मेरी सुहागरात और मेरे पति का ब्रा प्रेम
दोस्तो, मेरा नाम सुनीता है, मैं अन्तर्वासना की काफी समय से पाठिका हूँ। मुझे आप सभी लोगों की सेक्सी कहानियाँ पढ़ने का बहुत शौक है।
ऐसे ही एक दिन मैंने कहानी पढ़ते पढ़ते सोचा कि जब हर कोई अपनी कहानी लिख रहा है, तो क्यों न मैं भी अपनी कहानी लिख कर अन्तर्वासना पर भेजूँ। तो मैंने अन्तर्वासना के ही एक लेखक वरिन्द्र सिंह जी से इस संबंध में ईमेल के जरिये। बात की और उनसे पूछा कि मैं कैसे अपनी कहानी लिख कर अन्तर्वासना पर भेज सकती हूँ।
उनके बताने से मैंने अपनी कहानी लिख कर आपके सामने रखी है, पसंद आई या नहीं, नीचे लिखे पते पर ईमेल भेज के बताना ज़रूर।
मेरा नाम सुनीता है, 30 साल की हूँ, कद काठी की अच्छी हूँ, सात साल हो गए शादी को, दो बेटे हैं।
शादी से पहले मेरी ज़िंदगी में कुछ भी ऐसा नहीं हुआ, जिसको मैं आपके सामने रख सकूँ। कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, न ही किसी भी तरह का और कोई सेक्स का तजुरबा हुआ, बिल्कुल कोरे कागज़ की तरह मैं शादी के बाद अपने ससुराल आई।
मगर शादी की पहली रात ही मुझे जो तजुरबा हुआ, और उसके अब तक जो मैंने देखा, समझा, झेला और महसूस किया, वो मैं आपके साथ बांटना चाहती हूँ।
तो सुनिए फिर!
जब मेरी शादी हुई तो सहेलियों ने मुझे बहुत कुछ बताया, अब मेरे जैसी एक सीधी सादी लड़की, जिसका कोई सेक्स का तजुरबा नहीं हो, उसको हर दूसरा इंसान अपने अपने हिसाब से सेक्स का ज्ञान देने लगा।
कोई सहेली कहती, बहुत दर्द होता है, कोई कहती बहुत मज़ा आता है। कोई कहती मर्द तो बस एक ही चीज़ चाहते हैं, जैसे मर्ज़ी उनको मिले, कोई कहती मर्द तो प्यार ही बड़ा करते हैं। कोई कुछ तो कोई कुछ।
और मैं इस सब अधकचरे ज्ञान में से क्या याद रखूँ क्या न रखूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
फिर मैंने सोचा, सब की शादी होती है, जो उन सबके साथ होता है वो ही मेरे साथ भी होगा, देखते हैं।
चलो जी, शादी भी हो गई, शादी के एक दिन बाद सुहागरात भी आ गई, मेरा दिल धक धक कर रहा था, बहुत डर भी लग रहा था, पता नहीं पति कैसे होंगे, पता नहीं क्या करेंगे।
एक बार तो दिल में आया कि मैं मर ही जाऊँ, सारा झगड़ा ही खत्म, मगर फिर दिल ने सोचा, देखें तो सही, शादी का लड्डू मीठा होता है या खट्टा।
रात को मेरी ननद, जेठानी वगैरह मुझे ऊपर चौबारे वाले कमरे में बैठा कर चली गई।
कमरे में हल्की रोशनी थी, थोड़ी बहुत सजावट भी कर रखी थी।
मैं जाकर बेड पर बैठ गई, सब मेरे आस पास बैठ गई और आपस में हंसी मज़ाक करने लगी।
थोड़ी देर में ये भी आ गए, इनके भी यार दोस्त इन्हें कमरे तक छोड़ने आए थे, इनको अंदर धकेल कर वो भी चले गए और सब औरतें भी चली गई।
मैं और ये दोनों कमरे में अकेले रह गए।
ये मेरे सामने आ कर बैठ गए, मुझे एक गुलाब का फूल दिया और बोले- हमारी शादीशुदा ज़िंदगी की पहली रात का पहला तोहफा यह सुंदर फूल… मैं चाहता हूँ इस घर में तुम्हारी ज़िंदगी हमेशा इस फूल की तरह खिली रहे और महकती रहे!
