मुझे जीना सिखा दिया-1
यूँ तो कहानी लिखना कोई नई बात नहीं है पर यह कहानी मेरे लिये सबसे खास है क्योंकि अब से पहले जब भी मैंने कहानी लिखी वो मेरी कहानी, मेरी सोच, मेरे विचार थे। पर इस कहानी को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरी पत्नी ने दी, विषय भी शशि का, विचार भी शशि का ओर सोच भी!
दरअसल यह सिर्फ एक कहानी ही नहीं हर प्रौढ़ होते जा रहे दम्पत्ति की सच्चाई भी है।
हमारी शादी को 12 साल हो चुके थे। ऐसे तो जीवन में कोई कठिनाई नहीं थी सब ठीक ही चल रहा था। पर ये कहने में भी गुरेज नहीं करूँगा कि हमारा काम जीवन अब पूरी तरह से नीरस हो चुका था।
न तो कुछ नयापन, न ही वो पहले वाला उत्साह और न ही दिन भर काम की थकान के बाद रात को एक दूसरे के सानिध्य की उमंग!
शशि भी दिन भी घर और बच्चों में उलझ कर रह जाती थी और मैं भी अपने व्यापार की सिरदर्दी में… अक्सर रात को साथ बैठते तो हमारा झगड़ा हो जाता।
ऐसा लगने लगा था कि जीवन में कुछ खोने लगा है, जैसे जवानी ढल गई है, हम दोनों ही अपनी उम्र से अधिक लगने लगे।
किसी चीज की कमी है पर क्या… कुछ भी तो समझ नहीं आ रहा था।
पर यह भी तो सच है कि हम दोनों शुरू से ही एक दूसरे को दिलोजान से प्यार करते रहे हैं या यूँ कहूँ कि हम तो दो जिस्म एक जान हैं तो शायद गलत नहीं होगा।
रात को अक्सर शशि इतना थकी होती कि बिस्तर पर आते ही सो जाती।
मुझे नींद थोड़ी देर से आती थी तो मैं थकान मिटाने को अपनी फेसबुक आई डी खोल कर मित्र खोजने लगता।
एक दिन ऐसे ही फेसबुक पर मुझे एक कपल दम्पत्ति की आई डी में उनकी कुछ अंतरंग तस्वीरें दिखाई दी जो बहुत ही सुन्दर तरीके से सम्पादित करके दोनों की पहचान को छुपाते हुए परन्तु उनकी कामवासना को दर्शाते हुए प्रस्तुत की गई थी।
साथ में उस कपल दम्पत्ति द्वारा अपने जैसे ही अन्य दम्पत्ति को ढूंढने एवं उसने मिलने की इच्छा भी प्रकट की गई थी।
मेरी उस आई डी के प्रति जिज्ञासा बढ़ी तो मैंने उसको खंगालना शुरू किया।
जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था, ऐसा लगने लगा जैसे मैं किसी स्वर्ग में गोते लगा रहा हूँ। वहाँ तो ऐसे कपल्स की भरमार थी। अधिकतर मेरी ही आयुवर्ग के थे।
मैंने उनमें एक एक-दो लोगों से बातचीत करने का प्रयास भी किया परन्तु जैसे ही मैं उनको बताता कि मैं एकल पुरूष हूँ तो वो नमस्ते करके चले जाते।
यह तो मैं समझ चुका था कि इस खेल में हर कपल सामने भी सिर्फ कपल से ही बात करने में रूचि ले रहा था। मेरे लिये ये सब बिल्कुल नया था… अतिउत्तेजक, परन्तु बेहद आकर्षक भी।
मैं तो सारी रात सो भी न सका।
सुबह उठते ही आफिस गया तो जाकर अपने लिये भी फेसबुक पर ऐसी ही एक आई डी बना डाली, और रात में ढूंढे सभी कपल्स को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजनी शुरू कर दी।
कपल्स नाम देखकर कुछ कपल्स ने मुझे अपना मित्र भी बना लिया, धीरे धीरे बातचीत शुरू होने लगी।
कुछ लोग तो बहुत ही अच्छे और अनुभवी तरीके से बात करते थे।
कुछ अच्छे मित्र भी बन गये, उन्होंने अपनी कपल फोटो भी मुझे शेयर की और मुझसे भी हमारी कपल फोटो मांगी।
‘अब मैं क्या करूं?’
