भाई बहन की चुदाई के सफर की शुरुआत-2
मैं अपनी बहन को नंगी देखा करता था. एक बार मैंने अपने दो दोस्तों से पैसे लेकर उन्हें भी अपनी बहन नंगी दिखा दी. फिर मैंने सोचा कि अपनी बहन से खुल कर बात करने में फ़ायदा है, मैंने बात की और बात बन गई.
अब मेरी बहन ने मुझे उसके सामने मुठ मार कर दिखाने को कहा.
मैंने ‘हाँ’ कह दिया तो ऋतु ने मुस्कुराते हुए कहा- तो ठीक है… फिर शुरू हो जाओ.
मैंने शर्माते हुए अपनी जींस उतारी और अपनी चड्डी भी उतार कर साइड में रख दी और अपने लंड को अपने हाथ में लेकर मन ही मन में बोला… चल बेटा तेरे कारनामे दिखाने का टाइम हो गया… धीरे धीरे मेरे लंड ने विकराल रूप ले लिया और मैं उसे आगे पीछे करने लगा.
मैंने ऋतु की तरफ देखा तो वो आश्चर्य से मुझे मुठ मारते हुए देख रही थी. उसकी आँखों में एक ख़ास चमक आ रही थी.
मैं अपने हाथ तेजी से अपने लंड पर चलाने लगा. ऋतु भी धीरे-धीरे मेरे सामने आ कर बैठ गई, उसका चेहरा मेरे लंड से सिर्फ एक फुट की दूरी पर रह गया.
उसके गाल बिल्कुल लाल हो चुके थे और उसके गुलाबी लरजते होंठ देखकर मेरा बुरा हाल हो गया… वो उन पर जीभ फिरा रही थी और उसकी लाल जीभ अपने गीलेपन से उसके लबों को गीला कर रही थी.
मेरा लंड ये सब देखकर दो मिनट के अन्दर ही अपनी चरम सीमा तक पहुँच गया और उसमें से मेरे वीर्य की पिचकारी निकल कर ऋतु के माथे से टकराई.
वो हड़बड़ा कर पीछे हुई तो दूसरी धार सीधे उसके खुले हुए मुंह में जा गिरी और पीछे होते होते तीसरी और चौथी उसकी ठोड़ी और गले पर जा लगी.
‘अरे वाह… मुझे इसका बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था.’ ऋतु ने चुप्पी तोड़ी.
‘मतलब तुमने आज तक ये… मेरा मतलब असली लंड नहीं देखा?’ मैंने पूछा तो उसने ना में गर्दन हिला दी.
ऋतु ने अपने मुंह में आये वीर्य को निगलते हुए चटखारा लिया और मुझसे बोली- और मुझे इस बात का भी अंदाज़ा नहीं था कि ये पिचकारी मारकर अपना रस निकालता है.
मैंने पूछा- मैंने भी तुम्हें डिल्डो को अपनी योनि में डालने के बाद चाटते हुए देखा है… क्या इसका स्वाद तुम्हारे रस से अलग है?
ऋतु ने कहा- हाँ… थोड़ा बहुत… तुम्हारा थोड़ा नमकीन है… पर मुझे अच्छा लगा.
ऋतु ने मुझसे पूछा- मेरा इतना गाढ़ा नहीं है पर थोड़ा खट्टा-मीठा स्वाद आता है… क्या तुम टेस्ट करना चाहोगे?
मैंने कहा- हाँ… बिल्कुल… क्यों नहीं… पर कैसे?
ऋतु मुस्कुराती हुई धीरे धीरे अपने बेड तक गई और अपना डिल्डो निकालकर उसको मुंह में डाला और मेरी तरफ हिला कर फिर से पूछा- क्या तुम सच में मेरा रस चखना चाहोगे?
मैंने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई.
उसको डिल्डो चूसते देखकर मेरे मुरझाये हुए लंड ने एक चटका मारा… जो ऋतु की नजरों से नहीं बच सका.
