चढ़ी जवानी बुड्डे नू
प्रेषक : केशव शर्मा
हैलो दोस्तो, मेरी उम्र 54 वर्ष पब्लिक सेक्टर मैं कार्यरत हूँ। तन-मन से पूर्ण स्वस्थ और मेरा एक सुन्दर सुखी परिवार है।
नौकरी और घर-गृहस्थी के जंजाल में फंस कर मैं करीब-करीब यौन सुखों की विविधताओं को भूल सा गया था कि अचानक एक ऐसी घटना हुई कि मैं अपने आप को जवान और उमंगों से भरपूर महसूस करने लगा।
सोचा कि आपसे इसी बात को शेयर किया जाए।
तो हुआ यह कि मैं अपने चेम्बर में बैठा फ़ोन पर बात कर रहा था और साइड की कंप्यूटर टेबल पर टीएफटी स्क्रीन पर अन्तर्वासना से डाउनलोड की गई पोर्न तस्वीरें छोटी कर रखी थीं।
यकायक नीति नाम की एक विधवा स्टाफ, उम्र 30 वर्ष, भरा शरीर और साधारण रंग-रूप की, मेरे कमरे में तेजी से आई।
अकबकाहट में मेरा हाथ माउस पर चला गया और स्क्रीन पर विशाल तने लंड की फोटो उभर आई, जो कि एक जवान छोकरी के मुँह पर रखा था। नीति ने उसे ध्यान से देखा, मुस्कराई और बाहर चली गई।
मामले की गंभीरता को समझकर मैंने उसे बुलवाया और हिदायत दी कि आगे से वो पहले दरवाज़ा थोड़ा खोलकर अनुमति ले ले फिर अन्दर आए।
“सॉरी सर सॉरी!”
“कोई बात नहीं.. और हाँ, इस बात का किसी से जिक्र नहीं करना।”
“नहीं सर कभी नहीं.. आप तो मुझे अच्छे लगते हैं।
“पर नीति.. मैं तो 54 का हो चुका हूँ!”
“सर आप जिस तरह कार और रॉयल-एनफील्ड चलाते हैं तो ऑफिस में चर्चा होती है।”
“धन्यवाद नीति।”
बात आई-गई हो गई। नीति उत्साही है, परन्तु अनुभव कम है इसलिए ऑफिस के खुर्राट लोग उसकी शिकायत मुझसे किया करते थे और मैं ज्यादा ध्यान नहीं देता था। कुछ मामलों में उसको चेतावनी दे कर छोड़ दिया था।
फिर ऑफिस के षड़यंत्र में नीति फंस गई। उसके अलमारी की वाउचर-बुक जो टेबल पर रखी थी वो गायब हो गई। मुझको मन मारकर उसे दीर्घ आरोप-पत्र देना पड़ा।
अब नीति की नौकरी खतरे में थी और मैं भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था।
लोग मुस्करा रहे थे और नीति का रो-रो कर बुरा हाल था। उसने मुझसे बात की और अपने को निर्दोष बताया।
उसके दो छोटे बच्चे थे और बूढ़ी सास थी, जो नौकरी चले जाने पर दाने-दाने को मोहताज़ हो जायेंगे।
मैंने सहानभूति जताई, नीति ने बताया कि किस तरह ऑफिस के घाघ और ट्रेड यूनियन के नेता उसका शोषण करना चाहते थे और वो निर्दोष थी। उसके पास कोई संपत्ति भी नहीं थी और पति का दुर्घटना दावा भी नहीं मिला था।
मैंने उससे स्पष्ट कहा- मैं नियमानुसार चलूँगा उसे मेरी सलाह मानकर जैसा कहूँ वैसा कागजों पर दस्तखत करने पड़ेंगे, फिर सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो।
उसने मेरे कहे अनुसार वाउचर-बुक खोना स्वीकार किया, पूर्ण परिस्थिति बताई और दया की याचना की।
मैंने नियमानुसार दंड के आदेश दिए साथ ही साथ अपने ही आदेशों के खिलाफ प्रार्थना-पत्र बनवाया और फाइल उच्च अधिकारी को भेज दी।
मेरी दी गई सजा को उच्चाधिकारी महोदय ने बिलकुल कम कर के चेतावनी में बदल दिया। इस तरह साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।
अब नीति मेरे करीब आ गई थी।
“साहब आपका भला होगा.. ऐसा मार्गदर्शन तो कभी किसी ने नहीं किया।”
परन्तु एक समस्या और थी, नीति अपनी घरेलू समस्याओं को भी मुझ से बताना चाहती थी। पर ऑफिस में समय देने में मैंने असमर्थता जताई।
फिर तय हुआ कि ऑफिस से बाहर कहीं और जगह पर मिला जाए, परन्तु कहाँ यह प्रश्न गंभीर था।
खैर अब नीति और मेरे बीच दूरियाँ बहुत कम हो गई थीं और हम लोग अन्तरंग बात भी करने लगे।
एक दिन मैंने नीति से पूछा- क्या वो दिलचस्प फोटो देखना चाहेगी?
