शालू की गुदाई-2

शालू की गुदाई-2

लेखक : लीलाधर

21 मई का बेसब्री से प्रतीक्षित दिन ! हमारी शादी की सालगिरह ! शालू को उसका तोहफा देने का दिन !

“क्या पहनकर जाना ठीक रहेगा?”

मैंने सुझाया कि शलवार-फ्रॉक या शर्ट-पैंट पहनकर मत जाओ, शलवार या पैंट उतारने में नंगापन महसूस होगा। क्यों न पहले से ही थोड़ा ‘खुला’ रखा जाए। मैंने सुझाया कि बिना पैंटी के शॉर्ट स्कर्ट पहन लो।

उसे लगा मैं मजाक कर रहा हूँ और वह बिगड़ पड़ी। उसने पतली शिफॉन की साड़ी पहनने का फैसला किया। मेरी बात मानते हुए उसने अंदर पैंटी नहीं पहनी, बोली,”जरूरत पड़ी तो साड़ी उतार दूंगी, केवल साए में कराने में कोई दिक्कत तो नहीं है ना?”

औरत की जिद ! उसका अपना तर्क !

हम समय से थोड़ा पहले ही पहुँच गए। शालू पार्लर को देखकर बहुत प्रभावित हुई। उसे वहाँ की स्वच्छता, सुविधाएँ आदि बहुत पसंद आईं। खासकर जब मैंने राबर्ट से उसका परिचय कराया तो शालू की आँखों में उसके लम्बे-चौड़े गठीले शरीर और आकर्षक व्यक्तित्व के प्रति आश्चर्य और प्रशंसा का भाव दिखा। रॉबर्ट भी उसे दिलचस्पी से देख रहा था।

मेरी योजना के लिए अनुकूल संकेत था। रॉबर्ट ने शालू को वह जगह दिखाई जहाँ उसे काम करना था। यह स्वागत कक्ष से दूर अंदर एक छोटा कमरा था और उसमें पूरी गोपनीयता थी, जरूरत की चीजें उसी में रखी थीं- टैटू के लिए जरूरी सामान और औजारों के लिए एक मेज़, कलाकार के बैठने की एक छोटी-सी नीची स्टूल और ग्राहक के बैठने की एक भव्य कुर्सी।

रॉबर्ट ने सबसे पहले कम्प्यूटर स्क्रीन पर हमें सैकड़ों ड्राइंग दिखाए, हम तीनों ने आपसी सहमति से चुनाव कर लिया।

तब रॉबर्ट ने शालू से पहले बाथरूम से होकर आने का अनुरोध किया। टॉयलेट सीट में बिडेट लगी थी जिससे पानी का फव्वारा निकलकर सीधे उस अंग पर पड़ता था। धोने के लिए हाथ लगाने की जरूरत नहीं थी। फिर भी सुगंधित साबुन रखे हुए थे। पोंछने के लिए दीवार में अलग अलग सुगंधों वाले टॉयलेट-पेपर के रोल लगे थे। वाकई रॉबर्ट ने काफी नफासत की व्यवस्था की थी। शालू टॉयलेट से निकलते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।

अब वो घड़ी आ गई जिसके लिए इतनी तैयारी की थी। रॉबर्ट ने कुर्सी का हत्था थपथपाकर शालू को उस पर बैठने का इशारा किया। शालू ने मेरी ओर देखा, मैंने नजरों से ही उसका उत्साह बढ़ाया- ‘चढ़ जा बेटा सूली पर !’

वह चढ़ गई।

कुर्सी शानदार थी, डेन्टिस्टों की कुर्सी जैसी। पीठ टेकने के लिए चौड़ा सा बैक रेस्ट, दोनों तरफ हाथ रखने के लिए गद्देदार बाँहें। उनसे चमड़े के फीते लटक रहे थे- बैठने वाले की कलाइयों को हैंडल से बांधने के लिए। कुहनियों को पीछे जाने से रोकने के लिए हत्थों के अंत में रोक बनी हुई थी। पाँव रखने के लिए पाँवदान बने थे जो किनारों की तरफ से बाहर फैलते थे, ताकि गुदना कलाकार बीच में पहुँच सके। पांवदानों में भी चमड़े के फीते टंगे थे। राबर्ट ने सरसरी तौर पर बताया कि ये उन लोगों के लिए हैं जो कुछ क्रियाओं में थो़ड़ा रफ ट्रीटमेंट चाहते हैं।

“कोई डर तो नहीं?”

