जिस्मानी रिश्तों की चाह -37
सम्पादक जूजा
अब तक आपने पढ़ा..
आपी मेरे लबों को चूसते हुए अपनी ही चूत के रस को भी जीभ से चाटने लगीं और शायद उन्हें भी उसका ज़ायका अच्छा लग रहा था।
फरहान हम दोनों से बेखबर आपी के जिस्म में खोया था, कभी आपी के उभारों से खेलता तो कभी उनके पेट और नफ़ पर ज़ुबान फेरने लगता।
जब फरहान को आपी की चूत खाली दिखी तो वो अपनी जगह से उठा और आपी की टाँगों के दरमियान बैठते हुए उनकी चूत को चाटने लगा।
अब आगे..
मैं और आपी कुछ देर ऐसे ही चूमाचाटी करते रहे और मैंने अपने होंठ आपी से अलग किए तो उनका चेहरा देख कर बेसाख्ता ही हँसी छूट गई और मैंने कहा- क्यों.. बहना जी.. मज़ा आया अपना ही जूस चख के?
आपी ने भी मुस्कुरा के मुझे देखा और कहा- तुम खुद तो गंदे हो ही.. अपने साथ-साथ मुझे भी गंदा बना दोगे।
फिर एक गहरी सांस लेकर फरहान को देखा और कहा- तुझसे ज़रा सबर नहीं हुआ.. मुझे सांस तो लेने दो.. तुम लोग तो जान ही निकाल दोगे मेरी..
फरहान ने आपी की बात पर कोई तवज्जो नहीं दी और अपने काम में मग्न रहा।
आपी ने अपने होंठों पर ज़ुबान फेर के एक बार फिर अपने रस को चाटा और मुस्कुरा कर मुझे आँख मारते हुए शरारत से बोलीं- यार इतना बुरा भी नहीं है इसका ज़ायका..
‘अच्छा जी, तो मेरी बहना को भी अच्छा लगा है चूत का पानी.. और पहले तो बड़ा ‘गंदे.. गंदे..’ कर रही थीं।’ मैंने आपी को टांग खींचते हुए कहा।
आपी ने फ़ौरन ही जवाब दिया- गंदे तो हो ही ना तुम.. मैं ये नहीं कह रही कि ये बहुत अच्छा काम है।
मैंने आपी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनको कहा- अच्छा आपी खड़ी हो जाओ।
आपी ने सवालिया नजरों से मुझे देखा तो मैंने फरहान को हटाते हुए उन्हें ज़मीन पर सीधा खड़ा कर दिया।
आपी के खड़े होते ही फरहान फिर उनकी टाँगों के दरमियान बैठ गया और अपना मुँह आपी की चूत से लगाते हुए बोला- आपी थोड़ी सी तो टाँगें खोलें ना.. प्लीज़..
आपी ने फरहान के सिर पर हाथ रखा और टाँगें थोड़ी खोलते हुए अपने घुटने भी थोड़े मोड़ से लिए। आपी अब फिर से गर्म होने लगी थीं।
मैं आपी के पीछे आकर खड़ा हुआ और अपने एक हाथ से अपने खड़े लण्ड को ऊपर उनकी नफ़ की तरफ उठाता हुआ आपी के कूल्हों की दरार पर टिकाया और उनके पीछे से चिपकते हुए मैंने दोनों हाथ आपी के आगे ले जाकर उनके उभारों पर रख दिए।
आपी ने मेरे लण्ड को अपने कूल्हों की दरार में महसूस करते ही कहा- आअहह.. सगीर..
