बधाई हो बधाई
प्रेषक : गुल्लू जोशी
शीला और उसका पति विनोद एक शहर में किराए के घर में रहते थे। शीला की बहन मंजू पास के गाँव में नौकरी करने के कारण वो अक्सर अपनी बहन शीला के पास ही आ जाया करती थी। मंजू अभी तक कंवारी थी। वे तीनों रात को काफ़ी देर तब बतियाते रहते थे और फिर एक एक करके सो जाते थे। शीला सबसे पहले सो जाया करती थी। फिर विनोद और मंजू काफ़ी देर रात तक हंसी मजाक करते रहते थे। यूँ तो विनोद के मन मंजू के प्रति मोह नहीं था फिर भी वो उससे हंसी मजाक तो करता ही रहता था।
इसके विपरीत मंजू के मन में विनोद के प्रति सेक्स भावना थी और बात बात में वो उसके बदन को यहाँ-वहाँ छूती रहती थी। वो भरी जवानी के दौर से गुजर रही थी। उसने कई छुप छुप कर बार शीला को विनोद से चुदते हुए भी देखा था। उसके मन भी एक ज्वाला सी तन में भरी हुई थी और वो उसे शान्त करने की कोशिश में विनोद को अपना बना लेना चाहती थी।
विनोद का एक असिस्टेन्ट प्रकाश भी शीला से लगा हुआ था। यह बात भी मंजू अच्छी तरह से जानती थी, पर शीला की निजी जिन्दगी से उसे कोई मतलब नहीं था।
गर्मी के दिन थे, सभी छत पर सोया करते थे। यूँ तो उस कोने में मंजू सोती थी, फिर शीला और फिर विनोद सोया करते थे। पर चूंकि शीला जल्दी सो जाती थी सो मंजू उठ कर विनोद के पास दूसरे किनारे पर जा कर लेट जाती थी। फिर वो करती थी छूआ छुई का खेल। उससे विनोद भी कभी कभी मंजू की हरकतों से उत्तेजित हो जाता था, पर वो अपनी इस भावना को मंजू को नहीं जताता था। उसे लगता था कि वो खेल खेल में ही ऐसा करती है। इसके विपरीत मंजू विनोद को पटाने का पूरा यत्न कर रही थी।
एक बार मंजू ने अपना दिल मजबूत करके अपनी योजना बना ही ली विनोद को पटाने की। हमेशा की तरह वो देर रात तक एक दूसरे के साथ हंसी ठिठोली करते रहे। फिर मंजू अपनी योजना के अनुसार विनोद की ही बगल में सोने का नाटक करने लगी। वो नींद में होने का नाटक करने लगी। उसने अपना एक हाथ विनोद की छाती पर रख दिया और धीरे धीरे उसके पास सरकने लगी।
विनोद को समझते देर नहीं लगी कि मंजू फिर से उसे पटाने की कोशिश कर रही है। पर वो निश्चल सा पड़ा रहा। मन ही कुछ होने का उसे इन्तजार था। उसके लगभग शरीर से सट जाने से मंजू के शरीर की गर्मी उसे महसूस होने लगी थी। विनोद का लण्ड पर-स्त्री की गर्मी पाकर खड़ा होने लगा था। तभी मंजू अपनी एक चूची उसकी बांह से चिपका कर उसे दबाने लगी। वो सिहर सा गया। आखिर वो भी एक साधारण पुरुष ही तो था।
विनोद से रहा नहीं गया तो उसने अपनी बांह को उसकी चूची पर जान कर रगड़ दी और मंजू को निहारने लगा। मंजू के मुख से हौले से सिसकारी निकल पड़ी। विनोद आश्वस्त हो गया कि मंजू जाग रही है। विनोद के शरीर में अब कुछ हलचल सी होने लगी। उसकी सांस फ़ूलने लगी। मंजू की सांसें तो पहले ही से तेज थी। मंजू को भी पता चल गया था कि विनोद भी उत्तेजित होने लगा है। मंजू बीच बीच में अपनी आँखें खोल कर विनोद की दशा को निहार लेती थी। विनोद तो उसे एकटक ही घूरने लगा था। मंजू को अपनी ओर देखता पा कर उसके सब्र का बांध टूटने लगा।