फिर उसने आहिस्ता से अपनी जींस के बटन खोले और उसको उतार दिया. हमेशा की तरह उसने पेंटी नहीं पहनी थी. उसकी बुर मेरी आँखों के सामने थी. मैंने पहली बार इतनी पास से उसकी बुर देखी थी.
उसमें से रस की एक धार बह कर उसकी जींस को गीला कर चुकी थी और वो काफी उत्तेजित थी. फिर वो अपनी टाँगे चौड़ी करके बेड के किनारे पर बैठ गई और डिल्डो अपनी बुर में डाल कर अंदर बाहर करने लगी.
मैं ये सब देखकर हैरान रह गया.
वो आँखें बंद किये मेरे सामने अपनी बुर में डिल्डो डाल रही थी. जब डिल्डो उसके अन्दर जाता तो उसकी बुर के गुलाबी होंठ अन्दर की तरफ मुड़ जाते और बाहर निकालते ही उसकी बुर के अन्दर की बनावट मुझे साफ़ दिखा देते.
मैं तो उसके अंदर के गुलाबीपन को देखकर और रस से भीगे डिल्डो को अन्दर बाहर जाते देखकर पागल ही हो गया.
मैं मुंह फाड़े उसके सामने बैठा था.
उसने अपनी स्पीड बड़ा दी और आखिर में वो भी जल्दी ही झड़ने लगी. फिर उसने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और अपनी बुर में से भीगा हुआ डिल्डो मेरे सामने करके बोली- लो चाटो इसे… घबराओ मत… तुम्हें अच्छा लगेगा… चाटो.
मैंने कांपते हाथों से उससे डिल्डो लिया और उसके सिरे को अपनी जीभ से छुआ. मुझे उसका स्वाद थोड़ा अजीब लगा पर फिर एक दो बार चाटने के बाद वही स्वाद काफी मादक लगने लगा और मैं उसे चाट चाटकर साफ़ करने लगा.
यह देखकर ऋतु मुस्कराई और बोली- कैसा लगा?
मैंने कहा- टेस्टी है ऋतु…
ऋतु ने डिल्डो मेरे हाथ से लेकर वापस अपनी बुर में डाला और खुद ही चूसने लगी और बोली- मज़ा आया?
मैंने कहा- हाँ!
फिर ऋतु बोली- मुझे भी मज़ा आता है अपने रस को चाटने मैं… कई बार तो मैं सोचती हूँ कि काश मैं अपनी बुर को खुद ही चाट सकती!
ऋतु ने मुझसे पूछा- क्या तुमने कभी अपना रस चखा है?
मैंने कहा- नहीं… क्यों?
ऋतु बोली- ऐसे ही… एक बार ट्राई करना!
फिर उसने कहा- आज रात सब के सोने के बाद तुम मेरे लिए एक बार फिर से मुठ मारोगे और अपना रस भी चाट कर देखोगे!
मैंने पूछा- मैं अपना वीर्य चाटूं… पर क्यों?
ऋतु ने अपना फैसला सुनाया- क्योंकि मैं चाहती हूँ और अगर तुमने ये किया तभी मैं तुम्हें अपना जवाब दूंगी.
मैंने कहा- ठीक है.
ऋतु- अब तुम जल्दी से यहाँ से जाओ, मुझे अपना होमवर्क भी पूरा करना है.
मैंने जल्दी से अपनी चड्डी और जींस पहनी लेकिन मेरे खड़े हुए लंड को अन्दर डालने में जब मुझे परेशानी हो रही थी तो वो खिलखिलाकर हंस रही थी और उसके हाथ में वो काला डिल्डो लहरा रहा था.
मैं जल्दी से वहाँ से निकल कर अपने रूम में आ गया. अपने रूम में आने के बाद मैंने छेद से देखा तो ऋतु भी अपनी जींस पहन कर पढ़ाई कर रही थी.
