बारिश रोज नहीं होती
मैं आज आप सभी के सामने एक कहानी रख रहा हूँ.. आप ही निर्णय लें कि ये सही है या काल्पनिक!
मैं बहुत ही मनमौजी किस्म का इंसान हूँ.. हालांकि मैं बचपन से ही बड़े शर्मीले स्वभाव का भी था।
स्कूल में 12 वीं की परीक्षा के बाद मैंने निर्णय लिया कि मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई किसी हिल स्टेशन से करूँगा। अतः मैं हिमाचल के एक छोटे से शहर धर्मशाला में आ गया और वहाँ के कॉलेज में एड्मिशन ले लिया।
मैंने इधर दो कमरे का एक घर ले लिया था।
एक कमरे में अपना सारा सामान रखा व दूसरे कमरे में पढ़ने पढ़ाने का इंतज़ाम बना लिया।
मैं अच्छा पढ़ाता था.. तो थोड़े ही दिनों में लोग मुझे जानने लगे और मेरे पास दसवीं का एक बैच बन गया। उस बैच में 4 लड़कियां और 3 लड़के थे।
जैसा कि आप लोग जानते ही हैं कि हिमाचल में बहुत ठंड होती है।
यह दिसंबर की बात थी।
उस बैच की एक लड़की इवा उस दिन जल्दी आ गई।
समय 7 बजे का था और वो ग़लती से आधा घंटा पहले आ गई।
मैं उस समय तैयार हो रहा था और सुबह की चाय बना रहा था। मैंने उसको देखा.. वो ठंड से काँप रही थी। मैंने बिस्तर ज़मीन पर लगा दिया और उससे रज़ाई ले लेने को कहा। दो मिनट के बाद मैं भी उसी रज़ाई में आ गया। वो अभी भी ठंड से काँप रही थी।
उसने मुझसे कहा- सर.. अपने हाथ देना।
मैंने दिया तो उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और कहा- आपका हाथ कितने गर्म हैं।
मैं भी उसके हाथ का नर्म स्पर्श पाकर अच्छा महसूस कर रहा था।
इतने में और सब भी आ गए।
वो पूरे एक घंटे मेरे हाथ को अपने हाथ में रख कर रज़ाई में सहलाती रही।
फिर यह सिलसिला रोज़ का हो गया, वो रोज़ मेरे एक हाथ को रज़ाई में सहलाती रहती।
मुझे भी वो अच्छी लगने लगी।
एक दिन उसने जाते वक़्त एक चिट मुझे पकड़ाई.. और मुस्कुरा कर चली गई।
मैंने उसको बाद में खोल कर देखा उसमें लिखा था- सर आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.. मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ।
मैं भी सब भूल गया और अगले दिन मैंने भी उसको इशारों में ‘हाँ’ बोल दिया।
बैच खत्म होने के बाद उसने मुझसे कहा- सर रसोईघर में चलिए.. मुझे पानी पीना है।
मैं उसको रसोईघर ले गया।
वहाँ उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने पास खींच लिया।
मैंने भी जोश में आकर उसके होंठों को अपने होंठों से लगा दिया और मेरा एक हाथ उसके दूध पे चला गया।
हाय.. इतने मुलायम दूध.. जैसे गुब्बारे पर हाथ रख दिया हो।
हम दोनों एक दूसरे को बुरी तरह किस कर रहे थे।
इतने में उसकी सहेलियों ने उसे आवाज देकर बुलाया और हम अलग हो गए।
इवा की सुंदरता के बारे में क्या कहूँ.. एकदम दूध सा गोरा चेहरा.. गुलाबी होंठ.. कमर तक लंबे ब्राउन रंग के बाल.. लगता था जैसे स्वर्ग की कोई अप्सरा हो, जो अभी-अभी जवान हुई हो।
उसके मध्यम आकार के दूध कयामत थे.. एकदम मस्त..
