मै डरते डरते किचेन से बाहर निकला

मै डरते डरते किचेन से बाहर निकला

मै डरते डरते किचेन से बाहर निकला और तेजी से अपने कमरे में जाने लगा , जाते -जाते मै उचटती निगाह ड्राईंग रूम में मारा परन्तु मुझे माँ नहीं दिखाई पडी | थोड़ा तस्सल्ली हुआ | अपने कमरे में आकर मैंने कपडे पहने ,तभी दीदी खाना लेकर डाइनिंग टेबल पर रखने लगी , मै एक कुर्सी पर बैठ गया , थोड़ी देर में माँ भी आकर मेरे बगल में बैठ गयी | वो खामोश थी , जबकि पहले खाने पर बैठते समय मुझसे या दीदी से बात करती रहती थी…मेरा दिल फिर बैठने लगा | मैंने चोर नज़रों से उनके चेहरे कि तरफ देखा लेकिन मुझे पता नहीं चल पाया कि वास्तव में उन्होंने देखा कि नहीं , वो चुपचाप अपना खाना निकाल कर थाली में रख रही थी | दीदी सामने कुर्सी पर बैठ गयी और खाना खाने लगी | मै अनमने मन से खा रहा था , तभी मुझे अपने पैरों के ऊपर एक पैर का एहसास हुआ ..मैंने देखा दीदी मंद- मंद मुस्कुरा रही थी | मै समझ गया कि वो शरारत कर रही है …फिर वो अपना पैर उठाकर मेरे जांघो पर रखने लगी …माँ की उपस्थिती में मुझे गुस्सा आ रहा था ..मै तुरंत कुर्सी को आगे खिसकाकर टेबल से सट गया ताकि माँ को दीदी का पैर दिखाई न पड़े , परन्तु मेरे आगे खिसकते ही दीदी अपना पैर उठाकर मेरे पैजामे के ऊपर से लंड पर रख दिया और अपने पंजो से लंड को दबाने लगी ..मै कसमसा उठा .. मेरे लंड ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और तुनक कर खडा हो गया | बगल में माँ की उपस्थिति डर भी पैदा कर रही थी …डर और उत्तेजना की एक अप्रतिम अजीब अनुभूति मुझे हो रही थी …तभी ना जाने मुझे क्या हुआ कि मै फलफला कर पैजामे में ही झड़ने लगा …दीदी ये महसूस कर रही थी क्योकि मेरा गीला होता पैजामा उनके पंजो को भी गीला कर रहा था …मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रहा था | ये अजीब इत्तफाक था , क्योकि संतुष्टि के भाव झड़ने वाले के चेहरे पर होता है …लेकिन जहां दीदी के चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे वहीं मेरे चेहरे पर शर्मिंदगी के ..आखिर मै उठता कैसे ?….मै माँ के खाना ख़त्म करके उठने का इन्तजार कर रहा था …10 मिनट का इन्तजार भी मुझे बहुत लंबा लग रहा था और जैसे ही माँ उठकर हाथ धोने गयी , मै तुरंत उठकर दीदी कि तरफ जाकर उनको एक प्यारी चपत लगाते हुए बेदर्दी से उनकी चुचियों को भींच दिया ..वो चाहकर भी चिल्ला ना सकी बस कसमसाकर रह गयी …मैं तुरंत अपने कमरे में दौड़ पडा और तैयार होकर घुमने निकल पडा ……………
फिर रात को माँ कि उपस्थिति से डरते डरते भी दीदी के कमरे में जाकर दीदी को जमकर चोदा | ये सिलसिला लगभग एक महीना चला | दीदी के मासिक वाले दिनों में उनके गांड का कचूमर बना दिया | हांलाकि माँ कि कॉलेज कि छुट्टी हो गयी थी ,इसलिए हमें दिन में मौक़ा नहीं मिल पाटा था लेकिन रात को जबतक मै दो तीन बार चोद नहीं लेता तबतक न मुझे चैन मिलता और ना दीदी को | इसलिए जब दीदी वापस अपने ससुराल चली गयी तब मेरा बुरा हाल हो गया , अब चोदने के लिए तो छोड़ो …देखने के लिए भी ‘बुर’ उपलब्ध नहीं था ….

तभी एक -एक करके तीन शुभ समाचारों से माँ की खुशियों का ठिकाना न रहा | मैं और आभा दीदी क्रमशः दसवीं और बारहवीं में प्रथम श्रेणी से पास हुए थे और भाभी को बेटा हुआ था और माँ, दादी बन गयी थी | माँ ने तुरंत भोपाल ‘गर्जन ‘ (मेरा बड़ा भाई ) के पास जाने का फैसला किया | परन्तु छुट्टियाँ होने के कारण टिकट हमें १० दिन बाद का मिला | जब मैं और माँ भोपाल पहुंचे तो गर्जन भाई , भाभी और आभा दीदी बहुत खुश हुए | मै खासकर ‘आभा’ को देखकर अचंभित था |

अभी आभा को भोपाल आये हुए ७ महीने ही हुए थे , तब वो काफी दुबली पतली सी थी परन्तु अब उसका बदन भरा – भरा सा लग रहा था | शायद यह मेरे वासना भरी नज़रों के कारण था क्योंकि मै इससे पहले ‘आभा ’ को इस नजरों से कभी देखा नहीं था | चूँकि मैंने इधर औरत का सानिध्य पा लिया था और औरत के शरीर में छिपे आकर्षण और सुख को भोग लिया था इसलिए दीदी के अग्र भाग में सीने की बडी हुई गोलाईयां और पृष्ठ भाग में उभरे हुए नितम्ब आकर्षित कर रहे थे , बच्चे को दूध पिलाने के दौरान भाभी के चुचकों से मेरी नजर हटती नहीं थी | कुल मिलाकर कुत्सित विचारों ने मेरे मन को घेर रखा था इसलिए मेरी तांक -झांक की प्रवृति और मुठ मारने की आवृति काफी बढ़ गयी थी |

कुछ दिन वहां बिताने के बाद हमलोग आभा दीदी के साथ वापस घर आ गए | घर पर दीदी के कमरे में झांकते हुए एक बार मैंने देखा कि वो अपनी सलवार में हाथ डालकर अपने गुप्तांग से खेल रही थी , मुझे आशा जगी कि शायद अब दीदी के साथ मेरा काम बन जायगा , परन्तु इधर मैंने ११वि में साइंस में एडमिशन लिया उधर आभा दीदी ने बी. फार्मा में एडमिशन लेकर लखनऊ चली गयी | अब एक बार फिर अपने हाथ के सिवा मेरा कोई सहारा नहीं था …..

इधर कालेज में मुझे ढेर सारे नए दोस्त बने , उनमे से एक लड़का ‘वरुण’ मेरी तरह लोकल था , शहर में उसके पापा का गैराज था | वरुण की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और उसका बड़ा भाई गाजिआबाद में पोलिटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था | उससे काफी अच्छी दोस्ती हो गयी , इसलिए जब कभी लौज में बी . ऍफ़ का प्रोग्राम बनता तो मै उसे लेकर समीर के लौज में जाने लगा | वहां उसका समीर के अलावा भी कई सारे दोस्त बन गए | वहीँ लौज में राहुल के साथ बहुत अच्छी बनती थी , जैसे मेरी समीर के साथ |समय कट रहा था ……पाठ्यक्रम के साथ अश्लील साहित्य का पठन -पाठन जारी था |लौज में एक बड़ी दिक्कत वहां लडको को थी , वहां दीमक बहुत ज्यादा था और हफ्ते में एक बार दवा जरुर छिडकना पड़ता था, इसलिए जब कभी लम्बी छुट्टी होती तो लड़के किसी लोकल पहचान वाले को अपने कमरे की चाभी दे जाते | इसलिए जब दशहरे की छुट्टी हुई तो समीर के अलावा तीन और लडको ने मुझे चाभी दे दिया , कुछ लडको ने वरुण को , तो कुछ ने सामने चाय वाले को | उन्हें एक महीने बाद दिवाली के बाद आना था |
एक दिन शाम को जब मै लौज के सामने सड़क पार चाय पी रहा था तो मैंने वरुण को रिक्शे से लौज के सामने उतरते देखा , मैंने उसे आवाज भी दिया परन्तु सड़क पर चलने वाले वाहनों के शोर में वह शायद सुन नहीं पाया और लौज के अन्दर चला गया | मैंने मन ही मन उसे गाली दिया – साला पागल है , दवा ही छिडकना था तो दिन में आता , इस समय शाम के धुंधलके में कहीं दवा छिडकी जाती है | परन्तु वह थोड़ी देर में ही बाहर निकला और फिर रिक्शावाले को लेकर अन्दर चला गया | मेरा माथा ठनका ….ये क्या चक्कर है , वो रिक्शेवाले को क्यों अन्दर ले गया | मैंने जिज्ञासा शांत करने के लिए लौज में घुसने लगा परन्तु मुख्य द्वार ही अन्दर ही अन्दर से बंद था …अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि कुछ गड़बड़ है ..
लेकिन मुझे अन्दर जाने का रास्ता पता था क्योंकि लड़के जब नाईट शो फिल्म देखकर आते तो मुख्य द्वार बंद होता था तो वो बाहर वाली सीढ़ी से छत पर चढ़ जाते और आँगनवाले पेड़ की टहनी पकड़कर आँगन में आ जाते ….. मै भी आ गया ….वहां कोई भी नहीं था ..बस राहुल के कमरे की बत्ती जल रही थी | मै आहिस्ते से जब खिड़की के पास पहुचा तो अन्दर का नजारा देखकर दंग रह गया …

वरुण बिस्तर पर मुंह के बल लेटा हुआ था और उसने अपना गांड ऊपर उठा रखा था और रिक्शावाला उसके गांड में अपनी दो उंगलियाँ अन्दर बाहर कर रहा था | मैंने देखा कि उसकी उंगलियाँ जेली जैसी चीज से चमक रहा था …शायद वह वरुण के गांड को चिकनाई से तर कर रहा था …तभी रिक्शावाला खडा हो गया और अपने लंड को बाहर निकाल कर टेबल पर रखे ट्यूब से जेली जैसी चीज निकालकर अपने लंड पर मलने लगा …उसका लंड शानदार था ..लम्बाई लगभग मेरे बराबर था और मोटाई भी मेरे से थोड़ा ही कम रहा होगा | फिर उसने अपना लंड वरुण के गांड पर रखा और धीरे धीरे उसे अन्दर करने लगा …वरुण का चेहरा खिड़की कि तरफ था परन्तु वह मुझे नहीं देख सकता था क्योंकि बाहर अन्धेरा था |

मैंने पहली बार किसी लड़के को किसी मर्द से गांड मराते देख रहा था और तब मैंने जाना कि औरतों की तरह लडको का भी गांड मारा जा सकता है …फिर भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की लड़के कैसे मोटे लंडो को अपने गांड में ले सकते है …लड़कियों की बात कुछ और है …..वो तो होती ही है चुदने के लिए ….और चुदते चुदते गांड भी मरा ले तो क्या फर्क पड़ता है ….परन्तु लड़के ……न …..न …… न ….अविश्वसनीय ….अकल्पनीय ….

