कामवासना से बेबस मैं क्या करती
दोस्तो, मैं आपकी माया मेरी पिछली कहानी
गान्ड बची तो लाखों पाये
को पढ़ कर तारीफ़ भरे मेल करने के लिए दिल से धन्यवाद. मैं फिर से आपके समक्ष अपनी सच्ची कहानी पेश करती हूं.
दोस्तो, मेरे पास एक चीज है जिसे सबने प्यार किया. वो मुझे कुदरत की तरफ से मिली एक बख्शीश है, इसे देख कर सिर्फ लड़कियां ही मुझसे जलती हैं, बाकी सब इसे चाहते हैं. वो ऐसी चीज है, जिससे सारा जहाँ प्यार करता है. मैं खुद भी उसे जान से ज्यादा प्यार करती हूं. मेरे पास इसके सिवा और कोई भी अमीरी नहीं है, बस ये ही मेरी जायदाद और मेरी विरासत है. वो सबका आकर्षण का केंद्र मेरे बदन के पीछे नाजुक पैरों के ऊपर और पतली कमर से नीचे है. वो है मेरी प्यारी प्यारी बाहर उभरी हुई ‘गांड’.
मेरा फिगर जान लीजिए. ऊपर 32 इंच के मस्त चुचे, बीच में 26 की कमर और नीचे 38 की मखमली गांड. मेरी गांड में ऐसा वशीकरण छिपा है कि मैं जिसे चाहूँ उसको उंगली से नचा सकती हूं. कोई भी लड़का हो, कोई भी मर्द हो, बस मेरी गांड देखकर मेरा दीवाना हो जाता है.
पर दोस्तो, सब दिन अच्छे नहीं होते एक दिन मेरी गांड के लिए अचानक से बुरा हो गया. इसका पूरा मजा लेने के लिए एक बार मेरी पिछली कहानी को जरूर पढ़ लें कि कैसे दिन बुरा हुआ था.
आठ दिन बीते अंकल से चुदाई किए. मुझे फिर से चुदास चढ़ने लगी. पर घर से निकलना मेरे लिये आसान नहीं था. कोई न कोई घर पर होता ही था. मुझे टाइम नहीं मिलता. इस तरह 12 दिन बीत गए थे, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मुझसे बिन चुदाये रहा नहीं जा रहा था.
पंद्रह दिन ऐसे ही बीत गए.
एक सुबह मेरी छोटी बहन वर्षा स्कूल जा चुकी थी, पापा काम पर जा चुके थे.
मेरी मम्मी हमारे मोहल्ले में महिला मंडल की प्रमुख हैं. वो मुझसे बोलीं- माया हमारे मंडल की मीटिंग है, मैं 2 बजे से पहले आ जाऊंगी, तुम खाना बना लेना और जिगर का ख्याल रखना.
मैंने सोचा कि अब पापा भी शाम को आएंगे, वर्षा भी दोपहर को आएगी. मैंने नहा कर जीन्स और टी-शर्ट पहनी. मैंने जीन्स के अन्दर कुछ नहीं पहना, परफ्यूम लगाया और सोचा चलो कुछ करते हैं.
मैंने फ्रिज में से दूध निकाला, चाय बनाई और थरमस में चाय भरके मेरे यार से मिलने निकल पड़ी.
सुबह के 9 बजे थे, मैं भैया से बोली- मैं अभी आती हूँ, बाज़ार से कुछ सामान लेना है.
मैंने गेट खोलकर बाहर से बंद किया और अपने नये बन रहे घर की तरफ गांड मटकाती हुई चल पड़ी. वहां पर देखा तो हमारे मकान का प्लास्टर हो रहा था. दो औरतें और चार आदमी काम कर रहे थे, उसमें वो भीमजी अंकल न था, ये भी बहुत अच्छा हुआ. मैंने किशोर को थोड़ा पास बुलाया.
मैंने किशोर को चाय का थरमस दिया और धीमे से कहा- फ्री हो क्या?
वो बोला- अभी नहीं कल.