शालू ने इनकार में सिर हिलाया।

जल्दी ही जाहिर हो गया कि साड़ी के तंग घेरे में पाँवों को खोलना संभव नहीं हो पाएगा- “यू हैव टु रिमूव इट माई डियर !”

मुझे उसकी परेशानी पर खुशी हुई, कहा था शार्ट स्कर्ट पहनने को, नहीं मानी।

शालू ने साड़ी खोल दी। राबर्ट ने उसे एक तौलिया देते हुए पेटीकोट की ओर इशारा किया- दिस टू (इसे भी)।”

इस शर्मिंदगी से वह बच सकती थी, यदि मेरी बात मान लेती। उसके गाल लाल हो गए।

बाथरूम से लौटी तो कंधों से छातियों तक ढँकती ब्लाउज और तौलिये में वह अजीब और उत्तेजक लग रही थी। खुला पेट और कमर में लिपटा तौलिया मानों जरा सा खींचने से गिर पड़ेगा। चोली में छातियाँ ठूँसकर भरी थीं। चूचुकों की नोक का भी पता चल रहा था। मैंने राबर्ट की ओर देखा, उसकी नजरें भी उसी पर मंडरा रही थी। राबर्ट ने उसे ‘वेलकम’ किया और कुर्सी की ओर इशारा किया।

शालू के बैठने के बाद रॉबर्ट ने उसके पैर पांवदान पर और हाथ हत्थों पर ठीक से टिकवा दिए। पांवदान काफी उंचे थे। उन पर पाँव रखने से उसके घुटने लगभग कंधों के बराबर आ गए। तौलिया खिसककर कमर पर जमा हो गया और बीच में से वस्तिक्षेत्र प्रकट हो गया। रॉबर्ट ने उसकी कमर में हाथ डालकर तौलिये की गांठ खोली और तौलिया खींचकर निकाल लिया। उसने शालू से पुन: उठाने का इशारा किया और उसके चूतड़ों के नीचे हाथ घुसाकर बित्ते भर की लंबाई चौड़ाई का एक छोटा-सा रोएँदार तौलिया बिछा दिया।

इस प्रक्रिया में उसका चेहरा उसके योनिप्रदेश के सामने आ गया। शालू का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था पर रॉबर्ट सामान्य था, जैसे यह उसके पेशे के लिए सामान्य बात हो।

मुझे लगा शालू को गुदा में जरूर तौलिये के रोओं से गुदगुदी हो रही होगी।

रॉबर्ट ने उसका कंधा थपथपाया और पूछा- रेडी?

“या:” शालू मुस्कुराती हुई कुछ ज्यादा ही जोर से बोली। वह अपने को आत्मविश्वस्त दिखाने की कोशिश कर रही थी।

रॉबर्ट ने दीवारों में कुछ लाइटें जलाई, उनके रिफलेक्टर एडजस्ट किए जिससे रोशनी शालू के पैरों के बीच में पर्याप्त मात्रा में पड़ने लगी। उसने सामानों वाली मेज़ कुर्सी के पास खींच ली और नीची स्टूल पर सामने बैठ गया।

मैंने भी तबतक स्टैण्ड पर कैमरा एडजस्ट कर लिया था। कैमरे की लेंस से उसकी चूत-वेदिका को देखा। पैरों के अगल बगल खिंच जाने से वह बीच में साफ उभर गई थी। यह पहला मौका था जब कोई पराया मर्द उसके उस स्थल को देख रहा था- इतने करीब से। प्रसव के दौरान मेडिकल स्टाफ के सामने टांग खोलना दूसरी बात थी लेकिन यह क्षण तो कामुक प्रकृति का था, यहाँ यह बड़ी हिम्मत की बात थी।

