अब तेरे लण्ड से संतुष्ट हुई

अब तेरे लण्ड से संतुष्ट हुई

प्रेषक : आर्यन

सभी पाठकों को मेरा प्रणाम, मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। अन्तर्वासना जैसी साईट एक वरदान है, जहाँ हम अपनी अन्तर्वासना को खुलकर बता कर पूरा आनन्द ले सकते हैं।

आज मैं मेरी सच्ची कहानी पेश कर रहा हूँ। मेरा नाम आर्यन है। मैं 22 साल का लड़का हूँ। रंग सांवला और शरीर से हट्टा-कट्टा हूँ। मैं औरंगाबाद। महाराष्ट्र का रहने वाला हूँ।

बात उन दिनों की है जब मैं पढ़ाई के लिए दूसरे शहर गया था। वहाँ मैं एक फ्लैट लेकर रहता था।

मेरे फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक अंकल और आंटी रहते थे। अंकल कंपनी में बड़ी पोस्ट पर थे, और आंटी लगभग 30 साल की होंगी। वो बला की चीज़ थीं। एकदम रसीली रसमलाई जैसी, पर उनकी कोई औलाद नहीं थीं। आंटी हमेशा दिन भर घर में अकेली ही रहती थीं।

मैं जब भी अपने घर पर आता-जाता था, तब आंटी के घर में झांकता था ताकि आंटी को एक नज़र देख सकूँ। आंटी को देखते ही मेरा लंड खड़ा हो जाता था और मैं मन ही मन में उन्हें चोदने के बारे में सोचता था।

एक दिन आंटी ने मुझे झांकते हुए पकड़ लिया और बोलीं- तुम ये रोज़-रोज़ क्या देखते हो? शर्म नहीं आती तुम्हें?

मेरी तो बोलती ही बंद हो गई थीं। मैं तो डर ही गया था।

मैंने कहा- सॉरी, आगे से नहीं देखूँगा।

और वहाँ से चला गया।

मैंने दो-तीन दिन तक डर के कारण आंटी के घर की तरफ देखा ही नहीं। फिर एक दिन आंटी ने ही मुझसे बात की।

वो बोलीं- तुम तो बहुत डर गए हो? काफ़ी शरीफ लगते हो।

उस दिन से मेरा टांका भिड़ गया। फिर आंटी रोज मुझसे बातें करने लगीं।

आंटी घर पर दिन भर अकेले ही रहती थीं और मेरी भी छुट्टियाँ चल रही थीं। अंकल के जाते ही हम दोनों एक-दूसरे से बातें करते थे। हम दोनों काफ़ी घुलमिल गए थे। मैं हमेशा उनकी तारीफ करता रहता था और औरत को चाहिए क्या?

एक दिन मैंने प्लान बनाया कि अब आंटी को चोदना है। मैंने आंटी से यूँ ही झगड़ा कर लिया फिर तीन दिन तक उनसे बात नहीं की, उनकी तरफ देखा भी नहीं।

अगली सुबह मैं बाहर जा रहा था, तभी मेरे घर से निकलते ही आंटी ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा- जब झगड़ा ही करना था, तो पहले बात ही क्यों की? क्या कोई इतने दिन नाराज़ रहता है?

फिर हम उनके घर के अंदर चले गए। अंदर जाते ही आंटी मुझसे लिपट गईं और रोने लगीं और बोलीं- तेरे अंकल दिन भर घर पर नहीं रहते, एक तू दोस्त बना था तो तू भी मुझसे दूर रह रहा है। क्या मैं इतनी बुरी हूँ?

मैंने कहा- नहीं आंटी, आप बहुत अच्छी हो बल्कि आप मुझे बहुत पसंद हो। मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ। मैंने जिस दिन से आप से बात नहीं की, उस दिन से खाना भी नहीं खाया।”

मैंने भी मौका देखकर चौका मार दिया।

बस फिर क्या था, आंटी पट गईं।

बोलीं- पगले ऐसा नहीं बोलते, मैं तेरे से बड़ी हूँ।

मैं बोला- आंटी आप ही बोलो, आप मुझसे प्यार करती हो या नहीं? आपको भी मुझसे बात करने का दिल बोल रहा था ना?