मैंने कहा- आज प्लीज टाइम निकालो, मुझे बहुत खुजली हो रही है, अभी घर पर कोई नहीं है प्लीज, दोपहर तक कोई डर नहीं है.
वो गुस्से में होके बोला- अभी तुम जाओ … मेरे पास टाइम नहीं है, इन पांचों मजदूरों से काम निकलवाना है, हम पे मजदूरी चढ़ जाएगी, वैसे भी इस काम में हमको कुछ नहीं मिलने वाला. मुझपे मेरे बाप का बहुत प्रेशर है, बात को समझो.
वो चाय लेके चला गया. मैं उदास होकर वापस घर चली आई. मैंने सबके लिए खाना बना लिया और पलंग पर बैठी उदास होकर मन में ही मन में उसको गालियां देने लगी. कहता है टाइम नहीं मेरे लिए, भड़वा कहीं का … मुझे चोदने में उसको पैसा तो लगता नहीं, फिर क्यों कमीना इतनी गरज दिखा रहा है. मजदूर कहीं का … मजदूर ही रहेगा. उसकी माँ को कुत्ते चोदें, उसके लिए मैंने क्या क्या नहीं किया, मैंने उस कुत्ते को मेरी छोटी बहन वर्षा तक चोदने दी. उसके लिए उस अंकल से चुदने में राजी हो गई. मैंने कितनी क़ुरबानियाँ दी थीं. वो फिर भी मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहा है.
तभी अचानक डोरबेल बजी, मैं अपने ख्यालों बाहर निकली. उस समय 12 बजे थे. मैंने दरवाजा खोला तो किशोर था. उसने अन्दर आकर दरवाजा बंद कर दिया और मुझे बांहों में भर लिया. अपने हाथों से पीछे से मेरी गांड दबाने लगा. मुझे उठा लिया और मेरे कमरे में ले गया. मुझे उसने पलंग पर लिटाया और मेरे होंठों को चूसने लगा. उसकी ऐसी प्यारी हरकत से मेरा सब गुस्सा पानी पानी हो गया.
मैं बोली- तुम्हें पता है आज मैं कितनी नाराज थी तुमसे … जब तुमने कहा मेरे पास टाइम नहीं.
उसने मेरा टी-शर्ट अन्दर हाथ डाले और मेरे स्तनों को मसलने लगा और बोला- मेरी जान तेरे लिए मैं जान दे सकता हूं. तू जब आई सामने से, तब तो दिमाग ने मुझे मना किया, कहा कि अपने काम पर ध्यान दे. पर जब तू निराश होके जाने लगी, तब तेरी ये प्यारी उठी हुई जीन्स में गांड देखी, तो मेरे दिल ने मुझे कहा कि माया निराश हुई, तो कोई बात नहीं मना लूंगा. पर तेरी इस गांड को में निराश होने नहीं होने दूंगा. तेरी गांड मुझसे निराश होके गई, ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और खुद को रोक ना सका.
मैं उसे बड़ी हसरत से देखने लगी.
उसने मेरी गांड पर टपली मारकर कहा- तेरी ये बाहर निकली हुई गांड माया दुनिया का आठवां अजूबा है. इसे देखकर किसी की भी नियत डोल जाए … माया तुझे इसकी कीमत पता नहीं.
मुझे भी इतनी ख़ुशी होती, जब कोई मेरी गांड की तारीफ करे तो. मैं आइने में अपनी गांड देखती, तो मैं भी अन्दर से बड़ी खुश होती. भगवान तूने भी मुझे क्या तराशा है कि किसी की भी नजर ना लग जाए. मुझे गांड पर काला टीका लगाना पड़ेगा.
तभी किशोर ने मेरी टी-शर्ट उतार दी और मेरे स्तनों को चूसने लगा. मेरी तो अह्ह्ह आह्ह्ह निकलने लगी. सांसें तेज हो गईं, मैं उसके माथे को अपने स्तनों पे दबाने लगी- आह्ह मेरी जान और चूसो आह्ह आह्ह.