और उन्होंने अपने हाथ मेरे हाथों पर रखे और सिर को पीछे झुका कर मेरे कंधे से टिका दिया और अपनी गाण्ड पीछे की तरफ दबा दी।
मैं अपना लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में रगड़ने के साथ-साथ ही उनकी गर्दन को भी चूमता और चाटता जा रहा था, अपने हाथों से कभी आपी के सीने के उभार दबाने लगता कभी उनके निप्पलों को चुटकियों में दबा कर मसलता।
फरहान आपी की चूत को ऐसे चाट रहा था.. जैसे कल कभी नहीं आएगा।
फरहान का जोश में आना फितरती ही था क्योंकि वो अपनी ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत को चाट और चूस रहा था। और चूत भी तो दुनिया की हसीन-तरीन लड़की की थी।
मैंने अपना लण्ड उनके कूल्हों से ज़रा पीछे किया और आपी का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।
आपी को जब अहसास हुआ कि उनके हाथ में मेरा लण्ड है.. तो फ़ौरन ही उन्होंने अपना हाथ पीछे खींच लिया।
मैंने दोबारा इसकी कोशिश नहीं की और आपी के कन्धों का पिछला हिस्सा अपनी ज़ुबान से चाटने लगा।
कंधों के बाद पूरी कमर को चाटता हुआ मैं नीचे बैठ गया और आपी के कूल्हों की गोलाइयाँ चूमते और चूसते हुए अपनी ज़ुबान से भी मसाज सी करता रहा।
पूरी तरह कूल्हों को चाटने के बाद मैंने अपने दोनों हाथ आपी के कूल्हों पर रखे और उनके कूल्हों को खोल कर आपी की गाण्ड के सुराख को गौर से देखना शुरू कर दिया।
आपी की गाण्ड का सुराख बाक़ी जिस्म की तरह गुलाबी नहीं था.. बल्कि भूरे रंग का था और बहुत सी उभरी-उभरी सी गोश्त की लकीरें अन्दर सुराख में जाती दिख रही थीं.. जो ऐसे थीं जैसे किसी कुँए पर चुन्नटों का जाल सा बुन दिया गया हो।
मैंने आपी की गांड के सुराख को कुछ देर बा गौर देखा.. और फिर आगे होते हुए आहिस्तगी से अपनी ज़ुबान की नोक को सुराख के बिल्कुल सेंटर में टच कर दिया।
आपी ने मेरी ज़ुबान को अपनी गाण्ड के सुराख पर महसूस करते ही एक झुरजुरी सी ली और मज़े की एक शदीद लहर आपी के बदन में सिहरन कर गई।
वो बेसाख्ता ही अपने ऊपरी जिस्म को आगे की तरफ झुकाते हुए बोलीं- आआहह सगीर.. ये क्या कर रहे हो?
‘म्म्म्म म्मम..’ मैंने गाण्ड के सुराख को चाटने के साथ-साथ अपनी ज़ुबान ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर पूरी दरार में फेरना शुरू कर दी।
आपी के बेसाख्ता अंदाज़ ने मुझे समझा दिया था कि उन्हें गाण्ड का सुराख चटवाने में बहुत मज़ा आ रहा है।
आपी के आगे झुकने की वजह से मेरा काम ज्यादा आसान हो गया था और मेरी ज़ुबान आपी की पूरी दरार में आसानी से घूम रही थी।
फरहान आपी की चूत को चूसने में लगा था और मैं आपी की गाण्ड के सुराख को चाट रहा था.. आपी की हालत अब बहुत खराब हो रही थी और वो अपने सिर को राईट-लेफ्ट झटके देते हुए दबी-दबी आवाज़ में ‘आहें..’ भर रही थीं।
मेरे जेहन में ये आया कि यही टाइम है कि अब मैं दोबारा ट्राई करूँ।
इस सोच के आते ही मैं उठा और आपी के सामने आकर उनको सीधा करते हुए आपी के होंठों को अपने होंठों में दबाया और एक हाथ में आपी का हाथ पकड़ते हुए दूसरे हाथ से उनके सीने के उभार दबाने लगा।
मैंने चंद लम्हें ऐसे ही आपी का हाथ थामे रखा.. और फिर आहिस्तगी से उनका हाथ दोबारा अपने लण्ड पर रख दिया।
आपी ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की.. लेकिन मैंने उनके हाथ को मजबूती से अपने लण्ड पर ही दबाए रखा।
कुछ देर तक आपी ने कोई रिस्पोन्स नहीं दिया और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरे लण्ड को अपनी मुठ में दबाने लगीं।
वो कभी लण्ड को भींच रही थीं.. तो कभी अपना हाथ लूज कर देतीं..