मै कोतुहल और उत्सुकता से खिड़की से झाँकने लगा ….
अब रिक्शावाला अपने लंड को वरुण के गांड में डालने लगा …मैंने देखा पहले वरुण का चेहरा दर्द से निचुड़ा फिर जैसे जैसे रिक्शेवाले ने आहिस्ते -आहिस्ते लंड को गांड में अन्दर बाहर करना शुरू किया वरुण के चेहरे पर मस्ती छाने लगा ..इधर मैंने भी अपना लंड पैंट से बाहर निकालकर थपकी देने लगा …समझाने लगा की ठहर अभी तुझे वरुण की गांड का मजा मिलने वाला है … | मई रिक्शे वाले के सामने नहीं आना चाहता था , इसलिए उसके चले जाने के बाद वरुण को ब्लैकमेल करके उसका गांड मारना चाहता था …परन्तु अगर रिक्शेवाले के जाने के बाद अगर वरुण ने इनकार कर दिया तो किस आधार पर मै उसे ब्लैकमेल कर पाउँगा …ये तो मौक़ा हाथ से गंवाने वाली बात हो जाती ..इसलिए मैंने तुरंत धावा बोलने का निश्चय कर लिया …

एक दिन 11 बजे के करीब कालेज में वरुण ने मुझे क्लास बंक करके अपने घर चलने के लिए बोला क्योंकि उसकी माँ दो घंटे के लिए अपनी किसी सहेली के यहाँ जाने वाली थी | उसका घर कालेज से नजदीक है इसलिए एक क्लास ही बंक करना पड़ता अन्यथा मेरे घर पर जाने पर तो पुरे दिन की छुट्टी हो जाता इसलिए मौक़ा मिलने पर हम वरुण के घर ही जाते साथ ही उसका घर सुरक्षित भी था क्योंकि घर का मुख्य दरवाजा औटोमटिक लॉक था इसलिए गलती से खुला छुट जाने पर भी सिर्फ भिड़ा देने पर भी अपने आप बंद हो जाता और फिर चाभी से ही अन्दर या बाहर से खुलता | इसलिए हम उसके घर पहुंचकर वरुण के कमरे में निश्चिन्त होकर अपने काम में जुट गए …कमरा बंद करने की जरुरत भी नहीं समझा ….पहले धीरे धीरे फिर काम ने तेजी पकड़ लिया …मै तूफानी गति से वरुण की गांड मार रहा था …बस कुछ क्षणों में ही मै झड़ने वाला था की एक आवाज ने मुझे जडवत कर दिया …..हे ..भगवान् ! ……ये क्या हो रहा है …..छि.. छि ………………..वरुण ने अपनी माँ की आवाज पहचानते ही तुरंत मेरे नीचे से छिटककर बिस्तर के दूसरी तरफ कूद गया और इधर मेरा लंड …फ …..क …..की आवाज के साथ वरुण की गांड से बाहर निकला और सांप की तरह हवा में एक बार लहराया मैंने उसे पकड़कर अपनी मुठ्ठी में भींच लिया क्योंकि विस्फोट तो हो चुका था और लावा बस ज्वालामुखी द्वार से बाहर निकलने को बेताब था …..मेरा दिमाग बिलकुल काम करना बंद कर दिया था ….मैं बस स्खलित होना चाहता था …..इसलिए मै अपना लंड दबाते हुए अपने आनंद के शत्रु उस आगंतुक की तरफ मुड़ा …..और तभी विस्फोट का लावा एक मोटी धार की शक्ल ले आगंतुक के गर्दन …छाती ….बांह …और …पेट …को तर कर दिया ……….अपनी माँ की ये स्थिति देख वरुण अपना पैंट समेटते हुए कमरे से बाहर की तरफ भागा ….
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इ ….स ….स ….हे …..भ ..ग वा …न …. सा ..ले …ने ….मुझे ….भी …गंदा ….कर दिया ….छि …..छि……..ह.रा मी …..कहीं …का …..उसकी माँ ने मुझे गालियाँ निकाली …..तब मुझे एहसास हुआ की वस्तुतः हुआ क्या …….और सारा माजरा समझते ही मैंने अपना पैंट उठाया और नंगे ही वरुण के पीछे पीछे कमरे से बाहर भागा और कमरे से बाहर आकर मैंने पैंट पहना तब तक वरुण अपना पैंट पहनकर तेजी से मुख्य द्वार को भड़ाक से खींचते हुए घर से बाहर भागा ……और जब मै बाहर भागने के लिए मुख्य द्वार को खींचा तो वो खुला ही नहीं …तब मुझे याद आया की ये तो ऑटोमेटिक लॉक है और ये चाभी के बिना नहीं खुल सकता ..और इसकी चाभी अभी या तो वरुण के पास थी या उसकी माँ के पास ..वरुण तो भाग चुका था और आंटी के सामने जाने की हिम्मत मुझमे नहीं थी ….साले वरुण ने डर और जल्दबाजी में मुझे फंसा दिया था …

मै वहीँ कोरिडोर में कोने में खडा हो गया और सोंचने लगा क्या करूँ | इस तरह वहां खडा भी तो नहीं रह सकता था क्योंकि एक -डेढ़ घंटे बाद वरुण के पापा खाना खाने के लिए आते और मुझे वहां देखते तो स्थिति और बिगड़ जाता | हल तो एक ही दिखाई दे रहा था कि किसी तरह आंटी के पास जाकर उनसे माफ़ी मांगू …उनके पैर पकडूँ….और किसी तरह उनसे चाभी लेकर दरवाजा खोलूं और फिर दुबारा इस घर में नजर न आऊं….|

इसलिए मन को समझाते हुए की इसके सिवा और कोई चारा nahi है , मै किसी तरह हिम्मत जुटाकर आंटी के पास जाने का फैसला किया | मै धीरे धीरे बोझिल कदमो से वरुण के कमरे की खिड़की तक पहुंचा और वहीँ से उचककर एक बार अन्दर झांका …..झांकते ही मेरे बढ़ते कदमो को ब्रेक लग गया …….अन्दर आंटी के साडी का पल्लू गिरा हुआ था और ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे ….फिर मेरे देखते ही देखते उन्होंने अपना ब्लाउज निकाला और सफ़ेद ब्रा के हुक को भी हाथ पीछे ले जाकर खोल दिया ….और जैसे ही उन्होंने ब्रा को भी निकाला …उनके ये बड़े बड़े कबूतर आजाद हो गए …..मै पहली बार इतना बड़ा पर्वत सरीखे चुचियों को अपनी आँखों से देख रहा था जिसके बीच में ताना हुआ चुचक पर्वत शिखर जैसा प्रतीत हो रहा था और जिसकी घाटी में ‘मेरा लावा ’ अभी तक बह रहा था ….फिर आंटी ने बिस्तर पर पड़े टॉवेल से अपने शरीर को पोंछना शुरू कर दिया …. मै देखता और सोंचता रहा की अब क्या करूँ ?…. इस समय उनके सामने जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था ….. वहां पर खड़े खड़े आंटी द्वारा देख लिए जाने का भी भय था ….इसलिए मै उलटे पाँव वापस मुख्या द्वार के कारीडोर में आ गया …थोड़ी देर बाद आंटी वरुण के कमरे से निकली …साडी से उनका बदन ढंका हुआ था और उनके हाथ में ब्लाउज और ब्रा नजर आ रहा था …..शायद उन्होंने अपने नंगे जिस्म के ऊपर साडी वैसे ही लपेट लिया था ……पता नहीं किस भावनावश मै तुरंत कारीडोर के खम्भे की ओट में आ गया …जबकि मुझे वहीँ पर खडा रहना चाहिए था , कम से कम आंटी मुझे देख तो लेती कि मै अभी तक वहीँ हूँ ….फिर किसी तरह गिड़गिडाकर उनसे दरवाजा खुलवाता और फिर स्वतंत्र हो जाता ….परन्तु कहते है न -‘विनाशकाले बिपरीत बुध्धी’……आंटी कारीडोर तक आयी और दूर से दरवाजा देखकर वापस बाथरूम में घुस गयी ….परन्तु जब उन्हें बाथरूम में देर लगने लगा तो मै बेचैन होने लगा ….फिर मेरे मन में एक ख्याल आया कि आंटी चाभी तो बाथरूम में लेकर नहीं गयी होगी , चाभी जरुर उनके कमरे में ही होगी ……शायद …पर्स में ….मेरे दिमाग में बस एक ही बात आ रहा था कि किसी तरह चाभी मुझे मिल जाए और मै फुर्र हो जाऊं … मुझे क्या पता था कि मेरी ये सोंच एक और नयी मुसीबत पैदा करने वाली है …..

किसी तरह हिम्मत जुटाकर मै आंटी के कमरे की तरफ जाने लगा | रास्ते में मुझे बाथरूम से आंटी के नहाने और पानी गिरने की आवाज आ रही थी | तभी मुझे ख़याल आया कि मैंने अभी तक आंटी को पूर्णतः नग्न तो देखा ही नहीं है, सिर्फ उनकी बड़ी बड़ी चुंचियां ही देखा था और उनकी चूत और गांड देखने का इससे बढ़िया मौक़ा मुझे नहीं मिल सकता था , इसी भावनावश मै बाथरूम के पास जाकर कोई छेद ढूढने लगा परन्तु दरवाजा हैंडल से बंद और खुलने वाला था इसलिए उसमे कोई की-होल भी नहीं था , मै बेसब्र होकर किसी तरह अन्दर देखने की कोशिश करने लगा | तभी कहते है ना – जहां चाह , वहां राह | मुझे लकड़ी के दरवाजे के दो पाटो के बीच हल्का सा गैप मिला , वही से मै आँख सटाकर अन्दर देखने लगा …आ..ह …क्या नजारा था …. आंटी के बड़े बड़े भाड़ी भड़कम चुतर पानी डालने के क्रम में ऊपर नीचे हो रहे थे | आंटी के गोल गोल गांड को देखकर मेरे लंड ने सलामी दी |

परन्तु काफी कोशिश के बाद भी मै उनका बुर देखने में कामयाब नहीं हो सका …बस बुर के उभार का हल्का झलक सा मिला | मैंने अपना लंड निकालकर उसे मुठीयाने लगा ..लंड चिपचिपा सा लगा ..देखा तो जेली अभी तक चमक रहा था जो मैंने वरुण की गांड मारने के लिए लगाया था , मैंने रुमाल निकालकर उसे अच्छी तरह से साफ़ किया और फिर आँख दरार से सटाकर आंटी के नग्न बदन को देखते हुए अपने लंड को उमेठने लगा |थोड़ी देर बाद आंटी जब झुकी तब पीछे से आंटी के चूत के दरारों के दर्शन हुए .. मै धन्य हो गया ..आंटी अपने बदन पर साबुन मल रही थी और अपनी चूत कस कसकर रगड़ रही थी …मै थोड़ी देर देखता रहा फिर ध्यान आया मुझे देर हो रहा है और अगर चूत के चक्कर में थोड़ी देर और रहा तो या तो पिटूंगा या जेल जाउंगा |

