नाजायज़ औलाद
आज जो कुछ भी हुआ, उसकी उम्मीद मीनाक्षी को सपने में भी नहीं थी, आज उसके विद्यालय की छुट्टी जल्दी हो गई तो उसने अपने बेटे अंकुर को भी उसके कॉलेज से छुट्टी दिला कर बाजार जाने का सोचा इसलिए वह कॉलेज के प्रिन्सीपल से अंकुर की छुट्टी स्वीकृत कराने गई कि उसने देखा कि प्रिन्सीपल तो आशीष है।
मीनाक्षी को मालूम महीं था कि आशीष रूड़की में ही रहता है और अंकुर के कॉलेज का प्रिन्सीपल है।
आशीष भी मीनाक्षी को अपने सामने खड़ा देख कर चौंक गया, बड़ी कठिनाई से उसके मुख से निकला- आओ मीनाक्षी, बैठो, कैसी हो?
मीनाक्षी ने कहा- ठीक हूँ… अपने बेटे अंकुर को छुट्टी दिलाने आई हूँ। तुम कैसे हो? कब से आये इस कॉलेज में?
आशीष ने चपरासी को अंकुर को कक्षा से बुलाने भेज दिया।
मीनाक्षी आशीष सर से बात कर रही थी कि उसी समय अंकुर रूम में घुसा, उसे देख कर आशीष सर बोले- यह तुम्हारा बेटा है? तभी…
आशीष के बात आगे बढ़ाने से पूर्व ही मीनाक्षी ने इशारे से उसे रोक दिया परन्तु प्रिन्सीपल सर के ये शब्द ‘यह तुम्हारा बेटा है? तभी…’ अंकुर के कान में पड़ गए, उस समय तो अंकुर कुछ नहीं बोला पर गेट से बाहर आते ही मॉम से पूछे बिना नहीं रहा- मॉम, मैं आपकी और आशीष सर की नाजायज़ औलाद हूँ?
मीनाक्षी अंकुर के उस प्रश्न से बचना चाहती थीं जो उसने गेट से बाहर आते ही दाग दिया था, वह बिना कोई उत्तर दिए चलती जा रही थी।
जब उसके बगल से एक ऑटो गुजरा तो उसे रोक कर अंकुर को लगभग खींचते हुए ऑटो में बैठ गई। उसे पता था कि उसका बेटा ऑटो वाले के सामने कुछ नहीं बोलेगा।
आटो में चुप बैठा अंकुर घर पहुंचते ही बोल पड़ा- मॉम, आप जवाब नहीं दे रही हो जबकि मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं, कहते हैं कि ‘तू भी मेरठ का और सर भी मेरठ के, और तेरा चेहरा और चाल ढाल सब आशीष सर से मिलता जुलता है. कहीं तेरी मॉम और सर के बीच कोई चक्कर तो नहीं था?
‘और आज आशीष सर के शब्द ‘यह तुम्हारा बेटा है? तभी…’ तो क्या, मैं आपकी और सर की नाजायज औलाद हूँ?’
मीनाक्षी उसकी बात को टालते हुए बोली- जब तू पेट में था तब तेरे सर के परिवार के हमारे परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध थे, घर में बहुत आना जाना था, इसीलिए!
‘मॉम, आपने मुझे बच्चा समझा है? मैं सर से ही पूछ लूंगा!’ कह कर अंकुर वहाँ से चला गया।
मीनाक्षी ने उसे रोका नहीं क्योंकि उसे पता था, अंकुर जो सोच लेता है, करता है।
अंकुर कुछ नाश्ता करके अपने कमरे में आकर लेट गया, टीवी चला लिया परंतु उसका प्रिय कार्यक्रम भी उसे शांति नहीं दे पा रहा था… ‘यह तुम्हारा बेटा है? तभी…’ ये शब्द ही उसके कानों में बार बार गूंज रहे थे।
तभी उसका फोन बजा, उसने फोन उठाया, उसके दोस्त एकांश का फ़ोन था- तू कब कॉलेज से घर आया?
