माँ जिस बस से जा रही थी उसका पुणे के पास में एक्सीडेंट हो गया था.. और उसकी माँ बुरी तरह से घायल हो गई थी।

मैंने उसको दिलासा दिलाई।

हम दोनों ने तुरंत कपड़े पहने और अस्पताल की ओर रवाना हुए, पूरा दिन अस्पताल में भागम-भाग करने के बाद जब मैं कमरे पर वापस लौट कर आया तो मुझे टूटे हुए आईने को देखकर ख्याल आया ‘कांच का टूटना शुभ तो होता है.. पर सिर्फ अधूरा शुभ..’

फिर कभी मुझे और पूनम को इस तरह मिलने का मौका नहीं मिला.. न ही उसने या मैंने ऐसी कोई कोशिश की।

उस अधूरे मिलन ने हमरे दूरियाँ हमेशा के लिए बढ़ा दी थीं और मैं आज भी उस लम्हे को कोसता हूँ.. क्यों मैंने उसे फोन उठाने को कहा.. या फिर मैंने सही किया।

आपकी क्या राय है.. जरूर बताइएगा।
आपके पत्र का इंतजार रहेगा।
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