पति से बुझे ना तन की आग-3
लेखिका : अरुणा
उसने वैसे ही किया, करीब दस मिनट गांड मारने के बाद उसने मेरी चूत में घुसा दिया। उस रात उसने मुझे जम कर पेला, बोला- मेमसाब, आपने बहुत मजा दिया है।
“और तेरी बीवी तेरा इंतज़ार तो नहीं कर रही होगी?”
छोड़ो ना उसको ! कहाँ आप जैसी बला की हसीन औरत ! कहाँ वो काली साली ! सिर्फ घुसवाती है, ना चूसती, ना गांड मरवाती है !” लगातार एक पूरा हफ्ता जब तक पति नहीं लौटे वो हर रात मेरे बिस्तर में सोने लगा। इस एक हफ़्ते में उसने मेरी गांड की धज्जियाँ उड़ा दी, चूत फैला दी, मुझे लगता था मैं उससे कहीं फिर से पेट से ना हो जाऊँ। पति के लौटने पर मुझे कोई खासी ख़ुशी नहीं हुई, वो कौन सा मुझे पार लगाने के सक्षम था, बस पैसा ही था उसके पास, ना कि औरत संभालने की पूरी क्षमता !
वही हुआ, वो मेरे पास बैठ बातें करने में लगा था, मुझे उसकी हामी भरनी पड़ रही थी, सामने रसोई में मेरा शेर खाना बना रहा था, पति साथ साथ रम पी रहा था।मैंने देखा कि मेरे नौकर ने जिप खोल दी। पति की उसकी तरफ पीठ थी, उसने वहीं से अपना लौड़ा निकाला और मुझे हिला हिला कर दिखाने लगा। मेरी चूत गीली होने लगी, मेरा सर घूमने लगा, मैंने पास पड़े कंबल को अपने ऊपर लिया और हाथ सलवार में घुसा दिया।
“ठण्ड लग रही है क्या? एक पैग लगा ले !”
“नहीं नहीं !”
बोला- लगा ले ना मेरे कहने पर रानी !
ठण्ड ख़ाक लगती? सामने लोहे जैसी गर्म रॉड दिख रही थी। वो हंसने लगा, मैंने कहा- लेकिन आप बैठो, मैं आपके और अपने लिए पैग बनाती हूँ।
रसोई में गई, वो फ्रिज के पीछे खड़ा हो गया- आ गई मेरी जान?
“क्यूँ यह सब दिखा दिखा मुझे पागल कर रहे हो?”
“क्या कहूँ मैडम, आप बहुत सेक्सी दिख रही थी, यह खड़ा हो गया।”
मैंने देखा, पति वाशरूम गए, उसका पैग मोटा बनाया, अपना नोर्मल, फ्रिज के पीछे चपड़-चपर उसका लौड़ा चूसने लगी। बाथरूम के दरवाज़े की आवाज़ सुन अलग हुई, पैग उनको दिया, एक खुद लिया- मैं जरा कपड़े बदल कर आती हूँ राजा !
मैं सेक्सी नाईटी पहन कर लौटी, बारीक सी पैंटी, जैसे ही मैं बैठी, उसने दुबारा लौड़ा निकाल लिया। वो काम के साथ साथ लौड़ा निकाले खड़ा था, जब वो काम करता तो उसका लौड़ा रबड़ की तरह हिलने लगता।
पति ने अपना पैग खींच लिया।
“इतनी जल्दी क्यूँ करते हो? कम पिया करो ना !”
“तुमने बनाया था पैग, अपना भी पी लो ना !”
‘बहुत कड़वी है !”
“मेरे लिए पी जा !”
मैंने पैग खींचा, बोले- एक बना दे और मेरे लिए !
“नहीं बस !”
अब बोले- सिर्फ एक !
मैं उठी, रसोई में गई, वहाँ खड़ा लौड़ा इंतज़ार में था, वो फिर फ्रिज के पीछे चला गया। अब की बार मैंने नाईटी उठाई पैंटी खिसकाई, उसके आगे झुक कर पैग बनाने लगी।उसने अपना लुल्ला मेरी चूत में घुसा दिया, झटके देने लगा।
हाय ! कितना मजा आता है छुप छुप कर सेक्स करना ! वो भी पति के घर होते हुए ! नौकर से अपना ही मजा था !
“कहाँ रह गई रानी साहिबा?”
“बस बन गया !”
