जिस्मानी रिश्तों की चाह -30

जिस्मानी रिश्तों की चाह -30

सम्पादक जूजा

मैंने खड़े होकर आपी को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ा और अपनी गोद में लेकर सोफे पर बैठ गया।

आपी ने जैसे ही महसूस किया था कि मैं उनको जकड़ने लगा हूँ.. तो आपी ने अपने दोनों हाथ कोहनियों से बेंड करके अपनी गर्दन पर रख लिए थे।

आपी ने मेरी गोद में गिरते ही अपने जिस्म को सिकोड़ लिया था और अपने दोनों बाजुओं में सीने के उभारों को छुपा लिया था।

मैंने आपी को अपने बाजुओं में भींचते हुए कहा- बोलो बसंती.. अब तुम्हें कौन बचाएगा?
मैं यह कहते हुए सिर झुका करके आपी के गाल चूमने की कोशिश करने लगा।

आपी बेतहाशा हँस रही थीं.. उन्होंने अपनी टाँगें उठा कर सोफे पर सीधी कर दीं और थोड़ा नीचे खिसकते हो अपना चेहरा मेरे सीने में पेवस्त कर दिया और हँसते हुए अपने गाल मुझसे बचाने लगीं।

आपी के कंधों का पिछला हिस्सा मेरे दायीं बाज़ू पर था.. जो मैंने अपनी दायीं रान पर टिका रखा था और मैं अपना बायाँ बाज़ू आपी के ऊपर से पेट पर रख उनकी बगल में हाथ ले जाकर गुदगुदी करने लगा।

आपी की कमर मेरी बायीं रान पर टिकी थी।
आपी के कूल्हे सोफे पर ही थे और उन्होंने अपने घुटनों को बेंड किए पाँव भी सोफे पर ही रखे हुए थे।
वो मेरी गोद में तकरीबन लेटी ही हुई थीं।

मैं आपी को गुदगुदी करते हुए चेहरा नीचे किए उनके गाल चूमने की कोशिश कर रहा था।
आपी के जिस्म पर मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी।

आपी ने अपनी बायीं टांग सीधी कर दी और दाईं टांग को उसी तरह मुड़ी हालत में बायीं टांग पर लेते हुए करवट ले ली।
अब आपी का चेहरा मुझे बिल्कुल ही नज़र नहीं आ रहा था.. क्योंकि आपी के गाल मेरे पेट से टकरा रहे थे।

उन्होंने बेतहाशा हँसते हुए घुटी-घुटी आवाज़ में कहा- सगीर छोड़ो.. मुझे बैठने दो.. वरना..
‘वरना क्या??’ मैंने भी हँसते हुए ही पूछा।

‘वरना.. ये..’ कह कर आपी ने अपने दाँतों को मेरे पेट में गड़ा दिया और काटने लगीं।
‘अहह.. अच्छा अच्छा.. छोड़ता हूँ.. छोड़ता हूँ..’ यह कह कर मैंने फ़ौरन अपने हाथ आपी के जिस्म से अलग करके हवा में ऊपर उठा लिए।

आपी ने ज़ोर से काटा और फिर हँसते हुए चेहरा ऊपर उठा दिया.. लेकिन वो उठी नहीं और उसी तरह आधी सोफे पर और आधी मेरी गोद में लेटे रहते हुए उन्होंने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया.. और अपनी हँसी पर क़ाबू पाने लगीं।

हँसते-हँसते आपी की आँखों में नमी आ गई थी और आँखों से पानी बह कर खूबसूरत गुलाबी गालों को तर कर रहा था।

मैंने भी हँसते हुए अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिकाया और सीधा हाथ आपी के बालों में फेरते हुए बायें हाथ को आपी के पेट पर रख दिया।

चंद लम्हें ऐसे ही अपनी हँसी को रोकते और लंबी-लंबी साँसें लेते हुए गुज़र गए।
मैंने अपना सिर उठाया और आपी की तरफ देखा.. उनका चेहरा बहुत खिल रहा था और गाल आँखों से बहते पानी से तर थे।

आपी भी अपनी हँसी पर क़ाबू पा चुकी थीं, उन्होंने भी मेरी तरफ देखा और हम कुछ सेकेंड्स एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे।

