माया की कच्ची चूत को चोद के सिल तोडा

माया की कच्ची चूत को चोद के सिल तोडा

हैल्लो दोस्तों मेरी उम्र 25 साल है; में दिखने में काफ़ी स्मार्ट तो नहीं; लेकिन खूबसूरत हूँ; में रोज नये-नये कपड़े पहनता हूँ; हमारी कुरियर कंपनी बुक किए गये बड़े-बड़े पार्सल और अन्य सामान को देश-विदेश के अन्य शहरों में पहुँचाती है.

मेरी कंपनी में  ५५  लड़के लड़कियाँ काम करती है; हमारी कंपनी में माया भी काम करती थी; उसकी उम्र करीब १८ साल थी; वो कंपनी में बुकिंग क्लर्क के पद पर काम करती थी.

वो काफ़ी फैशनेबल लड़की थी; रोज नई-नई ड्रेस पहनकर आती थी और उसका चेहरा काफ़ी आकर्षक था; उसकी काली-काली झील जैसी गहरी और चमकर आँखों को देखकर कोई भी उसे पाने की चाहत कर सकता था.

उसकी सुरहीदार गर्दन और बालों का जुड़ा ऐसा लगता था जैसे कि मोरनी के सिर पर कलंगी लगी हो; वैसे तो उसके बाल इतने लंबे थे कि कमर के नीचे तक लटके रहते थे मगर वो ज्यादातर जूड़ा ही बाँधती थी और बालों की चोटी बनाती थी; तो चलते समय उसके बाल उसके कूल्हों से बारी-बारी टकराते रहते थे; वो अपने कपड़ो की तरह बालों को भी रोज-रोज नये-नये तरीके से बनाकर आती थी.

जब वो बात करती थी तो उसकी सुरीली और खनकदार आवाज सुनकर ऐसा लगता था कि बस वो बोलती ही रहे और उसके कुर्ते के भीतर उसकी ब्रा में कसे मध्यम आकर के बूब्स और उनके नुकीले निप्पल ऐसे खड़े रहते थे जैसे हिमालय की दो नुकीली चोटियाँ शान से अपना सिर ऊपर उठाए खड़ी हो और उसकी कमर के तो कहने ही क्या थे? जब वो चलती थी तो ऐसा लगता था जैसे कोई मस्त हिरनी चल रही हो; उसका सिर से पैर तक संपूर्ण जिस्म बेहद आकर्षक और खूबसूरत था.

अब जब में भी माया को देखता था तो उसका दिल उलझने लगता था मगर काम के चक्कर में मुझे माया से बात करने का मौका बहुत ही कम मिलता था; बस माया से मेरी हाए हैल्लो ही हो पाती थी; में माया से बात करने और उससे घुलने-मिलने के चक्कर में तो बहुत रहता था; लेकिन काम ज्यादा होने के कारण में लेट नाईट तक ऑफीस में ही रुकता था;

सच तो यह था कि माया मुझे अच्छी लगती थी; में उस पर मरता था और उसे अपना बनाकर शादी करना चाहता था; में यहाँ अपनी फेमिली के साथ रहता हूँ और माया वसाई में रहती है; उसके माता-पिता के अलावा उसकी और एक छोटी बहन है; फिर जब में सुबह 10 बजे ऑफीस जाता; तो माया से एक बार जरूर हाए हैल्लो करता.

माया और सारे स्टाफ का टाईम टेबल सुबह 10:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक रहता था; लेकिन काम ज्यादा होने पर कभी-कभी स्टाफ को ओवर टाईम भी करना पड़ता था जैसे सभी ऑफिस में स्टाफ में आपस में बातचीत होती है और हल्का फुल्का हंसी मज़ाक चलता रहता है; वैसे ही माया और मेरे बीच में चलता रहता था; लेकिन माया को मेरे दिल की अंदर की बात मालूम नहीं थी; वैसे में माया को दिल से बहुत अच्छा लगता था.

फिर एक दिन लंच का समय था; अब सभी स्टाफ अपना-अपना लंच बॉक्स निकालकर खाना खाने की तैयारी में था; अब माया भी खाना खाने बैठने ही जा रही थी की में वहाँ पहुँच गया और फिर मैंने कहा कि अरे वाह आज तो में सही टाईम पर आ गया; तो तभी माया ने निवाला तोड़ते हुए कहा कि हाँ-हाँ आओ ना; अब में माया की टेबल के सामने स्टूल लगाकर बैठ गया था और फिर मैंने माया की तारीफ करते हुए उसके लंच बॉक्स में से एक रोटी निकालकर खाते हुए कहा कि वाह क्या मस्त खाना है? मज़ा आ गया; फिर तभी माया ने खाना खाते हुए कहा कि क्या खाक मज़ा आएगा; में ये साधारण खाना तो रोज लेकर आती हूँ.