इधर उधर की बातें करने के बजाय अंकुर ने सीधे ही पूछ लिया- तू आशीष सर का घर जानता है?
‘क्यों? क्या तू भी सर से ट्यूशन पढ़ना चाहता है? वे बहुत अच्छा पढ़ाते हैं लेकिन तेरा कोई सब्जेक्ट तो सर पढ़ाते नहीं हैं. फिर तू…?’
‘तुझसे जितना पूछ रहा हूँ, उतना ही बता, मुझे कुछ काम है, तू पता बता दे बस…’
‘ऐसा कर, सिविल लाइन्स में गली में दाईं ओर दूसरा ही घर है, उनके नाम की प्लेट भी लगी है।’
अंकुर ने फोन रख दिया और अपनी मॉम से बोला- मैं एकांश के घर जा रहा हूँ, एक घन्टे में आ जाऊँगा।
कुछ ही देर में अंकुर आशीष सर के घर पहुँच गया, वह पहले थोड़ा झिझका, फिर घंटी बजा दी।
दरवाजा सर ने ही खोला, एक क्षण को वह सर को देखता ही रहा क्योंकि आज उसे सर दूसरे ही रूप में दिखाई दे रहे थे और फिर उसे अपना यहाँ आने का उद्देश्य याद आया और सर के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ा- सर, क्या मैं आपकी और मॉम की नाजायज़ सन्तान हूँ?
आशीष को शायद ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी, उसने कहा- देखो बेटा, ऐसी बातें दरवाजे पर नहीं की जाती, अन्दर आओ, मैं तुम्हारे हर सवाल का उत्तर देने की कोशिश करूँगा।
अंकुर अन्दर आ गया, अन्दर सर ने अपनी अम्मा से उसका परिचय कराया- अम्मा यह अंकुर… है मीनाक्षी का बेटा!
सर की अम्मा खिल उठीं- अपनी मम्मी को भी ले आते बेटा!
उनके और कुछ बोलने से पूर्व ही आशीष ने अपनी अम्मा को कहा- अम्मा, ये बातें बाद में हो जाएँगी, पहले इसे चाय नाश्ता तो करा दो ! पहली बार घर आया है।
अम्मा के चले जाने के बाद सर बोले- हाँ, अब बोलो बेटा, क्या जानना चाहते हो?
‘सर, मैं आपकी और मॉम की नाजायज़ औलाद हूँ?’
‘देखो बेटा, औलाद नाजायज़ नहीं होती, बल्कि सम्बन्ध नाजायज़ होते हैं… और फिर मेरे और तुम्हारी मॉम के सम्बन्धों के लिये तो तुम्हारे पापा की अनुमति थी।
यह सुनते ही अंकुर का मुख खुला का खुला रह गया, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना नीचे भी गिर सकता है… उसे समझ नहीं आया कि पापा की क्या मजबूरी हो सकती थी।
उसकी परेशानी भाम्प कर आशीष बोले- शांत होकर मेरी बात सुनो बेटा, मैं सब बताता हूँ! तुम्हारी मॉम की शादी साधारण शादी थी, शादी के बाद दो साल शादी की खुमारी में निकल गए और फिर गली मोहल्ले में काना-फूसी शुरू हो गई कि घर में किलकारी क्यों नहीं गूंजी?
