पैसों की मजबूरी, चूत की गर्मी

पैसों की मजबूरी, चूत की गर्मी

लेखिका : मंजू मनचन्दा

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को नमस्कार। मुझे अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ने में मजा आता है, सही पूछें तो मैं अन्तर्वासना की बहुत बड़ी फैन हूँ। बहुत दिन सोचने के बाद मैं यह कहानी आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूँ, यह कहानी कैसी है, आप ही तय करके मुझे बताना।

अब मैं आपको अपने बारे में बताती हूँ, मेरा नाम अरूणा है, अभी 26 साल की हूँ। मेरा रंग एकदम गोरा है, इस कारण अपने चेहरे को भी मैं काफी सुंदर दिखे, ऐसा बनाकर रखती हूँ। वैसे मेरा मुँह बहुत छोटा है जिस पर होंठ अब भी गुलाबी ही हैं हालांकि पहले ये लाल रंग के थे, पर अब इन्हें लाल रखने के लिए लिपिस्टिक का प्रयोग करती हूँ। मेरी काया का आकार 36-30-36 का है। कुल मिलाकर मुझे यकीन है कि मैं अपने मासूम चेहरे और बदन के दम पर किसी को भी अपने चक्कर लगवा सकती हूँ।

पर बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरे घर वालों ने दो साल पहले मेरी शादी करा दी। मेरे पति का नाम राकेश है और वे यहाँ की एक फैक्ट्री में मशीन आपरेटर के पद पर काम करते हैं। उनकी ड्यूटी शिफ्ट में होती है।

मेरे पति राकेश को शराब पीने की आदत हैं, और कभी-कभी तो वे शराब पीकर अपनी ड्यूटी में जाते हैं। उनके बॉस वीरेन्द्र मेहता भी कई बार इनके साथ घर आते और दोनों मिलकर शराब पीते हैं।

मेहताजी के घर में आने पर जब भी मैं उनके सामने आती हूँ तब वे सभी काम छोड़कर मुझे ही देखते। लिहाजवश तब मैं उन्हें हल्की सी मुस्कान दे देती हूँ जिससे वे खुश हो जाते हैं।

एक बार घर में राकेश व मेहताजी आए। मुझे आभास हो गया कि अब वे शराब पियेंगे। सो दोनो के बाहर बैठने पर मैंने मेज कुर्सी रखकर दी। मेहताजी एकटक मुझे देख रहे थे। तब मैँने उन्हें देखकर हल्की सी स्माइल दी।

तभी मेहताजी बोले- आप पढ़ी कहाँ तक हैं?

मैं बोली- जी, मैं बीए हूँ।

मेहताजी बोले- आप कहीं काम क्यों नहीं करती हो?

इस पर मै यूँ ही मुस्कुरा दी, तो वे बोले- आप कहो तो मैं आपका जॉब कहीं लगवा दूँगा।

अब मैंने राकेश की ओर देखा तो राकेश उनसे बोले- नहीं, यह काम नहीं करेगी। घर में ही देखभाल करे, बस मुझे यही चाहिए।

इस प्रकार मेरे पति नहीं चाहते कि मैं बाहर कहीं काम करूँ, तो मुझे मन मारकर चुप होना पड़ा, और यह मुद्दा यहीं खत्म हो गया।

मैं भीतर से पानी का गिलास लेकर आई तो मेहताजी मेरे वक्ष को अपलक ताक रहे थे। उन्हें पानी देकर मैं जब अंदर जाने लगी तो मेहताजी की नजर अब मेरी गांड पर टिकी है, यह एहसास हुआ।

उनके इस तरह मुझे तकते रहने का पता राकेश को भी रहता, पर वह अपनी नौकरी के डर से मेहताजी को कुछ कह नहीं पाता था।

एक दिन की बात है, मेरे पति शराब पीकर अपनी ड्यूटी पर गए। बीच रास्ते में उनका किसी से झगड़ा हो गया। झगड़े में किसी बात पर राकेश ने उसकी कार के ग्लास को पत्थर से तोड़ दिया। इससे वह गुस्से में एक रॉड लेकर राकेश को मारने दौड़ा। तभी राकेश भागकर अपने घर आया और यहाँ छुप गया। मैं भी उनकी यह हालत देखकर काफी डर गई। राकेश भी, जिससे झगड़ा हुआ था, उससे डर कर पलंग के नीचे घुसकर बैठा हुआ था और कुछ बोल भी नहीं रहा था। तो मुझे लगा कि अब मेहताजी से ही मदद मांगनी चाहिए। मैंने मेहताजी का नंबर इनसे लिया और काल करके उन्हें बुला किया।

मेहताजी भी मेरी आवाज सुनकर तुरंत मेरे घर पहुंचे। मेरे पति को बाहर निकालकर उससे झगड़े की सब बात सुनी और बोले- तुम कुछ दिन के लिए अंडरग्राउंड हो जाओ।

राकेश- अब कहाँ जाऊँ जहाँ सुरक्षित रहूंगा?

