सुहागरात भी तुम्हारे साथ मनाऊँगी-1

सुहागरात भी तुम्हारे साथ मनाऊँगी-1

मेरा नाम राज कौशिक है। मैं अन्तर्वासना की कहानियाँ लगभग एक साल से पढ़ रहा हूँ।

इनमें कुछ सच्ची लगती है तो कुछ झूठी। खैर, जैसी भी हो, मजेदार होती हैं।

अब मैं अपनी एक सच्ची कहानी आप सबके सामने भेज रहा हूँ।

कहानी से पहले अपने बारे मैं बताता हूँ। उम्र 22 साल, कद 5’8′ रंग साफ है मुझे कम बोलना पसन्द है और मैं बी एस सी फाइनल मैं हूँ।

कहानी तब की है जब मैं बारहवीं में पढ़ता था, मैं लड़कियों की तरफ ध्यान नहीं देता था सिर्फ पढ़ाई में लगा रहता था।

कक्षा में पढ़ने में सबसे आगे था, लड़कियाँ मुझसे बातें करना चाहती पर मैं चुप लगा जाता।

मैं अपने गाँव से पड़ोस के गाँव में पढ़ने साईकल से जाता था।

एक लड़की लक्ष्मी उसी गाँव के दूसरे स्कूल में जाती थी।
उसका नाम दोस्तों से पता चला था।

स्कूल का समय एक होने के कारण वो मुझे रोजाना रास्ते में मिलती थी, देखने में सुन्दर थी, रंग गोरा, लम्बाई 5.5′ 33,28,34 उसका फिगर था।

सारे लड़के उसे चोदने की सोचते पर वो किसी की तरफ देखती भी नहीं थी। मेरे सारे दोस्त उसे प्रपोज कर चुके थे।

एक दिन वो रास्ते में खड़ी थी। उसने मुझे रोका और बोली- राज मेरी साईकल खराब हो गई है प्लीज मुझे स्कूल तक छोड़ दो।

मैं यह सोचकर हैरान था कि वो मेरा नाम कैसे जानती है।

लेकिन मैंने हाँ कर दी। उन्होंने खेतों में घर बना रखा था जो बिल्कुल हमारे खेतों के पास था।

उसने साईकल पड़ोस में खडी कर दी और मेरे पीछे बैठ गई और हम चल दिये।

काफी देर तक हम दोनों चुप रहे, फिर वो बोली- पढ़ाई कैसी चल रही है?

मैं बोला- ठीक !

मैंने पूछा- तुम मेरा नाम कैसे जानती हो?

तो वो बोली- मनीषा ने बताया, वो मेरी सहेली है।

मनीषा मेरे साथ पढ़ती थी।

वो बोली- तुम अपनी कक्षा की लड़कियों से बात क्यों नहीं करते?

मैंने उसकी बात का जबाब दिये बिना कहा- मेरे बारे में इतनी जानकारी रखने का क्या मतलब है ?

उसने कहा- मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानती हूँ !

और हँसने लगी।

उसका स्कूल आ गया। छुट्टी होने पर भी मैंने उसे घर छोड़ा।

हम रोज एक दूसरे से बात करने लगे। बातों ही बातों में पता नहीं मैं कब उसे प्यार करने लगा।

जिस दिन सुबह लक्ष्मी नहीं मिलती सारे दिन दिल नहीं लगता। लेकिन उससे कहने से डरता था कि वो बुरा न मान जाये।

एक दिन हम छुट्टी होने पर घर आ रहे थे तो बारिश होने लगी। हम दोनों भीग गये।

मैंने उसे गन्दी नजर से कभी नहीं देखा था।
लेकिन उस दिन उसने सफेद कपड़े पहन रखे थे जो भीगने पर उसके शरीर पर चिपक गये और उसका सारा शरीर दिख रहा था।

उसने काले रंग की ब्रा और पैन्टी पह्नी थी, क्या कयामत लग रही थी !

न चाहते हुए भी मेरी नजर उससे नहीं हट रही थी। उसकी चूचियों और गाण्ड को देखकर मेरा लण्ड खड़ा हो गया।

बारिश के साथ हवा भी चलने लगी जिससे साईकल आगे ही नहीं बढ़ रही थी। वो सड़क के पास बने एक कमर की तरफ इशारा करके बोली- यहाँ रुकते हैं।

मैंने हाँ कर दी।

हम वहाँ रुक गये। वो थोड़ा बाहर होकर बारिश में भीगने लगी।

मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसकी गाण्ड को देख रहा था। मेरा लण्ड टाईट पैन्ट में दबने से दर्द कर रहा था।

मन कर रहा था कि लण्ड निकाल कर उसकी गाण्ड में दे दूँ।

अचानक तेज बिजली होने से लक्ष्मी घबरा कर पीछे को हटी तो उसकी गाण्ड मेरे लण्ड से आ लगी।

उसने मुड़कर देखा मेरा लण्ड पैन्ट फाड़ने को तैयार था।

मेरी नजर उसकी चूचियों पर थी, जी कर रहा था कि उसकी चूचियों को पकड़ कर भींच दूँ। पर मैं मजबूर था।

लक्ष्मी ने मेरी नजर पहचान ली और अपनी चूचियों को चुन्ऩी से ढक लिया और नजर झुकाकर खड़ी हो गई।

मैं अब भी ना चाहते हुए उसकी चूचियाँ और गाण्ड देख रहा था।

वो बोली- चलो, पैदल घर चलते हैं।

मैं हिम्मत करके बोला- मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।

वो बोली- बोलो !

मेरी गाण्ड फट रही थी।

बोलो !

बोलो ना !

कुछ नहीं !

कुछ तो है ?

