रेलवे रेस्ट हाउस में सेवा

रेलवे रेस्ट हाउस में सेवा

Railway Rest House me Sewa

प्रिय दोस्तो, आज मैं आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहा हूँ जिसे पढ़ कर आप चाहेंगे कि आपके साथ भी ऐसा ही हो।

मेरा नाम अमरजीत है, मैं एक बैंक में मैनेजर हूँ।

बात करीब एक साल पहले की है जब मैं मैनेजर प्रोमोट हुआ तो मेरी बदली दिल्ली से बिहार के एक गाँव में हो गई।

मैं ट्रेन से पहुँचा तो जहाँ ट्रेन का आखरी स्टेशन था वहाँ से मुझे 30 किलोमीटर और आगे जाना था।

रात के 9 बज चुके थे, मुझे भूख भी बहुत लगी थी और थकान भी हो रही थी।

मैंने वहाँ स्टेशन से पता किया तो पता लगा कि स्टेशन के पीछे रेलवे का एक रेस्ट हाउस है, वहाँ मुझे रहने को जगह मिल जाएगी।

मैंने सोचा क्यों न आज की रात यहीं गुज़ारी जाए और सुबह आगे निकला जाए।

मैं कुली को साथ लेकर रेस्ट हाउस पहुँच गया।

वहाँ पर एक चौकीदार था, जिसने मेरे लिए कमरा खोल दिया।

पुराना सा रेस्ट हाउस था और कमरा भी काफी बड़ा मगर ठीक-ठाक था।

मैंने चौकीदार से खाने का पूछा तो उसने बताया कि खाना उसकी बीवी बना देगी।

मैं बाथरूम में गया, नहा कर बाहर आया और बैग से व्हिस्की की बोतल निकाली।

चौकीदार रामकिशन करीब 50-55 साल का कुछ ज़्यादा ही बूढ़ा दिखने वाला मेरे सामने ही खड़ा था, मैंने उसे बोतल दिखा कर पूछा- लोगे?

वो खिसियानी हंसी हंस कर बोला- दया है मालिक की।

मैंने उससे दो गिलास मँगवाए, साथ में पानी, बर्फ, नमकीन वो खुद ही ले आया।

मैंने दो मोटे मोटे पेग बनाए, एक उसको दिया, जो वो गटागट पी गया।

मैं थोड़ा आराम से ही पीता हूँ।
मैं रामकिशन से इधर उधर की बातें करने लगा।

जितनी देर में मैंने दो पेग लगाए, रामकिशन 4-5 खींच गया।

फिर मैंने कहा- रामकिशन, मैं बहुत थक गया हूँ, जल्दी से खाना मँगवाओ, मुझे आराम करना है।

रामकिशन झूलता झालता बाहर गया, थोड़ी देर बाद एक 30-32 साल की साँवली, गठीली, गदराई सी औरत खाना लेकर आई।

जब उसने खाना टेबल पे रखा तो मेरी नज़र उसके गहरे गले के ब्लाउज़ में कैद दो गोल साँवले स्तनों पे पड़ी।
बहुत ही गोल मटोल स्तन थे उसके।

इस बात को रामकिशन ने देख लिया और बोला- साहब, अगर सफर की थकान की वजह से आपके पाँव में दर्द है तो मेरी जोरू बहुत अच्छी मालिश करती है, आपके पाँव में तेल लगा देगी।

पहले तो मुझे अटपटा लगा कि यार एक औरत क्यों मेरे पाँव को हाथ लगाएगी, मगर फिर मन के शैतान ने कहा- तुझे क्या दिक्कत है, पराई औरत पराई ही होती है, अगर छूती है तो मज़ा ही आता है।

मैंने कहा- ठीक है।

दोनों मियां बीवी मेरे सामने ही बैठे रहे, जब मैंने खाना खा लिया तो संती (रामकिशन की बीवी) बर्तन उठा कर ले गई और रामकिशन भी चला गया।

करीब साढ़े दस बज रहे थे, मैंने एक किताब निकाली, एक सिगरेट सुलगाई और पढ़ने का नाटक सा करने लगा मगर मन ही मन मैं तो संती की बाट जोह रहा था कि कब आए और कब मैं उससे अपनी सेवा करवाऊँ।

मैं तो यह भी सोच रहा था कि अगर वो मान जाए, चाहे थोड़े पैसे ही ले ले, तो रात को अपने पास ही सुला लूँ और अपनी रात रंगीन करूँ।

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और संती अंदर आई, उसने साड़ी भी बदली हुई थी, चेहरे पे लिपस्टिक, बिंदी, आँखों में सुरमा, यानि के अपनी तरफ से पूरी तरह से सज-बन कर आई थी।

जब वो अंदर आई तो अंदर आकर उसने खुद ही दरवाजा बंद करके कुंडी लगा दी।

मैंने उसे कहा- संती, क्या सिर्फ पाँव की ही मालिश करती हो?

