जंगल में चूत का मंगल

जंगल में चूत का मंगल

दोस्तो, मेरा नाम कृति वर्मा है, शादीशुदा हूँ, दो बच्चे हैं जो स्कूल में पढ़ते हैं।
पति का दिल्ली में बिज़नस है। अभी 2 साल पहले मेरे पति ने ऋषिकेश में अपनी नई फ़ैक्टरी लगाने के लिए ज़मीन ख़रीदी, उसके बाद वहाँ पर कन्स्ट्रकशन का काम शुरू करवा दिया।

मुझे वहाँ जाने का मौका नहीं मिला।
पर जब सारा काम मुकम्मल हो गया तो मेरे पति मुझे वहाँ लेकर गए।

मुझे वहाँ की आबो हवा बहुत अच्छी लगी।
हमारी फ़ैक्टरी लगभग जंगल में ही थी। फ़ैक्टरी के पास ही एक छोटा सा घर भी मेरे पति ने बनवाया था।

घर के पास से ही एक कच्ची पगडंडी नीचे घाटी की तरफ जाती थी जो एक गाँव में पहुँचती थी, मगर गाँव बहुत दूर था।

2-4 दिन तो ठीक ठाक कटे पर बाद में मैं बोर होने लगी, अब सारा दिन घर में क्या करती।
एक दिन सोचा कि चलो नीचे गाँव में चल कर देखती हूँ।

अपने पति को फ़ैक्टरी भेजने के बाद मैं तैयार हो कर कच्ची पगडंडी पे चल पड़ी।
थोड़ा सा आगे जाने पे तो पूरा जंगल शुरू हो गया, बिल्कुल शांत, सिर्फ झींगुर और किसी पंछी के बोलने के आवाज़ आ रही थी।
काफी देर चलने के बाद भी कोई गाँव नज़र नहीं आया।
फिर मेरे भी दिल में थोड़ा डर आया के इस जंगल में अकेली मैं, अगर कोई जंगली जानवर आ जाए तो?

फिर खयाल आया अगर कोई आदमी आ जाए और यहाँ मेरा देह शोषण करे यानि मुझे चोद दे तो?
इस ख्याल से ही मेरे तन बदन में झुरझुरी सी हो गई।

मान लो अगर मेरा देह शोषण यहाँ हो जाता है तो मैं क्या करूंगी, क्या मैं उस देह शोषणकर्ता का विरोध करूँगी या खुद ही उसे अपनी मर्ज़ी से सेक्स करने दूँगी, अगर अपनी मर्ज़ी से ही सेक्स करने दिया तो फिर देह शोषण कैसे हुआ?
नहीं, मैं पूरी ताक़त से उसका विरोध करूँगी, हाँ बाद में उससे कह दूँगी कि मुझे भी बहुत मज़ा आया।

अभी मैं यह सब सोचती सोचती चली जा रही थी कि थोड़ी दूरी पर मैंने एक झोंपड़ी देखी।
मैं अनायास ही उस झोंपड़ी की तरफ बढ़ गई।
जब मैं उस झोंपड़ी के पास पहुँची तो मुझे लगा जैसे यह किसी साधू की कुटिया है।

मैं अंदर गई तो देखा कि अंदर एक साधू बाबा ध्यान में मग्न बैठे हैं, सर पे जूड़ा, बढ़ी हुई दाढ़ी, चौड़े कंधे, उम्र करीब 45-50 साल। बाल अध-पके, सीना भी बालों से भरा हुआ।

देखते ही बाबा के लिए मन में श्रद्धा भर आई, मैंने झुक कर बाबा के चरणों में प्रणाम किया।

बाबा ने आँखें खोली और मुझे आशीर्वाद दिया- कहो बच्चा, इतनी दूर यहाँ कैसे आई?’
बाबा ने पूछा।