मुझे इनके ये शब्द बहुत अच्छे लगे और मैंने इनको ‘शुक्रिया’ कहा। अपने जूते उतार कर ये मेरी बगल में लेट गए, फिर उठे और मेरे साथ सट कर बैठ गए।
मुझे बड़ी झुरझुरी सी हुई क्योंकि आज तक मैं किसी भी लड़के के साथ इतना सट कर नहीं बैठी थी।
‘अरे घूँघट उठाने की रसम तो हमने की ही नहीं!’ कह कर इन्होंने मेरा घूँघट ऊपर उठाया- अरे वाह, तुम तो बहुत ही सुंदर हो!
कह कर इन्होंने मेरा पूरा पल्लू सर से उतार दिया। मैंने फिर से उठा कर दुपट्टा सर पे ले लिया क्योंकि अपने मायके में कभी भी बिना दुपट्टे के नहीं रही।
‘अरे अब इस दुपट्टे की कोई ज़रूरत नहीं है।’ कह कर इन्होंने फिर से मेरा दुपट्टा उतार दिया।
इस बार मैंने भी दुपट्टा नहीं ओढ़ा क्योंकि मुझे बताया गया था कि अगर पति कुछ करता है तो मना मत करना।
जब दुपट्टा उतार दिया तो मेरे पति ने मेरे स्तनों को घूरा और कहा- वाह, क्या बात है, हो तो तुम पतली दुबली, मगर हो मस्त!
कह कर उन्होंने मेरे स्तन दबा दिये।
हाय… मैं तो शर्म से मर गई, उन्होंने मुझे लेटा दिया और खुद भी मेरी बगल में लेट गए।
अब इतना तो मुझे पता था कि मेरे साथ कुछ होने वाला है, पर मुझे यह नहीं पता था कि क्या होता है और कहाँ पर होता है।
मेरी बगल में लेटने के बाद ये करवट ले कर मेरे बिल्कुल साथ सट कर लेट गए।
सच कहूँ तो मेरे दिल में भी बहुत गुदगुदी हो रही थी, किसी भी पुरुष का प्रथम स्पर्श था यह मेरे लिए।
इन्होंने मेरा चेहरा अपनी तरफ घुमाया और बोले- तुम बहुत सुंदर हो!
कह कर इन्होंने मेरे होंठों को चूम लिया।
‘हाय राम…’ मेरे तो सारे बदन के रोंगटे खड़े हो गए मगर मैंने कोई विरोध नहीं किया, एक बाद एक करते करते इन्होंने मेरे होंठों के बहुत से चुंबन लिए और फिर मेरा नीचे वाला होंठ अपने होंठों में पकड़ लिया और उसे धीरे धीरे चूसने लगे।
हे भगवान, कितना मज़ा आया जब इन्होंने अपनी जीभ से मेरे होंठों को चाटा। इस दौरान इन्होंने अपने हाथ से मेरे स्तन को पकड़ा और धीरे धीरे से दबाया।
अचानक ये बोले- तुम देखने में बड़ी दुबली पतली लगती हो मगर तुम्हारे चूचे बड़े बड़े हैं।
मैं क्या कहती मैं चुप ही रही।
‘मैं इन्हे देखना चाहता हूँ!’ कह कर इन्होंने खुद ही मुझे उठा कर बैठा दिया और मेरी कमीज़ उतारने लगे।
जब कमीज़ उतार दी तो नीचे से मेरे बदन पर एक ब्रा रह गई।
‘ओ माई गोड…’ ये बोले- क्या सेक्सी चूचियाँ और क्या शानदार ब्रा है तुम्हारी!
