चुदक्कड़ रंजना की रंगरेलियाँ
आप सभी को जलगाव बॉय सेक्सी प्रणाम!
आज फिर आप सभी गर्म पाठकों के लिए नई कहानी लाया हूँ। यह कहानी राजस्थान की रंजना भाभी की है जो मुझसे मेरी कहानियाँ पढ़ने के बाद मेल से जुड़ी।
और उनकी यह विनती है कि उनकी कहानी मैं लिखूँ।
तो चलो मित्रो, रंजना भाभी के शब्दों में कहानी की ओर चलते हैं।
अन्तर्वासना पढ़ने वालों को रंजना का नमस्कार!
मेरा नाम रंजना है, मैं एक शादीशुदा औरत हूँ, शादी को 5 साल हुए हैं, लेकिन मेरे पति सेल्स की नौकरी में हैं जिसके कारण उनको काम के सिलसिले में दूसरे शहरों में जाना काफी ज़्यादा होता है और मेरी चूत गर्म की गर्म पड़ी रहती है।
दोस्तो, मैं एक बहुत चुदक्कड़ और लौड़े की हमेशा प्यासी रहने वाली लड़की हूँ और शादी के पहले से ही सेक्स की ज़बरदस्त खिलाड़ी रही हूँ।
मेरे आज भी कई मर्दों से सम्बन्ध हैं, सेक्स मेरे लिए सब कुछ है, मेरी दुनिया है, सेक्स ही मेरा जीवन है और सेक्स के बिना मैं यूँ तड़पती हूँ जैसे पानी के बाहर आकर मछली!
मुझे नए नए लंडों से चुदवाने का बड़ा शौक है।
मेरे पति जैसे ही शहर के बाहर जाते हैं, मेरी अय्याशी शुरू हो जाती है, इसीलिए मैंने एक सुनसान एरिया में अपना फ्लैट लेकर रखा हुआ है।
एक रात चुदने का बहुत तेज़ मूड हुआ, मैं सोचने लगी कि क्या करूँ, किस यार को बुलाऊँ या कुछ नया किया जाए आज!
मैंने एक स्कर्ट पहनी, ऊपर टॉप और एक शाल ले ली!
मैंने न ब्रा पहनी और न ही चड्डी… कपड़ों के भीतर चूत, गांड और मम्मे बिल्कुल नंगे थे, मैं नहीं चाहती थी कि कोई लौड़ा मिले तो वो चड्डी ब्रा खोलने में समय बर्बाद करे।
घर से अपने पति की दारू के स्टॉक से एक पव्वा लिया और एक पैकेट सिगरेट उठाया और किसी लण्ड की तलाश में घर से निकल पड़ी।
घर के नज़दीक ही एक बाग़ है जो अँधेरे में सुनसान सा हो जाता है और सिर्फ कुछ बदमाश लोग वहाँ घूमते रहते हैं।
सोचा कि चलो वहीं चलकर देखती हूँ कि किस्मत ने साथ दिया तो कोई न कोई लौड़ा ज़रूर मिलेगा तो वहीं के वहीं चुद लूँगी।
बाग़ में पहुँच कर बड़ी निराशा हुई कि वहाँ कोई भी नहीं दिखा। चिड़चिड़ा कर मैं घास में बैठ गई, एक सिगरेट सुलगाई और मज़े से खालिस व्हिस्की के छोटे छोटे घूंट धीरे धीरे भरने लगी।
कुछ देर के बाद जब दारू ने थोड़ा थोड़ा सुरूर दे दिया तो सोचा कि यहाँ बाग़ में वक़्त ज़ाया करने से अच्छा है कि सड़क पर ही चांस मार लूँ… चलती सड़क है, काफी ट्रैफिक रहता है तो वहाँ तो कोई न कोई चोदने वाला मिल ही जायेगा।
बस तो मैं बाग़ से बाहर आकर हाईवे की ओर चल दी।
दारू का नशा चढ़ने लगा था, एक और सिगरेट सुलगा कर मैं चली जा रही थी।
हाईवे पर भी पहुँच गई जहाँ केवल ट्रक आ जा रहे थे।
मैंने स्कर्ट ऊपर उठाई और चूतड़ सड़क की तरफ करके गांड खोल कर बैठ गई। सिगरेट के कश लगते हुए मैंने सू सू करनी शुरू कर दी।
मुझे मालूम था कि जाते हुए ट्रकों की लाइट मेरी गांड पर पड़ रही है और ट्रक वाले उसको देख लेंगे।
सुर्र सुरर्र सुर्र सुरर्र सुर्र सुरर्र की आवाज़ के साथ मैं मूत रही थी और सुट्टा मार रही थी।
वाह क्या मजा आ रहा था !
