एक सच्चा हादसा: वो कौन थी-2

एक सच्चा हादसा: वो कौन थी-2

कहानी का पिछ्ला भाग: एक सच्चा हादसा: वो कौन थी-1

मेरे हाथों के ऊपर हाथ रख उसने पूछा- तुम्हें ये कैसे लगे? अच्छे लगे?
मेरे मुँह से निकल गया- बड़े बड़े और सख्त!
वो बोली- दबा के देखो!

मैंने पहले 2-3 बार लड़कियों के सीने पर अच्छे से हाथ फेरा था पर ऐसा कड़ापन और सुडौल गोलाई पहले महसूस नहीं की थी। अचानक ही वो आगे बढ़ी और पत्थर पर सीधी लेट गई। मैं उसके ऊपर झुक गया, होंटों पे होंठ और सीने पर हाथ रख कर!

वो पत्थर इस ऊँचाई का था कि मुझे सब कुछ बड़ा सहज लगा। उसके दोनों पैर मेरे पैरों के बगल में फैले थे। मेरा हथियार उसकी जांघों के जोड़ के बीच किसी गर्म चीज़ लगा हुआ था जिसकी गर्मी मुझे साफ़ महसूस हुई, वो भी मेरे पैंट के ऊपर से! मैं बेहिसाब उसके होंठ चूस रहा था और उसकी दोनों गोलाइयों को जी भर कर मसल रहा था।

धीरे से उसने अपनी दोनों टाँगें मेरे कमर के इर्द गिर्द लपेट ली और मुझे कस कर जकड़ लिया। एक लड़की में इतनी ताकत की मुझे उम्मीद नहीं थी जितनी जोर से उसने मुझे पकड़ा हुआ था। फिर उसके नाखून मेरे पीठ पर चुभने लगे। उसकी जीभ मेरे होंटों से होती हुई मेरे मुँह में आ गई, मैं उसकी मिठास के मज़े ले रहा था पर नाखून इतना ज्यादा चुभ रहे थे कि मज़ा कम दर्द ज्यादा था।

मैं थोड़ा कसमसाया तो उसने पकड़ ढीली करके मेरे होंटों को अपने मुँह में भर लिया और ऐसे चूसा जैसे सालों से प्यासी हो! धीरे धीरे उसने मेरे होंटों को काटना शुरू कर दिया।

पहले तो मुझे मज़ा आया फिर दर्द होने लगा। मेरे होंठ चूसते हुए उसने मेरे पैंट का हुक और चेन दोनों खोल दिए और अपने पैरों की मदद से उसे नीचे कर दिया। फिर मेरे अंडरवियर के इलास्टिक में पैर के दोनों अंगूठे फसा कर उसे घुटनों तक खिसका दिया, साथ ही अपने सलवार का नाड़ा खोल कर उसे अपने पैर नीचे कर निकाल दिया। मैंने सलवार पकड़ ली कि कहीं गन्दी न हो जाए और पत्थर पर रख दी। यह देख कर उसने मुझे इस तरह से देखा जैसे मुझे सदियों से प्यार करती हो और मेरी इस फ़िक्र पर वो मेरे ऊपर फ़िदा हो गई हो।

फिर उसने मुझे दोबारा अपने ऊपर खींच लिया और मेरी गर्दन, गाल, होंठ और कंधे पे इस कदर चुम्बन किए जैसे यह उसकी जिंदगी का आखरी पल है। उसकी प्यास और उसके तरीके से मुझे थोड़ी घबराहट होने लगी थी। असल बात यह थी कि इसके पहले यह सब मैंने सिर्फ एक बार ही किया था और वो भी मैं खाली नहीं हो पाया था कि बीच में रोकना पड़ा था। यहाँ तो ऐसा लगा जैसे यह उसका रोज का काम है और वो बस सारा दिन यही करती है।