तब मैंने खड़े लंड को अपने पैंट में ठूंसते हुए चाभी सर्च करने आंटी के कमरे की तरफ चल पडा | कमरा काफी साफ़ सुथरा था ..बिस्तर भी करीने से सजा था , मैंने तकिये की तरफ देखा क्योंकि प्रायः तकिये के पास ही चाभी रक्खी जाती है परन्तु वहां पर एक छोटा टॉवेल के अलावा कुछ नहीं पडा था, फिर मैंने आलमारी की तरफ देखा जो कि खुला ही था परन्तु उसमे भी पर्स जैसा कुछ नहीं दिखा जिसमे मै चाभी ढूंढ़ सकूँ | फिर मैंने कमरे में नजर दौडाया ….बिस्तर के बिलकुल बगल में कमरे के दरवाजे के ठीक सामने ड्रेसिंग टेबल था और बिस्तर के दूसरी तरफ खिड़की के पास एक मेज था, सबसे पहले मैंने ड्रेसिंग टेबल पर नजर दौडाया ,फिर उसका ड्रावर खोलकर देखा परन्तु मुझे चाभी कहीं नहीं मिली | फिर मै बिस्तर के दूसरी तरफ कोने में रखे मेज के पास गया और वहाँ चाभी ढूंढने लगा लेकिन हाय रे मेरी किस्मत … चाभी वहाँ भी नहीं मिला | फिर मै सोंचने लगा कि कहाँ हो सकता है ? मुझे पर्स भी नहीं दिखाई दे रहा था | फिर मुझे ध्यान आया कि आंटी तो सीधा बाहर से आकर वरुण के कमरे में गयी थी , तो शायद…… आंटी का पर्स वरुण के कमरे में ही होगा | यह ध्यान में आते ही मै अपने आप को कोसने लगा कि अगर थोड़ा भी दिमाग लगाया होता तो इस मुसीबत से निजात पा वरुण के घर से बाहर होता | अतः समय नष्ट ना करते हुए मै तुरंत वहाँ से निकलने को उदृत हुआ ही था कि बाथरूम का दरवाजा बंद होने और आंटी के कदमो कि आहट सुनकर मेरे पैरो को ब्रेक लग गए | कमरे से बाहर निकलने के प्रयास में ही पकड़ा जाता | मेरा दिमाग एकदम सुन्न हो गया …दिल डर से बैठने लगा | क्या करूँ ? बेड के नीचे भी घुस नहीं सकता था क्योकि बेड बहुत नीचा था |

तभी आंटी ने कमरे में प्रवेश किया ….बिलकुल नग्न ….वो शायद बाथरूम में पहनने वाले कपडे ले ही नहीं गयी थी …..मै मूर्तिवत जहां खडा था ..वहीँ खिड़की के परदे और मेज के कोने में जडवत हो गया | आंटी सामान्य ढंग से चलते हुए बेड पर पड़े छोटे टावेल से शरीर पोंछा और ड्रेसिंग टेबल के पास आकर अपनी सुन्दरता को निहारने लगी…आंटी वास्तव में खुबसूरत थी …हाँ शरीर पर थोड़ा चर्बी जरुर चढ़ गया था जो पेट के निचले हिस्से के रूप में लटक रहा था लेकिन वो भी बड़ी बड़ी चुंचियों और मांसल पुष्ट जाँघों के साथ मिलकर उनके इस उम्र में भी गदरायेपन का ही एहसास दिला रही थी | आंटी मुझे अभी तक देख नहीं पाई थी खिड़की से आने वाली रौशनी सीधे उनके शरीर पर पड़ रहा था और मै परदे के बगल में थोड़े अँधेरे में था |मै अब अपना डर भूलकर आंटी की नग्न सुन्दरता को निहारने लगा …आ..ह… इस उमर में भी क्या गदराई थी वो . ..बड़ी बड़ी चुंचिया …गोल मटोल तरबूज सरीखे चुतर …और जांघो के जोड़ो के बीच में पाँवरोटी के समान फूली हुई बुर ….वास्तव में आंटी अभी भी चोदने लायक माल थी | जब आंटी ने खड़े खड़े अपना एक पैर उठाकर बिस्तर पर रखा और ड्रेसिंग टेबल से पाउडर का डब्बा उठाकर पाउडर का पफ पहले अपनी चूंचियों और फिर अपनी मखमली फूली हुई चूत पर लगाया तो उनकी चूत जो हलकी कालिमा लिए थी , परदे से छनकर आती हुई हलकी रौशनी में भी दूर से ही चमक उठी | चमकते चूत को देखते ही मेरे लंड ने सलामी दी , मैंने बाएं हाथ से लंड को कसकर पकड़ा | तभी आंटी चौकन्नी हुई और परदे की तरफ गौर से देखने लगी , शायद मेरे लंड उमेठने के कारण हुई हलचल के कारण उनका ध्यान परदे की तरफ गया था | फिर उन्होंने जैसे ही मुझे देखा और पहचाना …उ..ई माँ ..कहते हुए नंगी ही बाथरूम की तरफ भागी | पीछे पीछे मै भी कमरे से निकलने के लिए भागा , इस क्रम में भागने के कारण आंटी के मटकते गांड के दर्शन कुछ क्षण और हो गए | मै सीधा फिर कारीडोर में ही जाकर रुका |

थोड़ी देर बाद बाथरूम से आंटी चिल्लाई – वरुण ….वरुण… कहाँ हो तुम ? बोलते क्यों नहीं ?वरुण ….वरुण..
तब मैंने बाथरूम के पास आकर जबाब दिया – आंटी …वरुण घर पर नहीं है ? घर पर नहीं है का क्या मतलब ….तुम अन्दर कैसे आये ? आंटी बाथरूम से चिल्लाई -हे भगवान् …..अब मै बाथरूम से बाहर कैसे आऊं? थोड़ी देर शांत रहने के बाद फिर चिल्लाई – राजन ! मुझे कोई नाइटी मेरे कबर्ड से निकालकर दो | मै उनके कहे अनुसार एक नाइटी कबर्ड से निकालकर बाथरूम के दरवाजे के पास आकर पुकारा – आंटीजी अपनी नाइटी ले लीजिये | फिर जब आंटी ने थोड़ा सा दरवाजा खोलकर हाथ बाहर निकालकर मेरे हाथ से नाइटी ले लिया, तब आखरी बार हाथ , कंधे और चूंचियों के उपरी मांसल हिस्से का क्षण भर ही सही , दर्शन हुए | थोड़ी देर बाद आंटी नाइटी पहनकर बाथरूम से बाहर निकली और निकलते ही सवाल दाग दिया -तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और अपने कमरे में जाने लगी | मै भी उनके पीछे पीछे उनके कमरे के दरवाजे तक गया | फिर वो बेड पर पैर नीचे लटकाकर बैठ गयी और तेज स्वर में बोली – तुमने जबाब नहीं दिया -वरुण कहाँ है और क्या कर रहा है ? तुम अन्दर कैसे आये ? तुम मेरे कमरे में क्या कर रहे थे ? जरुर उसने तुम्हे चाभी दी होगी …. लेकिन क्यों ? वो खुद कहाँ है ?? इतने सारे सवालों को एकसाथ सुनकर मै घबरा गया | मैंने धीरे से बोला – चाभी ही तो नहीं है | आंटी ने तब पूछा – क्या मतलब ? तब मैंने शर्मिन्दा होते हुए धीरे धीरे रुक रुक कर बताया की कैसे वरुण हडबडाहट में दरवाजा खींचकर भाग गया और मै अन्दर फंस गया |

हूँ… तो तुम प्रारम्भ से यहीं थे , बाहर गए ही नहीं …आंटी शुष्क स्वर में बोली …और मेरे कमरे में चाभी ढूंढ़ रहे थे | फिर वही हुआ जिससे मैं बचना चाहता था – आंटी का लेक्चर शुरू हो गया – तुम लोगो को शर्म नहीं आती ऐसा काम करते हुए ? पढ़ लिख कर भी ऐसा काम करते हो ? क्या तुम्हे पता नहीं है कि इससे बीमारियाँ होती है …होती क्या है , तुम्हे तो बीमारी लग चुकी है …मरोगे और क्या ?? आंटी लगातार बोले जा रही थी और मै सर झुकाकर सुन रहा था | अंत में मै आहिस्ते से बोला – आंटीजी प्लीज ! दरवाजा खोल दीजिये ,मै बाहर जाना चाहता हूँ | परन्तु आंटी शायद मुझे बख्शने के मुड में नहीं थी , उन्होंने मेरे ऊपर इल्जामो कि झड़ी लगा दी – कितना अच्छा था मेरा बेटा ..तुमने उसे बर्बाद कर दिया ..छिः कितनी गन्दी आदत डाल दी है उसे ..हे भगवान् कहीं उसे भी बीमारी न लग जाए …भगवान् तुम्हे कभी माफ़ नहीं करेगा …बोलो क्यों किया ऐसा ? अपने ऊपर सीधा इल्जाम आते देख मै तिलमिला उठा , फिर मैंने सच्चे और सीधे शब्दों में अपना सफाई देने लगा – वरुण को आदत मैंने नहीं लगाया ..वो तो पिछले दो सालों से इसका अभ्यस्त है , जब वह ‘यादव’ सर के यहाँ शाम को अकेले ट्यूशन पढने जाता था , उन्होंने ही उसे यह लत लगाया और ऐसा लगाया कि— वह लौज के सारे सीनियरो का चहेता हो गया था , यहाँ तक कि वह छुट्टियों में उनके चले जाने पर लौज में ही रिक्शेवाले को बुलाकर ………
‘प्लीज! चुप हो जाओ ‘-आंटी अपने कानो को हाथों से ढकते हुए बोली | फिर थोड़ी देर सोंचने के बाद धीरे से बोली – सच कह रहे हो ?आंटी को थोड़ा नरम पड़ते देख मेरा आत्मविश्वास बढ़ा , मै फिर बोला -बिलकुल सच आंटीजी ! कसम से !! बल्कि मेरे संपर्क में आने के बाद वरुण ने तो किसी और के पास जाना भी बंद कर दिया है …अब वह सिर्फ मेरे पास ही आता है |