‘बाबाजी, हमारी फ़ैक्टरी है यहाँ, वो जो ऊपर सड़क के पास नई बनी है न वो वाली, मैं तो बस गाँव की तरफ जा रही थी, रास्ते में आपकी कुटिया देखी तो आपका आशीर्वाद लेने चली आई।’ मैंने जवाब दिया।

‘अच्छा, अच्छा, क्या बनाते हो फ़ैक्टरी में?’ बाबा ने पूछा।

‘जी दवाइयाँ बनाते हैं बहुत सारी…’ मैंने कहा।

लेकिन मैंने यह भी गौर किया कि बाबा बात करते करते कई बार मेरे स्तनों को भी देख रहे थे, बातचीन के दौरान उन्होंने मेरे सारे बदन का मुआयना कर लिया था।
खैर उस दिन तो कोई ज़्यादा बात नहीं हुई, और मैं थोड़ी देर बाद ही बाबा का आशीर्वाद लेकर वापिस आ गई।

वापिस आते समय मुझे पेशाब करने की इच्छा हुई तो मैंने आसपास देखा तो कहीं भी कोई नहीं था।
तो मैंने भी मस्ती करने की सोची और कच्ची पगडंडी के बीच में ही मैंने अपनी साड़ी ऊपर उठाई और बैठ कर पेशाब करने लगी।
मैं चाहती थी कि कोई अकस्मात ही आ जाए और मुझे नंगी को पेशाब करते देख ले।

मगर कोई नहीं आया।
मैंने ज़ोर से बोला, ‘अरे कोई है, एक सुंदर गोरी चिट्टी औरत सड़क पे मूत रही है, कोई तो आ के देख ले।
मगर कोई नहीं आया।

मैंने मन में सोचा कि मैं यह क्या कर रही हूँ।
पर मस्ती तो मेरे दिमाग पे चढ़ी हुई थी।

मैं पेशाब करने के बाद भी बड़े आराम से उठी, चलते चलते अपनी पेंटी ऊपर की और काफी दूर तक अपनी साड़ी ऊपर उठाए चलती रही, मगर मुझे रास्ते में कोई नहीं मिला।

फिर मैं भी निराश सी हो कर अपने घर को चली गई।

रात को पतिदेव ने खूब तसल्ली करवाई।
मगर मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था।

अगले दिन सुबह मैं फिर से तैयार हो कर जंगल की तरफ चल पड़ी।

आज मैंने टी शर्ट और कैप्री पहनी हुई थी। कपड़े स्किन टाईट होने की वजह से मेरे बदन की हर गोलाई बड़ी उभर कर दिख रही थी।

मैं वैसे ही घूमती-घामती फिर बाबाजी की कुटिया की तरफ चल दी।

आज बाबाजी कुटिया में नहीं थे।

मैंने कोई आवाज़ नहीं की बस बड़ी शांति से घूमते हुये कुटिया के पीछे गई।

वहाँ बाबा एक छोटा सा लंगोट पहने लकड़ियाँ काट रहे थे।

बाबा का शरीर बड़ा ही कसा हुआ था। लंगोट ने सिर्फ उनका लिंग ही छुपा रखा था, वर्ना इस लिबास में बाबा तो बिल्कुल नंगे ही थे।
उनकी दो मजबूत मस्कुलर टाँगें और उन टाँगों के ऊपर दो बड़े से गोल चूतड़।
आज बाबा के कसरती बदन के भरपूर नज़ारा दिखा था।
बस देखते ही मेरी तो चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया।

मैंने वैसे ही सोचा कि बाबा इतने बलिष्ठ हैं, अगर कोई कुँवारी कन्या को ये चोदने लग जाएँ तो ये तो उसकी बैंड बजा देंगे, कुँवारी क्यों अगर मेरे को चोदे तो मेरी भी तो बैंड बजा देंगे।

यह सोच कर मेरे मन में एक विचार आया। मैंने अपनी टी शर्ट के ऊपर के तीनों बटन खोल दिये ताकि मेरा एक बड़ा सा क्लीवेज दिखे।