“दिखाइए.. दिखाइए..!”
मेरे डेस्कटॉप की टीएफटी स्क्रीन पर बहुत ही उत्तेजक मेल-फीमेल पोर्न पिक्स उभरकर आ गए। एक विशाल तना लंड जवान छोकरी के होंठ, नाक और माथे को छूता हुआ, उसके सर से भी ऊपर निकल रहा था।
एक सुन्दर लड़की के मुँह में एक लड़के ने उपना लंड घुसेड़ा हुआ था, जिसे वो हँसते हुए चूम रही थी, जबकि दूसरा लड़का उसकी चूत को जीभ लगा रहा था।
नीति ने चुपचाप इन पिक्स को देखा, मुझ पर एक गहरी नज़र डाली और दरवाज़े से टिककर स्टाइल से खड़ी हो गई।
मैं भी जोश में उठा और उसको दो बार चूम लिया। साथ ही साथ उसके मम्मे दबाए।
“ऐसे नहीं कोई देख लेगा..!” वो फुसफुसाई।
शांतिपूर्वक मैं वापस आकर अपनी चेयर पर बैठ गया।
वो मुस्कराई और बोली- सर यहाँ हम बात तो कर सकते है पर ‘मिल’ नहीं सकते!
“ठीक है तुम एजी ऑफिस ग्वालियर का काम ले लो मैं देखता हूँ,” मैंने कहा।
अब मैं अपने जीवन में नवीन उत्साह और जोश के समुद्र की लहरें महसूस कर रहा था।
हे भगवान ये तो 20 वर्ष पहले होता था, मैंने सोचा। क्योंकि इतना जबरदस्त तनाव मेरी पैन्ट में अजीब सा लग रहा था।
मुझको तो धैर्य था परन्तु इस अंधे लौड़े को कौन समझाए !
मीटिंग के लिए मुझे सभा-कक्ष में जाना मुश्किल हो गया।
मैं समझ गया कि ये प्राकर्तिक रसों का कमाल था, जो केवल 18 वर्ष से 30 वर्ष तक उफान पर रहते हैं, फिर धीरे-धीरे आदमियों में इनकी सक्रियता कम होती जाती है और सेक्स के प्रति वो दीवानगी भी नहीं रहती।
“मैं दिल हूँ एक अरमान भरा.. तू आ के मुझे पहचान जरा..!” तलत महमूद की ग़ज़ल यकायक मेरे होंठों पर आ गई।
वाह… जिन्दगी कितनी खूबसूरत है..!
मैंने नोटिस किया कि ऑफिस की एक महिला पियून ने मेरी पैन्ट के उभार को ध्यान से देखा और अपनी सहेली से बातों में लग गई।
मैंने एक दिन की छुट्टी ले ली और एक अच्छे से होटल में रूम बुक कर लिया। नीति को साथ में लेकर होटल में ‘चेक-इन’ किया।
मैंने नीति के गालों पर चुम्बन लिए। उसके गालों पर सुन्दर से गड्डे पड़ गए।
वो एक सुन्दर सी बहुरंगी साड़ी पहने थी, काला गहरे कटाव का ब्लाउज उस पर खिल रहा था। सलीके से शैम्पू किए बाल… स्टाइल में बंधे थे और चेहरा ख़ुशी से प्रफुल्लित था।
रूम आराम-दायक था। एक रीडिंग टेबल, बेड, सोफा एवं लैट-बाथ लगे हुए थे। कमरा पूर्णतया वातानुकूलित और आरामदायक था।
मैंने पहले ही मैनफोर्स 100 मिलीग्राम की एक गोली ले रखी थी।
नीति ने मुझे अपने मकान की रजिस्ट्री दिखाई, जिस पर विवाद हो रहा था। नीति को घर से बेदखल करने की चर्चा की जा रही थी।
अब तक मंगाई हुई ड्रिंक और मसाला चिप्स आ गए थे। मैंने अपना सोनी लैपटॉप चालू कर चुने हुए पोर्न-पिक्स को विंडोज मीडिया प्लयेर पर स्लाइड-शो में 4 सेकंड के अंतराल पर चला दिया।
ओह्हो… क्या गज़ब के चित्र थे और उससे भी गज़ब सोनी लैपटॉप की पिक्चर की क्वालिटी.. वाह !