मैंने अपने पुराने संग्रह से अपनी और शशि की कुछ फोटो एडिट करके मित्रों को शेयर कर दी।
अब उन मित्रों से फोन पर भी बात शुरू हुई तो कुछ की पत्नी से भी वार्ता होने लगी।
तो मित्रों ने मुझसे भी शशि से बात करने की इच्छा जाहिर की।
अब तो मैं सच में फंस चुका था क्योंकि शशि से तो मेरी ही ढंग से बात नहीं होती भाई, तुम्हारी कहाँ से करवाऊँ?
शायद यही सोच रहा था मैं उस वक्त।
खैर समय बीत रहा था।
एक दिन जब मैं शशि के साथ अकेले में बैठा कुछ अच्छा माहौल में बात कर रहा था तो मैंने शशि से अपनी उस कपल आई डी का जिक्र किया और बताया कि उसमें मेरे भी कुछ मित्र बन गये हैं जिनसे और जिनकी पत्नियों से भी अक्सर मेरी बात होती है वो लोग भी तुमसे बात करने के इच्छुक हैं।
मेरी बात सुनकर शशि ने उस आई॰डी॰ के बारे में मुझसे पूछताछ शुरू कर दी।
मैंने भी सीधे सीधे शशि को अपनी उस कपल आई॰डी॰ के बारे में बता दिया।
बस सुनते ही शशि तो जैसे मुझपर बिफर पड़ी, कुछ तो व्यवहार से गुस्सैल ऊपर से ऐसी चीज की तो उसने उम्मीद भी नहीं की होगी मुझसे, तो गुस्सा तो आना ही था।
अब मैंने भी चुप रहना ही उचित समझा।
पर अपनी आई डी पर मैं अक्सर लोगों से बात करता बहुत से ऐसे कपल से बात हुई कि उनके आपसी प्यार को देखकर मुझे उनसे जलन होने लगती।
कभी कभी मुझे महसूस होता कि हम दोनों के बीच की दूरियों के लिये जितनी जिम्मेदार शशि है, उतना ही मैं भी तो हूँ। मैं भी तो हमेशा शशि का पति ही बना रहा कभी उसका मित्र बनने की कोशिश ही नहीं की।
अब मैंने अपनी गलती को समझकर सुधार करने की कोशिश की। धीरे धीरे मैंने शशि पर ध्यान देना शुरू किया। उसकी हर बात को ध्यान से सुनता, जहाँ वो गलत होती वहाँ भी उसका साथ देता।
हर जगह एक दोस्त की तरह उसकी मदद करता, उसको परिवार से अलग भी कुछ समय देने का प्रयास करता।
ये सब करना तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता था।
धीरे धीरे शशि में भी परिवर्तन आने लगा, अब वो थोड़ी नर्म भी हो गई। अब हम दोनों ही अनेक कपल फ्रैंन्डस से बात करने लगे।
कभी कभी कुछ अलग तरह की मौज-मस्ती भी करते।
लोगों को मस्त जीवन जीते देख कर हम भी जीवन में मस्त रहना सीख रहे थे। अब जिन्दगी थोड़ी आसान होने लगी, आपस में प्यार बढ़ने लगा।
हम अक्सर एक दूसरे को समय देने का प्रयास करते। शादी के बाद पहली बार हमने एक दूसरे को समझने और एक दूसरे के साथ समय बिताने के लिये कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया, और हम निकल पडे पंचगनी के सुहाने सफर पर!
हम, सिर्फ हम दोनों…
हमने तय किया कि इन दो दिनों में हम घर परिवार बच्चों के बारे में कोई बात भी नहीं करेंगे, सिर्फ एक दूसरे को ही समय देंगे।
पंचगनी का मौसम जैसे सोने पे सुहागा!