रात को सबके सोने के बाद मैंने देखा कि ऋतु के रूम की लाइट बंद हो चुकी है. थोड़ी ही देर मैं मैंने अपने दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनी. मैंने वो पहले से ही खुला छोड़ दिया था तो ऋतु दरवाजा खोलकर अन्दर आ गई उसने गाउन पहन रखा था.
अंदर आते ही ऋतु बोली- चलो शुरू हो जाओ.
मैं चुपचाप उठा और अपना पायजामा उतार कर खड़ा हो गया और अपने लंड के ऊपर हाथ रखकर आगे पीछे करने लगा. ऋतु मुझे मुठ मारते हुए देख रही थी. इस बार वो और ज्यादा करीब से देख रही थी.
उसके होठों से निकलती हुई गर्म हवा मेरे लंड तक आ रही थी.
मैं जल्दी ही झड़ने के करीब पहुँच गया, तभी ऋतु बोली- अपना वीर्य अपने हाथ में इकट्ठा करो.
मैंने ऐसा ही किया… मेरे लंड के पिचकारी मारते ही मैंने अपनी मुठ से अपने लंड का मुंह बंद कर दिया और सारा माल मेरी हथेली में जमा हो गया.
फिर ऋतु बोली- वाह… मजा आ गया, तुम्हें मुठ मारते देखकर सच में मुझे अच्छा लगा… अब तुम इस रस को चख कर देखो.
मैंने झिझकते हुए अपने हाथ में लगे वीर्य को अपनी जीभ से चखा.
ऋतु ने पूछा- कैसा लगा?
मैंने जवाब दिया- तुम्हारे रस से थोड़ा अलग है.
ऋतु- कैसे?
मैं- शायद इसमें मादकता कम है.
ऋतु मुस्कुराते हुए बोली- चलो मुझे भी चखाओ.
मैं- ये लो…
और मैंने अपना हाथ ऋतु की तरफ बढ़ा दिया. वो अपनी गर्म जीभ से धीरे धीरे उसे चाटने लगी फिर अचानक वो मेरा पूरा हाथ साफ़ करने के बाद बोली- यम्मी… मुझे तुम्हारा रस बहुत स्वाद लगा और काफी मीठा भी… क्या तुम मेरे रस के साथ अपने रस को चखना चाहोगे?
मैं- हाँ हाँ… क्यों नहीं!
फिर वो थोड़ा पीछे हठी और उसने अपना गाउन आगे से खोल दिया… मैं देख कर हैरान रह गया… वो अन्दर से पूरी तरह नंगी थी. उसकी 34 बी साइज़ की सफ़ेद रंग की चूचियाँ तन कर खड़ी थी और उन स्तनों की शोभा बढ़ाते दो छोटे निप्पल किसी हीरे की तरह चमक रहे थे.
उसने अपने हाथ अपनी जांघों के बीच में घुसाए और अपनी बुर में से वो काला डिल्डो निकाला. वो पूरी तरह से गीला था… उसका रस डिल्डो से बहता हुआ ऋतु की उंगलियों तक जा रहा था.
मैंने उसके हाथ से डिल्डो लिया और उसको चाटने लगा.
उसका रस एकदम गर्म और ताज़ा था. मैं जल्द ही उसे पूरी तरह से चाट गया और वो ये देखकर खुश हो गई.
मैं- मुझे भी तुम्हारा रस अच्छा लगा.
ऋतु बोली- अब मुझे भी तुम्हारा थोड़ा रस और चखना है… तुम अपना लंड अपने हाथ में पकड़ो.
मेरे लंड के हाथ में पकड़ते ही वो झुकी और मेरे लंड के चारों तरफ अपने होंठों का फंदा बना कर उसमें बची हुई आखिरी बूँद को झट से चूस गई.
मैं तो सीधा स्वर्ग में ही पहुँच गया… मैंने कहा- ये तो और भी अच्छा है.