उन्होंने कहा- हाँ।

तभी मैंने आंटी को कस कर बाँहों में जकड़ कर उनके गालों को चूम लिया।

आंटी थोड़ा दूर होने की कोशिश कर रही थीं, तो मैं बोला- अगर अब आपने मुझे अपने से दूर किया तो फिर कभी आप से बात नहीं करूँगा।

और उनको कस कर पकड़ लिया।

आंटी बोलीं- बस पकड़ेगा या और भी कुछ करेगा?

मैंने आंटी के होंठों को कस कर चूमा, वो भी मेरा साथ देने लगीं। हम दोनों सब भूल कर एक दूसरे में समाए जा रहे थे।

उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, मैं उसे रसभरी की तरह चूस रहा था। धीरे से मैंने उनका पल्लू नीचे गिरा दिया और उनकी चूचियाँ को दबाने लगा।

आंटी गर्म होने लगीं और बोलीं- आज मेरी प्यास बुझा दो।

उन्होंने मेरे लंड को पकड़ लिया। मैं बूब्स दबाते हुए उनका ब्लाऊज खोलने लगा, पर मैं खोल नहीं पा रहा था।

आंटी बोलीं- रुक मैं ही खोल देती हूँ, फिर आराम से मज़े लेना।

आंटी ने ब्लाऊज खोल दिया। उन्होंने ब्रा नहीं पहनी थी, उनके बड़े-बड़े पपीते अब आज़ाद थे।

मैंने कहा- आंटी हम दोनों के बीच हर एक कपड़े को दूर कर दो।

आंटी ने सारे कपड़े उतार दिए और बोलीं- मुझे तो नंगी कर दिया और तू कपड़े पहनकर खड़ा है।

मैं बोला- आंटी, आप ही उतार दो !

देर ना करते हुए आंटी ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए अब हम दोनों नंगे थे।

आंटी ने मेरा लण्ड देखा और बोलीं- यह क्या है? इतना बड़ा और मोटा ! मैं तो मर ही जाऊँगी।

मैंने आंटी को अपनी ओर खींचा और बोला- मेरे से एक बार चुद जाओ फिर मर भी गए तो चलेगा।

फिर मैं आंटी के थन चूसने लगा, आंटी सिसकारियाँ ले कर मेरे बदन को सहला रही थीं, जिस से मैं और भी जोश में आ रहा था, और मदहोश हो कर आंटी को चूमे जा रहा था।

मैंने आंटी को बेडरूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया और उनके ऊपर चढ़कर चूमने लगा।

पहले होंठों को फिर गर्दन को फिर उनके स्तनों के चूचुकों को अपने होंठों में दबा कर चुभलाया। आंटी लगातार अपने होंठ दाँतों से काट रही थीं।

फिर धीरे-धीरे मैं नीचे उतरता गया। जैसे मैं नीचे उतर रहा था, आंटी का जोश और सीत्कारें बढ़ती ही जा रही थीं।

धीरे से मैंने उनकी चूत को चूमा, तभी उन्होंने मेरा सिर को हाथों से चूत पर दबा दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

“चाटो इसे, तेरे अंकल ने कभी नहीं चाटा, तुम मेरी इच्छा पूरी करो।”

मैंने उनकी चूत को चाट-चाट कर गीली कर दी, फिर उनकी चूत में ज़ुबान डाल कर चाटने लगा।

आंटी ज़ोर-ज़ोर से ‘आहहा अम्म्म’ की आवाजें निकालकर चूत को उछाल-उछाल कर मेरे मुँह पर रग़ड़ रही थीं।

फिर आंटी बोलीं- जल्दी से मुझे चोद, अब रहा नहीं जा रहा है।

फिर मैं आंटी के ऊपर आ गया। आंटी मेरा लंड मुँह में ले कर उसे चूसने लगीं, फिर मुझे नीचे धकेल कर कहा- अब जल्दी डाल इसे इसके घर में।