वो बोली- जी साब, पर आप कहोगे तो सारे बदन पे भी तेल लगा दूँगी।

मतलब साफ था कि अगर नंगा हो कर लेटोगे तो लण्ड भी मालिश कर दूँगी।

खैर मैं किताब पढ़ता रहा, वो आकर मेरे पाँव के पास बेड पे बैठ गई, अपनी गोद में उसने एक कपड़ा बिछाया, मेरा एक पाँव अपने हाथों से उठा कर अपनी जांघ पे रखा और कटोरी से तेल ले कर मेरे पाँव की धीरे धीरे मालिश करने लगी।

मगर पाँव में मालिश करवाने से मुझे गुदगुदी हो रही थी, जब मैं एक बार पाँव झटका तो वो उसके स्तन को छू गया, मुझे बड़ा अच्छा लगा।

मैंने देखा कि उसने इस बात का कोई नोटिस नहीं लिया।

दूसरी बार मैंने जानबूझ कर अपना पाँव उसके स्तन से लगाया तो वो थोड़ा सा और घूम के बैठी और मेरा पाँव बड़ी अच्छी तरह से खुद ही अपने स्तन से लगा लिया।

मैंने पाँव से उसके स्तन को टटोला, फिर सहलाया, वो दूसरे पाँव पे मालिश करने लगी।

मैंने एक पाँव से उसको दोनों स्तनों को सहलाना शुरू कर दिया, वो कुछ नहीं बोली, बस हल्के हल्के शरमा कर मुस्कुराती रही।

मैंने अपने पाँव से ही उसके सर से आँचल हटा दिया, और साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया।

गहरे गले के मरून ब्लाउज़ से उसका एक बड़ा सा क्लीवेज दिख रहा था।

मैंने किताब साइड पे रखी, सिगरेट ऐश ट्रे में रखी और अपना पजामा घुटनों तक ऊपर उठा लिया।

वो भी आगे बढ़ी और मेरे पाँव से लेकर घुटनों तक तेल लगा कर मालिश करने लगी।

जब घुटनों तक मालिश हो गई तो मैंने पूछा- इससे ऊपर भी मालिश कर दोगी?

उसने सिर्फ ‘जी’ कहा।

मैंने धीरे से अपना पाजामे का नाड़ा खोला और पाजामा उतार दिया।
नीचे से मैंने सिर्फ फ्रेंची पहन रखी थी।

अब वो मेरे और पास आई और बड़ी सहजता से मेरी जांघों पे तेल लगा कर मालिश करने लगी।

जब उसने मेरी जांघों में मालिश की तो मैंने भी करंट पकड़ लिया और मेरा लण्ड मेरी फ्रेंची में तन गया।

वो देख रही थी कि मेरा लण्ड पूरा टाइट हो चुका है मगर मैंने कोई जल्दबाज़ी नहीं की क्योंकि मुझे उससे मालिश करवा के भी बहुत मज़ा आ रहा था।

मैंने अपना कुर्ता भी उतार दिया और उल्टा लेट गया।
उसने मेरी पीठ पे भी मालिश कर दी।

फिर मैं सीधा हो के लेट गया, वो मेरे सीने पे और पेट पे तेल लगाने लगी।

मैंने उसकी आँखों में देखा जिनमें कोई भाव नहीं था।

मैंने धीरे से अपनी फ्रेंची भी उतार दिया, उसने हाथ में तेल लिया और मेरी कमर और फिर लण्ड को भी तेल से चुपड़ दिया।

मैंने उसकी पीठ पे हाथ फेरा।

उसने मुझे उल्टा लेटाया और मेरे चूतड़ों पर भी तेल लगाया और एक उंगली तेल में डुबो कर मेरी गाँड में भी घुमा दी।

सच कहूँ तो मुझे ये भी बहुत अच्छा लगा।

उसने मुझे फिर सीधा किया और दोबारा से मेरे सीने, पेट, लण्ड और जांघों पे मालिश करने लगी।

अब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था, मैंने उसके दोनों स्तन पकड़ लिया और दबा दिया।

वो कुछ नहीं बोली तो आगे बढ़ कर उसको दोनों कंधों से पकड़ लिया।

वो फिर कुछ नहीं बोली तो मैंने उसे लिटा दिया।

उसके लेटते ही मैं उसके ऊपर लेट गया और उसको दोनों विशाल स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर दबाने लगा।

उसने ज़रा सा भी विरोध नहीं किया, शायद उसके साथ ऐसा पहले भी होता रहता होगा।

मैंने उसके होंठ तो नहीं चूसे मगर उसके गाल बहुत चूसे।

मगर उस औरत ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं की।

मैंने खुद ही उसका ब्लाउज़ खोला, साड़ी खींची, पेटीकोट का नाड़ा खोला और ब्रा भी नोच कर फेंक दिया। अब वो मेरे सामने बिल्कुल नंगी लेटी थी।