फ़िर तो तुम्हारे घर में भी ऐसी बातें सुनने को मिलती! तुम्हारे पापा के दोस्त ताना मारने से नहीं चूके, तुम्हारी मम्मी मीनाक्षी के बांझ होने की बातें होने लगी और तुम्हारे पापा की मर्दानगी पर सवाल बनने लगे। साथ ही, डाक्टरी रिपोर्ट ने आग में घी का काम किया, कमी तुम्हारे पापा में मिली।
तुम्हारे पापा ऑफिस का गुस्सा घर में निकालने लगे। हमारा परिवार तुम्हारे पड़ोस में था, तुम्हारी मॉम हमारे घर आ जाती, मैं तुम्हारी मॉम से बात करके उन्हें दिलासा देता, तुम्हारी मॉम कोई बच्चा गोद लेने को कहती तो तुम्हारे पापा नाराज हो जाते, उन्हें अपनी मर्दानगी साबित करनी थी।
मेरे और तुम्हारी मॉम के बीच घनिष्ठता बढ़ने लगी। तुम्हारे पापा ने हमारी निकटता को अनदेखा किया, फलस्वरूप, हमारी निकटता बढ़ती चली गई और उस मुकाम तक पहुँच गई जिसके फलस्वरूप तुम अपनी मॉम के पेट में आ गए।
‘वह दिन मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है, जन मैं तुम्हारे घर पहुँचा, तब तुम्हारी मॉम के शब्द मेरे कानों में पड़े, उन शब्दों को सुनते ही मेरे चलते कदम रुक गए। तुम्हारी मॉम कह रही थीं ‘लो, अब तुम भी मर्द बन गए. मैं गर्भवती हो गई… अब दोस्तों के सामने तुम्हारी गरदन नहीं झुकेगी।’
मुझे लगा कि मैं सिर्फ एक हथियार था, जो तुम्हारे पापा को मर्द साबित करने के लिए प्रयोग किया गया था। मुझे तुम्हारी मॉम पर गुस्सा आया, सोचा कि सामने जाकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करूँ लेकिन फिर मुझे तुम्हारी मॉम पर तरस आ गया, मैं वापिस घर आ गया, उसके बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं गया।
उसी दौरान मेरे पापा का तबादला हो गया, जिस दिन हम जा रहे थे, उस दिन तुम्हारी मॉम हमारे घर आई थी, वो कुछ नहीं बोली लेकिन उनकी चुप्पी भी बहुत कुछ कह गई, मैंने मीनाक्षी को माफ कर दिया।
सर की अम्मा वहाँ आ गई थी, उन्होंने सब सुन लिया था, वे बोल पड़ीं- बेटा, इसने खुद को माफ नहीं किया और अब तक शादी नहीं की। तुम्हारी मॉम की खबरें पड़ोस की एक आंटी से मिलती रहीं, तुम्हारा जन्म हुआ, तुम्हारे पापा ने पार्टी दी लेकिन कहते हैं कि उनके चेहरे पर वो खुशी दिखाई नहीं पड़ी थी जो एक बाप के चेहरे पर दिखनी चाहिये थी। तुम्हारी मॉम और पापा में झगड़ा और बढ़ गया। तुम्हारा चेहरा देख कर उनको पता नहीं क्या हो जाता, शायद उनको अपनी नामर्दी का ख्याल आ जाता या वो हीन भावना से ग्रस्त हो गये थे, तुम्हारी ओर ध्यान नहीं देते, तुम्हारी मॉम के लिए तुम सब कुछ थे, शायद वो तुम्हारे लिये अपने को भूल जाती!
‘एक दिन तुम्हारी मॉम बाथरूम में नहा रही थी, तुम जोर जोर से रो रहे थे, तुम्हारे पापा वहीं खड़े थे परंतु उन्होंने तुम्हें चुप नहीं कराया, उसी समय तुम्हारी दादी आ गई, तुम्हें जोर जोर से रोते देख कर वे तुम्हारे पापा से बोली- कैसा पिता है? लड़का रोये जा रहा है और तू अपने काम में लगा है, जैसे यह तेरी औलाद नहीं है?
तुम्हारी दादी के बोलते ही वे आग-बबूला हो उठे, वे चीखे- हाँ हाँ, यह मेरा बेटा नहीं है. मैं तो नामर्द हूँ।
‘इतना कह कर वो घर से निकल गए और फिर केवल उनकी मौत की खबर आई कि उन्होंने खतौली की नहर में कूद कर आत्महत्या कर ली।
कुछ दिन के बाद तुम्हारे मामा, तुम्हारी मॉम और तुमको ले कर रूड़की चले आए।
बात गम्भीर हो चुकी थी, एक तीक्ष्ण चुप्पी वहाँ छा गई थी, वो चुप्पी अंकुर ने ही तोड़ी- सर, हम दोनों काफ़ी अकेले हैं, आप भी कभी अकेले हो जाओगे, इसलिए आप और मॉम अपने उन नाजायज़ सम्बन्धों को जायज़ नहीं बना सकते?