अब आधी छातियाँ नंगी और आधी टाँगें नंगी लेकर अगर मैं बाबा के सामने जाऊँ तो हो सकता है कि बाबा की घंटी बज जाए और मैं बाबा जैसे बलिष्ठ और बलवान मर्द का भी सुख भोग सकूँ।

यह सोच कर मैं बाबा के पास ही चली गई और उन्हें प्रणाम किया- प्रणाम बाबा!
मैंने कहा।

बाबा मुझे देख कर बिल्कुल भी नहीं सकपकाए, बल्कि बड़े विश्वास से बोले- जीती रहो बच्चा, भगवान तुम्हारा कल्याण करें!

‘बाबा भगवान का पता नहीं पर आप मेरा कल्याण ज़रूर कर सकते हैं।’
मेरे दिल की बात मेरी ज़ुबान पर आ ही गई।

अब बाबा थोड़ा चौंके- क्या मतलब, बच्चा?

‘बाबा पति पर काम का बोझ बहुत ज़्यादा है, वो तो मेरी तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते। काम से आते हैं, खाना खा कर सो जाते हैं, और मैं बिस्तर पे तड़पती रहती हूँ। आप बताओ बाबा, मेरे सुंदर रूप में क्या कमी है?’ मैंने बाबा से कहा।

बाबा ने मुझे ऊपर से नीचे तक किसी बड़े ठरकी की तरह घूरा और कहा- तुम तो परमात्मा की एक बहुत ही सुंदर कृति हो।

‘वही तो… इस सुंदर रूप और इस आकर्षक बदन को जब पति देखे ही न, तो औरत क्या करे?’ यह कह कर मैंने जान बूझ कर रोने का नाटक करना शुरू किया।

बाबा बोले- मैं तुम्हें एक जड़ी देता हूँ, अपने पति को देना और फिर देखना!

यह कह कर बाबा अंदर झोंपड़ी में चले गए तो मैं भी उनके पीछे पीछे झोंपड़ी के अंदर चली गई।

बाबा ने अपन आसन ग्रहण किया और अपने झोले से एक जड़ी बूटी सी निकाली।

मैं बिल्कुल बाबा के चरणों के पास नीचे बैठ गई मैंने उनके पाँव पकड़े और अपना सर उनकी गोद में रख दिया और जानबूझ कर रोती रही जैसे मैं बहुत दुखी हूँ।

बाबा ने मेरे सर पे हाथ फेरा और मुझे ढांडस बँधाया- चिंता मत कर बेटी, यह जड़ी बहुत कारगर है, 2-3 दिन में ही अपना असर दिखा देगी।
बाबा बोले।

मुझे लगा कि बाबा चाहते थे कि मैं उनके पाँव छोड़ कर उनके सामने ठीक से बैठ जाऊँ, पर मैंने बाबा के पाओं नहीं छोड़े।

बाबा ने एक दो बार मेरा सर अपने चरणों से उठाने की भी कोशिश की मगर मैं नहीं हटी।

यह स्थिति शायद बाबा के लिए भी बड़ी अजब रही होगी।

मेरे आँसू बाबा के टखनों पर गिर रहे थे, मेरी गर्म साँसें बाबा की एड़ियों को छू रही थी।

थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ जैसे कोई चीज़ मेरे माथे को छू रही थी, अपने अंदाजे से मैं जान गई थी के बाबा का लौड़ा खड़ा हो गया है।

मैंने सर उठा कर बाबा की तरफ देखा।

बाबा बड़े प्यार से मेरा सर सहला रहे थे और उन्होंने भी बड़े प्यार से मेरी आँखों में देखा।

मैंने देखा कि बाबा के लंगोट को लौड़े ने ऊपर उठा रखा था और उनके आँड और आस पास गहरे घने बाल भी दिख रहे थे।

मैंने बाबा के लण्ड को घूरते हुये बाबा से पूछा- बाबा प्रसाद नहीं दोगे?

