मेरा जादू चल गया

मेरा जादू चल गया

लेखिका : लक्ष्मी कंवर

मैं तीस वर्षीया शादीशुदा स्त्री हूँ। शादी को काफ़ी अर्सा हो गया है। अब मेरे पति मेरी चुदाई में कम दिलचस्पी लेते हैं।

ऐसे में इनका एक दोस्त हमारे शहर में हमारे घर आने लग गया। सुन्दर, इकहरा बदन, गोरा रंग, चुलबुली बाते करने वाला, खूब हंसाने वाला व्यक्ति था वो। यों तो एक हद तक मैं पतिव्रता स्त्री हूँ पर जिस्म की प्यास और तड़प शान्त करने के लिये फिसल भी जाती हूँ। जी हां दो तीन बार फ़िसल चुकी हूँ पर फिर मैं अपने आप को सम्भाल लेती हूँ। अब देखिये ना ! जीवन भाईसाहब को देख कर मेरा फिर से ललचाने लगा। बस मुझे लगने लगा कि एक बार जी भर कर इससे चुदा लूँ तो मेरा मन शान्त हो जाये।

मैं जीवन भाई साहब के साथ जानबूझ कर हंसी मजाक करने लगी। उसकी बातों को तवज्जो देने लगी। जीवन भी अब मुझे कुछ समझने की दृष्टि से देखने लगा था। मैं पति के जाने के बाद उसके सामने मात्र पेटीकोट और ब्लाऊज में उघाड़े जिस्म आने लगी थी, जिससे कि वो मेरे अंगों को भली-भांति निहार सके। मेरे चूतड़ों की गोलाईयों का जायजा ले सके और मेरी ओर आकर्षित होने लगे। इसका असर जीवन पर होने लगा था। मुझे देखते ही उसका लण्ड उठान पर आ जाता था।

मैं तीर चलाऊँ और सामने वाला घायल ना हो, यह तो हो ही नहीं सकता है ना। वो मेरे आस पास ही मंडराने लगा था। उसे देख कर मेरी चूचियाँ तन जाया करती थी, ब्लाऊज तंग लगने लगता था, चोली के नीचे हलचल मचने लगती थी।

मैंने धीरे-धीरे अब उसे देख कर मुस्कराना शुरू कर दिया था। वो भी मुझे एकटक देखने लगता था। वो मेरे एक एक अंग को ध्यान से देखता था। लगता था मेरी चूचियों को अभी आकर दबा देगा।

“भाई साहब, आपकी पत्नी को कभी लाईये ना !”

“अरे भाभी उसका तो स्कूल ही उसके लिये सब कुछ है … बस मुझे ही अकेले आना पड़ता है।”

“मैंने सुना है वो बहुत सुन्दर है?”

“जी ! पर आप जैसी नहीं है !” उसने मुझ पर जाल फ़ेंका।

“आप भी तो कुछ कम नहीं हो …” मैंने भी शर्माते हुये उसे लपेटा।

“ना ! आप तो बहुत ही अच्छी हैं !”

“भला बताओ तो अच्छा क्या है?” मैंने शरारत से पूछा। अपने ब्लाउज में हाथ डाल कर मैंने अपनी चूचियों को खुजा लिया।

“ओह, क्या कर रही हो भाभी…”

” खुजली हो रही है ना !”

“और भी कहीं होती है क्या ?”

“तुम्हें क्या लगता है, कहाँ होती होगी…?”

उसने मेरी चूत की तरफ़ देखते हुये कहा,”एक जगह तो है ना…”

यानि मेरा जादू चल गया। मैं शरमा कर अपने कमरे की तरफ़ भाग गई। भागते समय मैंने अपने उरोजों को और अधिक हिला कर उसे घायल कर दिया। वो मेरे पीछे पीछे मेरे कमरे में चला आया। मैं उसे देख कर स्त्री सुलभ लज्जा का अभिनय करने लगी। उसे देख कर और शरमा गई और अपना चेहरा हाथो में छुपा लिया, अपना सर झुका लिया।

उसने धीरे से मेरी पीठ पर हाथ रख दिया।

मैं सिमट सी गई,”हाय राम, कोई देख लेगा …”

“यहाँ कोई नहीं है भाभी… “

फिर धीरे से बोला,”खुजली मिटाने का अच्छा मौका है।”

अब तो जादू काम कर गया। मैंने जीवन के होंठो पर हाथ रख दिया। अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उसकी आँखों में देखने लगी। उसकी आँखों में सिर्फ़ प्यार था और थी तो वासना।

मेरा दिल धड़कने लगा था, सांसें उखड़ने लगी थी, पसीने से मेरा चेहरा गीला हो उठा था।

उसने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और उसके होंठ मेरी ओर बढ़ने लगे।

मेरी मां ! कैसे सम्भालूँ अपने आप को! यह तो अब मुझे नहीं छोड़ने वाला … जवानी की आग बड़ी बेमुरव्वत होती है … एक बार लग गई तो दीन-दुनिया को छोड़ कर पहले उसे बुझानी ही पड़ती है। मौका अच्छा था, उसे लपेटे में लेने का।