वो दांत से मेरे स्तनों के निप्पल को काटने लगा. मुझे और भी मजा आने लगा ‘आह्ह मर गयीईई आह्ह …’
फिर उसने मेरी जीन्स पेन्ट उतारी और बोला- वाह … आज अन्दर कुछ नहीं पहना मेरी जान … तू तो बिल्कुल तैयार होके आई थी मेरे पास.
मैं बस शर्मा के मुस्कुरा दिया. वो मेरी चूत चाटने लगा, मुझे अति आनन्द आने लगा. मैं ‘आहहह आह्ह्ह..’ करने लगी.
उसने मुझे उलटा किया और अपनी जीभ मेरी गांड पर फेरने लगा. मैं तो मदहोश होने लगी. मेरी सांसें और तेज होने लगीं.
वो मेरे चूतड़ों को चूमने लगा और बोला- माया तेरे पूरे जिस्म में तेरी ये गांड ही है, जो मुझे तेरा पागल बना देती है. मुझे बचपन से गांड मारने का शौक है.
वो फिर से मेरे चूतड़ों पर जीभ फेरने लगा. उसने फिर से मेरी गांड की रिंग पे जीभ लगा दी और अन्दर फेरने लगा. मेरी तो ‘आह्ह आह्ह..’ चालू हो गई और मेरे हाथ उसके सर को गांड में दबाने लगे. फिर वो मेरी गांड में जीभ डालने लगा. वो ऐसे जीभ डालता कि मेरी गांड में गुदगुदी होती मुझे और मजा आता.
मैं आंखें बंद किए ‘आह्ह और आह्ह..’ करती और वो पूरी जीभ मेरी गांड में उतारता चला जाता. फिर जीभ को सांप की तरह अन्दर गांड में लपलपाता. जिससे मेरी लज्जत इतनी बढ़ जाती कि बस पूछो ही मत. मुझे ऐसा लगता कि जैसे मैं स्वर्ग में हूँ. मैं उसका मुँह अपनी गांड में और तेजी से दबा देती ‘आह्ह किशोर आह्ह्ह … करते रहो आह्ह आह्ह्ह्ह..’
मेरी गांड को उसने चिकना बना डाला. फिर मेरी चूत में पूरी जीभ डाल दी और लपलपाते हुए चूत को भी मजा देने लगा. मैं अपनी कमर हिलाते हुए बोलने लगी- आह्ह आह्ह आह्ह्ह और अन्दर डालो … आह्ह्ह आह्हहह मेरे राजा … आह्ह्ह … ये पल कभी खत्म ना हो आह्ह्ह्ह.
फिर वो अपनी पेन्ट उतार कर मुझे देखने लगा. मैंने झट से उसका लंड पकड़ लिया और पहले चूमा, फिर लंड चूसने लगी. मुझे उसका लंड इतना प्यारा लगता कि सारी उम्र में उसे ही चाटती रहूँ, चूसती रहूँ. मैं उसका लंड के टोपे को पकड़ कर चूसने लगी. मैं सुपारे को ऐसा दम लगाकर चूस रही थी कि उसका सारा खून उसमें आ गया था. लंड का सुपारा लाल टमाटर सा हो गया था और भी मोटा हो गया था.
वो मेरे बालों में हाथ फेरता हुआ कह रहा था- आह्ह्ह अह्ह माया तुम कामदेवी हो आह्ह्ह आह्ह्ह.
मैंने कहा- अब मेरी चूत को शांत करो जान … ये भट्टी सी गर्म हो गई है.
उसने मेरी गांड को थपथपाते हुए इशारा किया, तो मैं झट से पलंग पर चूत फैला कर लेट गई. मैंने अपनी टांगें ऊपर की तो किशोर ने मेरी टांगें अपने कंधों रख लीं. उसने अपना लंड मेरी चूत पर टिका दिया और घिसने लगा.
मैं बोली- आह्ह्ह किशोर लंड पेल दो ना … क्यों तड़पा रहे हो जान … आज तो मुझे ऐसा चोदो उथला पुथला कर कि महीनों तक चुदाई का मन ही ना हो.
उसने लंड चूत पर सैट किया और वो धक्का मारने वाला था.