तभी एक ट्रक थोड़ा रुका।
उसको देख कर मैं खड़ी हो गई।
ड्राइवर का हेल्पर उतर कर मेरे पास आया मगर मैंने उसको ना देखने की एक्टिंग की और सुट्टा मारती रही/
वो मेरे पास आकर बोला- कहीं छोड़ दूँ तुझे क्या?
देखा तो वो बेहद गन्दा सा, पतला दुबला सा आदमी था।
मैंने उसको कहा- हाँ, वो आगे ढाबे पे छोड़ दे मुझे!
उसने कहा- चल आगे गाड़ी में बैठ जा!
मैं चलने लगी और वो मेरे पीछे पीछे आया, बीच बीच में कमीना मेरे चूतड़ों पे हाथ मार रहा था।
मेरा नाम पूछा तो मैंने बताया- रंजना!
मैंने उसका पूछा तो बोला- चंदू! आगे ड्राइवर है उसका नाम शेरा है।
मैं पहुँच कर बोली- ऊपर कैसे जाऊँ?
वो बोला- मैं पीछे से हाथ देता हूँ!
उसने मुझे गांड पे हाथ लगा कर ज़ोर से दबाते हुए ऊपर चढ़ा दिया्।
मैंने ड्राइवर को देखा, ड्राइवर मादरचोद हट्टा कट्टा सा सरदार था और साले के मुँह से देसी दारू की तेज़ महक आ रही थी।
उसने मुझे घूरते हुए पूछा- कहाँ जायेगी तू?
मैं बोली- आगे एक ढाबा है, वहाँ तक जाना है।
उसने लुंगी बांध रखी थी और वो साला बहुत ही काला कलूटा लेकिन बहुत तगड़ा आदमी था हरामी!
मैंने पूछा- सरदार जी, सिगरेट पी लूँ क्या?
ड्राइवर बोला- पी पी ले साली… क्या याद रखेगी किसी दिल वाले के ट्रक में बैठी थी।
पीछे से चंदू क्लीनर बोला- एक सिगरेट मेरे को भी दे!
मैंने एक सिगरेट उसको दी और एक अपने होंठों में लगाकर सुलगा ली।
चंदू ने अपनी सिगरेट खुद ही सुलगा ली।
थोड़ी ही देर में आगे एक ढाबा दिखाई पड़ा, शेरा ने वहाँ ट्रक रोक दिया और सब नीचे उतर गए।
मुझे उतारने के लिए इस बार शेरा ने मेरी बाहें पकड़ के उतारा मगर उतारते हुए कमबख्त ने मेरे मम्मे दबा दिए।
ट्रक से उतर कर हम सब ढाबे की तरफ बढ़े।
शेरा ढाबे के मालिक से कुछ बातें करने लगा, वो साला ढाबे का मालिक बात तो शेरा से कर रहा था लेकिन बड़ी शैतानी मुस्कान देते हुए मुझे घूर रहा था।
मुझे क्या घूर रहा था, यह कह लो कि मेरे चूचियों पर नज़रें गड़ाए था माँ का लौड़ा!
मैंने भी सिगरेट का कश भरते हुए एक रंडियों वाली एक मस्ती भरी स्माइल दे दी साले को
वो मेरे पास आया और पूछने लगा- कितने पैसे लेगी?
मैंने कहा- कुछ नहीं… यह मेरा शौक है बस!