मेरी योनि कामाग्नि से व्याकुल हो कर भीग गई थी। उसने ज्योंही मुझे चूमा, मैंने अपनी शराफ़त दिखाई, उसे धीरे से धक्का दे कर अलग कर दिया।

मेरे स्तन ब्लाऊज में कसे जा रहे थे … आह कितने कठोर हो कर तन रहे थे। मुझे लगा मेरे ब्लाऊज के बटन चट चट करके खुलते जा रहे थे। मेरे बड़े बड़े स्तन जैसे बाहर उछल पड़ने को आतुर थे। मैं जीवने से दो कदम दूर हो कर उसे मुस्करा कर निहारने लगी।

“बस, कमला, एक बार … बस एक …”

“भाई साहब ! ऐसा मत कहो, मेरी जान निकल जायेगी।” मैंने शर्म से सर झुका लिया।

अब मेरी सहन शक्ति समाप्त होती जा रही थी। मैं धीरे धीरे उसकी बढ़ चली और उसके सामने सीधे खड़ी हो गई। उसने जैसे ही मुझे अपनी ओर खींचा, मैं उससे जोर से लिपट गई। मेरे मुख से सिसकी निकल गई।

“कमला …”

“भाई साहब … आह”

मैंने अपने आप को जीवन के हवाले कर दिया। उसने मुझे दीवार के सहारे लगा दिया और मेरा अधखुला ब्लाऊज जोर से खींच लिया। ब्लाऊज चिरता हुआ मेरे सीने से अलग हो गया और मेरे भारी उरोज बाहर छलक पड़े।

उसने बेसाख्ता उन्हें अपने हाथों से भींच डाले। आनन्द से मेरी आँखें बन्द होने लगी। मैं उससे जोर से लिपट कर उसकी बाहों को काटने लगी तो कभी उसकी छाती पर अपने दांत गड़ा दिये। उसका सख्त लौड़ा मैंने अपने हाथों में दबा लिया।

“राजा, खुजली तो नीचे हो रही है … बस घुसा दे इस लोहे को…” मैं बरबस ही बोल उठी।

“भाभी, जरा आराम से … मेरा लण्ड तो चूस लो… फिर मुझे अपनी प्यारी सी चिकनी चूत चुसाओ !”

“भैया जी, उधर चलो, बिस्तर पर ! मुझे आप लौड़ा चुसाना और तुम मेरी भोदी चाटना !”

जीवन ने मुझ भारी सी औरत को फ़ूल जैसा उठा लिया और झुक कर अधर से अधर मिला दिये। उसने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे पर उल्टा हो कर लण्ड को मुख के पास ले आया। मैंने उसका लटकता लण्ड अपने मुख में ले लिया, उसने मेरे ऊपर लेटते हुये मेरा पेटीकोट ऊपर उलट दिया।

“आह… कमला … इतनी चिकनी … शेव किया है क्या?”

“हां, चिकनी शेव करके क्रीम भी लगाई है … है ना चमकीली भोदी?”

उसके हाथों ने मेरी पत्तियों जैसी चूत की पलकें खोल दी। उसकी जीभ का एक मोहक लम्बा चुम्बन मुझे मस्त कर गया। मेरी चूत का गीलापन उसने चाट लिया, फिर मेरे नर्म, बड़े दाने को उसने जीभ की नोक से आगे पीछे हिला आरम्भ कर दिया। साथ ही अपनी दो अंगुलियाँ मेरी भोदी में डाल दी।

मैं तेज मीठी गुदगुदी मारे चीख उठी, मैंने भी बेरहमी से उसके लण्ड को जोर से चूसा और दांतों से हल्के हल्के काटने लगी। उसकी कमर मेरे मुख में आगे पीछे चलने लगी। दोनों आनन्द से बेहाल हो रहे थे कि जीवन ने अपना लण्ड मेरे मुख से निकाल लिया और खुद उठ कर बैठ गया।

और सीधा हो कर मेरी टांगों के बीच आ गया।

“भाई जी, बस अब भोदी चोद डालो … मेरी तो जान निकली जा रही है।”

उसने अपना लण्ड हाथ में थामा और हिला कर मेरी भोदी पर रगड़ मारी, और फिर मेरी गुहा की अनन्त गहराई में उतरता चला गया।

मैं भी चूत का जोर लगा कर उसे पूरा निगलने की कोशिश करने लगी। मेरी वासना के कारण मेरा शरीर जैसे आग हो रहा था। तेज कसक भरी मीठी गुदगुदी सारे शरीर को पागल बना रही थी।

साला जोर से झटके क्यो नहीं मारता? कस के लौड़ा क्यों नहीं मारता भोदी पर।

मुझसे रहा नहीं गया तो उसके सुर में सुर मिलाते हुये मैंने भी नीचे से जबरदस्त झटके से चूत उछाली और उसके लण्ड को जड़ तक ठूंस लिया।

