वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा

वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा

प्रेषक : संजीव सिंह

कहानी लगभग आठ वर्ष पुरानी है, मैं यूरोप में नौकरी करता था और जैसे किसी भी आम व्यक्ति की ज़िन्दगी में होता है, मेरे साथ भी हुआ।

एक लड़की मिली, मेरे साथ ही काम करती थी, नाम था क्रिस्टीना।

मेरी उम्र उस वक़्त 29 साल की थी जबकि क्रिस्टीना 32 साल की। वो रूस से थी।

पेट इंसान से क्या नहीं करवाता, वरना शायद उसको नौकरी के लिए यूरोप नहीं आना पड़ता। उसके परिवार में तीन सदस्य थे, उसकी माताजी और एक छोटी बहन !

परिवार की जिम्मेवारी उस पर थी इसलिए वो सिर्फ अपने काम से ही मतलब रखती थी, हम लोग सिर्फ लंच ब्रेक पर ही बात कर पाते थे।

कुछ महीने साथ काम करने के बाद हमारा शाम को साथ ऑफिस से निकलना और घूमना फिरना शुरू हुआ। उसे हमेशा अपने परिवार की फ़िक्र लगी रहती थी और वो पैसे मिलते ही सबसे पहले बैंक जाकर घर पैसे ट्रान्सफर करती थी। महीने में शायद एक वो ऐसा दिन होता था जब वो मुझे अपने साथ लेकर जाती थी क्योंकि मेरे पास कार थी और हम जल्दी जाकर वापस आ जाते थे।

दोस्ती से आगे बात बढ़ नहीं रही थी, शायद हम दोनों ही को ठीक से कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरे साथ काम करने वाले एक मित्र ने तो यहाँ तक कह दिया कि मेरे बस का कुछ भी नहीं है।

खैर समय गुजरता गया और सर्दी का मौसम आ गया। एक दिन अचानक क्रिस्टीना मेरे पास आई और कहने लगी- क्या आप मेरे लिए एक बेहतर नौकरी ढूँढने में कुछ मदद कर सकते हैं?

मैंने कहा- जरूर ! पर कुछ समय लग सकता है।

थोड़ा पूछने पर पता लगा कि उसकी छोटी बहन को अमेरिका में पढ़ने का मौका मिल रहा है पर अभी स्कोलरशिप नहीं मिल रही।

हम दोनों में अच्छी दोस्ती थी इसलिए मैंने कहा- तुम चिंता मत करो और बहन को भेजने की तैयारी करो।

मेरे पास बैंक में ठीकठाक पैसे पड़े थे जो मैं उसे दे सकता था। थोड़ा मना करने के बाद क्रिस्टीना मान गई और लगभग एक महीने बाद उसने मुझे बताया कि उसकी बहन ने फर्स्ट सेमेस्टर में प्रवेश पा लिया है और सब ठीक से हो गया है। उस दिन वो बहुत खुश थी और आगे शनिवार और रविवार की छुट्टी भी थी।

उसने मुझे शाम को ऑफिस बंद होते समय डिनर साथ करने के लिए कहा, हम वैसे भी काफी समय से ऑफिस के बाद बाहर घूमने नहीं गये थे और फिर उसकी ख़ुशी में शामिल होना मुझे अच्छा लगता था। शाम को साथ निकले तो हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी।

जब तक हम एक रेस्तराँ में पहुँचे तो बारिश तेज हो गई थी। रेस्तराँ बिल्कुल भरा था और कहीं भी बैठने की जगह नहीं मिल रही थी। मैं कुछ निराश सा हो गया था, मैंने कहा- कल सुबह मिलते हैं, ब्रेकफास्ट साथ में करेंगे और गाड़ी उसके घर की तरफ घुमा दी।

उसने कहा- अगर आप मुझको घर तक छोड़ रहे हैं तो डिपार्टमेंटल स्टोर से होते हुए चलें !

मुझे भी ठीक लगा क्योंकि मेरी भी कुछ खरीददारी बाकी थी, पास ही वालमार्ट स्टोर था, गाड़ी पार्क करके हम दोनों शॉपिंग में लग गए। मैंने अभी शॉपिंग शुरू ही की थी कि वो आई और बोली- लेट्स गो संजीव !

मैं कुछ असमंजस की स्थिति में था क्योंकि उसके हाथ मे एक शैम्पेन की बोतल और एक लप्पोनिया क्लोऊडीबेर्री की बोतल थी।

उसने कहा- हम दोनों घर पर ही डिनर करेंगे !

हम दोनों उसके घर पहुँचे और वो तैयारी में लग गई, उसने कहा- मुझको बिरयानी बनानी आती है क्योंकि मेरे पिताजी कुछ समय भारत में रहे थे और वापस आने के बाद भी बनाते रहते थे।

उसने सब कुछ ओवन में डाल कर टेम्परेचर सेट कर दिया और पूछा- आपको कोई जल्दी तो नहीं है?

आगे दो दिन की छुट्टी थी सो मैंने भी कहा- दो दिन की छुट्टी है तो क्या जल्दी है !