यही तो मै नहीं चाहती राजन ! कि वो तुम्हारे इस ढंग से संसर्ग में रहे ….तुम अन्दर आओ , मै तुम्हे समझाती हूँ (मै अभी तक दरवाजे पर ही खडा था )उनके बुलाने पर मै बिस्तर के पास जाकर उनके सामने सर झुकाकर खडा हो गया (आँख मिलाने का हिम्मत कहाँ था , मुझमे )| फिर आंटी ने मुझे समझाना शुरू किया – देखो बेटा ! ये अच्छी बात नहीं है , तुमलोग सब कुछ भूलकर अपनी पढ़ाई -लिखाई पर ध्यान दो …सबकुछ अपने आप ठीक हो जाएगा | तुम्हे एक सच्ची सलाह देती हूँ कि जाकर किसी अच्छे डॉक्टर से अपना चेक-अप कराओ , सही इलाज से तुम्हारी बीमारी ठीक हो जायेगी | मै अब चौंका , आंटी ने बीमारी की बात पहले भी दो तीन बार बोली थी परन्तु मैंने उसे उनका गुस्सा समझा था , लेकिन अभी तो बिलकुल शान्ति से समझा रही थी | मैंने डर और उत्सुकता से पूछा- आंटी मुझे हुआ क्या है और कौन सी बीमारी के इलाज का सलाह दे रहीं है ? आंटी थोड़ी देर शांत रही फिर थोड़ी हिचकिचाते हुए बोली – बेटा ! तुम लोग जो करते हो वो अप्राकृतिक मैथुन है और इसी से इस प्रकार की बीमारियाँ लगती है |लेकिन आंटी मै समझ नहीं पा रहा हूँ कि मुझे हुआ क्या है ? आंटी बोली – मुझे लगता है तुम्हे कोई यौन रोग हुआ है | मै घबराया – आपको कैसे और कब पता चला कि मुझे ऐसा कोई रोग हो गया है ? आंटी थोड़ा अटकती हुई बोली – देखो बेटा ! इस प्रकार के रोग में लिंग में सूजन हो जाता है और दबाने पर दर्द भी करता है , दर्द का तो मुझे पता नहीं पर तुम्हारे लिंग में सूजन जरूर है ….मै ठीक कह रही हूँ न ? कोई बात नहीं , किसी अच्छे डॉक्टर से दिखाओ ..सब ठीक हो जाएगा | मैंने प्रतिवाद किया – नहीं आंटी ! मेरे लिंग में कोई सूजन नहीं है ( क्योंकि आजतक न तो बुआ ने ऐसा कहा था और न ही दीदी ने, जिन दोनों को मै अच्छी तरह से चोद चुका था )| हाँ मेरा लिंग मेरे दोस्तों से बड़ा और थोड़ा मोटा है , लेकिन कुल मिलाकर सामान्य है | किसने कहा कि तुम्हारा लिंग सामान्य है -आंटी ने ताना मारा, मै फिर कहती हूँ कि तुम किसी को दिखा लो | मै बड़े असमंजस कि अवस्था में था – क्योंकि मुझे लग रहा था कि मुझे कुछ भी नहीं हुआ है और आंटी थी कि पुरे निश्चय के साथ मुझे यौन रोगी ठहरा रही थी |मै थोड़ी देर उहापोह कि स्थिति में रहा फिर हिम्मत करके मैंने आंटी से कहा – देखिये आंटीजी ! तब आपने कुछ क्षणों के लिए ही मेरा लिंग देखा था, शायद ठीक से ना देख पाने के कारण कोई भ्रम हो सकता है ….अगर आपको आपत्ति न हो तो ……….कहते कहते मै रुक गया
‘ तो क्या ‘ – आंटी ने पूछा
मेरी मदद कीजिये ……प्लीज एक बार दुबारा देख लीजिये , अगर आपको तब भी लगता है कि कोई गड़बड़ है तो मै डॉक्टर को दिखा लूंगा – मै गिड़गिड़ाया

क्रमशः ………………………..

आंटी ने लम्बी सांस लेकर कहा- चलो दिखाओ
मैंने पैंट कि जिप खोलकर अपना लिंग बाहर निकाला …वह लिंग जो अभी थोड़ी देर पहले उछल कूद मचा रहा था , रोग का नाम सुनकर ही मुरझाया हुआ था | पैंट के बाहर आधे निकले मुरझाये लिंग को देखकर आंटी ने कहा – ऐसे में क्या पता चलेगा ?….पैंट तो उतारो | तब मैंने पैंट निकालकर वहीँ ड्रेसिंग टेबल कि कुर्सी पर रख दिया और अपना कच्छा नीचे जाँघों तक सरकाकर अपने लटके लिंग को दिखाते हुए आंटी से कहा – देखिये कहाँ सूजन है …ठीक तो है, बस थोड़ा बड़ा है | आंटी गौर से देखते हुए बोली – ये तुम्हे थोड़ा बड़ा लगता है ….जितना तुम्हारा साधारण अवस्था में है ……इतना लंबा और मोटा तो प्रायः लोगो का उत्तेजित होने के बाद होता है ….यहाँ थोड़ा मेरे पास आओ ….मै देखना चाहती हूँ कि उतेज्जित अवस्था में इसमें कितना सूजन आता है ….थोड़ा इसे खडा करो ….
मैंने शर्माते हुए कहा – आपके सामने कैसे खडा होगा ….नहीं हो पायेगा
खडा तो हो जाएगा ….आंटी बोली …शायद अभी तुरंत ……….कहते हुए आंटी ने अपना एक उठाकर मोड़े पर बैठने के आसन में बिस्तर पर रखा जिससे नाइटी ऊपर घुटनों तक चढ़ जाने के कारण मुझे उनके जांघो का झलक मिलने लगा और तुरंत मेरा नाग अपना फन उठाने लगा | मेरे नाग को जागते देख आंटी ने आहिस्ते से अपने हाथों से उसका सर सहलाया , तुरंत आवेश का एक तरंग मेरे शारीर में दौड़ गया ……ज्यों ज्यों आंटी उसे सहला रही थी त्यों त्यों ‘वो’ अपना आकार बढ़ा रहा था ….धीरे धीरे ‘उसने’ पूरी मुठ्ठी का आकार ले लिया | अब आंटी के चेहरे का रंग बदल रहा था , उनके कान सुर्ख होने लगे थे ….औरतों के इस रंग से तो थोड़ा बहुत मेरा परिचय हो चुका था |फिर जब आंटी ने मेरे ‘नाग’ को अपनी मुठ्ठी में लेकर भींचा तो …..इ..ई..स..स.. मेरा सिसकी निकल गया | आंटी ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर मुझसे पूछा – दर्द हो रहा है ना ? मैंने आंटी की आँखों में झाँक कर देखा तो उसमे लाल डोरे तैर रहे थे | मैंने आँखों में देखते हुए कहा – नहीं आंटी ! मजा आ रहा है | तब आंटी ने मेरे ‘नाग’ को कसकर मरोड़ते हुए लरजते हुए धीमे स्वर में कहा – राजन! तुम मेरे बेटे को छोड़ दो , बदले में तुम जो मांगोगे …दूंगी | मैंने कहा – दीजिएगा बाद में ….पहले ले लीजिये | मैंने देखा आंटी वासना भरी प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देख रही थी | मैंने आंटी के सर पर दोनों हांथो को रखकर बालों में हाथ फिराने लगा | आंटी के हलके गीले रेशमी बालों में हाथ फिराने में मुझे बहुत मजा आ रहा था , परन्तु आंटी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि लेना क्या है ? आखिरकार उन्होंने पूछ ही लिया – क्या लूँ ? तब मैंने आंटी के सर को पकड़कर उनके गर्दन के पास लहराते नाग से उनके कोमल मुख को सटा दिया …हालांकि उन्हें एहसास हो गया था तभी वह सर को पीछे की तरफ खींचना चाहा परन्तु मैंने भी हांथो के जोर से अपना लंड उनके मुह में पेल ही दिया ….आंटी गुं..गुं ..गुं ….करने लगी लेकिन मै और अन्दर पेलने के लिए जोर लगाता गया … अंत में उन्हें यह एहसास हो गया की मै अपना लंड चुस्वाये बिना नहीं मानूंगा , तब बड़े प्यार से मेरा लंड चूसने लगी …..जब वो अपना जीभ मेरे सुपाडे पर फिराती तो मेरे पुरे शरीर में सनसनी दौड़ जाता | इस मामले में आंटी दीदी से ज्यादा एक्सपर्ट थी क्योंकि दीदी प्रायः पुरे लंड को चूसने के बजाय निगलने की कोशिश करती थी जबकि आंटी मस्त जीभचालक थी ….वो जीभ से लंड के सम्बेदनशील हिस्सों को छेड़ रही थी और अप्रतीम आनंद दे रही थी … मैंने अपना कमर जोर जोर से चलाना शुरू किया क्योंकि मै आंटी के मुंह में ही झाड़ना चाहता था ….परन्तु आंटी ने थक के मेरा लंड अपने मुंह से निकाल दिया और सीधे बिस्तर पर चित होकर लेट गयी ….इशारा साफ़ था ..अब आंटी चुदना चाहती थी ….परन्तु मै एकायक मजे में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण थोड़ा खिन्न हो गया क्योंकि मै अभी और खेलना चाहता था …फिर मै आंटी के ऊपर लेटकर उनका चेहरा , गाल और अंत में उनके होंटों को चूमने चाटने लगा …फिर मैंने उनकी नाइटी ऊपर गर्दन तक सरकाकर उनकी चुन्चियों को भींचना प्रारंभ कर दिया …..इधर आंटी मेरे लंड को अपने हांथो से पकड़कर अपने बुर से सटा रही थी …जब उनसे रहा नहीं गया तो वो लडखडाते स्वर में बोली – रा..ज..न……..ब..स.. …एक ..बार…मु..झे.. ……चो….द ……..लो ……फि….र ..कुछ ..और..करते र…ह….ना..आ…| फिर मैंने आंटी की हालत समझते हुए उनके शारीर से उतरा और उनके मोटे मोटे जांघो को जैसे ही फैलाया , चुदने की आस में मस्ती की ओस से लिजलिजाती झांटों भरी बुर चमक उठी …..आंटी की मस्त बुर को इतने नजदीक से देखने का यह मेरा पहला अवसर था …मै उसमे उंगली करना चाहता था …लेकिन आंटी ने अपने हाथों से मेरा लंड पकड़कर बुर की छेड़ से भिड़ा दिया ….मैंने भी समय न गंवाते हुए अपना लंड जोर लगाते हुए आंटी की पुए मालपुए जैसी फूली बुर में चांपा…..इधर आंटी की मस्ती भरी सिसकी निकली ..उधर दरवाजे के बेल की ट्रिन…ट्रिन …..हम दोनों सकते में थे कि इस समय कौन आ गया ………

हम दोनों सकते में थे | इधर मैंने फ़ौरन अपना लंड आंटी के बुर से खींचा, उधर आंटी उछलकर खड़ी हो गयी .. इस उम्र में भी आंटी की फुर्ती देखने योग्य थी | मै अभी असमंजस में ही था कि क्या करूँ ..कहाँ छुपु ?? तभी आंटी धीरे से फुसफुसाई – तुम वरुण के कमरे में जाकर कोई किताब निकालकर पढो . इधर मै देखती हूँ | मै अपना पैन्ट पहनते हुए वरुण के कमरे कि तरफ भागा | आगंतुक वरुण के पापा थे , मुझे उनकी आवाज सुनाई पड़ी – डार्लिंग , ..सो रही थी क्या ?… दरवाजा खोलने में बड़ी देर लगाई ….तभी आंटी फुसफुसाई – क्या करते हो ?(शायद पति ने उसे छेड़ा था )…एक बच्चा अभी घर में है | अंकल ने सोंचा शायद वरुण घर में है , तभी दरवाजे पर आते ही उन्होंने कहा – वरुण ! क्या कर रहे हो , बेटा? और कमरे में दाखिल हो गए | परन्तु कमरे में वरुण की जगह मुझे देखकर चौंके | फिर उन्होंने मुझसे पूछा वरुण कहाँ है | मैंने जबाब दिया – वरुण तो कॉलेज निकल गया , मेरा पिरीअड खाली था तो उसने अपना प्रैक्टिकल वर्क बुक मुझे दे गया है पूरा करने के लिए , ये देखिये… मै उसका ड्राइंग बना रहा था – मैंने टेबल पर पड़े वर्क बुक के ड्राइंग की तरफ इशारा किया | अपने बेटे के लिए उसके दोस्त की मेहनत को देखकर अंकल प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा- कम से कम फैन तो ऑन कर लेना था , देखो तुम पुरे पसीने से नहा गए हो (मै जल्दबाजी में पंखा भी चलाना भूल गया था…वो तो सोंच भी नहीं सकते थे की जिस पसीने को अपने बेटे की पढाई पर निकला मान रहे थे …वो अभी अभी उनकी बीबी के शारीरिक मर्दन से निकला था और जिसके अंश शायद उनकी बीबी के पुरे शारीर के साथ उनकी बुर पर भी मौजूद थे ) | मैंने संभलते हुए बोला- पंखे से पेज फड- फडाने लगते है तो ड्राइंग में दिक्कत होती है | मैंने फिर दरवाजे के पास पीछे खड़ी आंटी को देखा जो मेरी होशियारी पर मंद मंद मुस्कुरा रही थी | तभी अंकल ने कहा – बेटा , पहले थोडा ठंडा लो फिर काम करना | मैंने कहा – मेरा काम ख़त्म हो गया है -बाकी लिखना है वो वरुण कर लेगा , अभी मै जाता हूँ -मेरा क्लास शुरू होने वाला है |