एक मीठी सी जलन हुई, दर्द हुआ … पर मजा आ गया। अब मैंने भी लय मिला कर उछल-उछल कर चुदाना आरम्भ कर दिया। पागल सी हो रही थी मैं। ऐसी चुदाई बहुत महीनों बाद मिली थी।

मेरा पति राधेश्याम तो बहुत प्यार से धीरे धीरे चोदता था मुझे, मजा तो बहुत आता था पर मोटे लौड़े की झटकेदार चुदाई की बात ही कुछ ओर थी। अब मेरी भोदी कोई नई नवेली थोड़े ही रह गई थी, बहुत बार चुद चुकी थी।

दोनों जबरदस्त तरीके से चुदाई कर रहे थे। पर मैं ठहरी वासना की भूखी, कब तक खैर मनाती। जिस्म टूटने लगा। लहू की रफ़्तार तेज हो गई। सारा रस शरीर में जहर की तरह फ़ैल गया। मैं झड़ने को होने लगी थी। मेरी हालत देख कर जीवन समझ गया था। उसने भी सीमा रेखा को पार करने के लिये धक्के तेज कर दिये। वासना की तेजी ने मेरे शरीर को बेकाबू कर दिया और फिर … मेरा सारा जोश रस के रूप मे मेरी चूत से बाहर निकल पड़ा। मैं झड़ने लगी। चूत की लहरें तेज हो उठी।

वो मुझे पेलता रहा। मैं पूरी तरह से झड़ चुकी थी। अब उसका लण्ड मुझे हथौड़े की तरह लग रहा था। दर्द से मैं चीख सी उठी,”अब छोड़ दे हरामी … मेरी मां चोदेगा क्या ?”

वो कब सुनने वाला था। वो तो सीमा रेखा पर था। ऐसे में भला कैसे छोड़ देता। तभी उसने अपना लौड़ा बाहर निकाला और कस कर हाथों से दबा कर मुठ मार दिया।

उसकी फ़ुर्ती देखो, उछल कर मेरे मुख पर आ गया और अपना लण्ड मेरे मुख के समीप लाकर एक जोर से पिचकारी छोड़ दी। मेरा मुख स्वतः ही खुल गया और वीर्य मेरे मुख में भरता चला गया। वीर्य पी जाने के बाद मैंने उसे चूस कर पूरा साफ़ कर दिया।

जीवन उठ कर खड़ा हो गया। दिन का भोजन मैंने अभी तक तैयार नहीं किया था सो जीवन बाजार जा कर भोजन बंधवा कर ले आया। उतनी देर में मैं शान्ति से बिस्तर पर उल्टी लेट कर सो गई थी। मेरी नींद खुली अचानक मेरी गाण्ड पर दबाव से।

उसका लौड़ा मेरी गाण्ड में उतरा जा रहा था। मैं कुछ कहती उसके पहले उसका लण्ड मेरी गाण्ड में आधा घुस चुका था। दिल में आया कि चलो इस मस्त गाण्ड का भी उदघाटन आज हो ही जाये। अभी तक तो ये कुंवारी ही थी, किसी का भी लण्ड इसमें नहीं उतरा था। जीवन के लण्ड से आज इसकी भी शादी हो गई। मैंने अपनी गाण्ड ढीली कर ली और उसे आसानी से घुसने का रास्ता दे दिया। वो मुझसे बुरी तरह लिपट गया और और उसकी कमर धीरे धीरे आगे पीछे होने लगी।

गाण्ड में दर्द होने से अधिक मजा तो नहीं आ रहा था। पर जीवन मेरी गाण्ड में लण्ड पेल कर मस्त हुआ जा रहा था। साला, हुंकार भर कर चोदे जा रहा था। अब तो मुझे भी गाण्ड मराने में स्वाद आने लगा था। गाण्ड चिकनी करने का नतीजा यह हुआ था कि उसकी सुन्दरता देख कर जीवन ने जोश में आकर उसे चोद डाला।

धीरे धीरे मेरी चूत में पानी उतरने लगा। जीवन अपनी एक अंगुली मेरी चूत में पिरो कर उसे भी बेहाल करने लगा। कुछ ही देर में मेरी चूत ने तो फिर से अपना रस उगल दिया। तब कही जाकर जीवन का वीर्य निकल पाया।

वो हांफ़ता हुआ एक तरफ़ बैठ गया,”कमला, तुझे जितना चोदो, कम है ! साली मस्त सांडनी है तू ! गर्मा-गरम चूत और कसी गाण्ड तो बार बार चोदने की इच्छा होती है।”

“ना भाई साहब, यह तो मैं बहुत दिनो से चुदी नहीं थी ना, ये तो उसका जोश था।”

“पर मुझे तो एक नई, चिकनी चूत मिल गई ना !”

“और मुझे भाई साहब मस्त लण्ड मिल गया।”

दोनों एक बार फिर से उलझ गये। कमरे में वासना भरी चीत्कारें गूंजने लगी। लण्ड और चूत अपनी अपनी प्यास बुझाने की भरकस कोशिश में लगे थे।

लक्ष्मी कंवर

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