उसने कहा- मैं फ्रेश होकर आती हूँ।

लगभग दस मिनट बाद वो हाउसकोट पहन कर आई, यह पहली बार था जब मैंने उसकी मखमली टांगों को देखा और लगभग खो सा गया, बहुत सुन्दर लग रही थी। मैं एकदम झटके से अपने ख्यलों की दुनिया से बाहर आया जब बोतल का कॉर्क खुलने की आवाज आई।

शायद उसने भी मेरी इस हालत को महसूस कर लिया था, उसने मुझे कॉर्क सूंघने को कहा। उम्दा खुशबू थी, मेरे चेहरे के भाव पढ़कर वो मुस्कुराई और पूरी अदा से दोनों गिलासों को भर दिया, चीयर्स हुआ और हम दोनों साथ बैठकर पीने लगे।

क्रिस्टीना के चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव था। बातों ही बातों में उसकी बहन का ज़िक्र निकल आया तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर हल्के से चूम लिया और कहा- अगर आप मदद न करते तो इतनी जल्दी इतना सब नहीं हो पाता।

मैंने भी उसका हाथ हल्के से दबा दिया और वो खिसक कर मेरे पास आ गई। उसका गिलास खाली हो गया था जबकि मेरा लगभग आधा भरा हुआ था, उसने सर मेरे कंधे पर टिका लिया और एक सिप मेरे गिलास से पी लिया। मैं इसको नशा तो नहीं कह सकता पर थोड़ा हल्कापन और उसकी इतनी नजदीकी कि मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और उसके होठों पर होंठ टिका दिए। वो या तो इसके लिए तैयार थी या शायद यह मुझे शुक्रिया कहने का तरीका था कि लगभग कुछ दो मिनट बाद जब हम अलग हुए तो उसने कहा- बेडरूम में चलते हैं !

अंदर पहुँचने के बाद मुझे याद नहीं कि किसी ने कुछ बोला, हम दोनों एक दूसरे को बस देखते रहे और मुझे पहली बार लगा कि भारत के बाहर भी प्यार के लिए आँखों की भाषा का उपयोग किया जाता है।

वह झुकी और मेरी पैंट को मुझसे अलग कर दिया, अंडरवीयर थोड़ी नीचे किया और मेरा लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं इस नये एहसास से पागल हुआ जा रहा था। थोड़ी देर बाद खड़ा रहना मुश्किल हो गया तो मैंने उसके कंधों पर अपने हाथ टिका दिए।

वो खड़ी हुई तो मैंने उसका हाउसकोट उतार दिया। संगमरमर सा बदन मेरे सामने था केवल ब्रा और पेंटी से ढका हुआ !

मैंने ब्रा भी उतार दी और उसके उरोजों को अपने हाथों से महसूस करने लगा। फिर जब मैंने उनको चूमना शुरू किया तो पहली बार उसके मुँह से सिसकारियाँ सुनाई देने लगी। हम दोनों बिस्तर पर लेट गए और उसने मुझे बिल्कुल नंगा कर दिया। वो दुबारा मेरे लण्ड को चूसने लगी और मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा। मैंने उसको इशारा किया तो वो घूम गई और उसकी पेंटी मेरी आँखों के सामने आ गई। मैंने देखा तो वहाँ एक गीला निशान बन गया था। मैंने उसे उतारे बिना ही सिर्फ एक तरफ से अलग लिया और अपने होंठ टिका दिए, शायद मेरी तड़प का भी यही इलाज था।

जो नया स्वाद जबान को लगा शायद इससे बेहतर तो दुनिया में कोई पेय नहीं होगा। मेरी मेहनत रंग ला रही थी और मै उसके शरीर में भी अकड़न महसूस कर रहा था।

मैं स्खलित होने वाला था और शायद इतनी देर हो चुकी थी कि उसको कुछ बोल भी नहीं सकता था। ज्वालामुखी की तबाही कैसी होती होगी शायद यह उस दिन पता चला, लगभग 4-5 बड़े विस्फ़ोट हुये और सब शांत हो गया।उसकी याद मुझे लगभग 10 सेकंड बाद आई और ध्यान आया कि वो तो अभी बीच में ही हैं।

मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और लिटा दिया, उसकी पेंटी उतारी और फिर शुरू हो गया। उसने दोनों हाथों से मेरे सर अपने अंदर दबाना शुरू कर दिया और सिसकारियों के बीच दबी आवाज में मेरा नाम भी लेना शुरू किया।

पहली बार मुझे लगा कि मैं भी किसी के काम आ सकता हूँ। उसकी ख़ुशी देखकर मेरा जोश दुगना हो गया और मैं पूरी मेहनत से अपनी जीभ से उसकी गहराइयाँ नापने लगा।

उसने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने उरोजों पर रख दिया और दूसरे हाथ की उंगलियाँ चूसने और धीरे धीरे चबाने लगी। उसके शरीर की अकड़न बढ़ती ही जा रही थी और मैं उसकी टांगों के बीच घुसा जा रहा था। शायद एक ज्वालामुखी का विस्फ़ोट अभी बाकी था, बस जगह बदल गई थी।

क्रिस्टीना एकदम ढीली पड़ गई, उसने मुझे ऊपर खींचा और हमारे होंठ फिर मिल गए, शायद दो ज्वालामुखियों में भी समझौता हो गया एक, अब जब भी विस्फ़ोट होगा, साथ ही में होगा।

यहाँ से मेरी और क्रिस्टीना की कहानी शुरू होती है, स्कूल छोड़ने के बाद पहली बार हिंदी में लिखने का प्रयास किया है, काफी गलतियाँ हैं कोशिश करूँगा इनको कम कर आगे की कहानियाँ बेहतर ढंग से पेश करूँ !

आपकी इमेल का इंतजार रहेगा।

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