वो मुझे ढाबे के पीछे एक कमरे में ले गए।
छोटा सा गन्दा सन्दा सा कमरा था जहाँ एक तख़्त पड़ा हुआ था जिस पर एक मैली कुचैली दरी बिछी थी।
ढाबे के मालिक ने उस पर बैठने का इशारा किया, मैं बैठ गई।
फिर वो और चंदू बाहर गए और थोड़ी देर में जब लौट कर आए तो उनके हाथों में एक दारू की बोतल, चार गिलास, थोड़ी बर्फ और कुछ खाने का सामान था।
वो सामान एक छोटी सी टेबल या कह लो एक बड़े से स्टूल पर रख कर मुझे कहा- चार पेग बना!
मैंने चार ग्लास बना दिए और सब पीने बैठ गए।
हम चारों वो घटिया देसी दारू पीकर आपस में भद्दे भद्दे मज़ाक कर रहे थे।
मुझे इन मैले कुचैले लोगों की गन्दी बातें इस गंदे कमरे में सुन कर बड़ा आनन्द आ रहा था और मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी।
यह एक रिस्की कदम था जो मैंने चुदास में पागल होकर उठाया था और मैं खूब मस्त थी, इसके रिस्क ने ही मेरा मज़ा बढ़ा दिया था और ऊपर से देसी दारू… सोने पर सुहागा !!!
फिर ढाबा मालिक, सुल्तान नाम था उसका, ने अपनी लुंगी खोल कर फेंक दी और कच्छा भी नीचे सरका के गिरा दिया।
साले का लण्ड देखकर मेरी बांछें खिल गईं… क्या मादरचोद ज़बरदस्त लौड़ा था! कम से कम नौ इंच का तो ज़रूर होगा और काफी मोटा भी!काला कलूटा अपने मालिक जैसा!
मैंने मन ही मन लौड़े का नाम भी गबरू रख दिया।
सुल्तान मेरे पास आ गया और अपना गबरू मेरे मुंह से सटा कर बोला- चूस इसको भोसड़ी की।
उसके लण्ड से पसीने और पेशाब की मिली जुली गंध आ रही थी, उस गंध से मेरी चुदास चौगुनी हो गई।
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मैंने पूरा मुंह खोल कर गबरू को ले लिया लेकिन वो लण्ड इतना बड़ा था कि गले तक घुसने के बाद भी लौड़े का काफी हिस्सा मुंह से बाहर था।
मोटा इतना कि बहुत ज़्यादा मुंह खोलने की वजह से जल्दी ही मेरे जबड़े में दर्द होने लग गया।
लेकिन फिर भी मैं उस महान लौड़े को खुशी खुशी चूस रही थी, इतना तगड़ा लण्ड चूसना तो दूर मैंने कभी देखा भी न था।
बहनचोद रंजना आज तो तेरे मज़े लग गए… इतने ज़ोरदार लौड़े आज तेरी चूत और गांड की ऐसी खबर लेंगे कि दस दिन तक चुदाई भूल जाएगी।
मुंह का क्या हाल होने वाला था वो तो इश्वर ही जाने…
मुझे यकीन हो चला था कि आज मेरे मुंह तो चिरेगा ही, गला फटने से बच जाये तो बहुत खैर समझ!
तब तक शेरा और चंदू भी नंगे हो चुके थे।
मैंने कनखियों से दोनों के लण्डों पर निगाह डाली, शेरा का लण्ड भी काफी बड़ा था।
सुल्तान के गबरू जितना लम्बा तो नहीं लेकिन मोटा कहीं ज़्यादा!
था यह भी सुल्तान के समान काला भुजंग!
यह लण्ड अगर मेरे मुंह में घुस गया तो पक्के से मेरा मुंह चिर जायेगा।
चल कोई नहीं… देखेंगे! मैंने अपने आप से कहा।
अब रहा चंदू… जिसका लण्ड यूँ तो अच्छा भला था परन्तु उन दो महालण्डों की तुलना में छोटा दिख रहा था, फिर भी सात इंच का तो होगा ही!