जैसे ही मै घर से बाहर निकला मैंने एक लम्बी सांस ली ……आनंद और डर…फिर आनंद…फिर डर …का दौड़ ख़त्म हुआ | क्लास जाने का मन हो ही नहीं रहा था इसलिए थोडा रेस्ट करने लौज की तरफ चल पडा |लौज से पहले ही चाय की दूकान पर वरुण दिखाई पडा | उसे देखते ही मै गालियाँ निकलता हुआ उसकी तरफ लपका ..साले बहनचोद …तू थोडा रुक नहीं सकता था …साले मरवा दिया न ….बहन के लौड़े ….मादरचोद ….गांड में दम नहीं था तो क्यूँ करता है ..भडवे …..पता है न तेरी माँ ने कितना पकाया है मुझे …..रुक ही नहीं रही थी साली …..मन कर रहा था वहीँ पटककर पेल दूँ साली को …..( वो तो सपने में भी नहीं सोंच सकता था कि उसकी धर्मपरायण , रुढ़िवादी और सख्त विचारों वाली माँ की चूत की गहराई को अपने लम्बे और मोटे लंड से नाप के आ रहा हूँ ) चूँकि वरुण पहले से ही डरा हुआ था , इसलिए गालियाँ सुनकर भी मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार …मै गुस्से में आता हुए बोला – मादरचोद …अगर आगे से ऐसा हुआ तो मै तेरी माँ का लेक्चर नहीं सुनूंगा ….सीधा पटककर तुम्हारे बदले तुम्हारी माँ की गांड मारुंगा..वो भी सूखा…फिर मत बोलना | वो धीरे से बोला – अब ऐसा नहीं होगा , मैंने अपने घर की चाभी की डुप्लीकेट चाभी अभी अभी बनबा के लाया हूँ ..एक तुम रखो , मुझे चाभी देते हुए बोला | हालाकि मै उसके घर की चाभी रखना नहीं चाहता था ..फिर ना जाने क्या सोंचकर …शायद वरुण की अनुपस्थिति में उसकी माँ को चोदने ये मददगार होगी …इसलिए अपने पास रख लिया और अपने घर चला आया |

अगले दिन मै कॉलेज न जाकर सीधे वरुण के घर १०:३० बजे पहुंचा | जैसे ही आंटी ने दरवाजा खोला तो वो चौंकी – फिर मै अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद करते हुए बोला- अंकल को मै बैंक में देख के आया हूँ और वरुण भी कालेज पहुँच गया है , मैंने मोबाइल से पूछ लिया है ..अपने मोबाइल पर आंटी को वरुण का नंबर दिखाने के बहाने आंटी के पीछे पहुचकर अपना मोबाइल आगे ले जाकर दिखाया और पीछे से आंटी के चुतरों से चिपक गया | मेरे दोनों हाथ आंटी के बगलों से निकलकर मोबाइल को पकडे था और मेरे बाजुओं का शिकंजा माउन्ट एवरेस्ट के शिखरों पर कसने का असंभव प्रयास कर रहा था , जो प्रद्वंदिता में और तनकर उठ खड़े हो रहे थे | और जैसे ही आंटी ने नंबर देखने के लिए मोबइल पकड़ा मेरे आजाद हाथ किला फतह करने शिखरों पर फिसलने लगा | जहां एक तरफ पर्वत शिखर की चुभन मेरे उँगलियों पर एकुप्रेस्सर देकर मेरे छोटे नबाब को जगाकर उसे नीचे के गोल गुम्बदों के बीच घुसने के किये उकसा रही थी ,वहीँ दूसरी तरफ आंटी की साँसों को भारी कर उन्हें लेटने पर मजबूर कर रही थी | आंटी गहरी साँसे लेती हुई बोली – मुझे पता था की तुम जरूर आओगे पर इतनी जल्दी आओगे इसका अनुमान नहीं था | मैंने पूछा- कैसे आंटी ? आपको कैसे पता था की मै जरूर आउंगा |
आंटी बोली – क्यूँ ? आग लगा के नहीं गए थे ….फिर भी पुछते हो ? मै तब तक अपने बाएं हाथ को शिखरों से मुक्त करके आंटी की नाईटी के अन्दर घुसाकर चिकने पुष्ट – स्तंभों पर फिरा रहा था , …..आह क्या आनंद आ रहा था ..आंटी ने अन्तः वस्त्र -आवरण भी नहीं पहना था |तभी मेरी हथेली पर टप – टप करके पानी की दो बुँदे गिरी |

आंटीजी ! आग से तो यहाँ गर्मी होनी चाहिए थी पर यहाँ तो बरसात हो रही है ….ये कहते हुए मैंने अपनी दो उँगलियाँ जल के गुफा स्त्रोत में घुसा दिया…आंटी उछ्ल पड़ी- आह ..मार…. दिया ….रे | अब मै आंटी को भींचते हुए उनके बेडरूम में ले जाकर पटका और उनके ऊपर चढ़ गया |मेरा भी बुरा हाल था , आंटी को चोदने की कल्पना करते हुए सबेरे से दो बार मुठ मार चुका था | अतएब मैंने देर करना मुनासिब नहीं समझा और फटा -फट आंटी की नाइटी को चूचियों के ऊपर उठाकर उनको पूरा नंगा कर दिया |फटाफट मैंने अपने सारे कपडे उतारे और आंटी के ऊपर चढ़ कर उनकी झनझनाती बुर में अपना लौडा दनदनाने लगा और चुचिओं को बारी बारी चुभलाने लगा …आंटी सिसकने लगी …और जब मै कभी हौले से दांत से काटता तो उनकी कराहट तेज हो जाती | मै चोदे जा रहा था और वो अस्फुट शब्दों में सिसक रही थी …..आँ………ऊं………इस्स………….फिर वो झड़ने लगी , काफी समय बाद एक औरत की बुर की भरपूर ठुकाई करके मेरा लंड भी निहाल हो चुका था ….इसलिए मै भी आंटी के साथ ही झड़ने लगा |फिर निढाल होकर आंटी के बगल में लेट गया |
हम दोनों वैसे ही नंगे पड़े हुए थे कि मोबाइल की घंटी बजी | मै हडबडाकर उठा तो देखा मोबाइल भी हमारी तरह बिस्तर पर ही पड़ा हुआ था जो शायद आंटी को दबोचकर बिस्तर पर पटकने के क्रम में उनके हाथों से गिर गया था …उठाकर देखा तो वरुण का फोन था ..मैंने रिसीव किया तो उसने पूछा कहाँ हो और आज कॉलेज क्यूँ नहीं आये ? मैंने कहा – यार ! आज तबियत ठीक नहीं थी ( अब मै उसे कैसे बताता कि उसकी मम्मी पूरी नंगी मेरे सामने टाँगे फैलाए पड़ी है और मै उसे पूरा मस्त चोद के हटा हूँ ,इसलिए उसकी मुम्मी की बुर अभी भी मेरे लंड का आकर लिए खुली पड़ी है ) फिर मैंने पूछा -आज फिजिक्स का क्लास हुआ है तो मुझे नोट्स दे देना और तू घर कब जाएगा ? उसने बोला – आड़े घंटे बाद इंग्लिश का क्लास है ,इसलिए लगभग डेढ़ घंटे बाद मै घर जाऊँगा ,तू उसके बाद कभी भी आके नोट्स ले जाना | अब मुझे पता था की मेरे पास अभी डेढ़ घंटे बचे है ……