मैं देख रहा था शालू के चेहरे पर की घबराहट को। वह विगत दो दिन से मेरे ‘मुंडन कार्य’ से उत्तेजित भी थी। रॉबर्ट थोड़ी देर के लिए ठहरा, मानो सामने खुले उस दृश्य़ को आँखों से ‘पी’ रहा हो.. एक बेहद आकर्षक साफ-सुथरी, फूली-फूली गोरी चूत ! किसी भी प्रकार की कालिमा या भूरेपन से रहित, तेज रोशनी में चमकती हुई, प्लेब्वाय पत्रिका की किसी मॉडल सरीखी- फोटो लेने लायक, प्रदर्शन योग्य ! बीच में गहरी कटान बनाते मोटे होंठ, जो खिंचाव से थोड़े खुलकर भी अंदर से बंद थे। सीधी खड़ी लम्बी फाँक, बिल्कुल एक जैसी मोटाई की मध्य रेखा बनाती हुई जिसके ऊपरी सिरे पर अंदर से झांकती मूंगे जैसी भगनासा।

बेहद आमंत्रण भरा दृश्य था।

मैं शालू के इस अंग का दीवाना था और उसे अक्सर बताता था क्यों उसमें मेरी बार बार मुँह घुसाने की इच्छा होती है। सुनकर वह शर्माती, फूलती और ”ए:…” की डांट भी लगाती।

रॉबर्ट ने उस पर वह आकृति उकेरनी शुरू की जो हमने चुनी थी। शालू उसके हाथ और कलम को योनि क्षेत्र के इतने पास महसूस कर थोड़ा तन गई। चलती कलम की नोक से उसे सिहरन और गुदगुदी हो रही थी। रॉबर्ट उसे शांत होने देने के लिए ठहर जाता। मैं उसके सधे हाथों की हरकत देख रहा था। कुछ ही देर में उसने कटाव के ठीक ऊपर बेहद सुंदर आकृति उकेर दी, पेशेवर कलाकार था, मेरी ओर देखकर पूछा- ओके?

मैं कैमरा छोड़कर पास गया और गौर से देखा- ‘एक्सलेंट’ मेरे मुँह से निकला।

प्रकट रूप से उस सुंदर चित्र के लिए और मन ही मन उस परिस्थिति के लिए जिसमें यह चित्र बन रहा था। मेरी सुंदर पत्नी का यौनांग पूरी भव्यता के साथ सामने खुला था और दो पुरुष उसे करीब से निहार रहे थे। मुझे नशा-सा आ रहा था। लगता था किसी संजोए स्वाप्न की रील चल रही हो।

रॉबर्ट ने एक छोटा आइना निकालकर उसके हाथ में दे दिया ताकि वह स्वयं ठीक से देख ले। शालू को भी तसवीर बहुत पसंद आई पर उसने आइने में यह भी नोटिस किया कि किस तरह तस्वीर के ठीक नीचे उसके मोटे फूले होंठ हल्के से खुलकर अंदर की गुलाबी आभा बिखेर रहे थे। इतनी देर से उस खुली अवस्था में होने के बावजूद उसकी आँखें लज्जा से झुक गईं। उसने आइना रॉबर्ट की ओर बढ़ा दिया।

शालू ने मेरी ओर नजर घुमाई, मैंने उसे एक हवा में एक मौन चुम्बन उछाल दिया।

रॉबर्ट ने तस्वीर में रंग चढ़ाने वाली गन उठाई। एक बार फिर उसने पूछा कि इरादा बदलना तो नहीं चाहती है।

“नहीं, ठीक है, Go ahead !” शालू ने कहा।

मैंने वीडियो कैमरा जूम-इन कर दिया। रॉबर्ट चित्र की बाहरी रेखाओं पर गन से रंग चढ़ा रहा था। रंग चढ़ाने के लिए उसके हाथ भगनासा की कगार के बिल्कुल पास टिक जाते और कभी कभी उसके ऊपर फिर भी जाते।

