मामाजी के साथ वो पल

मामाजी के साथ वो पल

नमस्कार!

मैं आपके लिए अपनी पहली कहानी लेकर आई हूँ। मुझे रिश्तेदारी में हुए सेक्स की कहानियाँ बहुत पसंद आती हैं। आज आपको अपनी ऐसी ही एक कहानी सुनाती हूँ।

मैं उस वक़्त बी ए के दूसरे साल में थी, अकेली रह कर पढ़ती थी। परीक्षा से पहले पढ़ाई की छुट्टियों में मैं घर जाने की जगह वहीं पास में अपने रिश्ते के एक नानाजी के यहाँ रुक गई। वहाँ नाना-नानी, मौसी और मेरे मामा रहते थे। मामा मुझसे सिर्फ 5 साल ही बड़े थे और हम दोनों काफी खुले हुए हैं आपस में। वो मुझसे अपनी हर बात कह देते थे और मैं भी।

वहाँ दोपहर को सबकी सोने की आदत है, उस दिन भी सब सो रहे थे और मैं और मामा पीछे के कमरे में बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रहे थे। बातें करते करते मैं लेट गई, मामा वहीं पीठ टिका कर बैठे थे इसलिए मेरे स्तन उन्हें साफ़ दिखाई दे रहे थे। उनकी आँखे नशीली होने लगी। धीरे से वो मेरे बालों में हाथ फेरने लगे, मुझे अच्छा लग रहा था। मैं उनसे सट कर लेट गई। मेरा चेहरा उनकी तरफ था, वो मुझे सुलाने लगे, मैंने अपना एक हाथ उनकी ताँगों के ऊपर रख दिया। मैंने एक चादर ओढ़ी हुई थी जिसे उन्होंने अपने ऊपर भी डाल लिया।

उनका एक हाथ मेरे बालों में और एक हाथ मेरे हाथों से होते हुए मेरी पीठ पर था। अब वो भी थोड़ा सा मेरी तरफ मुड़ गए। अब मेरा चेहरा उनके पेट से सटा था और उनके हाथ अब पीठ से आगे की तरफ बढ़ रहे थे। उस पल की मदहोशी में हमें ध्यान ही नहीं था कि घर में बाकी लोग भी हैं जो कभी भी आ सकते थे। मेरी आँखें बंद हो चली थी, उनका एहसास अच्छा लग रहा था।

धीरे से उन्होंने मेरे वक्ष पर हाथ रखा, मेरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई हो, मैं एकदम से सिहर गई, वो भी पीछे हो गए। तब हमे होश आया कि हम क्या कर रहे थे। पर वो एहसास इतना प्यारा था कि हम वैसे ही काफी देर लेटे रहे।

मैं थोड़ी और करीब हो गई उनके। अब वो नीचे सरक गए थे, बिलकुल मेरे बगल में लेट गए। उनकी गरम साँसे मेरे चेहरे से टकरा रही थी, मेरी आँखे बंद थी। उन्होंने मेरे माथे पर एक चुम्बन लिया और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने भी उन्हें कस कर जकड़ लिया अपनी बाहों में। पर हम इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।

पर अगले दिन हमें मुंह मांगी मुराद मिल गई। घर के सब लोग एक रिश्तेदार के यहाँ गए थे। मैं नहीं गई क्योंकि मुझे पढ़ना था। हालाँकि मामाजी भी उनके साथ चले गए थे। कुछ करने के बारे में सोचा तो नहीं था पर उस एहसास को फिर से महसूस जरूर करना चाहती थी। मैं बैठी कुछ सोच रही थी कि घंटी बजी, दरवाज़ा खोला तो सामने मामा खड़े थे।

मैंने पूछा- इतनी जल्दी कैसे आ गए?

उन्होंने अन्दर आकर दरवाज़ा बंद किया और कहा- तुम अकेली थी ना इसलिए !

मैंने कहा- हटो तो, सच्ची बताओ?

तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- सच में, तुमसे दूर जाने का मन ही नहीं था, वैसे थोड़ा सर दर्द भी है।

मैंने कहा- आप बैठिये, मैं बाम ले आती हूँ।

वो मेरे कंधे से सर टिका कर बैठ गए और मैं धीरे धीरे मालिश करने लगी। वो थोड़ी देर में सरक कर नीचे हो गए और अपना सर मेरे वक्ष पर रख दिया। मेरी साँसें तेज़ हो गई। यह देखकर उन्होंने अपने हाथों से मेरे दोनों स्तनों को मसलना शुरू कर दिया, मैं बस सिसकारियाँ लेने लगी। वो धीरे धीरे मेरे चुइचूकों को टॉप के ऊपर से ही काटने लगे।

मैं तो पागल हुई जा रही थी। मैंने उन्हें अपने से अलग किया तो उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और मुझे चूमने लगे। हम दोनों एक दूजे में इस तरह खो गए कि ध्यान ही नहीं रहा कि कब उन्होंने मेरा टॉप और बा़ खोल दिया और कब मैं उनकी जिप खोल के उनके लंड से खेल रही थी।

अब वो बारी बारी मेरे दोनों स्तन चाट रहे थे। मुझे इतना मजा आज तक नहीं आया था। उनका एक हाथ मेरी कपड़ों के अन्दर से मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरे चूत पर था जिसे वो धीरे धीरे सहला रहे थे।

मैंने कहा- अब नहीं रुक सकती !

तो उन्होंने बड़े प्यार से मुझे एक चुम्बन देकर कहा- बस थोड़ी देर और तब तक इसे संभालो।

और पलट कर अपना लंड मेरे मुँह पर कर दिया और खुद मेरा स्कर्ट ऊपर करके मेरी पैंटी निकाल दी। उन्होंने मेरी चूत मुँह में भर ली और अपनी जीभ से पागलों की तरह चाटने लगे। मुझे उनका लंड चूसने में पहले तो अजीब लगा पर शायद अपने मामा के साथ होने से या किसी के आ जाने का डर या उनकी जीभ जो मेरी चूत में थी उसका एहसास, मैं बस उनके लंड को चूसने लगी। मुझे लंड चूसने में बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं उनके लंड की त्वचा को थोड़ा सा पीछे करके अपनी जीभ से उनके टोपे को चाट रही थी।

फिर धीरे धीरे चाटते हुए उसे अपने गले के अन्दर तक ले गई। हालांकि वो काफी मोटा था और मुझे तकलीफ हो रही थी पर बहुत मजा भी आ रहा था, और शायद मामा को भी अच्छा लगा तभी उन्होंने अपना लंड हिला हिला कर मेरे मुँह में चोदना शुरू कर दिया। अब वो अपनी जीभ और उंगली से मेरी चूत चोद रहे थे।

मैंने उनका लंड निकाल कर कहा- बस अब और नहीं, डाल दो इसे अन्दर ! वरना पागल हो जाऊँगी।

वो फौरन मेरी बात सुन कर सीधे हो गए और अपने कङक लंड का टोपा मेरे दाने पर रगड़ने लगे। मैंने उनका चेहरा अपनी तरफ खींच कर उन्हें चूमना शुरू कर दिया। मैं पूरी तरह गर्म थी और अब कुछ भी कर सकती थी। मैंने उनका लंड अपनी चूत के ऊपर किया, उन्होंने एक ही धक्के से उसे आधा अन्दर कर दिया। मेरी चूत से पानी बह रहा था और मैं लंड लेने को बेताब थी पर मोटा होने की वजह से वो तकलीफ दे रहा था। अब मामा नहीं रुकनेवाले थे, दूसरे ही धक्के से उन्होंने लंड चूत में उतार दिया। अब मेरा दर्द मजा दे रहा था। मैं अपनी गांड ऊपर करके उनका साथ दे रही थी।

थोड़ी ही देर में मेरा पानी छुटऩे को था, मैंने कहा- मेरा छुटऩे वाला है।

तो उन्होंने स्पीड बढ़ा दी। मैं और वो लगभग एक साथ ही छूट गए। उन्होंने मेरी चूत में सारा पानी छोड़ दिया। हम काफी देर ऐसी ही एक दूसरे के ऊपर पड़े चूमते रहे। जब होश आया तो उन्होंने पूछा- कहीं गड़बड़ तो नहीं हो जाएगी?

मैंने कहा- सेफ पिऱीयड है, डरो मत।

फिर हम दोनों साथ ही बाथरूम में जाकर फ़्रेश हुए। मैंने उन्हें और उन्होंने मुझे नहलाया.तैयाऱ होकर वो बाहर चले गए। थोड़ी देर में ही बाकी घरवाले भी आ गए।

उसके बाद मैं 12 दिन वहाँ थी। रोज़ किसी ना किसी बहाने से हम एक दूसरे के करीब आते और 4-5 बार वो मुझे चोद भी चुके थे। वो पल भूलते नहीं। लोगों के लिए यह गलत हो सकता है, पर हम दोनों के लिए बहुत खास एहसास था।

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