‘कौन सा प्रसाद चाहिए बेटी?’ बाबा ने भी कुछ बनावटी अंदाज़ में कहा।

‘मुझे इसका प्रसाद चाहिए!’ कह कर मैंने अपनी उंगली से बाबा के तने हुये लण्ड को छू कर कहा।

बाबा ने अपना लंगोट एक तरफ हटा कर अपना लौड़ा बाहर निकाला और कहा- लो बेटी, पिछले 13 साल से इसने कभी किसी स्त्री की योनि को नहीं देखा है, जब से यहाँ आया हूँ, मैं ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा था, मगर तुम मेनका बन कर आई और मेरा ब्रह्मचर्य भंग कर दिया।

मैंने बाबा के लवड़े को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया।

बाबा का लण्ड बहुत ही मजबूत और डंडे की तरह बिल्कुल सीधा था।
मैंने बिना कुछ कहे बाबा के लण्ड को अपने मुख में लेकर चूसना शुरू कर दिया।

बाबा ने अपनी टाँगें खोल दी और अपना लंगोट भी उतार दिया।

मैंने बड़ी तसल्ली से बाबा का सारा लण्ड, उनके आँड और अगल बगल सारी जगह को चाटा।

बाबा भी ‘ऊह, आह…’ कर रहे थे, जब गुदगुदी होती तो उचक जाते, मेरे सारे बदन पे हाथ फेरते रहे और मेरे स्तनों से खेलते रहे।

थोड़ी देर चूसने के बाद बाबा उठे और उन्होंने एक गद्दा, एक रज़ाई उठाई और फर्श पे बिछाई।

‘यहाँ आ जाओ, यहाँ भोग लगाऊँगा मैं !’ बाबा बोले।

तो मैं रज़ाई के ऊपर आ गई।

बाबा ने मुझे खड़ा रखा और बड़े प्यार से मेरी टाँगों को चूमा और चाटा जो मेरी कैप्री के बाहर दिख रही थी, मेरी जांघों को सहलाया, मेरे चूतड़ों को ज़ोर ज़ोर से दबाया, सहलाया, चूमा।

‘जानती हो, जब मैं शहर में जाता हूँ और वहाँ लड़कियों और औरतों को इस तरह के कपड़ों में देखता हूँ तो बड़ा दिल करता है के इसकी गाँड में उंगली डाल दूँ, उसके चूतड़ों पे कस के चपत मारूँ, मगर मैं ऐसे कर नहीं सकता, बस मन मसोस के रह जाता था, आज मैं अपनी इच्छा पूरी करनी चाहता हूँ।’ बाबा ने अपना दिल खोला।

मैंने भी कहा बाबा, आज मैंने आपने आप को आपको अर्पण कर दिया, मेरा जो चाहो कर लो।

मेरी सहमति पा कर बाबा ने मेरी गाँड को बहुत प्यार किया, बहुत सहलाया और चपात मार मार के दोनों चूतड़ लाल कर दिये।

फिर बाबा ने मुझे अपने हाथों से एक एक कपड़ा उतार के बिल्कुल नंगी कर दिया।

मेरे नंगे बदन को बाबा ने बड़े प्यार से देखा, मेरी जाघों पे हाथ फिराया, जीभ से चाटा, मेरे पेट और कमर पे भी चूमा-चाटी की।
मेरे स्तनों को सहलाया, दबाया, निचोड़ा, मेरे निपल मुँह में लेकर चूसे, उन्हें दाँतो से काटा।
मेरी गर्दन को चूमा, मेरे गालों को चूसा, होंठ चूसे अपने जीभ मेरे मुँह में घुमाई।