मैं शर्मा गई।
इन्होंने मेरे ब्रा पर न जाने कितने चुम्मे लिए।
अब जब ब्रा को चूमते थे तो नीचे मेरे बोबे पर भी उसका असर होता था, हर चुम्बन से मेरे बदन में बिजलियाँ दौड़ती।
फिर इन्होंने अपने कपड़े उतारे और इनके बदन पे सिर्फ एक चड्डी ही रह गई। चड्डी में मैंने देखा जैसे कोई छोटा सा डंडा रखा हो। उसके बाद इन्होंने मेरी सलवार भी उतार दी, सलवार के नीचे ब्रा के साथ की मैचिंग पेंटी थी, इन्होंने मेरी पेंटी पर भी बहुत बार चूमा। मेरी जांघों और मेरी कमर पे तो दाँतों से काट भी लिया।
इनकी इन सब हरकतों से मेरा मज़ा अब तड़प में बदलता जा रहा था। मैं बिल्कुल शांत चित्त लेटी थी और सोच रही थी कि अगर इस सब में इतना मज़ा है तो आगे कितना मज़ा आएगा।
इसके बाद इन्होंने मेरी ब्रा उतार दी, मैंने अपने हाथों में अपना चेहरा ढक लिया। मैं सोच रही थी कि अब ये शायद मेरे बोबे चूसेंगे मगर ऐसी कोई हरकत नहीं हुई।
जब मैंने अपनी आँखों से हाथ हटा कर देखा तो तो देखा कि ये तो खुद ही मेरी ब्रा पहने हुये हैं।
मैंने पूछा- यह क्या कर रहे हैं आप?
तो ये बोले- तुम नहीं जानती सुनीता, मुझे औरतों की ब्रा कितनी अच्छी लगती है।
‘अच्छी लगती है तो ठीक है मगर आपने क्यों पहनी है?’ मैंने पूछा।
‘तो इसमें क्या, मुझे अच्छी लगी, मैंने पहन ली।’ ये बोले।
‘क्या पहले भी कभी पहनी है?’ मैंने थोड़ा डरते हुये पूछा।
‘हाँ बहुत बार, दरअसल मेरा तो मन करता है कि मैं हर वक़्त ब्रा पहन कर रखूँ, तुम्हारी तरह!’ ये बड़ा खुश होकर बोले।
‘पहले किसकी पहनी थी?’ मैंने फिर पूछा।
‘सबसे पहले मैंने अपनी मम्मी की ब्रा पहनी थी, जब मैं सिर्फ 18 साल का था, मगर वो मेरे बहुत बड़ी थी। अब मम्मी के चूचे तो इतने बड़े बड़े हैं, और मेरे कुछ भी नहीं, तो मैंने बीच में कपड़े ठूंस लिए। मगर इसके बाद मैंने अपने खुद के लिए चोरी से बाज़ार से ब्रा खरीद लाया, और घर में अक्सर पहन कर रखता, धीरे धीरे मुझे आदत सी पड़ गई। अब तो मेरे पास अपनी खुद की बहुत सी ब्रा हैं, देखोगी?’ इन्होंने कहा।
मगर मेरे तो होश फाख्ता थे, कि यह कैसे आदमी से मेरी शादी हो गई, मुझे तो ये पागल लगे।
ये मुझे उठा कर अलमारी के पास ले गए और इन्होंने अलमारी की सेफ खोल कर उसमें से मुझे बहुत सारी ब्रा निकाल कर दिखाई। कोई सिंपल, कोई डिज़ाइनर, कोई फूल वाली, कोई साटिन की, मतलब बहुत तरह की!