तभी टिन … टिन … टिन … करके मनहूस डोरबेल बज उठी. किशोर डर कर उठ गया, उसने जल्दी जल्दी से अपने कपड़े पहने. सारा मजा किरकिरा हो गया. मुझे तो इतना गुस्सा आया, जिसने डोरबेल बजाई होगी उस पर कि अभी जाके उसकी गांड में डंडा घुसेड़ दूँ और गांड फाड़कर उसके हाथ में दे दूँ.
मैंने किशोर से कहा- जान डरो मत, मेरा एक पागल भाई है, शायद वो होगा, उसे भूख लगी होगी. मैं उसे खाना देके आती हूँ. तब तक तुम कहीं पर छिप जाओ. फिर मौज करेंगे जान … मैं बस अभी आई.
वो मेरे सेट्टी पलंग के नीचे छुप गया. मैंने घड़ी देखी, एक बजा था. मैंने जल्दी कपड़े पहने और दरवाजा खोला … तो पापा थे. उन्होंने पहले खींच कर मुझे थप्पड़ मारा और बोले- इतनी देर क्यों लगी दरवाजा खोलने में?
मैंने कहा- वो … वो …
पापा बोले- वो वो क्या? कपड़े पहन रही थी, कहां है वो मजदूर की औलाद?
मैं बोली- पापा आप क्या कह रहे हैं, मैं समझ नहीं पा रही हूँ.
पापा बोले- अभी समझाता हूं … रुक छिनाल कहीं की, अभी तेरी आदत गई नहीं और अब तो घर पर बुलाने लगी है, रुक अभी देखता हूँ.
वो सब जगह किशोर को ढूंढने लगे. मेरी तो गांड फट गई कि हे भगवान अब बचा ले … अब क्या होगा.
पापा सीधे टीवी वाले रूम में गए, सब जगह देखा, पर किशोर मिला नहीं. किचन में देखा, नहीं मिला.
तभी मम्मी आ गईं. वो बोलीं- क्या ढूंढ रहे हैं?
पापा गुस्से में बोले- अपनी बिटिया अब घर पर भी यार बुला कर चुदाने लगी है.
मम्मी तो चौंक कर मुझे देखने लगीं. मैं रोने लगी. फिर पापा मेरे कमरे ढूंढने लगे और सेट्टी पलंग की तरफ जाने लगे. मेरी गांड खुल बन्द होने लगी. पापा ने पलंग के नीचे देखा, फिर पलंग को हाथों से उठा कर उल्टा कर दिया. पर नीचे कोई नहीं निकला. मैं खुद सोच में पड़ गई कि किशोर सच में कहां गुम हो गया.
मम्मी बोलीं- आप खामखां माया पर शक कर रहे हैं, अब वो सुधर गई है.
पापा बोले- भारती (मेरी मम्मी का नाम) मैं यकीन से कहता हूं, वो भेनचोद यहाँ पर ही है.
उन्होंने किशोर को अपने कमरे में ढूंढा, वो वहाँ भी नहीं था. हमारे घर में हंगामा हो गया था, मैं सोचने लगी कि सच में वो कहां चला गया?
पापा ने बाथरूम खोला, वो वहां भी ना था. टॉयलेट का दरवाजे को धक्का मारा, वहाँ किशोर नीचे बैठा था. पापा ने उसे बालों से पकड़ा और खींचते हुए हॉल में ला कर बोले- मेरी बेटी को हाथ लगाओगे साले कुत्ते की औलाद.
बस पापा ने थप्पड़ मारने को हाथ आगे किया, तो किशोर गुस्सा होकर बोला- ऐसे ही मैं यहाँ नहीं आया … तुम्हारी बेटी को मेरा लंड पसन्द है बुड्डे … तेरी बेटी की तो मुझे शक्ल तक पसंद नहीं है, वो खुद ही मेरे पीछे पड़ी है लहसुन खाकर … हट जा बुड्डे … नहीं तो आज समझ लेना.