हम लोग दीवाल से टिककर अगल-बगल में बैठ गए। बिस्तर बड़ा अच्छा था, नीति ने कुछ पिक्स को दुबारा देखना चाहा। मैं उसको वाच कर रहा था।
अब मैंने मक्खन फ्राइड काजू अपने हाथ से नीति के मुँह में देना शुरू किए। नीति ने भी वैसा ही किया।
मेरा सुलेमानी लंड फनफना रहा था और नीति की नज़र बार-बार उस पर जा रही थी। पैन्ट जांघ पर फूल गया था, पर आज मैंने पूरा आनंद लेने का मन बना लिया था। मुझे कोई जल्दी नहीं थी।
“सर जैसा दिखाते हैं क्या वैसा होता है?” नीति ने 69 पोजीशन में यौनरत एक जोड़े को देखकर पूछा।
“क्यों..! सच बताओ क्या तुमने ऐसा कभी नहीं किया ? मैंने प्रति प्रश्न पूछते हुए उसकी पीठ के ऊपर गर्दन पर चूमते हुए अपना दाहिना हाथ उसके दाहिने दूध पर रखा।
मैंने देखा कि कोई विरोध नहीं हुआ बल्कि बदन ढीला छोड़ दिया गया।
“वो ऐसा करते तो थे, पर मुझको अजीब लगता था और सच तो यह है कि घर के काम से थक कर मैं चूर हो जाती थी.. सो काहे का मजा.. !”
“नीति सच बताओ आदमी की डेथ के बाद कितनी बार हुआ?”
“सर विधवा की गति विधवा जाने.. क्या घर.. क्या बाहर.. सब मुझे नोचना चाहते हैं, पर सहारा देना कोई नहीं चाहता। मुझे तो इस सब से नफरत सी हो गई है, परन्तु मैंने देखा कि आपका स्वाभाव ही गिरे हुए को हाथ पकड़कर उठाना है। साहब.. आपने मुझको उबार लिया है। आपका बहुत भला होगा, वैसे आदमी के जाने के बाद मैं किसी के संपर्क में नहीं आई, क्यूँकि सभी भेड़िये हैं… सालों को फ्री की डबल-रोटी और मक्खन मिले.. इसी जुगाड़ में रहते हैं। अब तो साहब मैं कस के हड़काती हूँ सालों को।”
“नीति देखो ये क्या कर रही है..? मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ ?” मैंने एक लंड चूसती लड़की को दिखाते हुए पूछा।
अब तक मेरा दाहिना हाथ उसके दोनों दूधों को हौले-हौले मसलकर उसके चूचुकों को दबा रहा था।
नीति को बार-बार ‘फुरोरी’ आ रही थी और मुझे उसके कानों की पिन्ना को चूमकर उत्तेजना देने में भी मजा आ रहा था।
“यह मुँह में ले रही है..!” नीति ने मुस्कराते हुए कहा।
अब मैं देख सकता था कि उसकी साड़ी का पल्लू गिर गया था और पाँव तरफ से साड़ी भी घुटनों तक आ रही थी। नीति ने मुझको भी तीन-चार बार गहरा चुम्बन कर लिया था।
यकायक नीति मुझ से टिक गई।
मैंने उसको चूमा और कहा- इंग्लिश चुम्मी दो न..!
“यह क्या होता है?”
“तुम मेरे निचले होंठ को चूमो और मैं तुम्हारे होंठ को चूमूँगा।”
नीति ने उत्साहपूर्वक चुम्मा लिया।
“अब फ्रेंच-किस दो..।”
“साहब यह क्या होता है?”
“मेरी जीभ को तुम लॉलीपॉप की तरह चूसो और मैं तुम्हारी जीभ को चूसूँगा।”
“ओहो..!”
