मेरी तो लॉटरी लग गई-2

मेरी तो लॉटरी लग गई-2

कहानी का पहला भाग : मेरी तो लॉटरी लग गई-1

अगले दिन जब वो आई तो मैंने फिर उसे पकड़ लिया और खुद ही उसकी साड़ी ऊपर उठाई और अपना लण्ड उसकी चूत पे रख दिया
मगर अंदर नहीं जा रहा था सो वो बोली- एक मिनट रुक!
और उसने बेड पे लेट कर अपनी टाँगें पूरी तरह से खोल कर मुझे अपनी बूढ़ी चूत के दर्शन करवाए।
मैं तो पहले ही मरा जा रहा था सो झट से अपना लोअर और अंडर वीअर उतार कर उसके ऊपर जा चढ़ा। उसने खुद मेरा लण्ड अपनी चूत पे रखा और मैंने अंदर धकेल दिया।

यह मेरी ज़िंदगी का पहला सेक्स था, मैं तो जैसे बदहवास हो गया था, मैं तो उसके होंठ भी चूस गया जिसे शायद मैं कभी न चूसता। मैंने उसे जम कर चोदा और उसकी चूत में ही अपना पानी छुड़वाया, मैं तृप्त हो कर गिर गया और वो उठा कर चली गई।
उसके जाने के बाद तो मूठ भी मारी उसके नाम की।

अब जब लीला को चोदना रोज़ का काम हो गया तो मैंने तो उसके सभी छेद खोल दिये। 10 दिनो में ही मैं उसकी चूत, गाँड और मुँह को चोद चुका था। अब तो वो जब भी मेरे कमरे में आती तो बाहर से ही हँसती आती, के अंदर जाऊँगी और चुदूंगी।

फिर एक दिन मैंने उसे कहा- आंटी, मैंने सुना कि तेरी बहू भी ये काम करती है, उसकी भी दिलवा दे।

उसने मेरी तरफ देखा और बोली वो तो बहुत चंट है, मुफ्त में नहीं देती।

मैं समझ गया- अरे आंटी, मुफ्त में कौन चाहता है, तू पैसे बोल कितने लेगी, मगर मुझे उसकी दिलवा दे!

और मैंने 100 रु का नोट आंटी के ब्लाउज़ में ठूंस दिया।

आंटी हंस के बोली- तेरे लिए 800, औरों से 1000 लेती है।

मैंने कहा- ठीक है, कब और कहाँ ये भी बता दे?

वो बोली- जब तेरा दिल करे, शाम 5 बजे से पहले कभी भी मेरे घर आ जा।

उसके बाद मैं अपने भैया के पास गया और उनसे सब बात की, वो भी मेरे साथ चलने को तैयार हो गए।
दो दिन बाद हम दोनों दोपहर को घर में मूवी का कह कर आंटी के घर जा पहुँचे। गेट आंटी ने ही खोला और हमे अंदर ले गई, दोनों को आगे वाले कमर्रे में बिठाया, पानी पिलाया।
हमने आंटी को गिन कर 1600 रूपये पकड़ा दिये।

भैया बोले- पहले तू जाएगा।

मैंने हाँ कह दी तो आंटी मुझे अपने साथ ले गई, छोटे से बरामदे से होकर हम पीछे वाले कमरे में गए। वहाँ बेड पे एक गोरी सी अच्छी सेहतमंद औरत बैठी थी, उम्र कोई 28-30 साल।
मुझे उसके पास बैठा कर आंटी चली गई। मैं चुप बैठा था, मगर ये जगह चुप रहने की नहीं थी, मैंने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है।