ऊपर से पंचगनी के होटल सत्कार ने जो सत्कार किया वो तो अविस्मरणीय था।
जैसे की मेरी आदत बन चुकी थी, पंचगनी पहुंचते ही मैंने अपनी उस फेसबुक आई॰डी॰ का स्टेटस अपडेट किया और आराम करने लगा।
कोई 10 मिनट बाद ही मेरे मोबाइल पर एक फेसबुक कपल फ्रैंड विवेक-काजल का फोन आया।
‘हैलो विवेक कैसे हो?’ मैंने पूछा।
‘क्या राजीव भाई, आप भाभी को लेकर पंचगनी को निकले और बताया भी नहीं?’ उधर से विवेक बोला।
‘ये तो मैंने अभी आपको स्टेटस देखा तो पता चला।’ विवेक ने जारी रखा।
‘अरे यार, बस पहले से कुछ प्लान नहीं था। अचानक ही प्रोग्राम बना।’ मैंने जवाब दिया।
‘लेकिन अच्छा हुआ ना, हम भी कल सुबह ही पंचगनी पहुंचे हैं, अभी 2 दिन और यही हैं, अगर चाहो तो मिल कर घूमेंगे, मस्ती करेंगे।’ विवेक ने कहा।
‘अरे वाह! ये तो अच्छा हुआ।’ कहकर मैंने तुरन्त शशि की तरफ देखा, और उसको विवेक और काजल के पंचगनी होने के बारे में बताया।
सुनकर शशि भी मुस्कुराई।
‘जरा काजल शशि से बात करना चाहती है।’ विवेक ने कहा।
मैंने शशि से पूछकर फोन उसकी तरफ बढ़ा दिया क्योंकि वो विवेक-काजल को पहले से जानती थी और उनसे 2-3 बार फोन पर भी बात हो चुकी थी। इसीलिये दोनों ने आपस में काफी देर तक बात की और अन्त में तय किया कि 2 घंटे बाद विवेक और काजल हमारे होटल में ही आ जायेंगे, फिर यहीं से हम चारों साथ चलेंगे और 2 दिन तक पंचगनी का मजा साथ ही लेंगे।
अब शशि और भी खुश लग रही थी क्योंकि साथ में घूमने को हम जैसा एक और कपल जो मिल गया था।
मैंने भी शशि की इस खुशी को और बढ़ाते हुए तय कर लिया कि कोशिश करेंगे कि विवेक और हम एक ही होटल में रूकें ताकि साथ बना रहे।
ठीक 10 बजे होटल के रिसेप्शन से फोन आया और विवेक-काजल के आने की सूचना मिली।
मैंने उन दोनों को मेरे रूम में ही बुला लिया।
कुछ देर बातचीत के बाद यह तय हुआ कि वो भी अपना होटल छोड़कर हमारे होटल में ही रूकेंगे।
सबकुछ तय होने के बाद हमने अपने होटल में ही बराबर वाला कमरा उनके लिये बुक कर लिया और सिर्फ एक घंटे में ही विवेक और काजल हमारे होटल में शिफ्ट हो गये।
अब ज्यादा समय न गंवाते हुए हम चारों दोस्त तुरन्त टैक्सी करके घूमने निकल गये।
शायद ईश्वर भी मेहरबान थे हम पर… चारों ओर काली घटा छा गई, शीतल हवा चलने लगी।
चारों तरफ की हरियाली पहाड़ियों के बीच इस मौसम में घूमना ऐसा लग रहा था जैसे शायद स्वर्ग ही धरती पर उतर आया है।
दिन भर में जितनी मस्ती हम चारों ने की उतनी तो शायद पूरे जीवन में भी नहीं की होगी। बहुत अच्छी दोस्ती जो हो गई थी चारों में।
विवेक और काजल दोनों ही पति-पत्नि कम एक दूसरे के दोस्त ज्यादा थे, बहुत खुले विचारों वाले और जीवन को पूरी तरह से जीने वाले दम्पत्ति।
कभी कभी तो उन दोनों को देखकर मुझे जलन होने लगती क्योंकि हम दोनों पति-पत्नि में आपस में भले ही कितना भी अच्छा सम्बन्ध रहा हो पर हम दोस्त तो कभी नहीं बन पाये।
बस यूं ही मस्ती करते घूमते फिरते हम लोग शाम को 6 बजे प्रतापगढ़ के किले में पहुंच गये।
यह हमारा अंतिम पड़ाव था, बहुत थकान होने लगी थी ना!