मैं समझ रहा था कि यह हल्की छुअन शालू को कितनी विचलित कर रही होगी। कैमरे की लेंस की क्लोजअप से मैं देख सकता था कि उसकी वेदी बहुत हल्के हल्के फूलनी शुरू हो गई है और होंठ बहुत हल्के से खुलने लगे हैं। वह नितम्बों को इस कोण मे लाने की चेष्टा कर रही थी कि रॉबर्ट का हाथ भगनासा के ठीक ऊपर आ सके।

रॉबर्ट ने उसकी यह कोशिश पकड़ ली और घूमकर कंधे के ऊपर से मुझे देखा।

मैंने आँख मारी- एंजॉय करो !

वह आराम से समय लेते हुए धीरे-धीरे चित्र के आउटलाइन पर रंग उकेरने लगा। बीच बीच में रुककर अतिरिक्त स्याही को पोंछता। इस क्रिया में वह हाथ ऊपर से नीचे जाता ताकि भगनासा और फाँक में ठंडे अल्कोहल को फिरा सके।

जब चित्र की रेखाओं पर रंग चढ़ गया तो उसने ठहरकर देखा। रंगीन रेखाओं में वह आकृति और सुंदर लग रही थी। वह गन में फिर से रंग भरने के लिए उठा, शालू से कहा- आप तब तक डिजाइन देख सकती हैं।

उसने उसकी ओर आइना बढ़ा दिया।

शालू डिजाइन देखने के बाद मेरी ओर देखकर मुस्कुसराई। मैंने मुस्कुराकर उसका उत्साह बढ़ाया।

रॉबर्ट ने बताया कि अब वह रेखाओं के अंदर की जगह में रंग भरेगा, रंग भरने में गन की सुई तेज चलती है, इसलिए उसे पहले की अपेक्षा चुभन अधिक महसूस होगी लेकिन पाँच-दस मिनट में वह सहने लायक हो जाएगा। रंग भरने में लगभग बीस मिनट लगेंगे। इस दौरान उसे एकदम स्थिर रहना होगा ताकि रंग ठीक से भरा सके।

वह ठहरा, जैसे कुछ कहने में हिचक रहा हो।

मैंने पूछा- एनीथिंग मोर? (और कुछ)

उसने कहा- लगातार चुभन से कभी कभी सिहरन होती है इसलिए उसे उसके हाथों को कुर्सी के हत्थों से बांधना होगा।

शालू तब तक शर्म पर काबू पा चुकी थी, उसने पूछा क्या ऐसा करना जरूरी है?

“No, but it will help !” (नहीं, लेकिन यह अच्छा रहेगा)

शालू एक सेकंड के लिए ठहरी, फिर बोली- Ok, do it !(ठीक है, करो)

कह कर उसने कुर्सी के हत्थे पर हाथ जमा दिए। राबर्ट ने हैंडल में लगी चमड़े की पट्टी उसके हाथ पर कसते हुए दूसरी ओर बक्कल लगा दिया। यही क्रिया उसने दूसरे हत्थे पर भी दुहराई। उसने उसे निश्चिंत किया, डरने की कोई बात नहीं है।

मैं समझ रहा था आगे वास्तव में क्या होने वाला है। शालू के बंधे हाथ देखकर मुझे खुशी हुई।

राबर्ट गन लेकर उसके सामने बैठ गया। उसने सीधे वेदी की फाँक पर हाथ टिकाया और गन से काम स्टार्ट कर दिया। शालू उछल पड़ी। पर पांच मिनट बाद उसे अच्छा लगने लगा।

वह मज़ा लेने लगी। रॉबर्ट धीरे-धीरे अपना हाथ चूत के ऊपर गोल घुमाने लगा। शालू की योनि गीली होने लगी और होंठ और अधिक ‘पिसाई’ की इच्छा से फैलने लगे।

अचानक ही…

कहानी जारी रहेगी।

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