तब इन तीनों में बहस छिड़ गई कि पहले कौन मेरी चूत में लौड़ा देगा।
फैसला यह हुआ कि शेरा पहले चूत ठोकेगा, सुल्तान गांड मारेगा और चंदू मेरा मुंह चोदेगा।
फिर उन्होंने मुझे नंगी कर दिया और तख़्त पर पटक दिया।
शेरा ने झट से मेरी टाँगें चौड़ी करके अपना मोटा काला लौड़ा मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
तभी सुल्तान ने उसको गाली देते हुआ कहा- बहनचोद पलट के इसको ऊपर ले, तभी तो मैं रंडी की गांड मारूंगा।
शेरा पलट गया तो मैं ऊपर और वो मेरे नीचे हो गया।
इसके पहले कि मैं कुछ समझ पाती, मेरी गांड में एक तेज़ दर्द हुआ, सुल्तान का जम्बो लौड़ा मेरी गांड फाड़ने की तैयारी में था, लण्ड बहुत मोटा था, घुस नहीं रहा था लेकिन जब उसने मेरे बाल पकड़ के एक बड़े ज़ोर का शॉट ठोका तो पूरा का पूरा लण्ड मेरी गांड को छीलता हुआ भीतर जा घुसा।
मेरे मुंह से दर्द के मारे एक चीख निकली।
मैंने गुहार लगाई कि सुल्तान गांड से लण्ड निकाल ले, बहुत दर्द है, तू जितनी चाहे चूत मार लीजो, पर प्लीज़ गांड बख्श दे!
उस मादरचोद ने एक न सुनी और जवाब में दो तीन धक्के मार डाले।
फिर चिल्ला कर बोला- चंदू साले, तू क्या माँ चुदवा रहा है? दे इस रंडी के मुंह में लण्ड!
चंदू ने ऐसा ही किया।
अब मेरे सभी छेद लौंड़ों से भरे हुए थे, गांड में दर्द भी अब घटने लगा था।
उन तीनों के बदन से आती हुई गन्ध मुझे और गर्म कर रही थी, न जाने कमीने कब से नहीं नहाए होंगे।
मैंने चंदू का लण्ड चूसना शुरू किया जबकि सुल्तान और शेरे ने धक्के ठोक ठोक के मेरी चूत और गांड में मज़े की बहार ला दी।
बस फिर तो यूँ ही सिलसिला चल पड़ा, बारी बारी से तीनों मादरचोदों ने रात भर मेरी चूत, गांड और मुंह को चोदा।
इतनी मस्त चुदाई का मैंने पहले कभी आनन्द नहीं लिया था, मैं भी न जाने कितनी बार खलास हुई, न जाने कितना सारा तीनों का वीर्य मेरे मुंह में गिरा, चूत और गांड का भी वही हाल था।
जब सब साले चोद चोद कर पस्त हो गए और उनके लण्ड भी अकड़ने बंद हो गए तो मुझे छोड़ा।
बड़ी मुश्किल से लड़खड़ाती हुई मैं उठी और बाहर सू सू करने चल दी।
वे तीनों भी मेरे पीछे पीछे आए।
जैसे ही मैं चूत खोल के मूतने बैठी शेरे ने अपना लण्ड मेरी तरफ करके मेरे मुंह पर मूतना शुरू कर दिया।
यह देख कर सुल्तान और चंदू भला क्यों पीछे रहते, तीनों कमीनों ने मेरे मुंह पर मूत्र धारा मारी, काफी सारा गर्म गर्म मेरे मुंह में भी चला गया।
मुझे भी बहुत टेस्टी लगा तो मैंने कोशिश की कि ज़्यादा से ज़्यादा मूत्र मुंह में ले लूँ।
जब सब निबट चुके तो मैंने एक एक करके तीनों का लौड़ा चूसा और उनका मक्खन खलास करके पी लिया।
फिर शेरा और चंदू के साथ ट्रक में बैठी, उन्होंने मुझे घर के पास छोड़ दिया, मेरा नंबर ले लिया और फिर से चुदाई करने का वादा करके वो ट्रक लेकर चले गए।
इस तिहरी चुदाई का मज़ा इतना आया कि मैं समझा नहीं पाऊँगी… बस मज़ा मज़ा और मज़ा ही मज़ा!
दोस्तो, कैसी लगी मेरी चुदाई की कहानी, प्लीज मुझे मेल करना और नीचे कमेन्ट्स देना!
बड़ी चुदक्कड़ हूँ मैं और बहुत बार यूँ ही अलग अलग मर्दों से चुदी हूँ।
उसके बाद बाकी कहानी आगे लिखूँगी!
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