आपी की नज़र से नज़र मिलाए हुए ही मैंने अपना हाथ आपी के पेट से उठाया और उनके गालों को साफ करने लगा।

अब आपी एकदम सीरीयस नज़र आने लगी थीं। आपी ने भी अपने बायें हाथ को उठाया और मेरे गाल को अपनी हथेली में भर लिया और मेरी नजरों से नजरें मिलाए ही बहुत संजीदा लहजे में बोलीं- सगीर हम दोनों जो ये सब कर रहे हैं.. तुम्हारे ख्याल में ये सब सही है?’

आपी की बात सुन कर मेरे चेहरे पर भी संजीदगी आ गई थी, मैंने भी आपी के बालों में हाथ फेरते-फेरते ही जवाब दिया- आपी क्या सही है.. क्या गलत है.. यह मैं भी नहीं जानता.. मैं बस इतना जानता हूँ कि यह जो लड़की मेरी गोद में लेटी है.. मुझे इससे शदीद मुहब्बत है.. बस..

‘लेकिन सगीर, हम सगे बहन-भाई हैं.. हम ये सब नहीं कर सकते..’ आपी के संजीदा लहजे में कोई फ़र्क़ नहीं आया था।

मैंने कहा- आपी ठीक है कि आप मेरी बहन हो.. लेकिन मेरी बहन होने के साथ-साथ.. दुनिया की हसीन-तरीन लड़की भी हो। मैंने आज तक आप से ज्यादा खूबसूरत चेहरा नहीं देखा।

‘सगीर, यह कोई मज़ाक़ नहीं है.. ये सब करने की इजाज़त ना ही हमारा मज़हब देता है और ना ही हमारा ये ताल्लुक.. हमारा समाज क़ुबूल करेगा।’
आपी ने कहा और अपने पेट पर रखे मेरे हाथ को उठाया और उसकी पुश्त को चूम लिया।

मैंने अपने हाथ को आपी के हाथ से छुड़ा कर वापस उनके पेट पर रखते हुए अपने सिर को झटका और झुंझलाहट से ज़िद्दी लहजे में कहा- आपी मैं कुछ नहीं सोचना चाहता.. बस मैं यह जानता हूँ कि मुझे आपसे शदीद मुहब्बत है और मैं अब आपके बिना नहीं रह सकता।

आपी ने जवाब में कुछ नहीं कहा और मेरे गाल से हाथ हटा कर मेरे बालों को सँवारने लगीं.. जो उन्होंने ही खराब किए थे।
मैं भी खामोश ही रहा और बस आपी की आँखों में देखता रहा।

कुछ देर बाद आपी ने कहा- सगीर मुझे भी यही महसूस होता है कि मैं भी अब हमेशा तुम्हारे ही साथ रहना चाहूंगी.. कभी शादी नहीं करूँगी.. लेकिन..!
आपी यह कह कर रुकीं.. तो उनके चेहरे से बेबसी और शदीद मायूसी ज़ाहिर हो रही थी।

‘लेकिन-वेकिन कुछ नहीं.. बस आप भी ज्यादा मत सोचो और मैं भी.. बस सोचना क्या.. जो भी होगा देखा जाएगा..’

मैंने यह जुमला कह कर अपने सिर को नीचे किया और नर्मी से अपने होंठों को आपी के होंठों से लगा दिया।
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आपी ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और मैंने आपी के ऊपरी होंठ को अपने होंठों के दरमियान पकड़ा और चूसने लगा।

आपी जिस हाथ से मेरे बालों को संवार रही थीं.. उस हाथ को मेरी गर्दन पर रखा और मेरे निचले होंठ को चूसना शुरू कर दिया।

अचानक मैंने किसी ख़याल के तहत चौंक कर अपने सिर को उठाया तो आपी ने भी अपनी आँखें खोल दीं और सवालिया अंदाज़ से मेरी तरफ देखने लगीं।

‘आपी.. अम्मिईइ..??’