मैं भी लंड को चूत के मुँह पर रग़ड़ रहा था और आंटी तड़प रही थीं।

आंटी मेरे लंड को पकड़ कर चूत में घुसाने की नाकाम कोशिश कर रही थीं।

मैंने कहा- तड़पने का मज़ा ही कुछ और है।

तो आंटी बोलीं- मैं तो रोज़ ही तड़फती हूँ। तेरे अंकल मुझे संतुष्ट नहीं कर पाते हैं। उनका बहुत छोटा है और वो जल्दी झड़ जाता है। तू मेरी बरसों की प्यास बुझा और मत तडफा।

मैं भावुक हो गया और लंड को चूत में घुसाने लगा, पर मैं लंड को चूत में डाल नहीं पा रहा था।

तभी आंटी बोलीं- रुक, तेरा पहली बार है ना ! मैं मदद करती हूँ।

और उन्होंने मेरे लंड को चूत के दरवाज़े पर रखा, जैसे ही मुझे रास्ता मिला, मैंने लंड को पेल दिया। एक ही झटके में मेरा आधा लंड चूत के अंदर था।

आंटी ज़ोर से चिल्लाई- मैं मरगईई ईई जररा धीरे करो।

मैं बोला- अभी तो आधा ही डाला है। आधा बाकी है, अब लो पूरा।

और मैंने झटके मारना शुरू किए। आंटी दर्द से तड़फते हुए मज़े ले रही थीं पर मेरा लंड और अंदर नहीं जा रहा था। मैं समझ गया कि इसके आगे की चूत कुंवारी है, अंकल यहाँ तक पहुँचे ही नहीं।

फिर मैंने ज़ोर से धक्का मारा। धक्के के साथ ही आंटी की ज़ोर की चीख निकली और मेरा पूरा लंड अब चूत के अंदर था।

मैंने धक्के मारना चालू रखे। आंटी की चूत अब रसीली हो गई थी, जिससे लंड आसानी से अंदर जा रहा था।

मैं चुदाई के पूरे मज़े ले रहा था। अब आंटी भी दर्द भूल कर चोदन-सुख का आनन्द ले रही थीं।

हम दोनों चुदाई में मस्त थे। मैं उनके पपीते चूस-चूस कर ज़ोर-ज़ोर से उन्हें चोद रहा था। वो नीचे से चूतड़ उछाल-उछाल कर चुद रही थीं।

तभी आंटी का शरीर अकड़ने लगा चूत सिकुड़ने लगी और छोटी हो गई, अब लंड तकलीफ़ से अंदर-बाहर हो रहा था।

फिर मेरे भी शरीर में एक आग सी लग गई और मैं ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। एकदम से मेरा शरीर झनझना उठा और मेरे लंड से पानी फूट कर आंटी की चूत में छूटने लगा।

मैंने लंड को चूत के और अंदर ठूँस दिया और अपना सारा पानी आंटी चूत में छोड़ दिया।

फिर मैं आंटी पर निढाल होकर उनके सीने पर पसर गया।

आंटी एक हाथ से मेरी नंगी पीठ को सहला रही थीं और दूसरे हाथ से मेरे बालों को।

थोड़ी देर बाद हम नॉर्मल होने लगे तो आंटी चहकीं- मैं पहली बार अब संतुष्ट हुई हूँ। तू तो बड़ा मर्द निकला, इतने दिनों से क्यूँ दूर रहा पगले।

फिर हमारा चुदाई का काम रोज़ होने लगा।
और एक बात आज मुझे आंटी को चोदते अब पूरा 4 महीने हो गए हैं और मैं पापा बनने वाला हूँ।

जो अंकल ने 6 साल में नहीं किया, मैंने 4 महीनों में ही कर दिया।

अगली कहानी में दूसरे दिन की चुदाई के बारे में लिखूँगा, अगर आपके विचार मिले तो ! धन्यवाद।

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