मेहताजी ने कहा- यहाँ से कुछ दूर मेरा एक फार्म हाउस है, तुम वहाँ जाकर रहना। चलो, मैं अभी तुम्हें वहाँ भिजवा देता हूँ !

यह बोलकर मेहताजी ने आफिस फोन करके चपरासी को बुलवाया और राकेश को कुछ कैश देकर उसके साथ ही फार्म हाउस के लिए रवाना कर दिया। इनके जाने के कुछ देर बाद ही राकेश का जिनके साथ झगड़ा हुआ था, वह अपने साथ कुछ लोगों को लेकर हमारे घर पहुँच गया, राकेश को मारने के लिए।

वो लोग इतने आक्रमक थे कि मुझे रोना आ गया और मैं वहीं रोने लगी। तब मेहताजी ने उन्हें समझाया और नुकसान की भरपाई बीस हजार रूपए देकर की।

रूपए लेकर वे लोग चले गए, उन लोगों के जाने पर मेरी जान में जान आई।

अब मेहताजी मेरे पास आए और कहने लगे- कोई बात नहीं, यह सब होता रहता है।

तब भी मेरे आंख से आंसू रूक नहीं रहे थे। यह देखकर मेहताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया और फिर आँसू पौंछने लगे। उनके व्यवहार से मुझे भी अच्छा लग रहा था। मेहताजी का हाथ अब कंधे से फिसलकर पीठ पर, फिर वहाँ से भी नीचे जाने लगा। मुझे सांत्वना देने की आड़ में वो अब सरककर मेरे बिल्कुल करीब आ गए। मुझे खुद से चिपकाकर मेरे चेहरे को अपने कंधे पर लगाया और मेरे उभारों का दबाव अपनी छाती पर लेते हुए वे अपने हाथों से मेरे चूतड़ों को सहलाए जा रहे थे।

मुझे अपने पेट पर भी कुछ गड़ा तो मैंने अपनी भीगी हुई आंख झुकाकर देखा। वह मेहताजी का तना हुआ लंड था, जो मानो उनकी पैन्ट फाड़कर मेरे भीतर समा जाना चाहता हो।

अब मैं उनसे अलग हुई। वो भी सामान्य हो गए और अपनी जेब से कुछ रुपए निकालकर मेरे हाथ में रखकर बोले- ये रुपए घर खर्च के लिए रखो और भी किसी चीज की जरूरत पड़े तो बिना किसी झिझक मांग लेना।

अब मैं सोच रही थी कि यह आदमी मेरी इतनी मदद कर रहा है और पैसे वाला भी है, यह मुझ पर जान भी झिड़कता है, फिर क्यूं न इसे अपनी चूत पर सवार होने दूँ। इसमें इन्हे इतना मजा दूँ कि यह मेरी चूत का दीवाना हो जाए और फिर मेरे बिना रह ना सके।

अब मुझे राकेश से चिढ़ भी हो रही थी कि साला बस अपना ही काम देखता है, मुझे जब चोदने आता है तब अपना जल्दी से गिराकर मुझे ऐसे झटकारता है जैसे मैं ही उसे चोदने को कही थी।

एक लंबा समय हो गया, जब उसने मुझे सैक्स में संतुष्टि नहीं दी हैं। लिहाजा अब यदि मेहताजी को खुद पर सवार होने दिया जाए तो दोनों काम बन जाएंगे, और पैसों की समस्या भी हल हो जाएगी।

मैंने मेहताजी से कहा- आपने हमारी जो मदद की हैं, वह एहसान मैं कैसे उतारूंगी?

