पुणे वाली मेरी सहेलियाँ

पुणे वाली मेरी सहेलियाँ

लेखक : अनुज पटियाला

मैं पूना में पढ़ता था तब की यह कहानी है। मैंने एक फ़्लैट किराये पर लिया था। हमारे घर मालिक अरुण पी दामलेजी खुद के ऊपर के मंज़िल वाले फ़्लैट में रहते थे। उनकी दो बेटियाँ शर्वरी और शलाका बहुत ही खूबसूरत थी। दोनों में केवल एक साल का अंतर था। दोनों की कंची कंची हरी हरी आँखें और चहरे पर सुनहरे केवड़े जैसी सुनहरी कांति थी। शर्वरी के वक्ष-उभार काफ़ी भरे हुए लगते थे लेकिन शलाका के नितम्ब बहुत ही आकर्षक थे। दोनों जवानी की दहलीज पे थी, 18 और 19 साल की उनकी उम्र थी।

दिल्ली में मैंने सेक्स का अनुभव मेरी पड़ोस वाली भाभी के साथ जीवन में पहली बार किया था। उसके बाद मुझे पूना में इंजिनीयरिंग को ऍडमिशन मिलने तक मैंने उस भाभी के साथ खूब चुदाई की थी। इसलिये मैं अपने इस नये तजुर्बे को इस्तेमाल करने को बेताब था। मुझे आते जाते कभी दोनों बहनें देखती तो आपस में खुसुर फ़ुसुर करके खिलखिलाती थी।

एक दिन मैं कॉलेज से लौटा और अपनी मोटरसाइकिल पार्क कर रहा था तो वो दोनों सीढ़ियों के बीच में खड़ी थी और उन्होंने फिर से एक दूसरी से खुसुर फ़ुसुर की और मेरी तरफ़ देख के खिलखिलाकर हँस पड़ी। मैं सीढ़ियों से गुजर रहा था तो भी वो हटी नहीं। मैंने उन्हें घसीट के जाते हुए हिम्मत की और शलाका के फूले हुए नितम्ब पर एक जोर से चुटकी काट ली। दोनों ने घर में पहनने वाले गाउन पहने हुए थे।धड़धड़ाता हुआ मैं ऊपर आया और अपना फ़्लैट खोलने लगा। वे दोनों भी धड़धड़ाते ऊपर गई और जाते जाते शर्वरी ने सन्तुलन बिगड़ जाने का बहाना किया और मेरी पीठ पर अपने स्तन रगड़ कर फ़िर हँसती हुई ऊपर चली गई। मुझे बेल बजाने की आवाज नहीं आई बल्कि चाबी से ताला खोलने की आवाज आई तो मैं समझ गया कि वे दोनों घर में अकेली हैं।

मैंने उनसे दी गई लिफ़्ट को समझा और कपड़े बदल के सिर्फ़ लुंगी और पतला सा टी शर्ट डाल कर ऊपर जाकर उनकी घण्टी बजाई। शर्वरी के दरवाजा खोलते ही मैंने तुरन्त अंदर घुसकर दरवाजा फिर से बंद कर दिया।

वह बड़ी आँखों से देखती रही और फिर मुस्कुरा कर उसने पूछा- क्या चाहिये?

“मैं प्यासा हूँ, मुझे पानी चाहिये। मेरे यहाँ पानी खत्म है।”

“आप बैठो, मैं लाती हूँ।”

वह मुड़कर जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़कर खींचा तो वह मेरी बाहों में आ गई और मैंने उसकी दोनों चूचियाँ पहले धीरे से सहलाई और फिर जोर से कस कर मसल कर पकड़ कर रखी।

“ओफ़्फ़ोह ! यह आप क्या कर रहे हो?” उसने तिलमिलाकर कहा।

मैंने एक हाथ चूची से हटाकर उसका मुँह पीछे मोड़कर उसके होठों पे होंठ रख दिये। वह मेरी बाहों में निढाल हो गई और उसने खुद को पूरी तरह से मेरे हवाले कर दिया। उसके होठों का रसपान करते हुए मैंने उसकी कस कर पकड़ी हुई चूची छोड़ दी और हाथ नीचे सरका कर उसके पतले गाउन में से उसकी चूत पकड़ ली और उसे मसलने लगा।

उसका काम सलिल बहने लगा और पूरा कमरा उसकी सेक्स की खुशबू से महकने लगा। लुंगी में खड़े मेरे लंड पर उसकी गांड की दरार एकदम फ़िट बैठी थी। वह गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहने हुए है यह स्पष्ट महसूस हो रहा था।

मैंने उसका निचला होंठ अपने मुँह में खींच लिया और दाँतों से उस पर जोर से काट खाया, कुछ क्षण पकड़ कर रखा और फिर उसके दोनों होंठ अलग कर के उसके मुँह में अपनी जीभ डाल दी। वह मेरी बाहों में छटपटाई तो मेरा लंड उसकी दरार में और भी तनकर अटक गया। उसके होंठ से खट्टा खट्टा खून मेरे मुँह में रिस रहा था और मैं बड़े चाव से उसका होंठ चूस रहा था।वह भी मेरी जीभ इतनी तन्मयता के साथ और जोर से चूस रही थी मानो जड़ से उखाड़कर निगल जायेगी। उतने में अंदर के कमरे से शलाका अपने भारी कूल्हे मटकाते आई और हमें देख कर दंग रह गई।

शर्वरी की आँखें बंद थी तो उसे पता नहीं चला और हमारे पास आकर उसने शर्वरी का कंधा पकड़ कर हिलाया और कहा- दीदी, यह क्या हो रहा है?