अब ये भी रोज़ का सिलसिला बन गया वो किसी ना किसी बहाने रोज़ मुझसे दूध दबवाती या किस करती।
एक दिन की बात है बहुत तेज़ बारिश हो रही थी.. कोई नहीं आया.. पर वो आ गई।
मैंने देखा कि उसके पूरे कपड़े भीगे हुए हैं, उसने लाल रंग का टॉप और जीन्स पहनी थी।
लाल रंग के टॉप में उसकी सफेद रंग की ब्रा साफ दिख रही थी। मैं भी बिना मौका गंवाए उसे किस करने लगा और उसके टॉप में हाथ डाल दिया।
उसने दरवाजे की तरफ इशारा किया।
मैंने भाग के दरवाजा बंद किया, तब तक वो दूसरे कमरे में जाकर बिस्तर पर बैठ गई थी।
मैंने उसके कपड़े उतारना शुरू किया, उसने भी मेरा साथ दिया।
जब मैंने उसकी जींस की पैन्ट उतारी.. तो उसने कहा- सर अजीब सा लग रहा है।
मैं रुक गया।
मैंने उससे कहा- तो क्या तुमको अच्छा नहीं लग रहा?
तो उसने कुछ पल सोचा और कहा- अच्छा तो बहुत लग रहा है।
इतना कह कर उसने मेरी शर्ट भी उतार दी।
फिर देखते ही देखते हम दोनों नंगे हो गए। कसम से पहली बार मैंने किसी लड़की को सच में अपने सामने नंगी देखा था।
क्या कयामत लग रही थी।
उसके भरे हुए दूध.. उस पर वो अकड़े हुए गुलाबी निप्पल.. आह.. कयामत ही तो थी।
पूरे बिस्तर पर वो नागिन की तरह बल खा रही थी।
मैंने उसकी टाँगों को खींचा और उनको चौड़ी करके उसमें अपना मुँह दे दिया।
अब मैं उसकी चूत चाटने लगा।
धीरे-धीरे वो गर्म होने लगी और उसके मुँह से कराहने की आवाज़ आने लगी- आहह.. आहह.. सर.. और ज़ोर से अन्दर तक.. और ह्म्म्म्म और आऔउर अन्दर..
मैंने देखा उसकी चूत से पानी रिसने लगा।
मैंने एक हाथ से उसके दूध दबाने शुरू कर दिए.. अब तो वो और गरम हो गई।
थोड़ी देर के बाद उसने कहा- सर, ऊपर आ जाओ।
मैंने उसके होंठों पर अपने होंठों को लगा दिया और अपना लण्ड उसकी चूत में डालने लगा।
उसकी चूत बहुत टाइट थी।
लौड़ा घुसते ही उसकी आवाज़ बदल गई.. पर मैंने उसे किस करना जारी रखा और पूरे ज़ोर से उसकी चूत में लण्ड डाल दिया और धक्के देने लगा।
थोड़ी देर में उसे भी मज़ा आने लगा.. और उसने भी चूतड़ उठाने शुरू कर दिए।
हम दोनों ही पूरे शबाव पे थे, मैं ज़ोर-ज़ोर से उसके दूध मसल रहा था।
थोड़ी ही देर में हम दोनों झड़ गए और एक-दूसरे की बांहों में सिमट कर लेट गए।
वो मुझे.. और मैं उसे देखे जा रहा था।
थोड़ी देर में हम दोनों ने एक बार और किया।
इसके बाद वो कपड़े पहन कर जाने के लिए तैयार हो गई.. तो मैंने कहा- अब इस तरह कब मिलेंगे? क्योंकि बारिश तो रोज़ नहीं होती।
उसने कहा- रविवार को किसी को नहीं बुलाना.. पर उस दिन अपने आप मैं आ जाऊँगी।
मेरी कहानी आपको कैसी लगी.. ज़रूर बताईएगा, मैं आपके मेल का वेट करूँगा। अगर आपको पसंद आई है तो ही अगली कहानी लिखूंगा वरना नहीं.. मैं कहानी में अपशब्द प्रयोग कम करता हूँ.. उसके लिए माफी माँगता हूँ।
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