मैं यह कह कर चुप हुआ.. तो आपी ने मेरी गर्दन पर रखे अपने हाथ को मेरे सिर की पुश्त पर ले जाते हुए कहा- मैंने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया था, वो जल्दी नहीं उठेंगी।

अपनी बात खत्म करते ही आपी ने दोबारा आँखें बंद कर लीं और मेरे सिर को नीचे के तरफ दबाते हुए मेरे निचले होंठ को अपने होंठों में दबा लिया और अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में दाखिल कर दी।

मैंने आपी की ज़ुबान को चूसते हुए अपना हाथ आपी के पेट से उठाया और नर्मी से उनके उभार पर रख कर दबाना और सहलाना शुरू कर दिया।

आपी ने मेरे सख़्त हाथ को अपने नर्म और मुलायम उभार पर महसूस किया और एक ‘अहह..’ भरते हुए मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और मेरे हाथ को हटाने के बजाए अपने हाथ से मेरे हाथ को दबाने लगीं।

हमारे होंठ एक-दूसरे के होंठों में पेवस्त थे.. कभी आपी मेरी ज़ुबान चूसने लगतीं.. तो कभी मैं उनकी ज़ुबान को चूसता।

कुछ देर बाद मैंने अपने होंठ आपी के होंठों से अलग किए और कहा- आपी हमने पहले कभी ऐसे अम्मी का दरवाज़ा बाहर से लॉक नहीं किया.. वो उठ गईं तो कहीं उनके ज़हन में ऐसे ही कोई शक़ ना पैदा हो जाए?

आपी की आँखें बंद थीं और उन्होंने झुंझलाहट में लरज़ती आवाज़ से कहा- कुछ नहीं होता सगीर.. आओ ना प्लीज़..
और वे मेरे सिर को वापस नीचे दबाने लगीं।

मैंने अपने सिर को अकड़ा कर नीचे होने से रोका और कहा- चलो ना आपी.. मेरे रूम में चलते हैं.. दरवाज़ा खोल देते हैं अम्मी का..

आपी ने आँखें खोल दीं.. उनके चेहरे पर शदीद नागवारी के भाव थे, उन्होंने दोनों हाथ मेरी गर्दन में डाले और कहा- क्या है सगीर.. तुम भी ना.. मैं कहीं नहीं जा..वा.. रही.. तुम जाओ.. तुम्हें जहाँ जाना है।

आपी का ये अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी बच्चे को चीज़ दिलाने से मना करो तो वो नाराज़ हो जाता है।

मैंने मुस्कुरा कर आपी को देखा और कहा- अच्छा मेरी सोहनी बहना जी.. इतनी छोटी बातों पर नाराज़ थोड़ी ना होते हैं..

मैंने बात खत्म करके आपी के होंठों को चूमने के लिए अपना सिर झुकाया तो उन्होंने अपने हाथ से मेरे चेहरे को रोका और होंठ दूसरी तरफ करते हो नाराज़गी से कहा- अच्छा जाओ.. अब खोल दो अम्मी का दरवाज़ा..

आपी यह कह कर मेरी गोद से उठने लगीं तो मैंने उनको वापस गोद में दबाते हुए कहा- मैं अपनी जान से प्यारी बहना को खुद ही साथ ले जाता हूँ..

यह कह कर मैंने अपना बाज़ू आपी के कन्धों के नीचे रखा और एक बाज़ू को उनके कूल्हों के नीचे से गुजार कर उनकी रान को मजबूती से थाम लिया और खड़ा हो गया।

‘सगीर..!’ आपी ने अचानक लगने वाले झटके की वजह से मुझे पुकारा और फिर मेरी गर्दन में दोनों हाथ डाल कर मुझे मुहब्बत भरी नजरों से देखती मुस्कुराने लगीं।

मैंने आपी को गोद में उठाए-उठाए ही जाकर अम्मी का दरवाज़ा अनलॉक किया और सरगोशी में आपी से पूछा- बहना जी कहाँ चलें?? आपके रूम में या ऊपर हमारे रूम में?

आपी ने सोचने की एक्टिंग करते हुए कहा- उम्म्म्म.. ऐसा करो बाहर रोड पर ले चलो..
और दबी आवाज़ में हँसने लगीं।

वाकिया जारी है।
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