गुड़िया से बन गई चुदक्कड़ मुनिया-3

गुड़िया से बन गई चुदक्कड़ मुनिया-3

प्रेषिका :गुड़िया

संपादक : मारवाड़ी लड़का

सबसे पहले मेरी अन्तर्वासना के मेरे सारे पाठकों को मेरा यानि गुड़िया का प्रेम भरा प्रणाम। मुझे अपनी कहानी “गुड़िया से बन गई चुदक्कड़ मुनिया” के पहले दो भागों के पाठको से बहुत सारी प्रतिक्रियाएँ मिली। इसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ। जिन पाठकों ने मेरी इस कहानी के पहले दो भाग नहीं पढ़े हैं, उनसे विनती है कि इस तीसरे भाग को पढ़ने से पहले इसी कहानी के पहले दो भाग को पढ़ लें ताकि ज्यादा मजे ले पायें।

ज्यादा भाव ना खाते हुए अब मैं मूल कहानी पर वापस आती हूँ।

मैं आधी कुंवारी थी। एक तीखी टीस मेरी टांगों के बीच उठ रही थी। अब तो वो जब भी घर खाना-वाना लेने आता, मौका देख मेरे मम्मे दबाने लगता और चुचूक चुटकी से मसलने लगता।

उस बात को महीना हो गया। मेरी छाती में एकदम से बदलाव आने लगा। काफी कसी-कसी सी रहने लगी। महीना बीत जाने के बाद भी उसने मुझे पूरा कभी नहीं चोदा। लेकिन उसके हाथों से मेरे मम्मे बड़े हो गए मुझे ब्रा पहनना शुरू करना पड़ा, उधर मेरा बदन भर गया और अब इधर मेरे ख्यालों में बदलाव आने लगे। लौड़ा तो मैं कब से पकड़ती-सहलाती आ रही थी, चूस भी रही थी। मगर चुदवाने का मौक़ा नहीं मिल पाया था अभी तक।

एक दिन मैं घर पर अकेली थी। कालू खाना लेने आया। उसे नहीं मालूम था कि मैं अंदर अकेली हूँ। लेकिन मैं तो उसका इंतजार कर रही थी। जानबूझ कर खाना देने नहीं गई क्योंकि मैं चाहती थी के वो आये……..

जब कालू खाना लेने आया तब उसे यह नहीं मालूम था कि मैं अन्दर अकेली उसका उन्ताजार कर रही हूँ। मैं चाहती थी कि वो आये और आज मुझे औरत बनने का सुख दे।

मेरे मन में आज कुछ अजीब सी उथल पुथल चल रही थी।

कालू जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचा, उसने हमेशा की तरह मेरी कलाई पकड़ ली।

मैंने अपने दूसरे हाथ से उसकी बांह पकड़ कर उसको अन्दर खींच लिया और कहा- आ भी जा मेरे कालू….आज घर पर कोई नहीं है। आज तो मैं अपने कालू को अपने हाथों से खाना खिलाऊँगी।

इतना कह कर मैं उससे लिपट गई और वोह मुझे चूमने लगा।

पहले तो वो मेरे गालो पर चुम्मियाँ लेने लगा और फिर धीरे-धीरे उसने अपने होंठ मेरे अधरों पर रख दिए।

मैं तो पहले से ही गर्म थी। सो मैं उसका कुरता उतारने लगी। फिर मैंने अपनी कमीज उतार दी।

मेरी ब्रा में कैद मेरे मम्मे देख कर कालू भी जान चुका था कि पहले छुटी अधूरी कहानी को पूरा करने का वक़्त आ गया है।

मुझमें बेसब्री का आलम छा चुका था। मैंने उसका पजामा भी उतार फेंका और उसके कच्छे को भी नीचे सरका दिया।

उसका काला नाग लटक रहा था। मैंने उसे अपने मुँह में भर लिया और ऐसा करते हुए मैंने अपनी सलवार भी उतार फेंकी।

यह देख कर कालू बड़ा खुश हो गया और बोला- देखा मेरी गुड़िया ! कहा था ना मैंने कि एक दिन तू खुद ही मुझे अपनी लेने के लिए कहेगी ?

मेरे मुँह से भी अचानक ही निकल पड़ा- कालू ! अट्ठारह सावन पार कर चुकी हूँ ! और तूने जो आग की चिंगारी महीने भर पहले लगाई थी वो अब शोले का रूप ले चुकी है।

इतना सुनते ही वो बड़े जोश में आ गया और उसने मेरी ब्रा का हुक खोलते हुए कहा- गुड़िया रानी ! देख तेरे दूध कितने बड़े हो गए हैं। जब पहली बार पकड़ा था, तब अनार थे और आज रसीले आम बन चुके हैं।

मैं तो अपने होश खो ही चुकी थी। सो मैंने उसके सर को दबा कर अपने मम्मे उसके मुँह के हवाले कर दिए। वो एक हाथ से मेरे बाएँ मम्मे को मसलने लगा और दायें वाले मम्मे को मुँह में लेकर चूसने लगा।

मेरे से अब रह पाना मुश्किल हो रहा था। मैंने उसके लौड़े को पकड़ लिया और जोर जोर से हिलाने लगी। उसने मेरे चुचूक चूस चूस कर खड़े कर दिए थे।

मैंने भी उसके लौड़े को झुक कर अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी।

मैंने उससे कहा- कालू, तू तो बाहर मजे लेता रहता है, तेरी घरवाली का क्या होता होगा? बेचारी !

वह बोला- उसका क्या है! रात को चढ़वा लेती है मुझे अपने ऊपर ! अँधेरे में ही घुसवा लेती है और पानी निकाल देती है !