मतलब बाबा ने बड़ी तसल्ली से मुझे चूसा।

उसके बाद मुझे नीचे लेटाया।

मैंने खुद ब खुद अपनी टाँगें खोल दी तो बाबा मेरी टाँगों के बीच में आ गए, अपना लण्ड उन्होंने मेरी चूत पर टिकाया जो पहले से ही बेतहाशा पानी छोड़ रही थी।

बाबा ने हाथ जोड़े, किसी देव को ध्याया और हल्का धक्का मारा, जिस से उनका लण्ड मेरी प्यासी चूत में समा गया।

2-3 धक्कों में ही पूरा लण्ड मेरी चूत में अंदर तक घुस गया।

बाबा का लण्ड बहुत ही शानदार था, मोटा और लंबा और मेरी चूत को अंदर से बाहर तक पूरा भर दिया।

बाबा ने पहले धीरे से चुदाई शुरू की, उनके हर धक्के के साथ मेरे मुख से हल्की सी सिसकारी निकल जाती।

मैं ‘ऊह, आह, अम्म, उफ़्फ़’ कर रही थी मगर बाबा बड़े शांत स्वभाव से संभोग कर रहे थे।

मेरी बेचैनी बढ़ रही थी मगर बाबा बड़े इतमीनान से लगे रहे।

जब मेरी उत्तेजना बढ़ गई तो मेरी सिसकारियाँ, चीख़ों में बदलने लगी- ऊफ, मर गई बाबा, थोड़ा और ज़ोर से धक्का मार, बाबा आज तो मुझे मार दो, उफ़्फ़ बाबा ऐसा आनंद तो आज तक नहीं आया, बाबा और ज़ोर से, और तेज़, और तेज़’

पता नहीं मैं आनन्द में क्या क्या बड़बड़ा रही थी।

बाबा ने अपने दोनों पाँव पीछे को मोड़े, अपने दोनों हाथों के जोड़ कर उँगलियों को आपस में फंसा कर एक अजीब सा आसन बनाया और उसके बाद बाबा ने अपनी स्पीड और तेज़ कर दी।

बाबा धड़ाधड़ मुझे चोद रहे थे, मेरी चूत से निकालने वाली पानी की झाग बन गई थी जिस कारण चुदाई में ‘फ़च फ़च, पिच पिच’ की आवाज़ आ रही थी।

मैंने नीचे से कमर उचकानी शुरु की, मेरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था और ऊपर से बाबा के बदन का पसीना भी चू कर मेरे बदन पे गिर रहा था।

5-6 मिनट बाद मैं तो बुरी तरह से झड़ी, मेरा दिल कर रहा था कि इसी आनन्द में अगर जान भी निकल जाए तो कोई गम नहीं।
मगर बाबा उसी रफ्तार से लगे रहे।

मैं निढाल हो कर लेटी थी, पर बाबा धाड़-धाड़ अपने लण्ड से मेरी चूत की पिटाई कर रहे थे।
मैंने पूछा- बाबा, ये जो आपने आसन सा बनाया है इसका क्या फायदा?

‘इस आसन से पुरुष जितनी देर चाहे संभोग कर सकता है, ना तो उसका लिंग ढीला पड़ेगा ना ही उसका वीर्यपात होगा।’ बाबा ने बताया।

‘वाह, यह तो बहुत कमाल की बात है।’ मैंने कहा।

बाबा लगे रहे।

बाबा की रगड़ाई से मेरा फिर से मन उत्तेजित होने लगा, मेरी चूत फिर से पानी छोड़ने लगी।

‘देखा बेटी, तुम फिर से तैयार हो गई, अगर पुरुष दो तीन बार स्त्री को सखलित न करे तो उसका कोई फायदा नहीं।’
बाबा साथ की साथ प्रवचन भी करते जा रहे थे।

इस बार मुझे भी झड़ने में 15 मिनट से ज़्यादा लगे।

मगर यह बात मैंने देखी, बाबा को न थकान हुई, न उनका सांस फूला, वो बड़े आराम से करते रहे।