वो बोली- सिमरन।

मैं उठ कर बिल्कुल उसके पास जा बैठा और अपनी एक बाजू उसके सर के पीछे से ले जा कर उसे अपनी आगोश में ले लिया। दूसरे हाथ से उसके ठोड़ी पकड़ के उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया।
उसने मेरी तरफ देखा, मुस्कुराई, मैं भी मुस्कुराया और फिर एक हल्का सा चुम्बन उसकी गाल पे किया।
उसने भी मुझे अपनी बाहों में भर लिया, उसके दोनों मोटे मोटे बोबे मेरे सीने से लगे, बड़ा मज़ा आया।
मैंने उसको कस कर गले लगाया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये। उसने भी मुझे चूमा तो मैंने उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंठो में पकड़ लिया और उसकी लिपस्टिक का स्वाद मेरे मुँह में आ गया।

मैंने उसके होंठ चूसते चूसते उसको दोनों बूब्स पकड़ के दबा कर देखे, कि जो लोग जवान औरतों के बोबे दबाते हैं, उनको कैसा मज़ा आता है।
इसके बोबे भी नर्म थे, मगर आंटी की तरह लटके हुये और ढीले नहीं थे।

मैंने सिमरन को नीचे किया और खुद उसके ऊपर लेट गया, उसने भी अपनी टाँगें मेरी टाँगों के गिर्द लपेट दी।

मैं अपनी कमर हिला हिला कर उसके घस्से मार रहा था। मैंने उसका दुपट्टा उतार कर दूर फेंक दिया और उसकी कमर पर ही बैठ गया। वो मेरे नीचे फैल कर लेटी पड़ी थी, मैंने फिर उसके बोबे पकड़ कर दबाये तो वो कसमसाई।

मैंने अपनी कमर ऊपर उठा कर उसका कमीज अपने नीचे से निकाला और ऊपर को उठाया, उसने नीचे से कोई अंडर शर्ट नहीं पहनी थी, वो भी ऊपर को उठी और मैंने उसकी शर्ट उसके ब्रा से भी ऊपर उठा दी और पूरी ही उतार से दी।
मैंने फिर से उसके बोबे पकड़ के दबाये, वो बोली- ऊपर ऊपर से दबाओगे क्या?

मैंने उसका इशारा समझा और उसक उठा कर अपने गले से लगा लिया और पीछे से उसकी ब्रा की हुक खोली और उसके दोनों बोबे ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिये। उसके बोबे बड़े सॉलिड थे मैंने पकड़ के दबाये और निप्पल मुँह में लेकर चूसे तो उसके मुँह से ‘आह… आह…’ निकलने लगी।
पता नहीं उसे मज़ा आ रहा था या उसका तरीका था मुझे उत्तेजित करने का…

2-4 मिनट उसके बोबों से खेलने के बाद मैंने उसकी सलवार का नाड़ा भी खोल दिया, वो सिर्फ नीचे लेटी मुसकुराती रही।
मैंने उसकी सलवार उतारी, नीचे एक बिल्कुल साफ शेव की हुई चूत थी।
मैंने उसकी टाँगे खोल कर देखना चाही तो उसने हाथ रख लिया, मैंने कहा- अरे देखने दो ना!
तो उसने हाथ हटा लिया, मैंने उसकी चूत के दोनों होंठ खोल कर देखे, अंदर से गुलाबी थी।

मैंने उसकी चूत को चूम लिया तो उसने मेरा सर पकड़ लिया।
मैं फिर ऊपर आया और फिर से उसके होंठों को चूमा, उसके बाद मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किए। वो बड़ी उत्सुकता से मुझे नंगा होते देख रही थी।

मैंने अपना अंडर वियर भी उतार फेंका और अपना कड़क लण्ड उसके पास ले कर गया।
मैंने पूछा- चूसेगी इसे?