किस करते-करते नीति का हाथ पैन्ट में मेरे फूले हुए लंड पर चला गया।
मैं भी अपना एक हाथ उसकी जाँघों पर फिराने लगा था।
नीति की सांसें उठ और गिर रही थीं। मैं उसकी नरम मांसल जांघों की फुरफुरी महसूस कर रहा था।
धीरे से मैंने अपना बांया हाथ उसकी फूली हुई पैन्टी पर लगाया। नीति मेरे से और चिपक गई।
पैन्टी गीली थी ! लव-जूस… !
मैंने पैन्टी के अन्दर नरमी से उँगलियाँ डालीं और उसकी गीली फूली चूत को सहलाया।
“साहब.. साहब..!” नीति की साँसें तेज हो रही थीं।
मैंने धीरे से उसकी पैन्टी उतारने की कोशिश कि नीति ने झटके से पैन्टी उतारी और तिरस्कारपूर्वक रूम के कोने मैं फ़ेंक दी।
अब वो मेरे लंड को बार-बार दबा रही थी। मैंने सोचा धीरज रख कर देखता हूँ। तीन वर्ष के बाद ये कैसे चुदना चाहती है..!”
“साहब मुझे बाथरूम जाना है.. लाइट बंद कर दीजिये..!”
मैं समझ गया कि साली गर्म हो गई है.. मैंने उसकी चूत में उँगलियाँ डालकर क्रीम निकाली और स्मेल चेक करने लगा।
वाह.. वाह.. क्या खट्टी, मादक सुगंध है ! जैसे गरमियों की सुबह-सुबह में ताज़े-ताजे महुआ !
अब तो मेरे लंड ने भी लव-जूस की बूँदें गिराना शुरू कर दिया था।
नीति ने बाथरूम जाकर अपनी साड़ी उतारी और लाल पेटीकोट और ब्लाउज में वापस आने लगी।
अब तक मैंने भी अपनी चड्डी और बनियान उतार दी थी। लंड अकड़कर पूर्ण ऊंचाई लेकर चूत की उम्मीद में उत्तेजना से लहराने लगा था।
नीति ने चेरी से लाल सुपारे वाले लाल.. विशाल.. लंड को गौर से देखा और आश्चर्य से अपना हाथ अपने मुँह पर रखकर बोली- हय राम इत्ता बड़ा मोटा !
मैंने कहा- देखो नीति.. यह तुम्हें कैसी सलामी दे रहा है..! उत्तेजना से थरथराते लंड को मैंने बिना हाथ लगाए हिलाया.. तो नीति हँसने लगी।
उसने मुझे बड़ी मादक निगाहों से देखा।
नीति को आलिंगन में लेकर जैसे ही मैंने उसे चूमना शुरू किया, नीति ने मेरे गले में अपनी बांहों का हार पहना दिया।
अब क्या था, मैंने उसका ब्लाउज का हुक खोला तो उसने बड़ी आसानी से उसे उतार दिया और मेरे हाथ के जरा से इशारे पर अपना पेटीकोट भी उतार फेंका। मानो वो दाल-भात में मूसलचंद हो।
मैं बेड के किनारे पांव लटका कर बैठ गया और सामने से नीति को अपनी गोद में ले लिया।
नीति ने झटपट अपने टांगों का हार मेरी कमर के चारों ओर डाल क़र अपनी फूली चूत को मेरे लंड से रगड़ना शुरू कर दिया।
अब हम दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने थे और हमारे लंड और चूत आपस में चुम्मी कर रहे थे।
धीरे से मैंने नीति की चूचियों को गरम-गरम जीभ से मालिश करना शुरू कर दिया।
नीति को मानो नशा आ गया हो, उसकी आँखें बोझिल हो गईं और साँसें चढ़ने-उतरने लगीं।
मेरा लौड़ा बाहर हो रहा था, यकायक नीति ने लंड को बलपूर्वक अपने हाथ से पकड़कर चूत में लगा लिया।
जैसे मक्खन में गरम छुरी जाती है, उसी प्रकार मेरा फनफनाता कड़क लंड धड़कती चूत मैं धंस गया। नीति और मेरे कूल्हे उत्तेजना के उफान से आगे-पीछे होने लगे।
अह..! आह..! अगर कहीं स्वर्ग था तो यहीं था.. यहीं था.. यहीं था..!
मैं साथ ही साथ नीति की चूचियों से भी जीभ से छेड़-छाड़ करता जा रहा था। उत्तेजना में नीति ने मुझे एक झटके से बेड पर धकेल दिया और मैं पीठ के बल हो गया। जबकि नीति ने मेरे लंड को चूत में रखकर घुड़सवारी शुरू कर दी।
“धक् धक् करने लगा.. जिया.. मेरा धक् धक् करने लगा..!”