उसने पापा को जोर से धक्का मारा, पापा हट गए. किशोर ने मेरी तरफ गुस्से से आंखें फाड़कर देखा और दरवाजा खोल कर घर के बाहर निकल गया.
मैं तो उसको देखती ही रह गई. मेरी आंखों से आंसू निकल आए. मैं कितना प्यार करती थी उसको … कितना भरोसा करती थी उसका … वो कितना कमीना निकला, मेरे पापा को धक्का मार के चला गया. मेरा तो दिल टूट गया. हमारे घर में हंगामा हो गया.
मम्मी ने पापा को सहारा दिया. वे पापा को समझा रही थीं- आप गुस्सा ना हो, आजकल के लड़कों में तमीज नहीं होती … आप हल्ला मत करो, हमारी ही मोहल्ले में इज्जत चली जाएगी.
पापा ऊंची आवाज में किशोर को गालियां दे रहे थे. तभी मेरा मंदबुद्धि भाई जिगर बाहर से इतना आवाज सुनकर अन्दर घर में आ गया और घर में सबको देखने लगा. उसके हाथ में बिस्कुट का पैकेट था, वो बिस्किट खा रहा था.
पापा ने भइया को जोर से थप्पड़ मारा और कहा- तेरी बहन घर में चुद रही थी और तू बाहर बिस्किट खा रहा है, पागल बेशरम कहीं के.
पापा गुस्से से बाहर निकले और बड़ी और भारी लाठी ले आए. उन्होंने पहले भाई को मार दी. भाई जोर से रोने लगा.
मम्मी बीच में आ गईं … वे बोली- इस बेचारे को क्यों मार रहे हैं?
पापा मेरी तरफ आने लगे और बोले- खुद के आटे में कंकड़ हो, दूसरों क्यों दोष दें.
पापा ने मुझे धक्का मारा, मैं नीचे फर्श पे गिर गई और उन्होंने मुझे भी लाठी से खूब मारा.
मैं दर्द से चिल्लाने लगी.
मम्मी बीच आ गईं. पापा मम्मी को गुस्से से बोले- साली तूने ही इसको इतना सर पे चढ़ने दिया.
हमारे घर में बड़ा हंगामा हो गया और मैं रो रही थी, चीख रही थी मेरे पैर, जांघें, गांड, कमर, सब दुख रहा था.
पापा मुझे गाली देते हुए कहने लगे- अबकी बार चुदना तो क्या, साली तुझे चलने लायक भी नहीं छोडूंगा. ऐसा करने का सोचने से भी डरेगी तू.
इसी बीच मेरी जीन्स फ़ट गई और मैंने आज अन्दर पेन्टी भी नहीं पहनी थी. मैंने कई महीनों से झांटें भी नहीं साफ की थीं. मेरी झांटें और लाल लाल चूतड़ बाहर दिख रहे थे. मैं इसे छुपाने के लिए मैं अपने हाथ आगे दे रही थी. पापा ने फिर भी रहम नहीं किया.
जवान लड़की चाहे कितनी भी गिरी हुई हो, अपनी मर्जी से सब कुछ दिखा सकती है, पर मज़बूरी से जिस्म का एक इंच भी दिखे, तो वो जान दे देगी. पर दिखने नहीं देगी.
मेरी हालात भी कुछ ऐसी ही थी. हाथ आड़े देते हुए मेरी उंगलियां सूज चुकी थीं. अब मेरे हाथ भी काम नहीं कर रही थीं.
अब तो मेरी आवाज भी निकालने ताकत नहीं रही.
दो बजे होंगे … तब तक वर्षा भी स्कूल से आ गई. उसने इधर उधर देखा और स्कूल बैग फेंक कर बीच में आ गई- पापा आप दीदी को जानवरों की तरह क्यों मार रहे हैं?
वर्षा ने पापा से लाठी छीन ली.
पापा बोले- वर्षा, इसकी बाहर जाने पे रोक लगा दी, पढ़ाई भी बंद करवा दी, अब तो इसकी हिम्मत देख, इसे कोई डर नहीं ये साली घर में भी मुँह काला करने अपने यार को बुलाती है. इस छिनाल के लिये कल का लौंडा मुझे कह गया. क्या कमी रह गयी थी … इस साली कुतिया की परवरिश में!
