कमसिन भांजी की कुँवारी बुर
मित्रो, मैं यह कहानी किसी मित्र के अनुरोध पर लिख रहा हूँ, यह मेरे जीवन यादगार घटना है। यह घटना तकरीबन साल 2000 की है.. तब मैं पढ़ रहा था। मैं मेरी मौसी के यहाँ शहर में पढ़ता था। एक दिन मेरी मौसी की बेटी मंदा मौसी से मिलने आई। यह जो घटना मेरे जीवन में घटी.. वो अनायास ही घटी है मेरी मौसी की बेटी बहुत ही सुंदर है और वो अपनी एकलौती बेटी पुष्पा को साथ में लाई थी।
मेरे मन में कुछ भी नहीं था.. लेकिन पुष्पा नई-नई जवान लौंडिया थी.. उसकी गोरी चमड़ी तथा उठे हुए मम्मे बहुत ही सुंदर लग रहे थे.. उसने सफेद फ्रॉक पहना हुआ था। शरीर से गबरू होने के कारण बहुत ही जानदार लग रही थी। उसका फ्रॉक घुटनों तक आ रहा था.. उसकी टाँगें भी बहुत चिकनी और गोरी थीं।
मैंने उसे अपनी तरफ बुला लिया और अपने पास पर बिठा लिया। वो बहुत होशियार तथा सुंदर ढंग से बातें कर रही थी.. लेकिन थोड़ी समय बाद उसके बड़े-बड़े मुलायम कूल्हों की नर्माहट ने मेरे लंड को खड़ा कर दिया।
मेरी बहन उसी शाम को वापस जाने वाली थीं.. लेकिन मौसी ने ज़िद करके रोक लिया।
रात का खाना खाने के बाद बहुत गप्पें लड़ाने के बाद सोने का इंतज़ाम हुआ और चूंकि घर में सीमित साधन थे.. सो ऊपर वाले ने मेरी सुन ली.. पुष्पा को मेरे साथ खटिया पर सोने का प्रबंध हो गया। मेरी मुँह माँगी मुराद पूरी हो गई।
वो मुझे उम्र में छोटी थी.. मैं एकदम से उसके साथ कुछ कर तो नहीं सकता था.. लेकिन बाहरी मज़े तो ले ही सकता था।
पुष्पा मेरी खटिया पर आकर मेरे एक तरफ लेट गई। वो मेरी तरफ पीठ करके सो गई.. उसकी फ्रॉक घुटनों के ऊपर तक आ गई थी। रात के दूधिया उजाले में वो परी सी लग रही थी।
बहुत गप्पें लड़ाने के बाद धीरे-धीरे घर के सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे। लेकिन मैं जाग रहा था.. इतना कमसिन और मदमस्त माल मेरे बगल में मुझसे चिपक कर लेटा हुआ था.. पीछे से उसकी गाण्ड की गहरी दरार देखकर मेरा लंड खड़ा हो चुका था। मैं एक हाथ से अपने लंड को सहला रहा था।
अब रात के 11:45 हो गए.. सारे लोग गहरी नींद में सो गए थे.. तब पुष्पा ने मेरी तरफ़ पलटी मारी और उसने अपना एक पैर मेरे ऊपर डाल दिया.. तब मैंने अपनी रज़ाई हम दोनों के ऊपर ओढ़ ली.. और मैंने उसकी साँसों की गरमी को महसूस किया।
अब मैंने अपना बरमूडा नीचे खिसका दिया.. अब मेरे लौड़े के ऊपर सिर्फ एक निक्कर ही बची थी। अब आपस में हमारी रानों की नर्माहट को मैं महसूस कर रहा था।
एक हाथ मैंने उसकी पीठ पर रख दिया और उसे आहिस्ता से सहलाने लगा.. जब उसकी कोई उजरदारी नहीं हुई तो मैंने धीरे से उसकी फ्रॉक को ऊपर को किया और उसकी कमर के ऊपर तक उठा दिया।
अब मेरा हाथ उसके बड़े-बड़े गोल-गोल चूतड़ों पर रखा। एक छोटी सी चड्डी में उसके दो बड़े-बड़े कूल्हे फंसे हुए थे।
मैंने उसका एक पैर जो मेरे ऊपर था उसे और ऊपर कर दिया और उससे चिपक गया।
अब लोहा और चुंबक आपस में चिपक गए थे.. मैं बहुत खुश था। मेरा लवड़ा डिस्को कर रहा था।
हमारी नंगी रानें एक-दूसरे से चिपक गई थीं.. तभी मैंने उसकी गाण्ड की तरफ से उसकी चड्डी की इलास्टिक में अपना एक हाथ घुसा दिया।