एकाएक मंजू ने अपनी टांग उठाई और विनोद की कमर में डाल दी और उछल कर उसके ऊपर चढ़ गई। विनोद उसके कब्जे में था। अगले ही पल मंजू ने बिना मौका दिए अपने जलते हुए होंठ विनोद के होंठो से लगा दिए। विनोद के हाथ मंजू की कमर पर कस गए। पजामे में उसका लण्ड जोर मारने लगा। वो सख्त होकर सीधा खड़ा हो गया और उसकी चूत पर उसे चुभने लगा।
मंजू ने मौके का फ़ायदा उठाया और उसके सख्त लण्ड पर अपनी चूत दबा दी। उसके मोटे लण्ड का मंजू को अहसास हो गया था। तभी विनोद की तन्द्रा भंग हुई। उसने जोर लगा कर मंजू को अपने ऊपर से उतार दिया- मंजू, मुझे मरवाओगी क्या ? कही शीला जाग गई तो ? वो कुछ हांफ़ते हुए बोला।
उसे भी अपनी गलती का अहसास हुआ और शर्माती हुई विनोद के ऊपर से उतर गई- तो फिर कब?
“श्…श्… सो जाओ, शीला को पता चल गया तो हंगामा कर देगी।”
“अरे क्या हंगामा कर देगी, उसे क्या मतलब है यार, वो तो तुम्हारे असिस्टेन्ट से पहले ही लगी हुई है, तुम नहीं होते हो तो वो उससे खूब चुदवाती है।”
“मंजू चुप रह, क्या उल्टा सीधा बोलती रहती है?”
“अच्छा तो जैसा मैं कहती हू कल वैसा करना, सब कुछ सामने आ जायेगा।”
मंजू ने विनोद को शक के घेरे में डाल दिया था। अब उसे सब कुछ स्पष्ट सा होने लगा था। प्रकाश के आते ही शीला के चेहरे पर चमक क्यू आ जाती है ? वो जब यात्रा पर जाता है तो शीला उसके साथ उसकी गाड़ी जाने तक क्यों उसे देखती रहती है। वो दोनों इतने खुश क्यो हो जाते हैं ? विनोद यह सब कुछ याद कर के बेचैन सा हो उठा।
दूसरे दिन मंजू ने प्रकाश को शाम को खाने पर बुला लिया और विनोद से कह कर उसने एक दारू की बोतल भी मंगवा ली। न्यौता पा कर प्रकाश की बांछे खिल गई। उसे शीला याद आने लगी। उसका मन गुदगुदाने लगा। प्रकाश ने दिन को दो तीन बार शीला को फोन किया। शीला की खिचड़ी अलग पकने लगी थी।
शाम हुई, प्रकाश खूब बन संवर कर हीरो बन कर आ गया था। विनोद के मन में तो जैसे आग सी लगी हुई थी। मंजू उसे बार बार समझा रही थी कि जवानी में तो यह सब होता ही है जैसे कि वो विनोद पर मरती है। पहले दौर चला दारू का। अन्दर से मन्जू जाम बना बना कर ले आती थी। पहला सिप लेते ही विनोद का मूड उखड़ने लगा, क्योंकि उसे दारू दी नहीं थी, उसे तो सिर्फ़ कोक दिया था। मंजू ने विनोद को आँख मार दी और वो सब समझ गया।
विनोद तीन चार पेग पीने के बाद नशे का बहाना करने लगा। दूसरी ओर प्रकाश को चार पेग में बहुत नशा हो गया था। तभी मंजू ने बहाना किया कि उसे तो चढ़ गई है और वो सोने जा रही है। सभी हंसने लगे, वास्तव में मंजू ने भी नहीं पी थी। कुछ देर बाद विनोद भी उठ खड़ा हुआ। उसने बाथरूम में जाकर गले में उंगली डाल कर उल्टी कर दी। फिर झूमता हुआ अपने कमरे की ओर चला गया। शीला तो दारू के नशे में थी ही। अकेलापन पाकर वो उठी और प्रकाश की गोदी में जा बैठी।
“यार, अब तो दबा ही दो … वो दोनों तो टुन्न हो गए !”
