अनजान औरत के साथ ट्रेन में सेक्स का मजा
अन्तर्वासना के पाठकों को नमस्कार!
सबसे पहले मैं अपने खड़े लन्ड से सभी कमसिन हसीनाओं यानि सभी लड़कियों और भाभियों की रसीली रसभरी चूत को सलाम करता हूँ।
मेरा नाम संजय पाटिल है आगरा का रहने वाला हूँ। परंतु सभी दोस्त मुझे देव नाम से ही ज्यादा बुलाते हैं। मैं आपको पहले ही बता दूँ कि मैं एक प्लेबॉय हूँ।
यह मेरी पहली सेक्सी स्टोरी है और यह 100% सच्ची कहानी है, लिखने में मुझसे कोई गलती हो जाए तो प्लीज माफ कर देना।
करीब एक महीने पहले कुछ काम से मैं कलकत्ता जा रहा था, परंतु मेरे रेलवे स्टेशन पर पहुँचने से कुछ ही मिनट पहले मेरी ट्रेन निकल चुकी थी। फिर मैंने स्टेशन मास्टर से कलकत्ता की अगली ट्रेन के बारे में पूछा तो पता चला कि अगली कुछ घण्टों बाद टूण्डला से कालका नाम की ट्रेन है जो सीधी बिहार, झारखंड होते हुए बंगाल यानि कलकत्ता जाती है। मैं टूण्डला पहुँचा और ट्रेन पकड़ ली।
रमजान के महीने का दूसरा या तीसरा दिन होगा, स्टेशन पर बहुत ही ज्यादा भीड़ थी। इसलिए जनरल डिब्बे में तो सीट मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। मैंने उसी ट्रेन के टी टी को रुपये देकर एक सीट रिजर्वेशन डिब्बे में बुक करा ली।
मेरे सामने वाली सीट पर बुर्का पहने एक औरत बैठी थी। तब मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
गर्मी बहुत होने के कारण कुछ किलोमीटर के बाद जब उसने अपना बुर्का उतार कर अलग रखा तो मैं एक पल तो उसे देखता ही रह गया और मन ही मन सोच रहा था कि ‘हे भगवान … तूने इसे कितनी फुर्सत से बनाया होगा.’ ऐसा लग रहा था कि मानो कोई जन्नत की हूर मेरे सामने बैठी हो। मेरा लण्ड तो उसे देखते ही सलामी देने लगा।
उसका फिगर करीब 32-30-34 रहा होगा। बुर्के के अन्दर वो कढ़ाई वाला काले रंग की सलवार सूट पहने थी। जिसमें उसका गोरा रंग एकदम सोने की तरह चमक रहा था। शरीर से चिपके हुए एकदम टाइट सूट के अन्दर से बाहर की ओर आने को बेताब बूब्स और भी ज्यादा उसे हसीन बना रहे थे। उसके शरीर पर पसीने की बूँदें एकदम मोती की तरह चमक रहीं थीं। मेरा तो मन कर रहा था कि साली को यहीं डाल के चोद दूँ और उसके बाहर झलकते हुए बूब्स को दबा दबाकर सारा दूध पी जाऊँ।
परंतु भीड़ को देखते हुए मैं खुद को काबू किए रहा। तभी अचानक उसने मुझे अपने बूब्स को घूमते हुए देखा लिया और बोली- ऐसे क्या घूर रहे हो?