कुछ पलों तक स्थिति को समझने के बाद मैंने अपना हाथ उसके गोल चूतड़ों पर दबा दिया और सहलाने लगा।
वो बेसुध सो रही थी.. मैंने उसका फ़्रॉक और ऊपर उठा दिया और आगे से उसके चीकू के आकार के स्तनों पर हाथ फेरा.. उसके बदन की मदहोश कर देने वाली खुशबू.. मुझे बेचैन कर रही थी.. मेरा कड़क हो चुका लण्ड उसकी चूत के सामने निक्कर से बाहर आने के लिए फुंफकारें भर रहा था।
तब मैंने पुष्पा को चित्त लिटा दिया और पहली बार मैंने उसकी नाज़ुक चूत पर उसकी चड्डी की ऊपर से हाथ रखा।
उसकी चूत गरम साँसें छोड़ रही थी। मैं धीरे से उसके स्तनों को सहलाता हुआ.. नीचे उसकी नाभि को भी सहलाने लगा।
फिर नाभि से नीचे उसकी चड्डी की इलास्टिक में हाथ घुसा दिया.. अब उसकी चूत का इलाका.. जिधर उसकी चूत पर इने-गिने रेशम से मुलायम बाल उगे हुए थे।
आज एक कच्ची कली मेरे पास थी.. और बस मैं कैसे खुद को रोकता.. नीचे मेरी उंगलियाँ सरक गईं.. मेरी हथेली उसकी फूली हुई पावरोटी की तरह चूत पर छा चुकी थी।
तब उसकी साँसें निकल गईं.. उसकी चूत के फलक बड़े-बड़े थे.. आपस में एकदम से मिले हुए थे।
मैं अपनी बहन को धन्यवाद दे रहा था कि क्या चूत को जन्म दिया है।
मैं क्या करूँ ये मेरी समझ में नहीं आ रहा था। तब मैंने मेरा लंड निक्कर से बाहर निकाला और हिम्मत करके उसके दोनों पैर मेरी कमर पर रख लिए।
अब मैंने एक बार इधर-उधर देखा.. सारे लोग तथा बहन आराम से सो रहे थे। मैं अपनी भांजी की चूत का उद्घाटन करने जा रहा था। अब मैंने उसकी चड्डी कमर से घुटनों तक नीचे को खिसका दी।
मैंने फिर एक बार आस-पास सभी को देखा.. सब सो रहे थे। तब मैंने रज़ाई नीचे की.. और देखा कि उसकी सफेद छोटी सी चड्डी उसके घुटनों तक आ गई थी। उसकी नाज़ुक कमसिन चूत रसमलाई की तरह दिख रही थी.. उसके फलक चिपके हुए थे.. उसकी चूत से दाना थोड़ा सा बाहर को निकल रहा था।
मैंने लंड का निशाना बराबर बनाया और सुपारे को छेद पर लगा दिया। मेरे बड़े सुपारे ने उसकी चूत का मुँह पूरा बंद कर दिया था।
अब मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरा लंड उसकी नाज़ुक चूत का चुम्मा कर रहा था।
तब मैंने उसकी चूत की दोनों फाँकों को अलग किया और मेरा सुपारा छेद में सटा दिया।
मेरा लंड लार टपका रहा था.. तब मैंने अपने लण्ड को पीछे से हाथ से पकड़ कर सहलाते हुए हिलाने लगा.. और थोड़े ही समय में मेरा लावा.. जो कि गाड़ा वीर्य था.. उस कुंवारी चूत पर फूटा..
मेरा माल उसकी चूत के ऊपर-नीचे चारों तरफ से जहाँ जगह मिली.. निकलने लगा।
तभी कामांध होकर मैंने एक धक्का मार दिया.. तब उसकी पुष्पकली मेरा आधा सुपारा निगल गई।
उसने मेरा पानी अन्दर कितना लिया.. यह मुझे मालूम नहीं.. लेकिन उसकी चूत के मुँह में मैंने ढेर सारा मेरा खारा पानी छोड़ दिया.।
मुझे बाद में मालूम हुआ कि वो जाग रही थी।
फिलहाल तो मेरा तनाव उस कच्छी कली को बिना चोदे ही खत्म हो गया था।
इसके बाद उसकी चुदाई भी हुई.. वो मैं आप सभी को बाद में लिखूँगा।
मेरी कहानी आप सभी को कैसी लगी.. मुझे जरूर लिखिएगा। मुझे आपके ईमेल का इंतजार रहेगा..
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