मैंने अपने को थोड़ा अलग कर के उससे पूछा- पहले कितने बार कर चुकी हो?
तो उसने कहा- पहली ही बार है।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था। अचानक से उसने अपना मुलायम हाथ मेरे हथियार पर रख कर उसे पकड़ लिया जो उन दिनों भी तरक्की कर रहा था पर अब से छोटा ही था, हाथ लगा कर उसे हिलाने लगी और अपनी जांघों के जोड़ की दरार पर रगड़ने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे वहाँ सब कुछ सूखा है जबकि पिछली बार मैंने जब किया था तो उस लड़की कि वो जन्नत काफी गीली हो चुकी थी।

खैर मैंने फिर से उसके होठों पे होंठ और उसकी कठोर गोलाइयों पे अपने हाथ रख लिए, 2-3 मिनट में उसने मुझे थोड़ा आगे खींचा और अपने हाथ से मेरे अंग के अगले हिस्से को कहीं रखा। मुझे लगा जैसे गर्मागर्म मक्खन में उसने मेरे लिंग का अगला हिस्सा रख दिया है।

मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने थोड़ा जोर लगा दिया। छः इंच के लिंग का आधा भाग उसकी जांघों के बीच समां गया और उसके नाखून मेरे पीठ में गड़ गए। मेरे निचले होंठ को उसने मुँह में भर कर यूं काटा कि दर्द का सारा हिसाब बराबर कर लिया। उसकी तेज चल रही साँसों से मेरी उत्तेजना बढ़ गई और मैंने जोर जोर से उसके सीने को मसलना शुरू कर दिया। पर टांगों के बीच बात अभी वही थी। उसने दो पल बाद मेरे कमर पे हाथ रख कर मुझे आगे घसीटा, बची हुई दूरी जब खत्म हुई तो मुझे एहसास हुआ कि उसकी टांगों के बीच का छेद शायद बहुत छोटा है क्योंकि इतनी मज़बूत पकड़ तो मेरे हाथ में भी नहीं है जब मैं हाथ से खाली होता हूँ।

अचानक ऐसा लगा जैसे वो अंदर से मेरे उस हिस्से को और अंदर खीच रही हो। यह अनुभव ऐसा था जिसे बताया नहीं जा सकता। जीवन में इससे ज्यादा आनन्द की अनुभूति मुझे पहले कभी नहीं हुई थी। अनजाने ही मैंने अपनी कमर आगे पीछे करनी शुरू कर दी। वो अपनी कमर को उठा कर मेरा साथ दे रही थी, मैं बेहिसाब उसके सीने को मसल रहा था और वो मेरे निचले होंठ को पागलों की तरह चूस रही था। अचानक उसने अपनी कमर हिलानी बंद कर दी और शांत लेट गई लेकिन मैं झटके लगता रहा। उसने सिर्फ कमर हिलाना बंद किया था ना कि होंठ चूसना और न ही मेरी पीठ पर नाखून के निशाँ बनाना!

मेरा सामान अब जांघों के बीच और ज्यादा अटक रहा था, ऐसा लगा रहा था, जैसे वो अपने छेद को और ज्यादा कस ले रही है, जैसे बिल्कुल हाथ में पकड़ रखा हो!

मैं जन्नत में था और धक्के लगाये जा रहा था। अचानक लगा जैसे उसके शरीर के भीतर से ही कोई चिकनी चीज़ मेरे लिंग में घुसी जा रही है, यह एक और अनुभव था जिससे मुझे थोड़ी उलझन तो हो रही थी पर जो मज़ा आ रहा था वो मुझे कुछ सोचने नहीं दे रहा था मैं बस उसकी खुदाई करने में लगा था।

पतली कमर के दोनों ओर जब मैंने हाथ लगाये और उसकी कमर पकड़ कर अंदर बाहर करना शुरू किया तो मेरा दिल चाहा कि यह सारी उम्र चलता रहे और कभी भी खत्म न हो,