यह सुन कर तो मानो मेरी गाण्ड ही फट गयी और मैंने जवाब दिया- कुछ नहीं … बस ऐसे ही।
फिर थोड़ी देर बाद वो मेरी तरफ देखकर मुस्कराई और हम दोनों में नोर्मल बातें शुरू हो गई। तब जाकर पता चला कि अलीगढ़ यू पी की रहने वाली है और अपने एक छोटे से बच्चे करीब दो साल के साथ अपने मायके बिहार जा रही है। उसका नाम आयशा था और गया से बस पकड़ कर अपने मायके जाएगी।
ऐसे ही बातें चलती रही. फिर कुछ देर बाद मैंने नींद का बहाना करके उसके पैर पर पैर रख दिया. उसने कुछ नहीं कहा. फिर मैंने उसके पैर को अपने पैर से धीरे धीरे सहलाना चालू कर दिया. अब भी उसने कुछ नहीं बोला तो मुझे थोड़ी सी हिम्मत आ गयी। मैंने पैर सहलाना चालू रखा।
अब तक करीब शाम के छ: बज चुके थे। तब आयशा ने मुझे आवाज दी- देव मेरे लिए चाय और एक पानी की बोतल ले लो।
मैं चाय और पानी की बोतल लेकर आ गया।
तब तक उसने अपने बगल वाली सीट पर एक लगभग 55 साल की औरत बैठी थी, उसे उठा कर मेरी सीट पर बिठा दिया और मुझे उसकी सीट पर बैठने को बोला और मैं बैठ गया।
मुझमें अब थोड़ी और हिम्मत बढ़ गयी।
ऐसे ही कुछ देर बातें करने के बाद हमने साथ साथ अपना अपना खाना खाया और उसी बर्थ पर एक दूसरे की तरफ पैर करके लेट गये। कुछ देर शान्त लेटने के बाद मैंने अपना हाथ उसके पैर पर रख दिया और कुछ देर बाद मैं उसके पैर को सहलाने लगा। उसने कुछ नहीं बोला और चुपचाप लेटी रही।
अब तक मुझमें काफी हिम्मत आ गयी थी. मुझे पता चल गया था कि लाइन क्लियर है. इसलिए मैंने अपना पैर उसके दोनों पैरों के बीच से होते हुए उसकी गाण्ड के बीच में रख दिया और अपने पैर से उसकी गाण्ड सहलाने के साथ साथ दबाने लगा।
ऐसे ही मैं आयशा का पैर सहलाते सहलाते मेरे हाथ धीरे धीरे उसके घुटने तक पहुँच गए। तब उसने अचानक मेरा हाथ और पैर पकड़कर हटा दिया और उठ कर बैठ गयी कुछ देर बाद मैं भी उठ कर बैठ गया और वो मुझ से बोली- ये क्या कर रहे थे?
मैंने डरते हुए कहा- कुछ नहीं, बस ऐसे ही गलती से हाथ पहुँच गया था।
वो बोली- अभी कोई देख लेता तो क्या होता?
मैं कुछ नहीं बोला बस सर नीचे झुकाये रहा।
अब तक करीब रात के 10 बज चुके थे, ज्यादातर लोग सो चुके थे। फिर हम दोनों बैठ कर बातें कर रहे थे कि अचानक मैं उसका हाथ पकड़ कर सहलाने लगा और वो भी मेरी तरफ देखकर मुस्कराने लगी। अब मैंने चैन की साँस ली और लगातार हाथ सहलाते सहलाते उसके बूब्स दबा दिए। उसके मुँह से आऊच शब्द निकल गया पर इस बार उसने कुछ नहीं बोला बस मेरी तरफ देखकर मुस्कराने लगी।
फिर कुछ देर बाद हम दोनों सबसे ऊपर वाली बर्थ पर चढकर एक साथ लेट गये। उसने बच्चे को अन्दर की तरफ लिटाया और खुद बीच में लेट गयी। अब तक लगभग सभी लोग सो चुके थे और ट्रेन की ज्यादातर लाइट भी बन्द कर दी गयी थी।
अब मैं पूरी तरह से उसके शरीर से चिपका हुआ था और उसके शरीर से खेल रहा था। मेरा लण्ड भी लम्बे समय से खड़ा होकर एकदम सख्त किसी लोहे की रॉड की तरह हो गया था जो उसकी गाण्ड की दरार के बीच में था।
ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से चल रही थी, ट्रेन चलने के कारण हम दोनों ही हिल रहे थे और इसी वजह से मेरा लण्ड उसकी गाण्ड पर रगड़ रहा था। जिससे आयशा और भी जल्दी गर्म हो गयी। मैं उसकी गर्दन के नीचे से एक हाथ से उसका बूब्स दबा रहा था और मेरा एक हाथ उसकी कुर्ती के अन्दर उसके पेट पर चल रहा था।
पेट से धीरे धीरे मैंने अपना हाथ सरकाकर उसकी सलवार के अन्दर डाल दिया और पैन्टी के ऊपर से ही उसकी चूत को मसलने लगा।
अब तक उसकी चूत बहुत पानी छोड़ चुकी थी, उसकी पैन्टी भी सारी भीग चुकी थी। कुछ देर पैन्टी के ऊपर से ही चूत को मसलने के बाद मैंने उसकी पैन्टी में हाथ डाल दिया और दो उँगलियाँ उसकी चूत में डालकर अन्दर बाहर करने लगा.