कालू ने मुझे अपने बाहों में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया।

अब वो मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने भी अपनी राह साफ़ करने के लिए खुद ही अपनी टाँगें फैला दी।

आग दोनों ही तरफ लगी हुई थी और किसी के लिए भी अब देर करना संभव नहीं था।

उसने अपने लौड़े को मेरी टांगों के बीच में रख कर एक जोरदार झटका दिया। चूत तंग होने के कारण उसका लौड़ा मेरी चूत में फंस गया। मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा था। मगर मैंने तो आज किला फतह करने की सोच रखी थी। इसलिए मैंने चादर को जोर से पकड़ रखा था और मेरे होंठ मेरे दांतों के तले दबे हुए थे। अपनी पीड़ा को सहन करने की इच्छा शक्ति मुझे आ गई थी और इसलिए मैंने उसे नहीं रोका।

उसने 2-3 जोरदार झटके लगाये और उसका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ पूरा मेरे अन्दर चला गया।

वो खुश होते हुए बोला- लगता है गुड़िया रानी ने आज पूरा लेने का मन बनाया था।

मैंने कहा- हाँ मेरे कालू ! आज तो मैं पूरी हो जाना चाहती थी।

यह सुनते ही उसमें घोड़े जैसा जोश भर गया और वो तेजी से अपनी कमर चलते हुए मुझे पेलने लगा।

धीरे धीरे मेरा दर्द रफू चक्कर हो गया और मुझे मजा आने लगा।

मेरे चूतड़ उठने लगे और मेरे मुख से सिसकारियाँ छूटने लगी।

मेरे मुख से खुद ही निकल पड़ा- कालू ! और कर.. जोर जोर से कर मुझे.. आज मुझे कच्ची कलि से खिला हुआ फूल बना दे।

कालू मखमल जैसी कलि को चोद रहा था और बहुत खुश था।

वो बोला- चल घोड़ी बना कर लेता हूँ तेरी अब !

मैंने पूछा- वो कैसे??

वो बोला- तू घुटनों के बल बैठ के झुक कर घोड़ी बन जा।

मैं उसके बताये अनुसार घोड़ी बन गई और उसने मेरे पीछे आते हुए अपना लौड़ा मेरी चूत में पीछे से घुसा दिया।

मेरे मम्मे नीचे लटकने लगे थे और उसके धक्कों की ताल पर ताल बजा कर नाच रहे थे।

उसने झुक कर मेरे मम्मों को पकड़ लिया और उन्हें रगड़ रगड़ कर मजे लेने लगा।

“हाय रे मेरे कालू ! और रगड़ मेरी मम्मों को। बहुत सुख मिल रहा है रे ! चोद मुझे और जोर जोर से चोद !

अब कालू जोर जोर से अपनी कमर हिलाने लगा और मुझे चोदने लगा। जब वो झटके लगाने के लिए अपना लौड़ा मेरे चूत से निकालता तो मैंने भी अपनी गांड पीछे धकेलती ताकि रगड़ मेरी चूत पर जोर से लगे और पूरा लौड़ा मेरी चूत में समा जाए।

कालू बोला- साली ऐसा लगता है कि तू अब जहाजी बनने वाली है।

मैंने उससे पूछा- क्या मतलब है तेरा ?

उसने मुझे उत्तर दिया- मेरा मतलब यह कि तू एक लौड़े से शांत नहीं रहने वाली। तेरे अन्दर की यह आग एक लंड से शांत नहीं होने वाली मेरी गुड़िया रानी।

मैंने कहा- हाय कालू ! तुझे कैसे बताऊँ कि मुझे कैसा सुख मिल रहा है तेरी चुदाई में ! बयान नहीं कर पा रही मैं। और इसलिए तो गांड धकेल धकेल धकेल कर मजा ले रही हूँ !

वो अपने लंड को एक बार फिर से जड़ तक पेलते हुए बोला- साली, पहली चुदाई में इतनी उतावली हो रही है तू? तू तो पक्का जुगाड़ बनेगी लड़कों के लिए।

मुझे उसके मुँह से ये सब बातें बड़ी अच्छी लग रही थी। मेरे मुख से ठंडी आह सी निकली और मैंने उससे कहा- आह ! चोद मुझे ! और चोद…. मार मेरी…. लेता जा मेरी फुद्दी … मेरी चूत को फाड़ के रख दे रे मेरे काले ! तेरा घंटा बहुत ज़ालिम है रे काले।

कालू जोश में भर के मेरे मम्मे मसलते हुए बोला- हाय मेरी जान ! माँ और चाची से चार कदम आगे है तू।

थोड़ी देर में मेरा शारीर अकड़ने लगा और फिर एक जोर का ज्वालामुखी मेरी चूत में छुट पड़ा और गरम गरम लावा मेरी चूत में निकल पड़ा। दोनों शरीरों से निकले लावा ने हम दोनों को तृप्त कर दिया था।

जब उसने मुझे छोड़ा तो हम दोनों हांफने लगे थे। कुछ देर चित्त लेटने के बाद हम दोनों ने कपड़े पहने और वो घर से बाहर निकल गया।

एक अलग सा स्वाद वो मेरे जीवन में छोड़ गया और मेरे चेहरे पर संतुष्टि झलक रही थी।

दोस्तो, आपको कैसी लगी यह कहानी?

अपने दूसरे नौकर से भी मैंने कैसे चुदवाया और फिर आगे शहर आकर किस तरह लडको से मैं जुड़ी रही यह जानने के लिए इंतज़ार कीजिये अगली कहानी का !

अभी कहानी बाकी है मेरे दोस्तो ! इसलिए तब तक के लिए कीजिये इंतज़ार और मुझे अपनी प्रतिक्रियाएं जरुर भेजिए।

आपकी अपनी

गुड़िया

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