मेहताजी बोले- इसमें एहसान की क्या बात है, यह तो मेरा फर्ज था।

मैंने कहा- नहीं, आपने बहुत कुछ किया है हमारे लिए, और आपको देने के लिए मेरे पास मेरा यह जिस्म ही है।

यह बोलकर मैंने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और बोली- यदि आप चाहें तो मैं आपको खुश कर सकती हूँ।

यह सुनकर मेहताजी की चेहरे पर मुझे खुशी का वो रंग दिखने लगा जो कभी उनके शराब पीते समय मेरे दिखने पर आ जाता है, वो बोले- मुझे भी तुम पसंद हो, इसलिए तो मैं तुम्हारी इतनी सहायता कर रहा हूँ और वो छोड़ो, सिर्फ तुम्हें देखने के लिए ही मैं राकेश के साथ शराब पीने तुम्हारे घर तक आता रहा हूँ, और तुम्हारे कारण ही उसे अपने फार्म हाउस में छुपाया है। वैसे अब सिर्फ पल्लू हटाने से क्या होगा।

मैं तो बेशर्म हो चुकी थी, मेहताजी से बोली- पल्लू हटाना तो बस एक शुरूआत है, आप बेडरूम में चलिए ना, वहाँ मैं आपके लिए नंगी होती हूँ।

मेरे इतना कहते ही मेहताजी ने मुझे अपनी गोद में उठाया और बेडरूम में पलंग पर लाकर डाल दिया। और पलंग पर डालते ही मुझे नंगी करना शुरू कर दिया, मेरी साड़ी खींचकर निकाली, वहीं कोने में फेंक दी।

मैंने ब्लाउज जल्दी से उतारी, नहीं तो वे उसे खींचकर फाड़ रहे थे।

अब मेहताजी ने मेरे पेटीकोट का नाड़ा पकड़कर खींचा, वह खुला तो पेटीकोट को भी किनारे फेंक दिया।

मेहताजी बोले- अरूणा, अपनी टांगें खोल दो ताकि हम भी तो देंखे कि राकेश ने तुम्हारी चूत का ख्याल रखा है या फिर चोद-चोद कर तुम्हारी चूत बड़ी कर दी है।

अब मैं पूरी तरह से नंगी होकर मेहताजी के सामने पड़ी थी और इस बात से काफी खुश थी।

आखिरकार मैंने मेहताजी के लिए अपनी दोनों टांगें खोल दी।अब मेहताजी मेरी चूत में उंगली डालकर हिलाने लगे, मेरे बदन में सुरसुरी उठने लगी।

मेहताजी बोले- वाह वाह ! क्या टाइट चूत है, लगता है अभी तक सही ढंग से चुदाई ही नहीं हुई है।

फिर उन्होंने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और नंगे खड़े हो गए। अब उनका काला मोटा लंड मेरे सामने था। उन्हें देखकर ही मुझे काफी अजीब सा लग रहा था। भीतर से चूत में उनका लंड लेने की इच्छा तो थी पर उनका शरीर मोहक नहीं था, छाती से लेकर पेट और लंड के ऊपर भी घने काले बालों का गुच्छा मौजूद था, पर उनका बड़ा लंड जिस ढंग से अपना सिर ताने मुस्कुरा रहा था उससे मुझे उनके लौड़े की मुस्कान अपने भीतर करने की इच्छा बलवती होने लगी, मेरी चूत में भी खुजली शुरू हो गई।

अब मेहताजी मेरे पास आए और मेरी चूत पर अपने होंठ रख दिए, अब उनकी जीभ मेरी योनिद्वार से अंदर बाहर होकर मुझे चोदने लगी।

अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था, मैं बोली- अबे चोदना है तो इसमें लंड डाल ना मादरचोद ! तेरी जीभ से मोटा तो मेरे राकेश का

लाऊडा है, उसी से नहीं चुदवा लूंगी फिर? तू मोड़ कर डाल लेना अपना लंड अपनी ही गांड में।

यह मैं जानबूझ कर नहीं बोली थी, पता नहीं कैसे यह मेरे मुंह से निकल गया।

अब मेहताजी ने मेरी चूत की दोनों फांकों को एक कर चूसा, फिर ऊपर मेरे होंठ पर अपने होंठ रखे और अपने लंड को मेरी चूत पर रखकर अपनी कमर को झटका दिया। उनका लंड मेरी चूत में घुसते ही मुझे बहुत जोर से दर्द हुआ, लिहाजा मेरी चीख निकल पड़ी। मेहताजी ने अब अपने होठों मेरे होंठ रख दिए, जिससे मेरी चीख अंदर ही घुट गई। मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेहताजी ने मेरी चूत में काला डण्डा डाल दिया हो। अब वे धीरे-धीरे आगे पीछे होने लगे, इससे मेरा दर्द कम हुआ।

लिहाजा मेरे मुँह से आनंददायक स्वर फूटने लगे। मेहताजी अब मेरे निप्पल को दबाने लगे, कुछ देर में ही उन्होंने अपनी कमर को मोड़ कए मेरे निप्पल अपने मुंह में ले लिए।