फिर मैंने कहा कि में झूठ नहीं बोल रहा हूँ और मैंने फिर से खाने की तारीफ़ करते हुए कहा कि खाना बहुत अच्छा है और फिर मैंने अपनी रोटी ख़त्म कर ली और थैंक यू कहा और चलने लगा; फिर तभी माया ने अपना लंच बॉक्स मेरी तरफ सरकाते हुए कहा कि अरे और खाइए ना; एक रोटी से क्या होता है? तो में बस बहुत हो गया कहकर उठ गया.

फिर मैंने हाथ धोए और माया के पास आकर बोला कि अच्छा माया में चलता हूँ; फिर माया ने भी मुस्कुराते हुए कहा कि ओके बाए-बाए;  उस दिन के बाद से जब भी ऑफिस में हम दोनों का आमना सामना होता;फिर एक दिन में माया के पास जाकर बोला कि आज तुम्हारे साथ बैठकर चाय पीने की इच्छा हो रही है; फिर उसने कहा तो पी लेंगे; मैंने कब मना किया है?

और फिर मैंने हमारे चपरासी को आवाज़ दी और फिर हम चाय पीते-पीते बात करने लगे; अब हम दोनों चाय पी रहे थे.

फिर मैंने पूछा कि माया तुम कहाँ रहती हो? तो उसने कहा कि वसई में; तो मैंने कहा में भी विरार में रहता हूँ; फिर मैंने पूछा कि तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तो उसने कहा कि मम्मी-पाप और एक छोटी बहन है;  अभी पढ़ रही है; तो तब चाय ख़त्म हो गयी थी.

फिर उस दिन के बाद से हम दोनो में नजदीकियां बढ़ गयी; अब हमें जब भी कोई मौका मिलता तो हम दोनों आपस में बहुत बातें करते थे; अब ऐसे दिन बीत रहे थे और फिर हम दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गयी; हमें पता ही नहीं चला; फिर एक दिन में उसे मूवी दिखाने लेकर गया और थियेटर में उसके साथ रोमॅन्स किया; लेकिन माया ने मुझे ऊपर से नीचे तक आने ही नहीं दिया; फिर एक दिन में उसे लेकर लॉज में चला गया; अब हम दोनों अपनी कसर निकालने के लिए दोनों ही बैचेन थे; फिर हमने रूम में प्रवेश किया; तो माया मुझसे पलंग पर लिपट पड़ी; फिर मैंने अपने जूते निकाल दिए और माया को अपनी बाँहों में भर लिया.

फिर में माया के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामकर उसके गालों पर कई चुंबन ले डाले; और मेरे चुंबन लेने के बाद मैंने ऊपर से ही माया के बूब्स पर अपने हाथ रख दिए और उनसे खेलने लगा; फिर मैंने माया के होंठो का रसपान किया; अब माया भी मेरा पूरा सहयोग दे रही थी.

फिर जब उस के होंठो का रसपान करके मेरा मन भर गया; तो तब मायाने अपनी ड्रेस और ब्रा उतार दी; तो फिर में भी निवस्त्र हो गया; उस का यह पहला मौका था; अब बंद कमरे में दूधिया उजाले में मैंने भी पहली बार किसी स्त्री का संपूर्ण बदन देख लिया था; अब उस का भी यह पहला मौका था; आज उसका पाला मुझसे पड़ा था.

थोड़ी ही देर में हम दोनों बेकरार हो गये; अब दोनों की साँसे तेज हो गयी थी और हमारे स्वर से पूरा कमरा गूंजने लगा था;  हम दोनों के भीतर का तूफान जैसे-जैसे आगे बढ़ता जा रहा था वैसे-वैसे हम दोनों की स्पीड बढ़ती जा रही थी.

अब वह काफ़ी उत्तेजित हो गयी थी तो उसने मेरी कमर कसकर पकड़ ली; अब हम दोनों अपनी मंज़िल पाने की भरपूर कोशिश करने लगे थे; फिर थोड़ी ही देर में आनंद के सागर में तैरते हुए हम दोनों किनारे पर पहुँच गये; अब में ज़ोर-ज़ोर से साँसे भर रहा था; अब उस की साँसे भी ज़ोर-ज़ोर से चल रही थी;  वह उस दिन लड़की से औरत बन गयी थी; उसकी कच्ची कली फूल बन गयी थी.

फिर हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए तो हम दोनों के चेहरे पर संतोष का भाव था; अब हम दोनों की बीच की दीवार ढल चुकी थी; फिर हम दोनों आराम से पलंग पर लेट गये; और में फिर से सोते-सोते माया के नाज़ुक अंगो से फिर से छेड़छाड करने लगा;  तभी माया ने मेरा हाथ अपने नाज़ुक अंग से हटाते हुए कहा कि अब नहीं प्लीज फिर कभी; फिर हमें जब कभी भी कोई मौका मिला; तो हमने उस मौके का भरपूर फायदा उठाया और खूब मजा किया.

माया की कच्ची चूत को चोद के सिल तोडा

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