वो मेरे लिंग को जैसे अंदर ही अंदर चूस रही थी…

अचानक मैंने गौर किया कि मुझे काफी देर हो गई है और मैं अभी तक खाली नहीं हुआ हूँ, यह सोच कर मैंने धक्के तेज कर दिए और अगले दो मिनट में ही मैं उसके अंदर ही खाली हो गया। खाली होने के उस आनन्द की बात बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं, मैं काफी देर से उसकी सीने की गोलाई, कमर के पतलेपन और जांघों को सहला कर मज़े ले रहा था। खाली होते होते भी मैं धक्के लगाता रहा तो मेरा मज़ा दुगुना हो गया। जब मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो मैं डर गया, उसके बाल बिखरे थे और वो बड़ी अजीब निगाहों से मुझे घूर रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं खाली होते होते उसके चेहरे के करीब आया तो उसके चेहरे के अंदाज़ भी बदल गए, मैं फिर से हैरान हो गया।फिर अचानक से उसने मेरी कमर पकड़ कर दो और धक्के लगाए और मुझसे बेहिसाब लिपट गई, उसके अंदर से गर्म पानी का फव्वारा छूट पड़ा था और जांघों की पकड़ मेरे अंग पर और कस गई। अब उसका छेद इतना तंग था कि मुझे लगा जैसे किसी ने रस्सी से बाँध रखा हो।

मैं जितना ढीला हो रहा था वो अंदर से मुझे उतनी ही जोर से और चूस रही थी। मुझे साफ़ महसूस हो रहा था जैसे उसकी जांघों के छेद के अंदर जैसे किसी इंसान का मुँह है और वो अंदर ही अंदर और जोर से चूस रहा है। मैंने अलग होने की कोशिश की तो उसने अपने पैरों से मेरी कमर और हाथों से मेरी गर्दन जोर से जकड़ ली, फिर मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए।

जब रहा नहीं गया तो मैंने उस से पूछा- तुम मेरे अंग को अंदर इतना कैसे कसे हो?

तो उसने पलट कर सवाल किया- क्या तुम्हें मज़ा नहीं आ रहा?

तो मेरे मुँह से हाँ निकल गया, यह सुन कर उसने फिर मेरे होंठ अपने मुँह में भर लिए। न तो उसने मेरे होंठ छोड़े न ही मुझे अपनी जांघों के बीच अपनी योनि से बाहर आने दिया। यह जानते हुए भी कि नीचे जो हो रहा है वो सामान्य नहीं है, फिर भी मैं उठना नहीं चाहता था, मैं उसके ऊपर यूं ही कुछ देर पड़ा उसके सीने के दोनों कड़े उभार मसल रहा था और वो मेरे होठों को होंठ से लिंग को निचले होठों से चूस रही थी।

दो ही मिनट में मैं फिर से खड़ा हो गया और लगभग दोबारा वही सब हुआ जो पहले हुआ था पर इस बार उसके नाखूनों ने मेरा बुरा हाल कर दिया और उसके निचले होंटों ने मेरे अंग को जिस तरह से चूसा, उससे इतना दर्द हो रहा था कि मैं दुबारा जन्नत की सैर करने के बाद अंदर नहीं रहना चाहता था। जब मैं दोबारा खाली हुआ तो इतना मज़ा आया लगा कि जान निकल रही है।

इस बार वो मुझ से पहले खाली हुई पर मेरा न सिर्फ सहयोग किया बल्कि बेदर्दी से मेरी पीठ और कमर को नोच लिया और मेरे होंठ चबा डाले।

हम अलग हो कर थोड़ी देर यूँ ही पड़े रहे। थोड़ी देर में वो फिर मेरे ऊपर सवार हो गई और मेरे अंग के ऊपर बैठ गई। उसका स्पर्श इतना मादक था कि मैं 2-3 मिनट में ही फिर उत्तेजित हो गया। इस बार उसने मुझे एहसास दिला दिया कि देह शोषण का दर्द क्या होता है लेकिन मैंने भी उसके सीने को मसलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। मैं तीसरी बार उसके अंदर खाली हुआ. थोड़ी देर और लेटे रहने के बाद हम चुपचाप अपने अपने कपड़े पहनने लगे मैंने देखा कि मेरे लिंग पर ढेर सारा खून लगा है। मैंने पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर उसे साफ़ किया तब मुझे पता चला कि मेरे अंग के अगले हिस्से में थोड़ा सा जख्म सा भी हो गया है।