जब मैं दूसरी बार स्खलित होकर, निढाल हो कर नीचे लेटी थी तो मैंने कहा- बाबा अब बस करो, मेरी पूरी तसल्ली हो चुकी है, अब तो जैसे चूत में दर्द सा होने लगा, अब आप भी स्खलित हो जाओ, और मेरी चूत को अपने आशीर्वाद से भर दो।

बाबा बोले- बेटी, अभी मैं तुमको 2 बार और स्खलित कर सकता हूँ, मैंने अपने शरीर को ऐसे ढाला है कि जब तक मैं न चाहूँ, मैं स्खलित नहीं होऊँगा।

‘नहीं बाबा, अब नहीं, अब तो दर्द सा होने लगा है।’ मैंने अपनी कही।

सच तो यह था कि मेरी तो फटी पड़ी थी, ऐसी चुदाई तो मैंने अपनी ज़िंदगी में आज तक नहीं भोगी थी।

बाबा ने मेरी पूरी तसल्ली करवा दी थी।

उसके बाद बाबा ने अपना आसन खोला और बस फिर तो 2 मिनट भी नहीं लगे, बाबा के वीर्य का तो जैसे बांध ही टूट गया हो, उनके लण्ड से निकलती पिचकारियों से मेरा तो सारा बदन भर गया।

मैंने आज तक किसी पुरुष का इतना वीर्यपात होते नहीं देखा था।

जो वीर्य मेरे चेहरे और स्तनों पे गिरा था वो तो मैंने चाट ही लिया और बाबा का लण्ड मुँह में लेकर भी चूसा, उसमें भी बाबा ने एक दो बार मेरे मुँह में अपने वीर्य की पिचकारी मारी।

उसके बाद न जाने कितनी देर हम दोनों नंगे ही लेटे रहे।

फिर मैं उठी- बाबा, मैं नहाना चाहती हूँ।

तो बाबा मुझे अपनी झोंपड़ी के पीछे ले गए वहाँ उन्होंने पानी भर के रखा था।

वहाँ हम दोनों खुले जंगल में एक साथ नीले आसमान के नीचे नहाये।

नहाने के बाद झोंपड़ी के अंदर आए और मैंने हम दोनों के लिए खाना बनाया।

हम दोनों सारा समय नंगे ही रहे।

खाना खाकर दोपहर बाद हमने फिर एक लंबी पारी खेली और इस बाबा ने मुझे तीन बार स्खलित किया।

उसके बाद तो यह हर रोज़ का खेल हो गया।

धीरे धीरे बाबा ने मेरे सारे छेद खोल दिये।
मैंने कभी गाँड में नहीं किया था, पर बाबा ने मेरे आगे पीछे ऊपर नीचे हर छेद में लिंग घुसा दिया।

हर रोज़ बाबा किसी नए आसन में मुझे भोगते, उन्होंने तो पूर काम शास्त्र भी मुझे समझा दिया।

अब तो मेरा दिल करता था का सब कुछ छोड़ छाड़ के बाबा के पास ही आ बसूँ।

हम अक्सर जंगल में बिल्कुल नंगे घूमते, जहाँ दिल करता वहाँ संभोग करते।

थोड़ी दूर पे एक छोटा सा झरना था, वहाँ पे जा कर नंगे नहाते।

यह समझो कि मैंने बाबा के साथ अपने हनीमून का भरपूर आनन्द लिया।
बाबा ने भी मुझे जी भर के प्यार दिया।
जिस दिन वापिस आना था मैं बाबा से लिपट कर बहुत रोई।

मैं करीब 10 दिन वहाँ रही और इन दस दिनों में करीब 50 से ज़्यादा बार स्खलित हुई।

बाबा ने मेरी ऐसी संतुष्टि करवाई कि मैंने वापिस दिल्ली आकर दो महीने तक पति को पास नहीं आने दिया।
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