मैं दर्द से अधमरी हो गई थी. मेरी आंखों के सामने धीरे धीरे अँधेरा छा रहा था. मैं दर्द से बेहोश हो रही थी. वर्षा ने पास में ही पड़ी मम्मी की साड़ी से मेरी दिख रही गांड को ढक दिया.
पापा जोर से रोने लगे और कहने लगे- हे भगवान मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था, जो तूने मुझे पागल बेटा और ऐसी चुदक्कड़ बेटी दी, हे भगवान ऐसी बेटी किसी को मत देना.
वर्षा बोली- पापा इसमें दीदी का कोई दोष नहीं.
वो मुझे देखने लगी, मैं निःसहाय पड़ी थी, मेरी आंखें भी बंद हो रही थीं, पलकों को उठाने की ताकत भी नहीं बची थी.
वर्षा पलभर सोचकर बोली- वो लड़का ही लुच्चा लफंगा है, दीदी बेचारी भोली हैं उसको फांस लिया होगा और आपने ही उसको घर बनवाने का काम दिया था. आपने ही दीदी को मजदूरों को चाय देने जाने का बोला था. सब आपका दोष है पापा.
मम्मी भी गुस्से में बोलीं- वर्षा सही बोल रही है.
वे पापा के पास आईं और बोलीं- आप जवान लड़की को जानवरों की तरह मारते हैं, अंधे होकर कभी सोचा है अपनी माया बीस साल की होने को आई. मेरी शादी सोलह साल की थी, तब तो हो गई थी. इसकी उम्र में हमारा बच्चा जिगर तीन साल का हो गया था. आप ही सोचिये अगर आपको चार दिन खाने को ना मिले, तो आपकी हालत कैसी होगी?
पापा बोले- तुम कहना क्या चाहती हो? मैं भूख से पागल हो जाऊंगा और क्या?
मम्मी बोली- मेरी बच्ची की भी हालत ऐसी है, आप समझ रहे हैं ना, उसकी शादी कर दो, सब ठीक हो जाएगा, घर की लक्ष्मी को कोई जानवरों तरह पीटता है क्या? वो तो अभी नादान नासमझ है. वो बेचारी अपने आवेग को नहीं रोक सकती, आप तो समझदार होके भी पीटते हैं, आपको पाप लगेगा.
पापा ने मुझे देखा और रोने लगे. पापा रोते रोते बोले- भारती तुम सही बोल रही हो … मैं अपना आपा खो चुका था. अभी तेरे भाई को बोलता हूँ, कहीं अच्छा रिश्ता ढूंढे … तेरा भाई तो कब से कह रहा है, पर मैं ही उसको टालता रहता था कि माया अभी छोटी है. कभी सोचा नहीं कि उसके भी कुछ अरमान होंगे, जिन हाथों से बचपन में उसे खाना खिलाया, प्यार किया, उसी हाथों से उस बेचारी को बेरहमी से मारा. हमारे पड़ोसी तिवारी ने मुझे बताया था कि घर के अन्दर जाके देख, तेरी बेटी मजदूर के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है और मैं भड़क गया.
तभी वर्षा गुस्से में बोली- पापा, आप उस तिवारी अंकल की बातों में आ गए. उस तिवारी अंकल ने तो आपको ये भी बताया होगा कि उसकी दोनों बेटियां श्रुति और काव्या कितनी बार भागी हैं, कितनी बार प्रेग्नेंट हुई हैं, कितने ही बार उस तिवारी ने खुद अपनी बेटियों के लिए लाखों रुपये खर्च कर कितने अबोर्शन करवाये हैं. ये भी आपको बताया ही होगा दूसरों की इज्जत उछालने में तो पूरे तिवारी परिवार की पुरानी आदत है.
ये शब्द वर्षा गुस्से में लाल होके एक ही साँस में बोल गई.
पापा भौंचक्के से सुनने लगे.