न जाने ऐसा क्या था कि हम बात नहीं कर रहे थे, न तो उसने मेरा और न ही मैंने उसका नाम पूछा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे बस मुझसे कहा जा रहा है और मैं यह सब करता जा रहा हूँ। फिर वो उठ खड़ी हुई और बोली- मुझे छोड़ दो चल कर!

मैंने उसे साइकिल पर पीछे बिठाया और चल पड़ा। मैंने बेहद कमजोरी महसूस की, बड़ी मुश्किल से हम छोटा पुरवा गाँव से कुछ पहले ही पहुँचे थे कि उसने कहा- मुझे यही छोड़ दो और तुम इस कच्चे रास्ते से सड़क पर चले जाओ।

मैं सम्मोहित सा उसकी बात सुन कर चल पड़ा, न तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा न ही कुछ कहा। सड़क पर पहुँच कर घड़ी की तरफ मेरी नज़र पड़ी तो सुबह के चार बज रहे थे, हल्की सर्दी लग रही थी और अब मुझे डर लगना शुरू हुआ।

जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, गेट खुला था, मम्मी पापा जाग रहे थे।

मुझे देख कर दोनों ने कहा- कहाँ रह गए थे?

तो मैंने कहा- किसी ने टक्कर मार दी थी, बेहोश हो गया था जब होश आया तो चला आया।
पापा ने परेशान हो कर पूछा- चोट ज्यादा तो नहीं है ना?
मैंने कहा- नहीं है।

फिर मम्मी ने हाथ पैर धुलवाए, खाने को पूछा तो मैंने मना कर दिया। फिर मैं सो गया।

सुबह स्कूल के लिए निकला तो न जाने क्या सोच कर छोटा पुरवा के रास्ते पर चला गया। गांव के बाहर एक बुज़ुर्ग को रोक कर मैंने पूछा कि कल किसके यहाँ शादी थी तो उसने कहा कि कल तो क्या इस पूरे महीने इस गाँव में शादी नहीं हुई।
फिर मैंने पूछा कि क्या कल कोई बस यहाँ आई थी?
तो उन्होंने कहा कि गाँव तक ऐसा कोई रास्ता नहीं आता कि बस आ सके, सिर्फ साइकिल, बैलगाड़ी ही आ सकती है।

यह सब सुन कर मैं परेशान हो गया क्योंकि गाँव में 12-15 घर ही थे तो मैंने उनसे पूछा कि क्या किसी के रिश्तेदार बच्चे आये हैं?
तब उन्होंने कहा- बिल्कुल नहीं।

मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था.
मेरे हाथ पर खरोंच के निशाँ देख कर उन्होंने आगे बढ़ कर मेरी शर्ट का कॉलर हटा कर गर्दन के निशाँ देखे और पूछने लगे- कल रात तुम बगीचे वाले रास्ते से निकले थे क्या?
मैंने कहा- हाँ!
तो उन्होंने जवाब दिया- किस्मत वाले हो! वरना पिछले 40 साल में वो आठ लोगों की जान ले चुकी है और एक अभी भी पागल है।

मैं इतना सुन कर बगीचे का रास्ता छोड़ वापस भागा। वो बुज़ुर्ग मुझे पीछे से आवाज दे रहे थे और मैं सड़क की तरफ साइकिल भगाए जा रहा था।
इस हादसे को 12 साल हो गए हैं पर ऐसा लगता है जैसे सब कुछ कल की ही बात है!

मैं अब दुबारा वैसी लड़की तो चाहता हूँ पर वो हादसा नहीं चाहता।
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