मैंने उसके साँवले गोल स्तनों को खूब मसला, चूसा, उसकी कमर और जांघों को चूमा चाटा काटा मगर उसके मुख से कोई आवाज़ नहीं निकली, बेशक वो लेटी लेटी कसमसाती रही।

एक बार मेरे दिल में विचार आया कि ‘यार मैं इसे चोदने तो जा रहा हूँ, मगर मेरे पास कंडोम तो है नहीं, अगर कल कोई बीमारी लग गई तो?’
मगर मर्दों की यही कमजोरी है, जब उन्हें चूत दिखती है तो और कुछ नहीं दिखता।

मैंने भी बिना कुछ सोचे अपना लण्ड उसकी चूत पे रखा और अंदर ठेल दिया।

तेल लगने की वजह से लण्ड चिकना तो हुआ पड़ा था सो आराम से अंदर घुस गया, अब उसके मुँह से हल्की सी ‘आह’ निकली।

मैंने भी पूरा लण्ड अंदर ठेल के दबादब चुदाई शुरू कर दी।

वो नीचे लेटी बस ‘ऊह, आह’ करती रही मगर ज़्यादा तेज़ तेज़ चोदने की वजह से मुझे जल्दी ही सांस चढ़ गई, मैं हाँफने लगा।

थोड़ी देर और करके मैंने उसे कहा- तुम ऊपर आ जाओ!

मैंने नीचे लेट गया और वो मेरे ऊपर आ गई, उसने मेरे लण्ड पे थोड़ा और तेल लगाया और अपनी चूत में रख के अंदर ले लिया और आराम आराम से ऊपर नीचे हो कर मुझे चोदने लगी।

चुद तो खैर वो खुद रही थी, मगर मुझे ये शब्द इस्तेमाल करना अच्छा लगा के वो औरत मुझ मर्द को चोद रही थी।

पहले धीरे धीरे फिर आहिस्ता आहिस्ता वो तेज़ होती गई।

उसके ऊपर होने के कारण थोड़ी तक़लीफ मुझे भी हो रही थी। अगर उसके मुँह से ‘ऊह, आह’ निकल रही थी तो मेरे मुँह से भी ‘उफ़्फ़, आह’ जैसे शब्द निकल रहे थे।

संती एक प्रॉफेश्नल रंडी की तरह मुझे पूरा मज़ा दे रही थी, मैं उसके झूलते स्तनों से खेल रहा था।

मगर जब औरत ऊपर होती है तो मर्द की खल्लासी जल्दी हो जाती है।
शायद 3-4 मिनट ही लगे होंगे और मेरा तो काम हो गया।

मैंने उसके दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में पूरी मज़बूती से पकड़ के जैसे निचोड़ ही डाला।

मेरा हो गया मगर वो वैसे ही ऊपर नीचे होती रही, शायद उसका नहीं हुआ था।

उसका काला बदन पसीना आने की वजह से चमक रहा था।

मेरे वीर्य के कारण चुदाई में पिच पिच की आवाज़ आ रही थी… मगर कब तक… जब लण्ड ढीला पड़ गया तो खुद ही उसकी चूत से फिसल के बाहर आ गया।

मैंने उसे अपने सीने पे ही लेटा लिया।

हम दोनों के दिल धाड़ धाड़ धड़क रहे थे, जब थोड़ा संभले तो संती उठ कर जाने लगी तो मैंने उसे रात भर के लिए रोक लिया।

वो मेरी बगल में लेट गई और मैं सो गया।

रात करीब 3 बजे मेरी आँख खुली मैंने देखा मेरा लण्ड फिर से पूरा तना पड़ा था, मैंने संती को जगाया और एक बार फिर से चोदा।

इस बार संती ने बहुत खुल कर मेरे साथ संभोग किया और मेरे से करीब एक डेढ़ मिनट पहले ही उसका पानी छूटा।

जब उसका पानी छूटा तो उसने खुद ही आगे बढ़ कर मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ दिये, मैंने भी कोई विरोध नहीं किया और उसके मोटे मोटे होंठ चूस गया।

करीब 20-25 मिनट की चुदाई के बाद हम फिर सो गए।

सुबह 8 बजे जब मैं सो कर उठा तो संती जा चुकी थी।

मैं नहा धोकर तैयार हुआ, संती मेरे लिए नाश्ता बना लाई, मैंने उसे 1000 रुपये दिये जो संती ने अपनी छतियाँ आगे कर दी और मैंने हज़ार का नोट उसके ब्रा में ठूंस दिया।

जब जाने लगा तो न जाने मन में क्या आया मैंने संती को एक बार फिर से पकड़ लिया- संती, जाने को मन नहीं कर रहा, तेरे जैसे शानदार औरत मैंने आज तक देखी।

वो कुछ नहीं बोली तो मैंने कंधे से बैग उतार कर नीचे रखा और संती को बेड पे धक्का दे कर गिरा दिया और फिर से उस पर टूट पड़ा।
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