मम्मी भी बोलीं- वर्षा सही बोल रही है, तिवारी की लड़कियां न जाने कितनी बार भाग चुकी हैं.
पापा बोले- वर्षा मुझे पता नहीं था कि तिवारी इतना कुटिल स्वभाव का है, मुझे माफ़ करना … मैं बस अँधा होकर मेरी बच्ची को मारता रहा.
फिर वो मेरे पास आए. मैं फर्श पर पड़ी थी. मेरे चूतड़ों में सूजन आ गई थी. मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे. मैं दर्द से कराह रही थी. पापा रोते हुऐ मेरे माथे पे हाथ फेरते बोले- मेरी बच्ची मुझे माफ़ करना, मेरी भूल हो गई … मैं तेरे जज्बात समझ नहीं पाया.
उन्होंने मेरे माथे पे चूमा और खड़े हो गए, फिर मम्मी से बोले- इस बेचारी को पलंग पर सुलाओ.
अब तक मेरा पूरा जिस्म सुन्न हो गया था. पापा बोले- वर्षा तुम मेडीकल से माया के लिए दर्द की गोली और मुंदीचोट वाली मलहम ले आना, गोलियां अभी खिलाना होगा. माया को दर्द से तड़पते में और नहीं देख सकता.
पापा रोते हुए बाहर चले गए. मम्मी और वर्षा ने मुझे उठाया तो मेरी जीन्स नीचे गिर गई. लाठी के मार से मेरी जीन्स का बटन टूट गया था. काफी समय से मैंने झांटें भी साफ नहीं की थीं, मेरी झांटें और मेरी सूजी हुई गांड देखकर मम्मी ने मुझे बांहों में भर लिया.
मम्मी ने रोते हुए कहा- वर्षा तेरे पापा को कुछ भी रहम नहीं, मेरी बच्ची को जालिमों की तरह मारा, भगवान उसे कभी माफ़ नहीं करेगा.
अब मेरी आंखें बिल्कुल बंद हो चुकी थीं और मुझे कुछ साफ साफ सुनाई भी नहीं दे रहा था. वर्षा भी सिसक कर धीमे से आंसू बहा रही थी. भइया की भी रोने की आवाज आ रही थी. सब रो रहे थे.
मुझे लगा कि मैं मर गई हूं और सब रो रहे हैं, मेरा क्रियाकर्म करने मुझे उठा के ले जा रहे हैं. कोई मुझे कपड़े पहना रहा है, तो कोई कंघी से बाल बना रहा है.
मम्मी और वर्षा ने मुझे सलवार कुर्ती पहना दी. मेरे पलंग पे मुझे सुला दिया. दोपहर को मैंने कुछ नहीं खाया दर्द से में बेहोश हो गई. रात को वर्षा ने मुझे उठाया, वर्षा मेरे लिए खाना लायी थी. मुझे दर्द की वजह से बुखार हो गया था. वर्षा के जोर देने पर मैंने थोड़ा खाया.
वर्षा मलहम ले आई थी उसने कहा- दीदी मैं आपके पीछे की साइड पर मलहम लगा देती हूँ.
उसने मेरी सलवार उतारी और हाथ में मलहम लेकर मेरी गांड पर लगाने लगी.
थोड़ी ही देर बाद मेरी आंखों में देख कर वो बोली- दीदी आपने तो कहा था आपके और किशोर के बीच अब कुछ नहीं रहा?
मैं चुपचाप पड़ी रही … वर्षा से आंखें नहीं मिला पा रही थी.
शायद वर्षा समझ गई कि मैं तब झूठ बोली थी.
वर्षा बोली- दीदी किशोर को दिन में क्यों घर पर बुलाया था?
मैं कुछ ना बोल ना सकी, मुझे गहरा सदमा लगा था.
वो बोली- दीदी वो हमसे दगा कर गया तुम्हें फंसा गया और खुद भाग गया भोसड़ी का … और दीदी तुमको कितनी सजा मिली.
मेरी आंखों से लगातार आंसू बहने लगे. मैं अन्दर ही अन्दर घुट रही थी. मेरा गला भर गया, दिल की बात मुँह में अपने आप आ गई.