तभी अचानक उसने मेरा लण्ड अपने हाथ में लेकर जोर से दबा दिया और उसे हिलाने लगी। मेरे मुँह से आह निकल गयी। इसी तरह उसे अपनी उँगलियों से चोदने के बाद उसकी चूत ने एक बार फिर पानी छोड़ दिया और वो ढीली पड़ गयी। पर वो मेरा लण्ड भी आराम आराम से हिला रही थी।
फिर मैंने उसे लण्ड को मुँह में लेकर चूसने को कहा तो उसने साफ साफ मना कर दिया. परंतु थोड़ी देर मनाने के बाद वो मान गयी.
मैं उठकर उसके पैरों की तरफ मुँह करके लेट गया और वो भी अपने बच्चे की ओर पीठ करके लेट गयी और मेरा लण्ड मुँह में लेकर चूसने लगी. मैं उसके पैरों को किसी कुत्ते की तरह चूमने लगा। मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैं कुछ भी बता नहीं सकता। मैं उस समय सातवें आसमान में उड़ रहा था।
फिर लगभग 5-7 मिनट लण्ड चूसाने के बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मेरे लण्ड ने गर्मागर्म लावा छोड़ दिया और लण्ड से लावा की पहली पिचकारी उसके मुँह में ही गिर गई. उसने तुरंत ही लण्ड मुँह से बाहर निकाल दिया और तक दो तीन पिचकारी उसके चेहरे पर गिर गयी और बाकी सारा वीर्य उसके बूब्स के ऊपर कमीज पर गिर गया।
कुछ देर हम दोनों वैसे ही लेटे रहे।
फिर कुछ देर बाद वो उठ कर अपने मुँह और कपड़ों को साफ करते हुए थोड़े गुस्से से बोली- ये क्या कर दिया? सारा चेहरा और कपड़े खराब कर दिए।
मैं धीमी सी आवाज में सोरी बोला. वह हल्की सी मुस्कान के साथ मेरे गाल पर चुम्बन करते हुए बोली- कोई बात नहीं।
तभी आयशा नीचे उतरने लगी तो मैंने पूछा- कहाँ जा रही हो?
वो मुस्कराती हुई बोली- टायलेट जा रही हूँ, चलोगे क्या?
मैंने भी तुरंत हाँ कर दी।
तो आयशा बोली- नहीं, कोई देख लेगा.
बोलते हुए चली गयी.
कुछ देर बाद मैंने देखा कि सभी लोग सो रहे हैं। मैं भी नीचे उतर कर उसके पीछे पीछे टोयलेट में चला गया। उसे अपना नाम बता कर दरवाजा खुलवाया और अंदर गया.
अन्दर जाते ही मैं आयशा पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा।
वो बोली- क्या कर रहे हो? कोई आ जाएगा।
मैंने कहा- कोई नहीं आएगा, बस थोड़ी देर … केवल 5 मिनट।
वो मना करने लगी. मैं बोला- प्लीज मान जाओ न … प्लीज केवल 5 मिनट।
उसने कहा- ओके पर जल्दी कर!
मैंने कहा- ठीक है।
फिर मैंने तुरंत ही उसकी सलवार उतार कर अलग कर दी और खुद घुटने पर बैठकर चूत चूसने लगा। उसकी रशीली रस भरी चूत को चूसने में बहुत मजा आ रहा था। चूत के रस की मधुर सुगंध मुझे और भी ज्यादा मदहोश कर रही थी.
अब आयशा भी मदहोश हो रही थी, वो मेरे सर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी और सिसकारियाँ ले रही थी। हमारे पास ज्यादा समय नहीं था इसलिए मैं खड़ा हो गया और आयशा को बिठाकर अपना लण्ड जो अब तक पूरी तरह से खड़ा हो गया था सीधे उसके मुँह में दे दिया और मुख-चोदन शुरू कर दिया.