आंटी उठकर नंगी ही बाथरूम को चली गयी और जब लौटी तो नाइटी उठकर पहनने लगी तो मै उछलकर खड़ा हो गया और उनके हाथो से नाइटी खीचकर फेंकते हुए बोला- आंटीजी ! ये क्या कर रही है..अभी तो हमारे पास डेढ़ घंटे बचे है | फिर मैंने आंटी को बांहों में भरकर उनके होटों को चूसने लगा और फिर से उनको गद्देदार बिस्तर पर पटका और फिर बेदर्दी से बुर को मुठ्ठियों में भींचकर मसलने लगा …आउच …..क्या करते हो , अभी अभी तो चोदा है तुमने ….आंटी ने पूछा | आंटीजी अभी और चोदुंगा | मै फिर आंटी के बगल में लेट गया और उनकी चुन्चियों को सहलाने लगा…तभी आंटी बड़े नरम और भावुक स्वर में बोली – देखो राजन ! तुम्हे जब भी सेक्स की जरुरत हो तो मेरे पास आ जाना , पर प्लीज …. मेरे बच्चे को हाथ मत लगाना….वरुण मेरा इकलौता बेटा है …मै चाहती हूँ की वो ठीक हो जाए …इसलिए तुम्हे मैंने समर्पण किया है ….मै थोड़ी देर सोंचता रहा की अब मै इनको कैसे समझाऊं , फिर शांत स्वर में बोला – आंटी मेरे छोड देने मात्र से वो सुधरने वाला नहीं है …मै नहीं होउंगा ,कोई और होगा ….मै तो सबसे आखरी हूँ मेरे पहले भी …(आंटी ने मेरे मुह पे हाथ रख दिया )
फिर बोली – तो कैसे ? कैसे मै उसे ठीक करूँ
(आंटी ने मेरे मुह पे हाथ रख दिया )
फिर बोली – तो कैसे ? कैसे मै उसे ठीक करूँ
मै बोला – देखिये , आप कल मुझे बार बार बीमार कह रही थी ,इसलिए मैंने नेट पर कल रात ‘ होमोसेक्सुअलिटी ‘ के बारे में सर्च किया तो पाया कि इससे निजात पाने का एक ही तरीका है ….
क्या …कौन सा तरीका …आंटी आशापूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखती हुई बोली |
मै अब भूमिका बांधते हुए बोला – अगर पुरुष समलैंगिक संबंधो में एक ही व्यक्ति बार बार या हमेशा स्त्री रोल निभाता है जैसे कि आपका बेटा ..वरुण, तो उसके लिए इससे बाहर आना बहुत कठिन होता है क्योकि वह अपनी पुरुषोचित व्यवहार (मर्दानगी ) भूलने लगता है ….| आंटी, जिनका चेहरा अभी अभी आशापूर्ण था …वह क्रमशः मलीन होने लगा और फिर रुआंसी होकर बोली – क्या कोई तरीका नहीं है ?
वही तो मै बता रहा था – मै बोला – अगर किसी तरह से वह विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित हो जाए और जो मजा उसे समलैंगिक संबंधो से मिलता है वही अगर किसी लड़की से मिलने लगे तो सुधर सकता है |
तो जाओ उसे लेकर….उसे स्त्री सानिध्य दिलाओ, चाहे जितना पैसा खर्च हो जाये ….बस बिमारियों का ख्याल रखना ‘ कोठों ‘ पर जाने से पहले …कंडोम जरुर लगवाना …..आंटी उत्तेजना में बोली |
मै धीरे से बोला – आंटीजी ! रंडीखानो में तो वो जाते है जिनकी मर्दानगी पहले ही उबाल खा रही हो , वो भी वहां जाकर ठन्डे हो जाते है …….जो पहले से ही ठंडा हो , वो क्या उबाल खायेगा | उसमे पुरुषोचित एग्रेसन तब आयेगा जब बह खुद से किसी को पटा के चोदेगा……क्योकि जब वह किसी को पटायेगा तो उसे ‘ जीतने का एहसास ‘ होगा और उसकी मर्दानगी उबाल खाएगी | आंटी मेरी बुध्धिमतापूर्ण बातों को सुनकर अवाक रह गयी …फिर बोली – अगर मै कोई लड़की उसे दिला दूँ तो वो सुधर तो जाएगा न ?
मैंने कहा – दिलाने से कुछ नहीं होगा , उसे हासिल करना होगा ……………लेकिन लड़कियों में तो उसे इंटरेस्ट है ही नहीं .अलबत्ता उसे औरतों में थोड़ी बहुत दिलचस्पी है …विशेषरूप से बड़ी उम्र की औरतों में …जिसकी बड़ी-बड़ी गांड हो ..मोटे-मोटे चूचे हों और भोसड़ा सरीखा फैली हुई बुर हो …..यूँ कहिये , बिल्कुल आपकी तरह |

आंटी उछलकर बैठती हुई बोली – ये क्या कह रहे हो …..मै उसकी माँ हूँ ..वो मेरा बेटा है ….मै उसके साथ कैसे ….नहीं ……नही….बिल्कुल नहीं ……..
मैंने आंटी की मुलाएम जाँघों को सहलाते हुए कहा – अगर वो आपका बेटा है तो मै भी आपके बेटे सरीखा हूँ ….जब मै आपको चोद सकता हूँ तो वरुण क्यों नहीं …..? फिर भी सोंच लीजिये जिस बेटे को बचाने के लिए बेटे के दोस्त से अपनी ये मखमली चूत ( तब तक मैंने अपनी बीच की ऊँगली उनके बुर में पेल दिया ) मरवा ली , वही बेटा अगर आपकी चूत चोदकर ठीक हो सकता है तो क्यों नहीं ……
तुम समझते क्यों नहीं ……आंटी खींजे स्वर में बोली – शायद वह भी तैयार न हो ….उसकी बात मै नहीं जानती , मै खुद ही उसके बारे में कल्पना नहीं कर सकती ….ना …ना …..हमारा समाज इसकी इजाजत ही नहीं देता |
मै सब समझता हूँ आंटी ……मै उनको पुचकारते हुए बोला – जहाँ तक समाज का सवाल है ..उसे मारीये गोली ….इकलौता बच्चा आपका वर्वाद हो रहा है , समाज को क्या पड़ी है ….और उसे बताने कौन जाएगा ….मै ?……वरुण ?………या आप ?

..और हाँ ! जहां तक आपकी मानसिक असमंजस की स्थिति है मै उसमे आपकी सहायता कर सकता हूँ |
आंटी उत्सुकता से पूछी – वो कैसे ?
मै प्यार से बोला- मै जब भी आपकी चूत बजा रहा होऊं तो आप ये कल्पना करना की वरुण आपको चोद रहा है …..सिर्फ सोंचना ही नहीं है बोलना भी है …..इसी तरह जब आप बोल-बोल के बार -बार चुदाएंगी तभी आप मानसिक रूप से तैयार हो पाएंगी ….देखिये आपको अपना बेटा बचाना है … फिर इसके बाद उसे seduce (रिझाना ) भी है ,वैसे आपकी बड़ी-बड़ी चुन्चियों का वह पहले से ही दीवाना है …..ललचाइये उसे ….
फिर भी …..आंटी हल्का विरोध सी करती हुई बोली –फिर भी अपने ऊपर उसकी कल्पना नहीं कर सकती |
मैंने कहा – फिर आँखे बंद करके मुझे वरुण समझिये |
अरे नहीं ……आंटी ने प्रतिवाद किया – जब भी आँख खोलूंगी तुम्हे ही तो देखूंगी …फिर कल्पना कैसे होगी |
अब मुझे लगा की आंटी अब लाइन पर आ रही है , मैंने बोला – वो मुझ पर छोड दीजिये ……
फिर मैंने कुर्सी पर रखी उनकी चुन्नी उठाकर आंटी के पीछे जाकर उनके आँखों पर पट्टी की तरह बाँध दिया ………

चुन्नी बिल्कुल काली पट्टी की तरह काम कर रही थी | मैंने फिर आंटी को लिटा दिया और गौर से उनके पुरे शारीर को निहारने लगा | क्या मस्त लग रही थी …हलकी झांटो से भरी बुर को मै नजदीक से देखने लगा ……तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया और मैंने अपना मोबाइल उठाकर उसे साइलेंट मोड पर करके फटाफट आंटी के तीन-चार स्नैप्स ले लिया …फिर बुर को ज़ूम करके दो फोटो निकाली | तभी मेरे शैतानी दिमाग में एक और आइडिया सुझा ….अब मै आंटी को चुदाई करते हुए उनकी विडियो बनाना चाहता था ….लेकिन उसमे एक रिस्क था …मै अपनी आवाज उसने नहीं रखना चाहता था | इसलिए मैंने आंटी को बोला – आंटीजी ! मै धीरे धीरे फुसफुसा कर बोलूँगा ..वो बोली – क्यों ?
मै बोला – जब मै धीरे धीरे सेक्सी और husky voice में बोलूंगा तो आपको और सेक्स चढ़ेगा और आपको अपने बेटे के बारे में imagine करने में सुविधा होगी |
आंटी बोली – ठीक है …

अब मेरा पूरा प्लॉट तैयार था | मोबाइल को विडियो मोड पर रखकर अपने पीछे टेबल पर सेट कर दिया , वहां से मेरी पीठ विडियो में आ रही थी ,पर आंटी का पूरा चेहरा ..पूरा जिस्म विडियो में कैद हो रहा था फिर धीरे से फुसफुसाया – मम्मी ! मै आपका दूध पिउं ?….
हाँ बेटा! पी ले …इसी दूध को पीकर तू बड़ा हुआ है …..लेकिन अब तेरे दांत निकल आये है ….काटना नहीं …
मै अब आंटी की दोनों चुचियों को पकरकर सहलाने लगा और बारी-बारी से दोनों चूचको को चुभलाने लगा ज्यों-ज्यों मै चूचको को चुभला रहा था , त्यों – त्यों वो अग्रिम प्रत्याशा में कड़ी होती जा रही थी | आंटी उतेजना में गहरी साँसे लेनी शुरू कर दी ….बीच -बीच में अपनी छाती उछालकर अपने अप्रतिम आनंद की अभिव्यक्ति कर रही थी लगभग ५ मिनट तक मै चूसता रहा …मेरा मुह दुखने लगा तो मै आंटी के गालों की तरफ चढ़ा |

मम्मी ! केवल दांत ही नहीं……मेरे शारीर में अब कांटे भी निकल आयें है …ये पकड़ो …..अपना लौड़ा आंटी के हांथो में पकडाते हुए उनके कान में फुसफुसाया ……..और आंटी के कान के लबों पर अपना जीभ फिराया …..
आँ……आउच..( जब मैंने कान के लबों को दांतों से काटा , फिर अपना जीभ उनके गालों पर फिर फिराने लगा )
आ …ह …….इ स्स……………….आंटी हलके – हलके सिसिया रही रही थी
फिर मै आंटी के गालों को चाटने लगा ….बीच-बीच में गालों पर हल्के दांत भी गडाने लगा ..मुझे बहुत मजा आ रहा था …आंटी भी मेरे लंड को सहलाकर …..मसलकर( जब मै दांतों से गालों को काटता तो वो लंड को मुठ्ठी में पकड़कर मसलने लगती ) मूसल बना रही थी | अब मैंने आंटी के होंटों को अपने होंटों से दबाकर चूसने लगा और अपने दोनों हांथो से उनकी बड़ी बड़ी चुन्चियों को मसलने लगा ….
आ…ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह………..आंटी मेरे मुंह से अपना मुंह हटाते हुए सिसकी ……….बेटा ! इतनी बेदर्दी से मेरी चूचियां मत दबाओ….आखिर , मै तुम्हारी माँ हूँ …….
मै फुसफुसाया – तू माँ नहीं एक नंबर की चुदक्कड़ रंडी है …..अपने बेटे का लंड मसल रही है ……तेरी बुर चुदने के लिए तडफड़ा रही रही है …….बोल चुदेगी अपने बेटे से ….
अचानक पता नहीं क्या हुआ …आंटी उतेजना में जोर जोर से बोलने लगी – हाँ , वरुण बेटा हाँ ! …..आज चोद ले अपनी माँ को जी भरके …….मै तेरे लंड के लिए तड़प रही हूँ ……घुसा दे अपने मुसल को मेरी बुर में ……देख यही से तो तू आया है ….(आंटी ने मेरा लंड छोड़कर अपनी बुर को अपने हांथो से छितराकर दिखाने लगी )