टैक्सी वाले ने हमें 8 बजे तक टैक्सी स्टैण्ड पर आने को बोल दिया।
अब इतना बड़ा किला और सिर्फ 2 घंटे?
यार समय तो कम है ना… पर चलो जल्दी जल्दी करते हैं।
थोड़ा घूम फिर कर हम लोग किले के कई एकड़ में फैले बाग में आ गये। हमारे अलावा और भी बहुत सारे सैलानी बाग में टहल रहे थे। बाग की खूबसूरती देखते ही बनती थी, बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया गया था।
हम लोग भी आपस में हंसी-मजाक, छेड़-छाड़ करते हुए बाग में टहल रहे थे।
मेरे लिये सबसे खुशी की बात यही थी कि सिर्फ खुद में डूबी रहने वाली अंर्तमुखी शशि भी हमारे इस टूर को पूरा एंजॉय कर रही थी। विवेक और काजल से उसकी अच्छा मित्रता हो गई।
विवेक तो शुरू से ही शशि की खूबसूरती पर फिदा था पर अब शशि भी खुल कर मस्ती कर रही थी।
मैंने पिछले 12 सालों में शशि को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा, यहाँ आकर तो वो बिल्कुल चंचल हिरनी बन गई थी।
जैसी शशि मैं पिछले 12 सालों में ढूंढ रहा था वो मुझे आज मिली, इसीलिये मैं भी बहुत खुश था।
शशि मेरा बहुत ख्याल भी रख रही थी और हर कदम पर साथ भी दे रही थी।
इसी तरह मस्ती करते, टहलते-टहलते हम लोग बाग में काफी दूर निकल आये।
तभी अचानक हल्की बूंदा बांदी शुरू हो गई। बाग में टहलने वाले सभी लोग बारिश से बचने को इधर उधर भागने लगे।
हम लोगों ने भी भागकर एक पेड़ की ओट में शरण ली। पर इतनी तेज बारिश में भला पेड़ के नीचे हम कैसे बच पाते, कुछ ही मिनटों में हम चारों पूरी तरह भीग गये।
वहाँ से निकलने के लिये चारों तरफ देखा तो बाग तो बिल्कुल खाली हो चुका था, आसपास के सभी लोग पास में बने रेसार्ट में चले गये थे, मैंने भी वहाँ जाने को कहा।
तो काजल बोली- क्यों राजीव, यहाँ कितना अच्छा लग रहा है ना! क्या करेंगे रेसार्ट में जाकर? वैसे भी बारिश में नहाने का अलग ही मजा है।
शशि ने भी तुरन्त काजल की हाँ में हाँ मिलाई।
हम दोनों पुरूष अब निरूत्तर हो गये।
तभी विवेक ने कहा- जब भीगना ही है तो खुल की भीगो न, यूं पेड़ के नीचे छिपकर क्यों?
बस क्या था चारों ने दौड़ लगा दी बाग में खुले आसमान के नीचे… हमारे कपड़े तो बुरी तरह भीग गये।
तब तक बारिश भी तेज हो गई।
मेरी निगाह शशि पर गई… नीले रंग क टाईट मिड्डी में लिपटी शशि आज मुझे बहुत कामुक लग रही थी, बिल्कुल कामदेवी जैसी।
मैं बरबस ही शशि की तरफ बढ़ा और उसको बाहों में लेकर अपने होठों को शशि के कामुक होठों पर रख दिया।
शशि ने एक पल को नजरें ऊपर उठाकर मेरी तरफ देखा, और फिर वो भी इस कामुक चुम्बन में मेरा साथ देने लगी।
अब तो शशि को ऐसा आनन्द आने लगा कि वो मेरे होंठ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी।
इस बारिश के मौसम में भी शशि का पूरा बदन गरम होने लगा… वो शशि जिसने अपने कमरे में लाईट ऑन होने पर भी कभी मुझे हाथ तक नहीं लगाने दिया।
घर में आज तक जब भी हम कामावस्था में रहे शशि हमेशा एक निष्क्रिय भागीदार ही रही।
पर आज शशि को यह क्या हुआ? शायह इसी शशि को तो मैं 12 सालों से खोज रहा था।
कहानी जारी रहेगी।
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