शर्वरी चौंक कर मुझसे अलग होने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैंने एक हाथ से उसकी कमर कस के पकड़ रखी और दूसरे हाथ से पास आई शलाका को खींच के उसके भी कमर में हाथ डाल के उसे भी अपने साथ सटा लिया।

वह तो शर्वरी से भी गर्म थी और उसका शरीर बुखार जैसा तप रहा था। फ़िर मैंने शर्वरी को छोड़ दिया और शलाका की दोनों बाहें उठा कर अपने गले में लपेट ली। उसने भी अपनी कोहनियों तक मेरे गले में बाहें कस ली तो वो मेरे गले में लटक गई और उसके पैर जमीन से छूट गये। मैंने उसके कूल्हों को दोनों हाथों में कसकर दबाया तो वह मुझसे और कस कर लिपट गई और तुरंत मैंने उसके होठों में होठ डाल कर उसे बेतहाशा चूमना शुरू किया।

उसकी छोटी छोटी और सख्त चूचियाँ मेरे पतले टी शर्ट में से चुभ रही थी। थोड़ी देर बाद मैंने उसे अपने से बड़ी मुश्किल से अलग किया और नीचे उतारा। अब दोनों बहने शरमा कर एक दूसरे से लिपट गई और हंसने लगी।

मैंने उनसे कहा- चलो, बेडरूम मे चलते हैं।

तो शर्वरी ने दरवाजे की सभी बोल्ट लगा कर दरवाजा अच्छी तरह से लॉक किया और मैं दोनों को अपने से चिपटाते हुए बेडरूम में ले गया।

दोनों के गाउन उतारते ही दोनों पूरी नंगी हो गई। दोनों की कंची कंची हरी आँखें चमक रही थी और सोने जैसा बदन दमक रहा था। मैंने आगे बढ़कर शर्वरी के उरोज सहलाते हुए उसकी योनि पर हाथ रखा तो वह मखमल के कपड़े के समान नर्म थी। हम तीनों पलंग पर लेट गये और दोनों मुझसे चिपटने लगी।

शलाका ने मेरी लुंगी खोल दी तो मेरा फ़नफ़नाता लंड देखकर वह दंग रह गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

“चूमो न उसे !” शर्वरी ने हंसते हुए कहा तो शलाका ने उसे पकड़ कर बड़ी सावधानी से उसके टोपे पर हल्के से होंठ रखकर चूमा और फ़िर धीरे धीरे अच्छी तरह से चूमने लगी और फ़िर पहले टोपा और बाद में पूरा मुँह में लेकर चूसने लगी। शर्वरी भी नीचे आकर मेरी गोटियों को सहलाने और फिर चूसने लगी।

अब मुझसे रहा नहीं गया और मैं शर्वरी को लिटा के उसके पैर अलग करके बीच में घुटने टेक के बैठा और उसकी चूत पे शलाका की लार से तर मेरा लंड लगाके अन्दर टोपा घुसाया।

क्या नजारा था वो ! मेरा सुपारा खाकर फूली हुई एकदम थोड़े से अभी अभी उगने शुरू हुए बालों से ढकी उसकी गुलाबी चूत मेरे लंड पर मखमल जैसी महसूस हो रही थी। उसकी दोनों निपल्स मैंने अंगूठे और उंगलियों के बीच मसलते हुए उसकी चूचियाँ कस कर दबोच ली और उसके होठों को अपने होठों में लेकर पहले वाली जगह पर ही फिर से उसका निचला होंठ दाँतों में जोर से काटा, पकड़ कर रखा और एक करारा धक्का मार कर अपना लंड उसकी चूत में आधे से ज्यादा गाड़ दिया। उसका मुँह मैंने अपने होठों से कस कर बंद किया था इसलिये उसकी चीख गले में ही दब कर रह गई लेकिन उस तीखे तीर के घाव से वह उछली और पैर गद्दे पर रख के उसने झटके से कमर ऊपर उठाई और वह धनुष जैसी ऊपर उठी तो मैं एक क्षण के लिये उसके शरीर पर सवार हवा में था। बस दूसरे ही क्षण मैंने तीन चार धक्के मार के उसे पूरा पलंग पर दबा दिया और मेरा लंड पूरा चूत में समा गया।