मै भी उठकर बैठ गया और आंटी की छितराई बुर को देखने लगा | आह …मजा आ गया ……बुर के अन्दर की बिल्कुल सफ़ेद मांस दिख रहा था जिसमे से रिसकर मदनरस बाहर आ रहा था …. मैंने अपना मोबाइल उठाया और बुर का क्लोजअप शॉट लेने लगा , फिर मैंने ऑडियो पर ऊँगली रखकर (अपना आवाज छिपाते हुए ) आंटी से कहा – मम्मी ! जरा अपनी बुर को उँगलियों से चोदो , मुझे तुम्हे मास्टरवेट करते हुए देखना है ….
उईईइ….(आंटी ने बुर में अपनी दो उँगलियाँ डाली )……..बदमाश कही के ! घोड़े जैसा लंड रखकर भी अपनी माँ को उन्ग्लीचोदन के लिए कह रहा है ………..आ…ह…ह………इ…स्स…..स्स………अब ….बर्दास्त…. नहीं ….हो रहा है …….पेल दे ….आ..ह….बेटा …अपनी …माँ को क्यों तडपा रहा है …..बस….अब चोद ….मुझे ..
मै फटाफट इतने अच्छे दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर रहा था , अब लेकिन मेरे लिए भी रुकना मुश्किल हो रहा था | ऑडियो पर ऊँगली रखते मै फिर बोला- मम्मी! तू तो मस्त चुदासी है …अपने बेटे के लंड खाने के लिए मरी जा रही है ….अब देख मै कैसे फाड़ता हूँ तेरी बुर ……चाहे तू जितना चिल्ला …..बिना फाड़े नहीं मानूंगा ……ले संभाल अपने बेटे का गदहलंड …..
मैंने आंटी के जांघो को पकड़कर अपने कंधे पर डाला और उनके ऊपर झुककर अपना मूसल उनके ओखल में एक ही झटके में धांस दिया …..४० साल की फटी बुर मेरे प्रथम प्रहार से और फटती हुई बिलबिला उठी……
मार…. दिया….. रे ……..हाय रे…….. मेरे…. जालिम……चोदू…….आ……ह्ह्ह्ह्ह,,,,,,,,,फ..ट….गयी…मेरी………………………..अपनी….माँ….को….इतनी…..बेदर्दी…..से…ना…………..चो..द………..इ….स्स……………..मै गयी…..इ..इ…इ…..ई……..| ये क्या…… आंटी तो दो तीन झटको में ही झड़ने लगी , मै सबेरे से तीन बार झड चूका था मै इतनी जल्दी तो कभी नहीं आ सकता था …….इसलिए मै लगातार चोदे जा रहा था ….लगभग १० मिनट तक मै दनादन चोदता रहा………आंटी के बुर से पानी नहीं झड़ना बह रहा था …..पूरा कमरा फच-फच …घच-घच…की आवाज से गूंज रहा था …..इस दौरान आंटी का शारीर कई बार तना और रिलैक्स हुआ |
मै एक हाथ से आंटी की चुदते हुए एक्सप्रेशन की विडियो बना रहा था , फिर विडियो बंद कर मैंने आंटी के आँखों की पट्टी को खोल दिया | आंटी बार-बार छोड़ दे बेटा ….छोड़ दे बेटा ….अब मत चोद…..मेरे में अब जान नहीं है ….मेरी बुर भी चनचना रही है ( शायद मेरे लंड ने बुर का कोई कोना छिल दिया था )……..| मै अब भी झड़ा तो नहीं था ,लेकिन एक ही आसन में चोदते-चोदते थोडा थक गया था | मैंने आसन बदलने के लिए लंड को बाहर निकाला तो आंटी जान में जान आई , वो तुरंत छिटककर बिस्तर के किनारे बैठ गयी | मै बिस्तर के नीचे खडा हो गया …..मेरा लंड अब भी फुफकार रहा था ……
मैंने कहा – मम्मी …घोड़ी बन जा …अब मै पीछे से चोदुंगा …..
वो बोली – अरे नही बेटा ! …..बस अब बहुत हो गया …..
मैंने प्रतिवाद किया – मेरा मन अभी भरा नहीं है …….देख माँ ! .मेरा लंड भी अभी झडा नहीं है ……
नहीं बेटा ….तू समझता क्यों नहीं है …..मेरे बुर में जलन हो रही है …..
मैंने कहा – तू घोड़ी तो बन …..पीछे से तेरी बुर देखकर मै मुठ मारूंगा …..
वो अनमने मन से घोड़ी बन गयी ………..
चूँकि मै घर से तैयारी करके चला था , मैंने फटाफट नीचे पड़ी पैन्ट की जेब से वेसलिन निकाला और अपने दाहिने हाथों में चुपड़कर आंटी के पीछे खडा हो गया ……..बाएं हाथ से अपना लंड सहला रहा था और दाहिने हाथ की उँगलियों से गांड के छेद को सहलाते हुए धीरे धीरे वेसलिन की सहायता से गांड में ऊँगली पेल रहा था ..आंटी एक दो बार ऊँगली घुसने पर चिहुंकी और पीछे मुडकर देखि …मुझे एक हाथ से मुठ मारते हुए देखकर फिर अपनी आँखे बंद कर मजा लेने लगी | धीरे धीरे मैंने ढेर सारी वेसलिन आंटी के गांड में डाल दिया |अब मैंने बाए हाथ की उँगलियाँ आंटी गांड को लगा दिया और वेसलिन चपड़े हाथों से लंड मुठीयाने लगा | आंटी को लग रहा था की मै मुठ मारकर शांत हो जाउंगा पर मेरा इरादा कुछ और था ……..धीरे धीरे मैंने लंड को गांड के छेद के पास लाया और फिर इससे पहले की आंटी कुछ समझती मैंने झटके से आंटी को दबोच कर आंटी के गांड में अपना लंड पेल दिया ….आंटी जोर से चिला उठी ….आह….मर….गई …….ये क्या किया……….और बंधनमुक्त होने के लिए छटपटाने लगी ….लेकिन मैंने मजबूती से पकड़ रखा था वो निकल नहीं पाई | वो चिल्लाती रही और मै अपने एक तिहाई लंड से उनकी गांड मारता रहा …..अंत में उन्होंने अपना शारीर ढीला छोड दिया और बडबडाने लगी ,,,,मार ले बेटा …..अपनी मम्मी की गांड भी मार ले ……..शायद अब उनको मजा ….फिर मै जोर जोर से आंटी की गांड मारने लगा ……आंटी भी मेरे हर धक्के का जबाब अपनी गांड पीछे करके दे रही थी … .और अंत में एक जोरदार हुंकार के साथ फलफलाकर उनके गांड में ही झड़ने लगा…..अब आंटी निढाल होकर पेट के बल पड़ी थी और उनके गांड से जीवनश्रृष्टिरस थोड़े थोड़े अंतराल पर निकलकर मखमली चूत को भिगोते हुए बिस्तर के चादर में समा रहा था | मैंने उनको उसी अवस्था में छोड़कर अपना कपड़ा पहनकर मोबाइल लेकर घर आ गया ………

इसके बाद मैंने आंटी को कई बार चोदा और गांड भी मारी | पहले शुरुआत में तो उनके आँखों को पट्टी बांधकर ही वरुण के बारे में इमेजिनेशन करवाई , परन्तु बाद में आंटी खुली आँखों से भी मेरे से चुदते वक्त अपने बेटे की कल्पना करने लगी थी …वास्तव में वो अपने बेटे को सही दिशा दिखाना चाहती थी |इसलिए वो कई बार मुझसे पूछ लेती—वरुण को अपनी तरफ कैसे आकर्षित करूँ…… बेटा बताओ ?
मैंने बताया – आंटी आप अपने चूचियां जान- भुझकर वरुण को दिखाइये …कभी किसी बहाने…..कभी किसी और बहाने से …अपनी खुली फड़कती बुर दिखाइए बहाने से …..फिर देखिये …..किसी न किसी दिन वरुण आपको पकड़ के चोदेगा जरुर …….
हाँ ! वो अगर आपको चोदते समय फेल भी हो जाए ….मेरा मतलब है कि आपको संतुष्ट न कर पाए तब भी आपको उसका हौसला बढ़ाना है , ये याद रखियेगा | आंटी को टिप्स बताकर , फिर उनको जी भरके चोदकर घर तो आ जाता, पर मेरा खुद का मन व्याकुल रहने लगा ……जब भी घर पर आंटी की चुदाई की विडियो मोबाइल पर देखता …जिसमे वो वो मुझसे बेटा .-बेटा कहकर चुदवा रही है ……मेरा मन अपनी माँ के इर्द-गिर्द घुमने लगता…………………क्या वो भी कभी मेरे साथ ………………….?……………….??

थोड़े दिनों बाद आंटी चुदने में आनाकानी करने लगी …..काफी जोर देने पर वो बोली – देखो राजन ! वरुण अब सुधर रहा है , मै नहीं चाहती की तुम वक्त -वेवक्त यहाँ आया करो , तुम्हे मेरे साथ देखकर कही वो फिर से न बिगड़ जाए |
मै हल्के गुस्से में बोला – तो यूँ कहो ना कि अपना बेटा ही तुमको आजकल चोद रहा है ……फिर बेटे के दोस्त से चुदवाने कि क्या जरूरत है | मेरे मन में आया कि मोबाइल में कैद विडियो के बारे में बताकर रंडी को रुला रुला के चोदता हूँ …फिर सोंचा पहले धमकी देके ही देख लेता हूँ ,फिर मै बोला – ठीक है ……मादरचोद वरुण का ही गांड मारूंगा | वो दौड़कर मुझसे लिपटती हुई बोली – अरे बेटा नहीं …..मेरी गांड मार ले …..मेरी बुर चोद ले ……लेकिन प्लीज …..मेरे बेटे का नाम न ले …………………………..प्लीज | और तुरंत घोड़ी बनकर अपनी साडी और पेटीकोट कमर तक उठा ली , अब उनकी बुर और गांड दोनों मेरे सामने थी …मरवाने को तैयार …….च्वाइस मेरी थी क्या मारूं ?…?

हांलांकि इसमें आंटी कि चुदने कि ललक से ज्यादा मज़बूरी नजर आ रही थी ,पर फिर भी मैंने आंटी को अपनी समझ से आखिरी बार कसकर बजाया और फिर निकल आया |

एक दिन बाजार में घूमते समय मैंने अपने एक अन्य मित्र राहुल को एक बहुत ही खुबसूरत मॉडल टाइप लड़की के साथ शौपिंग करते हुए देखा | जब मैंने छुपकर पीछा किया तो देखा कि…. वह, लड़की के साथ अपने घर चला गया | जरुर वो रिश्तेदार होगी , मैंने सोंचा | जब मैंने राहुल से अगले दिन इसका जिक्र छेड़ा, तो पता चला कि वो तो उसकी अपनी बड़ी शादीशुदा बहन है जिसकी शादी अभी छह महीने ही हुई है और उसके पति को ( जो सॉफ्टवेयर इंजिनियर है ) अभी-अभी अमेरिका कम्पनी के प्रोजेक्ट पर एक साल के लिए जाना पड़ गया है ……इसलिए शालिनी अपने मायके आकर रह रही है |
मेरे शैतानी दिमाग ने अपना रंग दिखाना शुरू किया ……आह ..क्या माल है ………..
थोड़ी चुदी हुई …………..पर थी पूरी चुदासी,
थोड़ी लंड खाई हुई , अगले साल तक लंड की प्यासी |
चुदने को बिलकुल तैयार माल थी | जरुरत थी तो…… थोड़ी घनिष्ठता की …..अपने हलब्बी के दीदार कराने की …..और आखिर में थोड़े एकांत की …………………………मै पहले स्टेप पर चल पडा …राहुल से दोस्ती बढाई और उसके घर आना जाना शुरू कर दिया |