मैं बोली- वर्षा मेरा दिल ही टूट गया, मैं ही पागल थी, जो उसे अपना समझती थी. उसे पे खुद से भी ज्यादा भरोसा करती थी. वर्षा तुम्हें नहीं पता, मैंने उसके लिए क्या क्या नहीं किया वर्षा … पर उसे तो मेरी शक्ल भी पसन्द नहीं थी. मैं ही पागल बार बार उसके पास चली जाती थी चुदवाने. मैं ही उसे फोन करती थी, पर उसने मुझे कभी प्यार किया ही न था, बस उसे सिर्फ मेरी इस गांड से प्यार था और रोज लंड डालकर गांड मार कर मजे लेता था. वो मेरी गांड की तारीफ करता और मैं खुश हो जाती थी. मैं कितनी पागल थी. जब मुसीबत आई, तो वो भाग गया और पापा की भी कुछ रिस्पेक्ट नहीं की. वो उनको बूढ़ा कहकर धक्का मारकर चला गया.
ये सब कहते हुए मुझको रोना आ गया.
वर्षा ने मुझे गले लगा लिया और कहा- दीदी भूल जाओ उस कमीने को. दीदी आपका कोई दोष नहीं, ये साली चूत की तड़प ही ऐसी होती है.
वो मेरी गांड पे मलहम वाला हाथ फेरती रही.
थोड़ी देर बाद वर्षा बोली- दीदी एक बात बोलूँ, आप बुरा मत मानना. किशोर को तुमसे कभी प्यार था ही नहीं और दीदी आपको भी कभी उससे सच्चा प्यार नहीं था. ये तो जिस्म की भूख थी पर दीदी आप समझ ना सकीं. सेक्स और लव में जमीन आसमान का फर्क होता है. सच्चा प्यार तो दो आत्माओं का मिलन होता है दीदी. सच्चे प्यार की फीलिंग ही कुछ और होती है. वैसे तो सेक्स भी अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा किताबों में पढ़ा है, पर जो हुआ सो सीखने को तो मिला दीदी.
वर्षा की बात सुन मेरे दिल को बहुत सुकून मिला. मैंने कहा- वर्षा तेरा दिल से शुक्रिया, तूने सही जवाब दे कर मुझे पापा से बचाया, नहीं तो पापा आज मुझे मार मार कर मेरी जान ही निकाल देते.
वर्षा बोली- दीदी मैं जब तक जिन्दा हूँ, आपको कुछ भी नहीं होने दूंगी.
यह कह कर उसने मुझे बांहों में भर लिया. वर्षा ने मेरे हाथों पर उंगलियों पर मेरी जांघों पर, कमर, गांड पर अच्छे से मलहम लगाई, फिर वो मेरे साथ ही सो गई. अपना हाथ मेरे पेट पर रखकर.
सारी रात मेरी सूजी हुई गांड ने दर्द किया, मुझे सोने नहीं दिया. मैं उलटी सोती, तो मुझे नींद नहीं आती. पर मैं क्या करती. अब मैंने पक्का ठान लिया था कि अब मैं खुद को काबू में रखूंगी, चाहे कुछ भी हो, मेरी खुद की चूत मेरा नहीं मानेगी, तो चाकू से काट के कुत्तों को डाल दूंगी. ये मेरी गारन्टी मैं स्टेम्प पेपर में लिखकर देती हूं.
हां, मैंने फिर से ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया. मैं सुधर जाऊंगी, जब तक मेरी शादी न हो जाए. ऐसे दिन तो देखने ना पड़ेंगे.
मुझे ठीक होने में बीस दिन लगे. वो बीस दिन का दर्द मैं कभी नहीं भूल सकती. चार दिन तक में चल बैठ नहीं सकी, सात दिन तक मेरी प्यारी बाहर निकली मक्खन जैसी गांड ने खूब दर्द किया.
मेरे प्यारे दोस्तो, मेरी सच्ची कहानी आपको कैसी लगी, मेल करके जरूर बताना, फिर मिलेंगे.
आपकी माया
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