आगे की नोक से लेकर पीछे के परों तक प्रेमबाण उसके नाजुक दिल में अन्दर तक घुस गया। मुझे लंड के इर्द गिर्द गर्म खून महसूस हुआ और मैं शर्वरी के कुँवारी होने के इस सबूत से और भी विभोर होकर उसे बहुत ही कोमलता से और प्यार से चूमता रहा।उसके रेशमी होंठ अपने होंठों से, जीभ से सहलाता रहा। उसकी चूचियाँ हल्के हाथों से सहलाता रहा। उसे जरा आराम महसूस होने पर मैंने फिर लंड को धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरु किया। थोड़ी ही देर में उसका दर्द कम हो गया और वह भी मेरा साथ देने लगी।

जैसे ही मैं लंड बाहर निकालता तो वह अपने चूतड़ उठा कर उसे फिर अन्दर लेने लगी और फिर मैं जोर से नीचे धक्का दे कर उसे पलंग पर दबा देता।

शलाका कुछ देर तो मेरे गोटियों के एकदम नजदीक चेहरा लाकर लंड का अपनी बहन के चूत में घुसना और निकलना गौर से देखती रही और फिर मेरी गोटियाँ सहलाने, मसलने और चूसने लगी।

आखिर कुछ देर के बाद शर्वरी का पूरा बदन थर्राने लगा और वो झड़ गई और उसी समय मैंने भी अपनी वीर्य की लम्बी लम्बी पाँच छः पिचकारियाँ उसकी खून से लथपथ चूत में छोड़ दी।

काफी देर उसकी चूचियाँ सहलाते और उसे चूमते हुए मैं उसके शरीर पर पूरा भार देकर लेटा रहा और फिर उठ कर मैंने उसकी चूत के खून से ही अंगूठा रंग के उसकी माँग भर दी, अपने निकाल कर फेंके टी शर्ट से उसकी पूरी चूत साफ़ की।

शलाका यह सब बड़ी बड़ी आँखें किये देखे ही जा रही थी। अब मैंने उसे चिपटा लिया और उसकी छोटी छोटी चूचियों से खेलने लगा। वह मेरा वीर्य से और उसकी बहन के कुँवारे खून से भरा लण्ड चूसने लगी।

थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से खड़ा हुआ और मैं शलाका को लिटा कर चोदने लगा। लेकिन वह तो शर्वरी से भी एक साल छोटी थी। उसकी चूत पर बस चार छह बाल अभी उभरे थे और फूली डबल रोटी सी बहुत ही मुलायम रेशमी चूत थी उसकी। लंड का सुपारा तक अंदर घुस नहीं सकता था।

फिर शर्वरी ने अपनी बहन की चूत की पंखुड़ियाँ अपनी उंगलियों से खींच के अलग करके पकड़ के रखी और फिर मैंने बहुत ही धीरे धीरे अपना लंड अंदर घुसाना शुरु किया। शलाका छटपटा रही थी लेकिन बहुत हिम्मत वाली थी। बिना आवाज निकाले, बिना चिल्लाये उसने पू्रा लंड अंदर ले ही लिया। लेकिन उसका सर दर्द के मारे दायें बायें हिल रहा था और आँखों से आँसुओं की धार लगी थी। मैंने उसे चूमते, सहलाते धीरे धीरे राहत दिलाई। एक बार झड़ने के कारण मुझे कुछ भी जल्दी नहीं थी। उसकी चूत तो इतनी कसी थी कि जब मैंने पहले हलचल शुरु की तब उसकी चूत मेरे लंड को छोड़ने को तैयार ही नहीं थी, इतनी बुरी तरह मेरे लंड को जकड़े हुए थी।

धीरे धीरे शलाका को भी मजा आने लगा और काफ़ी देर तक हमारी चुदाई चलने के बाद मैंने शलाका के खून से लथपथ चूत में अपना वीर्य पिचकरियों से पहुँचा दिया और मुस्कुराती, तृप्त शलाका की भी माँग उसी के चूत के खून से भर दी।

फिर हम बातें करने लगे। मिस्टर दामले और मिसेस दामले दो दिन के लिये गाँव गये थे। शर्वरी और शलाका ने अपना कौमार्य जल्दी खोने का अपनी एक सहेली का अनुभव सुन कर तय किया था। किसी को शक ना हो इसलिये मैं रात को देर से फिर से उनके फ़्लैट में गया और दो दिन हम तीनों हर तरह से चुदाई करते रहे।

उसी रात को मैंने शलाका की गांड भी मार दी। फिर दूसरे दिन शर्वरी ने मुझे भी चाहिये ऐसा हठ कर के अपनी भी गांड मरवा ली। फिर हम मेरे एक दोस्त के खाली फ़्लैट पे मिलते और चुदाई करते रहे। वे दोनों जिंदगी भर मुझे ही अपना पति मानती रही। उनकी शादियाँ होने के बाद भी।

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