मैंने ये महसूस किया तो आपी के हाथ से अपना हाथ हटा लिया और उनकी गर्दन को पुश्त से पकड़ कर किस करने लगा।
मेरे हाथ हटाने के बावजूद भी आपी ने मेरे लण्ड को नहीं छोड़ा था और नर्मी से लंबाई नापने के अंदाज़ में उस पर अपना हाथ फेरने लगीं।
मैंने दोबारा अपना हाथ आपी के हाथ पर रखा और उनके हाथ की मुठी बना कर अपने लण्ड पर ऊपर-नीचे की और 3-4 मूव्स के बाद अपना हाथ हटा लिया और अब आपी खुद ही अपना हाथ मेरे आगे-पीछे करने लगीं।
मैंने एक नज़र फरहान को देखा तो वो अभी भी आपी की चूत ही चूस रहा था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद ऐसे ज़ोर लगाता था.. जैसे खुद ही आपी की चूत में घुसना चाह रहा हो।
उसका हाथ अपने लण्ड पर तेजी से आगे-पीछे हो रहा था।
आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ.. तो फ़ौरन मुझे याद आ गया कि कैसे डिसचार्ज होते वक़्त आपी की चूत मेरी ज़ुबान को भींचने लगी थी।
अब फरहान की ज़ुबान भी इस मज़े को महसूस करने वाली है।
आपी को डिस्चार्ज होने के क़रीब देखा तो मैंने ज़ोर से उनके होंठों को चूसना शुरू कर दिया और आपी के निप्पल्स को चुटकियों में मसलने लगा।
मेरे लण्ड पर आपी का हाथ बहुत तेज-तेज चलने लगा था और उनकी साँसें बहुत तेज हो गई थीं।
मेरी बर्दाश्त जवाब दे रही थी और एकदम ही मेरे लण्ड ने झटका मारा और मेरे लण्ड से जूस निकल-निकल कर आपी के पेट पर चिपकने लगा।
आपी ने भी मेरे लण्ड के पानी को महसूस कर लिया था और फ़ौरन ही उनके जिस्म ने भी झटके खाए और वे अपनी चूत का पानी फरहान के मुँह में भरने लगीं।
हम तीनों ही अपनी मंज़िल तक पहुँच चुके थे।
जब हम एक-दूसरे से अलग हुए और आपी की नज़र अपने पेट पर पड़ी.. जहाँ मेरे लण्ड का गाढ़ा सफ़ेद पानी चिपका हुआ था।
आपी की पूरी नफ़ मेरे लण्ड के जूस से भरी हुई थी।
‘ओह्ह.. अएवव.. ये क्या गंदगी की है तुमने.. गंदे..’ आपी ने ये कहा और अपनी ऊँगली अपनी नफ़ में डाल कर घूमते हुए.. मेरे लण्ड का पानी अपनी ऊँगली की नोक पर निकाल लिया।
वो चंद लम्हें रुकीं और फिर अपनी ऊँगली को चेहरे के क़रीब ले जाकर गौर से देखने लगीं।
मैंने आपी को इस तरह मेरे लण्ड के जूस को देखते देखा.. तो मुस्कुराते हुए आपी को आँख मारी और कहा- शर्मा क्यों रही हो आपी.. आगे बढ़ो.. बहुत मज़े का ज़ायक़ा है इसका..
आपी ने मेरी बात सुनी तो झेंपती हँसी के साथ कहा- शट अप्प्प सगीर.. मैं सिर्फ़ क़रीब से देखना चाहती थी.. तुम्हारी तरह गंदी नहीं हूँ।
मैंने कहा- उस वक़्त तो आपको बुरा नहीं लग रहा था.. जब मैं आप की चूत का रस पी रहा था।
यह कहते हुए मैंने आगे बढ़ कर आपी की चूत पर हाथ रखा और कहा- वो भी डायरेक्ट यहाँ मुँह लगा के..
आपी ने मुस्कुरा कर मुझे देखा और नर्मी से मेरा हाथ पकड़ कर अपनी टाँगों के बीच से हटाते हुए कहा- अच्छा बस सगीर.. अब बहुत देर हो गई है.. फरहान मुझे कोई कपड़ा दो.. ताकि मैं अपने पेट से ये गंदगी साफ करूँ।
फरहान कपड़ा लेने के लिए उठ रहा था कि मैंने और आपी ने एक साथ ही देखा कि मेरे लण्ड के जूस के बहुत से क़तरे फरहान के सिर पर गिरे हुए थे और मुझसे पहले ही आपी बोल पड़ीं- और अपना सिर भी साफ कर लेना.. वहाँ भी सारी गंदगी लगी है।
यह कहानी एक पाकिस्तानी लड़के सगीर की जुबानी है.. वाकयी बहुत ही रूमानियत से भरे हुए वाकियात हैं.. आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।
ये वाकिया मुसलसल जारी है।
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