इस समय का नजारा कुछ यूं था कि उनका लंड मेरी चूत में था, और उनका मुंह मेरे निप्पल को चूस रहा था।उनका मोटा लंड अब मेरे भीतर खलबली करने लगा। मैंने भी उनके मोटे लंड को अपने भीतर समाने नीचे से उछलकर शॉट मारना शुरू कर दिया था। मैं सच कहूं तो अपनी दो साल की शादीशुदा जिन्दगी में इतना मजा मुझे कभी नहीं आया।

वो धक्के पर धक्का मारे जा रहे थे, बदले में मैं नीचे से अपनी कमर उछालकर ओह्ह याआ आआ आ आआअह्ह की आवाजें किए जा रही थी। कुछ ही देर में उन्होने अपना लंड बाहर निकाला और मुझे पकड़कर उल्टा लेटने कहा।

मैं बोली- ऐसे ही करिए ना ! पहले मेरा जल्दी से गिरा दो फिर ऐसे हो जाऊँगी।

उन्होंने कहा- अच्छा, घुटने के बल खड़े हो ना जल्दी।

उन्होंने यह इतना बेसब्री में कहा कि मैं भी अपना मन मारकर घुटनों के बल खड़ी हो गई।

अब वो मेरे पीछे आए और पीछे से नजर आ रही मेरी चूत में अपना लंड डालने लगे।

मुझे याद आया यह डागी स्टाइल है, मैंने सुन रखा था कि इस पोजीशन में जोरदार चुदाई भी बहुत आराम से हो जाती है तो मैंने भी अपनी जांघें फैलाकर उनके लंड को चूत के भीतर लिया और घोड़ी बन कर चुदाई का आनंद लेने लगी।

बस कुछ ही देर में मेरी चूत ने फव्वारा छोड़ दिया। पर मेहताजी अब भी लगे हुए थे। यहाँ का नजारा मैं आपको समझाऊँ तो जिस तरह एक मोटा काला कुत्ता जैसे किसी सफेद बिल्ली को दबोच लेता है, वैसा ही कुछ नजारा यहाँ का भी था।

मेहताजी के झटके अचानक तेज होने लगे, मैंने समझ लिया कि अब क्लाइमैक्स का समय आ गया है।

मैंने कहा- बाहर मत करिएगा, भीतर ही छोड़ो। मैं आपसे बच्चा चाहती हूँ।

मेरा इतना बोलना हुआ कि उन्होंने अपनी सारी क्रीम मेरी चूत में छोड़ दी। मुझे ऐसा लगा मानो मेरी चूत में वीर्य का सुनामी आ गया हो, मेरी चूत वीर्य से भर गई।

अब मेहताजी बिस्तर पर ही लेट गए और हांफने लगे। मेरी सांसें भी ऊपर नीचे हो रही थी।

मेहताजी बोले- अरूणा, क्या तुम मेरी रखैल बनोगी?

मैंने कहा- मेहताजी, जिस वक्त आपने मुझे घर खरचे के लिए पैसे दिए, मैंने उसी वक्त सोच लिया कि आप जब चाहें मुझे चोद सकते हैं, बस आप मेरे राकेश को संभाल लेना।

बस फिर क्या था हम दोनों हंस पड़े। इस दिन के बाद से मेरी चूत में मेरे पति राकेश के अलावा मेहताजी के लौड़े का आना भी शुरू हुआ।

उस दिन से मैं पैसों की मजबूरी और चूत की गरमी व भूख मिटाने के लिए मेहताजी की रखैल बन गई।

मेरा पति राकेश चार दिन तक अंडरग्राउंड रहकर मेहताजी के फार्म हाउस में रहा और मेहताजी इधर मेरे ही घर में मुझे दिन रात चोदते रहे। इन चार दिनों में उनके मोटे लंड ने मेरी कोमल चूत को घिसकर रख दिया।

इसके बाद की कहानी यह है कि जब भी मेरे पति ड्यूटी पर जाते हैं, मेहताजी मेरे घर आकर मुझे चोदते हैं, और इसके बाद अक्सर मुझे रुपए दे जाते हैं।

एक दिन मेरे पति को हम पर शक हुआ और वे ड्यूटी से जल्दी ही घर लौट कर आ गए।

मेहताजी की कार बाहर खड़ी देखकर वे अंदर आ गए और हमें रंगे हाथ पकड़ लिया।

इसके बाद क्या हुआ? यह कहानी मैं बाद में बताऊँगी।

मेरी कहानी आपको कैसी लगी, कृपया बताएँ।

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