प्रकाश ने शीला के बोबे मसल दिए, शीला उससे लिपट गई और उसका लण्ड पकड़ कर उसके होंठो को चू्मने लगी। मंजू को तो सब पता था सो वो आराम से अपने बिस्तर पर लेटी हुई विनोद के चढ़ते-उतरते रंग देख रही थी। विनोद ने मंजू की तरफ़ देखा और अपना सर झुका लिया। मंजू उठ कर उसके पास आ गई। उसने देखा कि प्रकाश ने शीला की साड़ी ऊपर उठा रखी थी और लण्ड निकाल कर शीला की गाण्ड मार रहा था।
“विनोद, देखो मैने कहा था ना, अब तुम अपनी आग मुझसे ठण्डी कर लो !” वो विनोद को खींचते हुए अपने बिस्तर पर ले आई।
मंजू ने धीरे से उसके कपड़े उतार कर उसे नंगा कर दिया। फिर खुद भी नंगी हो गई। उसने प्यार से उसे लेटा दिया और स्वयं उसके ऊपर चढ़ गई। अपने भारी स्तनों को उसकी छाती पर दबा दिया। विनोद के जजबात पिघलने लगे। उसके शरीर में आग भरने लगी। उसके शरीर में सनसनी सी फ़ैलने लगी। मंजू को अपनी योजना सफ़ल होती देख खुशी थी। उसकी चूत को लण्ड प्यास होने लगी थी। रास्ता साफ़ था। दोनों एक दूसरे के लबों को चूसने लगे थे। विनोद का लण्ड सख्त हो चुका था। मंजू जल्दी से एक बार तो चुद लेना चाहती थी। उसकी तमन्ना पूरी होने वाली थी, वो कोई खतरा नहीं लेना चाहती थी।
उसकी पनियाती चूत में उथल पुथल होने लगी थी। शरीर एक वासना भरी आग से गुदगुदाने लगा था। विनोद को भी एक नई चूत मिलने वाली थी।
“विनोद बधाई हो !”
“किस बात की…?”
“आज तुम्हें अपनी साली की नई चूत मिलने वाली है।”
“तुम्हें भी बधाई हो। तुम आज एक नया लण्ड खाओगी।”
“आओ, दोनों का स्वागत करें !”
फिर मंजू के मुख से एक मीठी सी सीत्कार निकल गई। विनोद के लण्ड का सुपारा अन्दर घुस चुका था।
“हाय राम, कितना तड़पाया है तुमने, अब जाकर मैंने इस लण्ड को पाया है।”
“इच्छा तो मेरी भी बहुत थी, पर रिश्ते का बोझ जो था !”
मन्जू ने थोड़ा सा जोर लगाते हुए एक हल्का वार किया। उसकी जवान चूत ने उसे थोड़ा सा और भीतर समा लिया।
“कैसा लग रहा है विनोद, आनन्द आ रहा है ना?”
“मत पूछो मंजू … तुम तो मजे की खान हो !”