उसने झटके तेज़ किये।
“बस जरा बर्फ डाल रही हूँ !” मैंने पैग और मोटा बनाया उसने निकाल दिया।
मैं वहाँ से निकल आई, मुझे भी थोडा सरूर था, मुझे लगा कि पति को ज्यादा हो रही है, मेरा वो पैग उसने डकार लिया। कुछ देर बैठा रहा, फ़िर उठ कर वो मेरे कंबल में घुस गया। उसको होश नहीं रही थी, भूल गया कि सामने नौकर भी रसोई में है, मुझे चूमने लगा, सहलाने लगा, मेरी चूत प्यासी थी, अभी उसमें से बड़ा लौड़ा निकला था, मैंने पति के लौड़े को पकड़ लिया, सहलाने लगी, उसने मेरी नाईटी उतार दी।
लेकिन अब वो हिलने लगा, नशा ज्यादा हो चुका था, मैंने दोनों के ऊपर से कंबल उतार दिया मैंने खुद को नंगी कर दिया। पति लुड़कने
लगा था, उसका लौड़ा खड़ा नहीं हो रहा था मैंने उसको धकेला बग़ल में लिटाया कंबल दिया जोर से खांसी तो नौकर ने मुंडी निकाल कर देखा।
मैं अलफ नंगी लॉबी वाले दीवान पर अधलेटी हुई चूत को सहलाने लगी थी।
उसने देखा कि मेरा पति सो गया शराबी होकर, उसने वहीं से लौड़ा हिलाया, रसोई में पड़ी रम को मोटे पैग में डाला और गटक गया। उसने मेरी तरफ कदम बढ़ाये, ठंड काफी थी, मैंने उठकर अंगीठी में कोले डाले, दीवान से उतर कर नीचे बिछे गलीचे पर पसर गई और उसको अपनी तरफ बुलाया।
बच्चे सो चुके थे, वो आया और मुझे मसलने लगा।
मैंने टांगें खोल डाली, उसने मुँह घुसा दिया चूत के होंठों को अपने होंठ से समूच किया, फिर जुबां घुसा दी, फिर एक टांग उठा कर लौड़ा घुसा दिया। उसने मुझे ब्लू फिल्मों वाली रंडी बना रखा था, पति की बग़ल में यार का लौड़ा खाने में आनन्द ही आनन्द मिलने वाला था। उसने मुझे गलीचे पट चित कर दिया, उठकर घर चला गया।
अगले दिन सुबह जब उठी, पति बोले- माफ़ करना, ज्यादा हो गई थी।
“आपने मुझे कितना तंग किया, कितना मसला जानू ! रहम नहीं खाया ! देखो जगह जगह दांत गाड़ रखे हैं !”
“माफ़ करना जानेमन, वैसे ऐसे भी मजा आता है औरत को, ऐसा मैंने सुना है।”
“दर्द बहुत दिया है रात को !”
अगली रात वो पहले ही बाहर से पीकर आया था, नौकर फिर खुश था। उसने फिर से मुझे वैसे ही जलाया वहीं से लौड़ा दिखा कर। लेकिन आज मैंने पहले ही नाईटी पहनी थी, कोई ब्रा नहीं, कोई पैंटी नहीं, फिर से रात में नौकर से चुदवाया, ऐसे मेरा काम चलता गया। पर अब मैं रोज़ रोज़ उसका लौड़ा लेकर ऊब चुकी थी, वहीं रोज़ एक ही तरह का स्वाद !
मेरे अंदर गन्दी हवास कूट कूट कर भर चुकी थी, आज मैं लॉबी की बजाये अपने ही कमरे में पति के साथ बैठ गई। ना रसोई में गई, वहीं बोतल, बर्फ, पानी, नमकीन रख लिया।
वो मेरे इस काम से खीज रहा था- मेम साब, जरा रसोई में आना, मसाला कहाँ रख दिया?
पति वहीं नशे में धुत हो रहे थे, जब मैं गई, उसने मुझे बालों से पकड़ खींचा- साली, छिनाल आज तेरी चूत में आग नहीं लगी क्या? मुझसे किनारा करने लगी, कोई और मिल गया?
“ऐसी बात नहीं है, वो आज अंदर बैठ गए तो क्या करती?”
“साली, यह देख कैसे अकड़ रहा है, पकड़ !”
मैंने थोड़ा सहलाया, बोला- आज तेरे हाथों में कशिश नहीं है।
और उसने मुझे धक्का दे दिया। मैं अपने पति के पास आ गई।
अन्तर्वासना की कहानियाँ आप मोबाइल से पढ़ना चाहें तो एम.अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ सकते हैं।
#पत #स #बझ #न #तन #क #आग3