करीब 3-4 मिनट बाद मैंने उसे वाशबेसिन पकड़ा कर झुका लिया जिससे उसकी गाण्ड खुलकर मेरी तरफ आ गई। मैंने सीधे ही उसके थूक से भीगा हुआ लण्ड एक जोरदार झटके के साथ उसकी चूत में उतार दिया। इस अचानक हमले के लिए वो तैयार नहीं थी इसलिए उसके मुँह से जोरदार आह निकल गयी उम्म्ह… अहह… हय… याह… और बोली- जरा आराम से करो।
मैं लगातार उसे चोदता रहा और उसके झूलते हुए दोनों बूब्स को जोर जोर से दबा रहा था। उसके मुँह से आवाजें निकल रहीं थी पर वो अपना मुँह बन्द किए हुए थी इसलिए सिर्फ हल्की हल्की ऊॅह ऑह आह उऊऊॅऊॅ की आवाज आ रही थी. ये आवाजें मुझे और भी ज्यादा उत्तेजित कर रहीं थीं।
रेलगाड़ी अपनी पूर्ण रफ्तार से चल रही थी और मैं भी उतनी ही रफ्तार से चोद रहा था। फिर करीब 4-5 मिनट बाद उसे खड़ा करके उसका एक पैर वाशबेसिन पर रख दी और खड़े होकर चुदाई करने लगे।
और कुछ ही देर बाद आयशा की चूत ने पानी छोड़ दिया, वो बोली- अब बस करो, मैं थक गयी हूँ.
मैं बोला- बस थोड़ी देर और … मेरा भी होने वाला है.
मैं उसे उसी मुद्रा में चोदता रहा।
तभी किसी ने टोयलेट का दरवाजा खटखटाया. हम दोनों की गाण्ड फट गयी। मैंने मुँह पर उंगली रखते हुए शान्त रहने का इशारा किया।
कुछ देर बाद मैं कड़कती आवाज में बोला- कौन है?
बाहर से आवाज आई- कुछ नहीं भाई, चैक कर रहा था. मुझे फ्रैश होना था. सामने वाले टोयलेट में भी कोई है, इसलिए चैक कर रहा था।
फिर कुछ देर बाद सामने वाले टॉयलेट के गेट की खुलने और बन्द होने की आवाज आयी तब हम दोनों को थोड़ी शांति मिली. तब तक आयशा अपनी सलवार पहन चुकी थी और वो बाहर जाने लगी.
परंतु मेरा लण्ड अब भी खड़ा हुआ था। मैंने उसे पकड़ कर इशारे में पूछा- कहाँ चल दी?
तो उसने बोला- बाहर!
मैंने लण्ड की तरफ इशारे करते हुए बोला- फिर इसका क्या होगा?
वो बोली- अब नहीं, बहुत देर हो चुकी है. फिर से कोई आ जाएगा. बाहर मुन्ना भी अकेला है और मैंने अब कपड़े भी पहन लिए हैं।
मैंने भी मन में सोचा कि उसकी भी बात ठीक है.
फिर भी मैंने उसे लण्ड चूस कर ठण्डा करने की बोला तो उसने मना कर दिया- नहीं अब नहीं।
मैंने जबरदस्ती उसे पकड़ कर बिठाया और उसका सर पकड़ कर उसके मुँह में अपना लण्ड डाल दिया और लण्ड को उसके मुँह में अन्दर बाहर करने लगा। उसके मुँह से गौ गौ खौ खौ जैसी आवाजें निकलने लगी। मैं लगातार उसके सर को पूरी ताकत से पकड़ कर उसके मुँह को चोद रहा था मेरा लण्ड उसके गले तक उतर रहा था। उसकी आँखों से लगातार ऑसू आ रहे थे। कुछ देर बाद मेरे लण्ड ने उसके मुँह में वीर्य उगलना शुरू कर दिया। उसने मुँह से लण्ड बाहर निकालने की पूरी कोशिश की परंतु मैंने अपने लण्ड को उसके गले तक उतारे रखा और तब तक बाहर नहीं निकाला जब तक मेरे वीर्य की एक एक बूँद उसके गले के नीचे नहीं उतर गई।
जब मैंने लण्ड उसके मुँह से बाहर निकाला तब उसने चैन की साँस ली। अब आयशा बहुत बुरी तरह से हांफ रही उसकी साँस बहुत तेजी से चल रही थी।
वो तेजी से उठी और बहुत जल्दी गेट खोलकर बिना कुछ बोले बाहर चली गयी।
कुछ देर बाद मैं भी अपने कपड़े ठीक करके बाहर आ गया।
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