ऋतु बोली- तुम्हारा लंड भी इस नकली से लाख गुना अच्छा है.
मैंने शर्माते हुए ऋतु से पूछा- क्या मैं भी टेस्ट कर सकता हूँ?
ऋतु बोली- तुम्हारा मतलब है… जैसे मैंने किया… क्यों नहीं… ये लो!
और इतना कहकर वो मेरे बेड पर अपनी कोहनी के बल लेट गई और अपनी टाँगें चौड़ी कर के मोड़ ली.
उसकी गीली बुर मेरे बिल्कुल सामने थी. मैं अपने घुटनों के बल उसके सामने बैठ गया और उसकी जांघों को पकड़ कर अपनी जीभ उसकी बुर में डाल दी.
वो सिसक पड़ी और अपना सर पीछे की तरफ गिरा दिया.
उसकी मादक खुशबू मेरे नथुनों में भर गई.
फिर तो जैसे मुझे कोई नशा सा चढ़ गया, मैं अपनी पूरी जीभ से अपनी बहन की बुर किसी आइसक्रीम की तरह चाटने लगा.
ऋतु का तो बुरा हाल था, उसने अपने दोनों हाथों से मेरे बाल पकड़ लिए और खुद ही मेरे मुंह को ऊपर नीचे करके उसे नियंत्रित करने लगी. मेरी जीभ और होंठ उसकी बुर में रगड़ कर एक घर्षण पैदा कर रहे थे और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं किसी गर्म मखमल के गीले कपड़े पर अपना मुंह रगड़ रहा हूँ.
मेरी बहन की सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूंज रही थी.
और फिर वो एक झटके के साथ झड़ने लगी और उसकी बुर में से एक लावा सा बहकर बाहर आने लगा. मैं जल्दी से उसे चाटने और पीने लगा और जब पूरा चाटकर साफ़ कर दिया तो पीछे हटकर देखा तो ऋतु का शरीर बेजान सा पड़ा था और उसकी अधखुली आँखें और मुस्कुराता हुआ चेहरा हल्की रोशनी में गजब का लग रहा था.
मेरा पूरा चेहरा उसके रस से भीगा हुआ था. वो हंसी और बोली- मुझे विश्वास नहीं होता कि आज मुझमें से इतना रस निकला… ऐसा लग रहा था कि आज तो मैं मर ही गई.
मैंने पूछा- तो तुम्हारा जवाब क्या है?
वो हँसते हुए बोली- हाँ बाबा हाँ, मैं तैयार हूँ.
वो आगे बोली- लेकिन वो भी पहली बार सिर्फ तुम्हारे लिए… तब तुम अपने दोस्तों को नहीं बुलाओगे… फिर बाद में हम तय करेंगे कि आगे क्या करना है.
मैंने कहा- ठीक है, मुझे मंजूर है.
मैंने उसे खड़ा किया और उसे नंगी ही गले से लगा लिया और उसे कहा- तुम्हें ये सब करना काफी अच्छा लगेगा.
ऋतु कसमसाई और बोली- देखेंगे!
अपना गाउन पहन कर उसने अपने डिल्डो को अंदर छुपा लिया और बोली- मुझे भी अपनी बुर पर तुम्हारे होंठों का स्पर्श काफी अच्छा लगा… ये अहसास बिल्कुल अलग है… और मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि मेरा अब कोई सिक्रेट भी नहीं है.
मैंने कहा- हम दोनों मिलकर बहुत सारे पैसे कमाएंगे और बहुत मज़ा भी करेंगे.
फिर मैंने बोला- गुड नाईट.
तो ऋतु भी ‘गुड नाईट’ कहकर वो अपने रूम में चली गई.
मैं भी ऋतु के बारे में और आने वाले समय के बारे में सोचता हुआ अपनी आगे की योजनायें बनाने लगा.
मेरी बहन की चुदाई आगे की कहानी अगले भाग में. अपने सुझाव मुझे मेल अवश्य कीजिये.
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