नब्बे के दशक का फेमस बालीवुड गाना रूम टीवी पर पर बज रहा था और गाने की धुन के साथ-साथ हमारे कूल्हे भी एक-दूसरे पर ताल दे रहे थे
“हय साहब, ये क्या कर दिया..!” हांफती हुई नीति बोली पर आँखें न खोलीं.. !
“इसे चुदाई कहते है नीति.. बोलो ‘फक मी.. फ़क मी’…! नीति आई लव यू लव यू” मैंने नीति के कानो मैं शहद भरा प्यार उड़ेला।
अपनी गरमा-गरम लार से उँगलियों को तरबतर कर मैंने नीति के कड़क हो चुके भगनासा अर्थात क्लाइटोरिस को सहलाना शुरू कर दिया था और हमारे लंड और चूत आपस मैं चुम्मियाँ कर रहे थे।
धीरे से मैंने नीति की चूचियों को गरम-गरम जीभ से मालिश करना शुरू कर दिया नीति को मानो नशा आ गया हो उसकी आँखें बोझिल हो गई और साँसें चढ़ने-उतरने लगीं।
‘सी..सी’ की आवाज के साथ-साथ उसने अपने कूल्हों को आगे-पीछे चलाना शुरू कर दिया।
मैं यौन तनावों का असर तीन वर्ष से संयमित जीवन गुजार रही एक जवान विधवा पर देखना चाहता था।
मैंने अपना हाथ धीरे से नीचे ले जाकर उसकी चूत पर लगाया तो ऐसा लगा मानो दो ब्रेड स्लाइस के बीच मिक्स फ्रूट जैम पर उंगलिया लग गई हों। लंड अब काबू के बाहर हो रहा था।
गरमा गरम लार से उँगलियों को तरबतर करके मैंने नीति के कड़क हो चुके भगनासा अर्थात क्लाइटोरिस को सहलाना शुरू कर दिया।
ओह माय गॉड..! मानो नीति को बिजली का झटका लगा। अब उसके कूल्हे तेजी से चलने लगे। मानो खड़े लंड की चूत धकाधक मालिश कर रही हो, बिजलियाँ कमर में कौंधने लगीं।
मैंने भी स्वर्गानन्द में गोते लगाते हुए अपने कूल्हे ऊपर उठा-उठा कर चलाना प्रारंभ कर दिए।
अब मामला क्लाइमेक्स की तरफ अग्रसर था। मैंने स्तम्भन क्रिया के अपने अनुभव के आधार पर मन को एकाग्र कर यौन क्रिया से अपना ध्यान-विकर्षण करना शुरू करके नीति को और उत्तेजित करने लगा।
पसीने से लथपथ नीति पूरी ताकत से अपनी चूत को लंड पर ऊपर से नीचे तक रगड़े पर रगडा दे रही थी। यकायक उसका बदन ढीला हो गया और वो अपने से दुगने बड़े मेरे विशाल शरीर को अपनी बाँहों में चपेटे मुझको नीचे दबाकर हाँफने लगी।
“साहब… साहब.. ये क्या हो गया..!” मेरे कानों को अपनी जीभ से चाटते हुए हुए नीति बड़े प्यार से फुसफुसाई।
“ये तो शुरुआत है.. नीति डार्लिंग.. आगे-आगे देखिए होता है क्या..!”
“हटना नहीं..!” नीति ने आग्रह किया।
मैंने उसको और कसके भींच लिया। अब नीति बड़े प्यार से मेरे बालों से खेलने लगी।
“साहब ये क्या..! आपका तो निकला ही नहीं..!” नीति आश्चर्य से बोली।
“अभी तो लंच-ब्रेक हुआ है.. नीति..! ड्यूटी तो शाम 5 बजे तक रहेगी।”
“साहब आप वाकई में साहब हो.. मेरे इनका तो तुरंत झड़ जाता था और ये करवट बदलकर सो जाते थे। आपकी खुराक अलग है..!”
मैंने उसकी चूत को छूना चाहा, पर नीति ने मुझे परे धकेल दिया
“नहीं.. नहीं.. अब नहीं… मैं तो चूर-चूर हो गई।” नीति अब निढाल हो कर आँखें बंद कर मंद-मंद मुस्करा रही थी और मैं अगले राउंड का इंतज़ार कर रहा था।
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