‘पगले, अब हमारी शादी की उम्र थोड़े ही रह गई है, अब तो तेरे फ़्यूचर का सोचना है।’
‘लेकिन सर, आप से मिलने के बाद मैंने मॉम के चेहरे पर अलग चमक देखी थी और अब जब आपने घर के दरवाजे पर मुझे देखा तो आपके चेहरे पर भी वही चमक मैंने महसूस की।’
‘बहुत बड़ा हो गया है तू और तू लोगों के चेहरों को पढ़ना भी जान गया है।’
‘प्लीज, सर…’
‘तू एक तरफ तो मुझे पापा बनाना चाहता है और दूसरी ओर सर-सर भी करे जा रहा है? पापा नहीं कह सकता?’
‘सॉरी, पापा…’ कहते हुए अंकुर आशीष से लिपट गया, अम्मा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- चल बेटा, तेरी मॉम के पास चलते हैं।
अंकुर ने उनको रोक दिया- पहले मैं मॉम से बात कर लूँ!
अम्मा बोली- मैं तेरी मॉम को जानती हूँ वह राजी हो ही जाएगी।
‘हाँ, दादी, मॉम मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं।’
अंकुर वापस घर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, आशीष उसे छोड़ने आ गए, उधर मीनाक्षी अंकुर के लिए चिंतित हो रही थी, दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजा खोलने पर सामने अंकुर ही था।
मीनाक्षी जोर से चीखी- कहाँ रह गया था?
‘पापा के पास!’
‘तेरे पापा तो मर चुके हैं।’
‘वे मेरे पापा नहीं थे, वे आपके पति थे… और फिर वो तो पति कहलाने के लायक भी नहीं थे क्योंकि वे तन से ही नहीं मन से भी नपुन्सक थे, जो अपनी पत्नी को पराये मर्द के साथ सोने को प्रेरित करता है मात्र इसलिये कि दुनिया के सामने खुद को मर्द दिखा सके! अपने को मर्द दिखाने के लिए पत्नी द्वारा बच्चा गोद ले लेने के विचार को भी न सुने!’
‘तो इतना जहर भर दिया आशीष ने? मुझे उससे यह उम्मीद नहीं थी. मैं इसीलिए चुप थी कि यह सुन कर तू मुझसे भी घृणा करने लगता…’
‘मॉम, मैं आपसे घृणा करूँगा? आपने जिस तरह मेरा पालन-पोषण किया है, उस पर मुझे गर्व है कि आप मेरी माँ हो… पापा भी ऐसे नहीं हैं।
फिर कुछ समय तक चुप्पी छाई रही, दोनों एक दूसरे को देखते रहे, फिर अंकुर ही बोला- मॉम, आप और पापा सर अपने नाजायज़ सम्बन्धों को जायज़ नहीं बना सकते? मॉम, पापा सर को पता है मैं उनका बेटा हूँ पर वे मुझे बेटा नहीं कह सकते, मैं जानते हुए भी उनको पापा नहीं कह सकता और आप मेरे सामने खोखली हंसी हंसोगी और अकेले में रोओगी।
‘लेकिन बेटा, लोग क्या कहेंगे?’
‘उनकी चिन्ता मुझे नहीं है, मुझे आपकी चिन्ता है। मैं पढ़ाई के लिये पता नहीं कहाँ जाऊँगा, आप अकेली रह जाओगी और उधर दादी अम्मा कितने दिन की मेहमान हैं, उनके बाद पापा भी अकेले हो जायेंगे।’
मीनाक्षी विचारमग्न हो गई।
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