बोलो ना प्लीज !

तुम बुरा मान जाओगी !

अरे, नहीं मानूंगी। तुम बोलो तो सही !

मेरी कसम खाओ !

चलो ठीक है खा ली ! अब बोलो भी !

लक्ष्मी !

आ… आई लव यू !

मैंने एक साँस में कह दिया।

वो सुनकर चुप हो गई। थोड़ी देर दोनों चुप खड़े रहे।

मैं बोला- डू यू लव मी?

वो नजरें झुका कर चुप खड़ी रही।

मैं बोला- हो गई न तुम नाराज?

उसने सिर हिला कर मना कर दिया।

फिर बोलो न यू लव मी !

वो चुप खड़ी रही।

मेरा लण्ड भी शान्त हो गया।

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया- बोलो न ! लक्ष्मी प्लीज बोलो न ! यू लव मी ओर नॉट ?

वो नजरें झुकाकर खड़ी रही। मैंने उसके चहरे को ऊपर किया और उसके गाल पर चूम लिया।

वो पीछे हट गई।

मैं कहा- आई लव यू वैरी मच !

और उसे बाहों में ले लिया।

उसकी चूचियां मेरे सीने से लगी थी, उसके होठों के पास होंठ ले जाकर बोला- आई लव यू ! और उसके होठों को चूम लिया।

मेरा लण्ड फिर खड़ा हो गया और उसकी चूत के ऊपर चुभने लगा।

वो मुझसे छुटने की कोशिश करने लगी मगर मैंने उसे कसकर पकड़ लिया और उसके होंठ अपने होठों में लेकर चूमने लगा।

थोड़ी देर तक वो छुटने की कोशिश करती रही, फिर चुप खड़ी हो गई।

वो भी चुम्बन में मेरा साथ देने लगी। मैं अपने हाथ उसकी कमर पर फिराने लगा।

अब उसने मुझे कस कर पकड़ा हुआ था। फिर मैं उसकी गर्दन पर चूमने लगा।

वो आहें भरने लगी। उसके मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। मेरे हाथ उसकी कमर और चूतड़ों पर घूम रहे थे।

मैंने उसे थोड़ा अलग किया और उसकी चूचियों पर हाथ रख दिये।

क्या स्तन थे उसके ! एक दम कसे-तने हुए !

मैंने उन्हें थोड़ा दबाया तो उसने साँस रोक ली और आँखें बन्द कर ली।

मैं चूचियों को दबाते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगा, वो भी मुझे गाल और गर्दन पर चूमने लगी।

फिर मैंने अपने हाथ पीछे से सूट के अन्दर डाल दिये।

वो मेरे से बिल्कुल चिपक गई, हम एक दूसरे को चूम रहे थे, बारिश में भीगगने पर भी दोनों के शरीर गर्म हो गये।

मैं लक्ष्मी के पीछे आ गया सूट के अन्दर हाथ डालकर पेट को सहलाने लगा और ब्रा के ऊपर से चूचियों को दबा रहा था।

वो सिसकारने लगी। एक हाथ से मैं उसकी चूची दबा रहा था और दूसरा हाथ उसकी जांघ पर फिराना शुरु कर दिया।

फिर हथेली उसकी चूत पर रख दी और उभरे हुए भाग को रगड़ने लगा।

वो बिल्कुल पागल हो रही थी। उसने सांस रोकी हुई थी जिससे उसका पेट टाईट और अन्दर को था और सलवार ढीली हो गई थी।

मैं उसके पीछे खड़ा था जिससे मेरा लण्ड उसके मोटे-मोटे चूतड़ों के बीच गाण्ड से लगा हुआ था, एक हाथ से चूचियों और दूसरे हाथ से चूत को रगड़ रहा था।

फिर मैंने हाथ उसकी सलवार में अन्दर डाल दिया। मेरा हाथ सीधा ही उसकी पैन्टी के अन्दर चला गया।

उसकी चूत पर थोड़े बाल थे। जैसे ही मैंने चूत को छुआ, वो एक दम सिहर गई और उसके मुँह से सी की आवाज निकली।

उसकी चूत गीली हो गई थी मैं उसकी चूत की दोनों फांकों के बीच उंगली रगड़ने लगा। उसका बुरा हाल हो रहा था आँख बन्द करके चुप खड़ी थी और सिसकियाँ ले रही थी।

उसका चेहरा लाल हो गया जिससे वो और भी सुन्दर लगने लगी थी।

मैंने अपनी पैन्ट की चैन खोली और 7-8 इन्च का लण्ड को बाहर निकाला जो काफी देर से बाहर आने को बेचैन था।

बाहर निकलते ही मेरा लण्ड साँप की तरहा फुंकारने लगा। लक्ष्मी को नहीं पता था कि मैं उसके पीछे क्या कर रहा हूँ।

मैंने उसका हाथ पकड़ा और पीछे को लाया और लण्ड पर रख दिया।

अचानक जैसे वो सोकर जागी, उसने मुझे पीछे को धक्का दिया और बाहर भाग गई।

पीछे मुड़ कर देखा, मुस्कुरा कर बाय की और साईकल उठाकर चली गई। मेरा लण्ड फनफनाता रह गया।

एक बार तो मुझे गुस्सा आया, पर मैं कर भी क्या सकता था। आज चूत मिलते मिलते रह गई। मैंने मुठ मारी और घर को चल दिया।

वो अपने घर के बाहर खड़ी थी, मुझे देख कर हँसने लगी।

मेरा खून जल रहा था पर मैं भी हँसता हुआ निकल आया।

कहानी अभी खत्म नहीं हुई है।

कहानी का अगला भाग : सुहागरात भी तुम्हारे साथ मनाऊँगी-2

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