मंजू ने धीरे धीरे करके उसका पूरा लण्ड अपनी चूत में समा लिया। उसे डर था कि इतना मोटा लण्ड जल्दी से लेने से कही चोट ना लग जाये। मंजू अब आराम से विनोद के शरीर पर लेट गई थी। विनोद को भारी शरीर भी फ़ूल सा हल्का लग रहा था। दोनों अधर पान करते रहे फिर मंजू की कमर अपने आप धीरे से चलने लगी। विनोद का डण्डा कसक भरी मधुरता से भर उठा। अब धक्के तेज होते जा रहे थे। साथ में दोनों की सांसें भी तेज होती जा रही थी। मंजू के लटकते स्तनों को विनोद दबा रहा था, आमों की तरह चूस रहा था। मंजू के मुख से खुशी की किलकारी निकल रही थी।
फिर दोनों ने आसन बदल लिया। मंजू विनोद के नीचे दब गई, उसने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा ली। उसे लग रहा था कि विनोद उसे अपने नीचे जोर से दबा कर उसका कीमा बना दे। विनोद का कसाव उसके शरीर पर बढ़ने लगा, विनोद की बाहें उससे लिपट पड़ी। मंजू के कठोर स्तन विनोद की छाती को जैसे भेद रहे थे। अब दोनों ने एक सी लय पकड़ ली थी, दोनों एक साथ अपनी कमर चला रहे थे। विनोद का लण्ड उसकी चूत की गहराइयों में जाकर उसको चोद रहा था। दोनों के शरीर में अकड़न होने लगी थी, नसें खिंचने लगी थी। चुदाई की तेजी बहुत बढ़ गई थी। फिर कमरे में खुशी की सिसकारियाँ गूंज उठी। मंजू के बाल उलझ गए थे, उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था।
अचानक उसके जबड़े कसने लगे, उसके गालों की हड्डियाँ तक उभर आई। एक चीख के साथ मंजू ने विनोद को अपने से लिपटा लिया। मंजू हांफ़ती हुई झड़ने लगी थी। दो चार शॉट के बाद विनोद भी उसके ऊपर ही ढेर हो गया था।
कुछ देर सुस्ताने के बाद मंजू बोली- विनोद, शीला का क्या हाल है, चलो देखते हैं।
विनोद तो जैसे उन्हें भूल ही गया था। वो दोनों बैठक में आए तो वहाँ कोई नहीं था। मंजू उसका हाथ खींच कर बेडरूम में आ गई। नशे में धुत्त प्रकाश शीला को दनादन चोद रहा था। वो चीखें मार मार कर अपनी खुशी का इजहार कर रही थी। विनोद और मंजू के चेहरे पर मुस्कान उभर आई। वो दोनों ही उनके पास ही बैठ गए और चुदने में उनकी सहायता करने लगे। कुछ देर बाद जब उन दोनों का स्खलन हुआ तो उन्हें होश आया कि सामने कौन बैठा है। शीला तो बहुत सकपका गई। उसने अपनी स्त्री सुलभ नाटक शुरू कर दिया।
“सच कहती हूँ विनोद, मुझे शराब के नशे में पाकर इसने मेरा जबरन चोदन किया है।”
“अरे पगली, यह तो स्वभाविक है, जवान दिलों का यही तो राज है, प्रकाश और इच्छा हो तो मेरी पत्नी को चोद दे, पर देखो इसे मस्ती आनी चाहिये।”
“ओह विनोद, तुम कितने अच्छे हो, सच बताऊँ तो तुम्हें मंजू को चोदते देखकर मुझसे भी बिन चुदे नहीं रहा गया।”
“पर प्रकाश तो तुम्हारी गाण्ड पहले ही मार रहा था?”
“पकड़ा गई ना शीला रानी… तुम्हें देख कर ही तो जीजाजी ने मुझे चोद दिया।”
“अरे धत्त तेरी की, हर जगह मैं ही पकड़ी जा रही हूँ।” फिर शीला हंस दी और प्रकाश से दूसरे दौर की चुदाई के लिपट पड़ी। इधर मंजू भी अपनी गाण्ड ऊपर उठा कर गाण्ड मराने को तैयार हो गई। दोनों के लण्ड एक साथ घुस पड़े। एक का चूत में और दूसरे का गाण्ड में…
गुल्लू जोशी
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