छोटा परन्तु थोडा संपन्न परिवार था , राहुल का | पापा बिजनेसमैन थे ..मोटर ऑटो पार्ट्स का दूकान था उनका , राहुल की मम्मी का तीन साल पहले गुर्दे के कैंसर के कारण निधन हो गया था | घर में राहुल , उसकी बड़ी दीदी शालिनी , उसकी छोटी बहन गुड्डी (जो राहुल से दो साल छोटी थी और दसवीं में पढ़ती थी) के अलावा केवल दादी(जो हमेशा घुटने के दर्द से परेशान रहती थी ) रहती थी | हालांकि गुड्डी भी सुन्दर थी लेकिन जबरदस्त माल तो उसकी बड़ी बहन शालिनी थी …ये बड़ी-बड़ी आँखे ….लम्बे रेशमी सिल्की बाल …भरे -भरे गाल, जिसमे हंसने पर गढ्ढे पड़ते थे …कमल पंखुड़ी सा रसीले होंठ ( जिसे हमेशा चूसते रहने या चाटते रहने का मन करता था )….लम्बी सुराहीदार गर्दन …उसके नीचे उसकी सुडौल …एकदम परफेक्ट राउंड बूब्स ( जिसके गठिलेपन का एहसास कपड़ों के ऊपर से भी होता था )…उसके नीचे बिलकुल समतल पेट (जिसके मध्य स्थित मजेदार नाभी..जिसे मैंने देखा तो नहीं था पर हर रोज उसमे उन्लिपेलन की कल्पना करता था )….और अंत में उसके लम्बे लम्बे पैर…जिसके जोड़ पर स्थित उसकी मस्तानी …चूत…जिसकी कल्पना करके मै पता नहीं कितनी बार सरका मार चूका था| कुल मिलाकर गजब की जानमारू थी |
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मै हर रोज लगभग दो-दो तीन-तीन घंटे राहुल के घर गुजारता , वहां पढ़ाई के अलावा राहुल और उसकी बहनों के साथ कैरम ,लूडो और ताश खेलता | कॉलेज में मै राहुल को सेक्सी और गंदे-गंदे चुटकुले सुनाता | धीरे-धीरे उसका इंटरेस्ट भी सेक्स की तरफ बढ़ने लगा | एक दिन मैंने उसे मैंने मस्तराम की बुक ‘ बंद दरवाजे ‘ पढने को दिया , उसमे भाई बहन की सेक्स की कहानियाँ खुल्लम – खुल्ला लिखा हुआ था | अगले दिन ही वो बुक मुझे लौटाते हुए कहा – यार ! इसमें तो सारी हदे पार कर गई है | मै उसे एक और किताब देते हुए कहा – यार, उसमे तो कुछ भी नहीं है …इसे पढो ….इसमें एक बेटा अपनी माँ को और एक बाप अपनी बेटी को कैसे चोद रहा है | वो तुरंत वो किताब अपने बुक्स बैग में रखते हुए घर चला गया | इसप्रकार वो भी कुछ दिनों में सेक्स किताबों का शौक़ीन बन गया | इधर धीरे धीरे मैंने उसके घर में पैठ बना लिया |

फिर एक दिन राहुल बोला – राजन यार ! सेक्स किताबों में तो काल्पनिक बाते लिखी रहती है , भला हिन्दुस्तान में भाई – बहन … माँ -बेटा …और बहु -ससुर जैसे सम्बन्ध संभव है ? नहीं यार ….पॉसिबल नहीं है …लेकिन साला संबंधो का discription इतना उतेजक होता है कि पूछो मत ..यार , मै तो मुठ मार मार के थक चुका हूँ …अब तो बस असली बुर चाहिए ….चलो किसी रंडी के पास चलते है , थोड़े पैसे ही तो लगेंगे …मै दे दूंगा …बस अब मुझे ‘ बुर ‘ दिला|
मैंने कहा – पागल हो गए हो क्या ? रंडीखाने जाकर बीमारियाँ मोल लेनी है क्या ?….सोंचना भी मत | हाँ , जहां तक चूत का सवाल है , वो मै दिला दूंगा | वो उत्साहित होता हुआ बोला- वाह यार ! तू तो कमाल कि चीज हो …कोई पटा रक्खी है क्या ?
यार प्लीईईज ……मुझे भी दिलवा दो न….फिर वो मुझे खुशामद करने लगा |

मै थोड़ी देर चुप रहा , फिर बोला – अच्छा ये बता ! तुम्हे सेक्स कहानियों में बिलकुल सच्चाई नहीं लगती | उसने बोला – बिलकुल नहीं | मै बोला – नहीं यार , ऐसी बात नहीं है ….ये ठीक है कि सेक्स कहानियाँ प्रायः काल्पनिक होती है …..लेकिन पारिवारिक सम्भोग सम्बन्ध ( incest ) हिन्दुस्तान में निराली नहीं है ….. पश्चमी सभ्यता से प्रभावित भी नहीं है और ना ही नई है …..ये तो पुरातन युग से चली आ रही है ……..ये होते थे ….आज भी होते है ……हाँ , ऐसी बाते …ऐसे सम्बन्ध खुलकर सामने नहीं आते | राहुल बोला – तुम कहना क्या चाह रहे हो, मै समझ नहीं पा रहा हूँ |
मै बोला – मै कहना नहीं, समझाना चाहता हूँ ……अच्छा एक बात बताओ – जब तुम भाई बहन की सेक्स की कहानियां पढ़ते हो तो तुम मुठ मारने पर मजबूर हो जाते हो , क्यों ? आह …भैया पेलो….. ..फाड़ दो मेरी बुर …जैसे विवरण पढ़ते हो , तब कहानी की नायिका की जगह क्या तुम अपनी शालिनी दीदी को स्थापित नहीं कर रहे होते हो …बोलो … चुप क्यों हो गए ?

मैंने देखा राहुल का चेहरा तमतमाता हुआ लाल भभूका हो रहा था | फिर गुस्से से फूटता हुआ बोला – साले, तुम निहाइत ही गंदे किस्म के इंसान हो ….मेरी बहन पर गन्दी नजर रखता है …सर फोड़ दूंगा साले …समझ क्या रक्खा है ?(मै तो उसका चेहरा देखकर ही सकपका गया ….दांव उल्टा पड़ गया था ..अब मुझे फिर से संभालना था )
मैंने कहा – यार ! मैंने तो एक उदाहरण दिया था …तुम हो गए आग बबूला | तुमने मुझे चूत दिलाने की बात कही थी ….मै तो चूत का पता बता रहा था |
वो फिर भड़का – तो क्या मै अपने घर में ….
नहीं यार , मेरे घर में -मै जल्दी से बोला (बोलते समय मेरे दिमाग में मेरी ममेरी बहन रागिनी दीदी घूम रही थी जिसे मै चोद चुका था और शायद मनुहार करने पर मेरे दोस्त को भी दे देती )

….क्या कहा तुम्हारे घर में ….राहुल चौंका – लेकिन घर में तो शायद…. केवल तुम्हारी माँ है
मैंने कहा – अबे बहनचोद …..साले , तू तो सीधा मादरचोद बनाने की ख्वाइश रखता है ….साले , मेरी एक ममेरी बहन है जिसे मै कई दफा चोद चुका हूँ, इसलिए मै तुझे पारिवारिक सम्भोग सुख की विस्तृत जानकारी दे रहा था क्योंकि मैंने खुद भी ये सुख लिया है ….तू कहे तो मै तुझे भी उसकी दिलवा दूंगा |
दिलवा दे यार …दिलवा दे …राहुल अब मेरी मिन्नते करने लगा |
लेकिन बेटा, मुफ्त में ही मेरी बहन चोदना चाहता है ….मुफ्त में इस दुनिया में कुछ भी नहीं मिलता |
तो तू क्या पैसे लेगा ….राहुल मेरी तरफ अजीब निगाहों से देखता बोला
नहीं बेटा , पैसा नहीं ….मै उसे लाइन पर आता देख झूमते हुए बोला – पैसा नहीं ….बहन के बदले बहन ……तू मेरी बहन चोदेगा तो मै तेरी शालिनी दीदी को चोदुंगा …साले , जरा अपनी बहन पर तरस खा …तेरा जीजा एक साल तक तो आने वाला तो है नहीं …वो अपनी चूत की गर्मी कैसे शांत करती होगी ..ऊँगली डाल के या मोमबत्ती डाल के ….अच्छा भाई है तू |
राहुल फिर ऐंठा – यार तू तो अपनी बहन को कर चूका है इसलिए तुम्हे दिलवाने में कोई दिक्कत नहीं होगी , लेकिन मै तो दीदी से ठीक से बात भी नहीं कर पाता…..तेरे लिए कैसे पटाउंगा |
मैंने कहा – तू उसकी चिंता मत कर ….अपने घर में ही मुझे किसी तरह उसके आस-पास रहने का मौक़ा बार – बार निकाल … बाकी सब मै संभाल लूंगा …..जब ग्रीन सिग्नल होगा तो मुझे उसके साथ बिलकुल एकांत की व्यवस्था तुझे ही करनी पड़ेगी|
आस- पास रहने से तू दीदी को पटा लेगा ……राहुल के स्वर में अनिश्चितता का पुट था – अगर दीदी नहीं तैयार हुई या झिड़क दी तो मुझसे कुछ आशा मत करना ….लेकिन मुझे तेरी बहन की चूत तो मिलेगी न ?
मै बोला – तू निश्चिन्त रह …..पहले तू ही लेगा ……मुझे तेरी बहन की चूत मिलती है या नहीं …ये मेरी किस्मत |

अब राहुल के घर मै बेधड़क जाया करता और खेल में चाहे ताश हो या कैरम मै और गुड्डी पार्टनर बनते और आमने सामने बैठते और शालिनी दीदी को हमेशा मेरे बगल में बैठती | खेल -खेल में ही कई बार कई बार बॉडी पोज बदलने में कई बार जानबूझकर अपने हाथ -पैर से दीदी को स्पर्श करने का प्रयास करता और कई बार सफल भी रहता | जब भी मौका मिलता तो किसी न किसी बहाने उनकी सुन्दरता की तारीफ़ कर देता |

औरतों को भगवान ने अद्भुत शक्ति दी है ….वो आपके आँखों की भाषा और हरकतों से अपने प्रति पुरुषों की भावना समझ जाती है | शालिनी दीदी भी सब समझ रही थी ….

तभी वो एक दिन छत पर खेल के बाद जब शाम ढल गयी तो गुड्डी चाय बनाने गयी और राहुल जानबूझकर अपने कमरे में चला गया तो शालिनी दीदी ने मुझसे पूछा – तुम्हारी तो ढेर सारी गर्ल – फ्रेंड होगी …बाते अच्छी बना लेते हो | मैंने निराशा जताते हुए कहा – एक भी नही

क्यों ?

कोई आप जैसा सुन्दर नहीं मिला न ..आप ही बन जाओ न मेरी गर्ल – फ्रेंड

अरे बुध्धू मै शादीशुदा हूँ …

शादीशुदा है तो क्या हुआ …मै आपको बहुत पसंद करता हूँ ….हमेशा आपके पास रहना चाहता हूँ (यह कहते हुए मै धीरे से उनके पास सरक गया)……आप है ही इतनी सुन्दर और मस्त कि…… खुदा भी रश्क करता होगा (यह कहते मैंने धीरे से उनका हाथ पकड़ लिया

#म #डरत #डरत #कचन #स #बहर #नकल

मै डरते डरते किचेन से बाहर निकला