वो बोली- क्यों नहीं, जो आप कहेंगे!
और उसने मेरा लण्ड पकड़ा, उसकी चमड़ी पीछे हटाई और अपने मुँह में ले लिया। मैं उसकी छाती पे चढ़ कर बैठ गया और अपना लण्ड उसके मुँह में चलाने लगा।

सच कहूँ बड़ा मज़ा आ रहा था, लण्ड तो आंटी भी चूसती थी, मगर यह सिमरन तो पूरी प्रॉफेश्नल थी, इसको सच में लण्ड चूसना आता था। उसने मुझे नीचे लेटाया और खुद ऊपर आ गई।
मैं बादशाह की तरह बेड पे लेटा था और और वो मेरे जिस्म पे यहाँ वहाँ अपना बदन घिसा रही थी, अपने मोटे मोटे बूब्स के निपल्स से उसने मेरे सीने पे और बगलों में गुदगुयाया।
न सिर्फ लण्ड इसने मेरे आँड भी अपने मुँह में लेकर चूसे, मेरी जांघों में कुछ खास जगहों पे चूमा,जीभ फिराई, दाँतों से काटा, मेरे पेडू के आस पास, मेरी कमर के आस पास जीभ फिराई तो मैं तो तड़प गया, मेरे मुँह से उसके लिए न जाने कितनी गालियाँ निकल रही थी- साली मदरचोद, मार देगी क्या, आह, उफ़्फ़, साली कुतिया, बहन की लोड़ी क्या कर रही है, हरामज़ादी बस कर।

मगर वो मेरी गलियों से बे परवाह मुझे चूमने, चाटने और काटने में लगी थी।
जब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मैंने उसका सर पकड़ लिया- बस कर अब और नहीं सह सकता, ऐसा कर तू ही ऊपर आ जा!

मैंने कहा तो उसने गद्दे के नीचे से कोंडोम निकाला और पैकेट छील कर कर कोंडोम मेरे लण्ड पे चढ़ाया, लण्ड तो मेरा लोहा हुआ पड़ा था, उसने खुद ही ऊपर आकर मेरा लण्ड अपनी चूत पे सेट किया और धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर चुदने लगी।

मैं उसके नर्म नर्म बोबों से खेलता रहा, उसके निप्पल चूसता रहा।

करीब 6-7 मिनट बाद मैंने उसे तेज़ तेज़ करने को कहा क्योंकि अब मेरे बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा था।
और फिर मैंने उसके दोनों बोबों को निचोड़ देने की हद तक दबा दिया और अपने आप मेरे मुँह से निकलने लगा- आ… आह, साली रंडी, मदरचोद, मार दिया तूने, तेरी माँ को चोदूँ, साली, कुत्ती तेरे सारे खानदान की गाँड फाड़ दूँ, आह मर गया, बहन चोद!

और मेरे लण्ड से निकलने वाले वीर्य के फव्वारे सारे कोंडोम में कैद हो गए, मैं निढाल लाश की तरह बेड पे पड़ा था और वो उठी, लण्ड अपनी चूत से निकाला और बाथरूम में चली गई।

मैं भी उठा और कपड़े पहन के बाहर आ गया।
सच कहता हूँ, प्रॉफेशनल औरत प्रोफशनल ही होती है।

बाहर दूसरे कमरे में आंटी अपने बेटी के साथ बैठी थी, मैंने भैया को इशारा करके भेज दिया, मैंने देखा आंटी की लड़की भी बड़ी ग़ज़ब थी, मुश्किल से 18 साल की होगी मगर गोल मांस देख कर तो मेरे मुँह में पानी आ गया- खूबसूरत, कमसिन कच्ची कली, छोटे छोटे गोल गोल बोबे, पतली पतली टाँगें!

मैंने आंटी से पूछा- आंटी, यह तुम्हारी बेटी है?
वो बोली- हाँ!
मैंने पूछा- इसके कितने लोगी?
आंटी हंस पड़ी- अभी दम तो ले ले लल्ला!

मगर मैं कहाँ रुकने वाला था, मैंने आंटी के सामने ही उसको पीछे से पकड़ लिया और अपना हाथ उसकी कमीज़ में डाल दिया।

यह सिर्फ एक काल्पनिक कहानी है, इसे सच समझने की गलती न करें।
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