2-4 तो मुझे भी बहुत पसंद आई।
मैंने एक उठा कर पहन कर देखी। क्या शानदार ब्रा थी, नीचे उसमें लोहे की तार फिट थी, जिस वजह से ब्रा बोबों को बिल्कुल ऊपर को उठा कर रखती थी, ऐसी ब्रा तो मैंने भी आज तक नहीं देखी थी।
इसके इलवा ब्रा के साथ की मैचिंग पेंटीज़ और कई तरह की रंग बिरंगी पेंटीज़ भी थी।
यह भी मेरे पति का एक शौक था कि वो मर्दाना नहीं बल्कि लेडीज़ पेंटी पहनते हैं। और आज तक ऑफिस जाते वक़्त भी लेडीज़ पेंटी पहन कर जाते हैं।
उसके बाद हमारी ब्रा और पेंटी की कलेक्शन बढ़ती ही जा रही है। अब जब भी मैं अपने लिए ब्रा पेंटी खरीदने जाती हूँ तो इनके लिए भी लेकर आती हूँ।
कई बार तो ये भी साथ होते हैं और हम दोनों मिल कर ब्रा पेंटी सिलैक्ट करते हैं। ताकि जब हम सेक्स करें तो दोनों के कौन सा ब्रा और पेंटी पहनी हो।
बहुत कम ऐसे मौके हुए हैं जब हमने बिल्कुल नंगे हो कर सेक्स किया हो ज़्यादातर तो हम दोनों ब्रा पेंटी पहन कर ही सेक्स करते हैं। इनको ब्रा में से बाहर झाँकते उरोज ज़्यादा पसंद हैं, बजाए इसके कि ब्रा खोल कर चूचे खुले आज़ाद हों।
बहुत बार मेरी ब्रा में लण्ड घुसा कर मेरे बोबों को चोदते हैं और अक्सर मेरे मुँह पर ही अपना वीर्य छुड़वा देते हैं।कई बार तो थोड़ा बहुत मेरे मुँह में भी चला गया, पर कोई बात नहीं।
खैर आगे सुनिए।
ब्रा के ऊपर से ही मेरे बोबे दबाते हुये ये बोले- काश मेरे भी तुम्हारे जैसे बोबे होते तो मैं एक से एक बढ़िया ब्रा पहनता।
मैंने पूछा- क्या आपको कोई और शौक भी है?
‘कैसे शौक?’ इन्होंने भी पूछा।
‘कहीं आपको लड़कियों की बजाए लड़कों में दिलचसपी तो नहीं?’ मैंने पूछा।
‘अरे नहीं नहीं, मुझे बस ब्रा पहनना पसंद है, मैं कोई गे या लौंडा नहीं, दरअसल मुझे लड़कियाँ बहुत ही ज़्यादा पसंद हैं, और लड़कियों में उनके बोबे, और बोबों को संभाल के रखने वाली, ढक के रखने वाली, रंग बिरंगी खूबसूरत ब्रा भी बहुत पसंद हैं। चिंता मत करो, मुझे मरवाने का कोई शौक नहीं, मारने का है।’ कह कर ये मुझे वापिस बेड पे ले गए।
अब इन्होंने मेरी ब्रा पहनी हुई थी और मैंने इनकी ब्रा पहनी थी। बेड पे लेटी तो इन्होंने मेरी चड्डी भी उतार दी।
अब शादी थी, सुहागरात थी सो मैंने तो नीचे भी वीट लगा कर बिल्कुल साफ कर रखी थी।
‘अरे वाह, क्या प्यारी और चिकनी चूत है तुम्हारी!’ कह कर इन्होंने मेरे वहाँ चूम लिया।
मुझे बड़ी झुरझुरी सी हुई।
इसके बाद ये मेरी कमर पे आ बैठे और इन्होंने अपनी चड्डी भी उतार दी। चड्डी के नीचे एक लंबा काला पुरुष लिंग एकदम से बाहर आया।
सुहागरात के अवसर पर इन्होंने भी शेव करके उसके आस पास के सभी बाल एकदम से साफ कर रखे थे।
‘ले पकड़ के देख!’ ये बोले और इन्होंने खुद ही उसको मेरे हाथ में पकड़ा दिया।
एकदम कड़क और गर्म। इनका लंड करीब साढ़े नौ इंच लंबा है। क्योंकि मैंने तो कभी पुरुष का लंड पहले नहीं देखा था तो मैंने सोचा
सब के ही ऐसे होंगे, मगर बाद में मुझे पता चला कि मैं कितनी खुशिस्मत हूँ। क्योंकि आम भारतीय पुरुषों के लंड तो बस 5-6 इंच के ही होते हैं।
मेरे हाथ में पकड़ा कर इन्होंने अपनी कमर आगे को की तो उसमें से एक सुर्ख गुलाबी रंग की एक गेंद सी बाहर को निकल आई।
उसके बाद ये मेरे ऊपर लेट गए, मेरे होंठ, मेरे गाल चूमने लगे।
क्योंकि इस काम में मुझे भी मज़ा आ रहा था, तो मैंने भी इनको अपनी बाहों में कस लिया और चुम्मा चाटी में इनका साथ देने लगी। चूमते चूमते इन्होंने मेरे कंधे, बाजू, सीने पर बहुत बार काट खाया मगर इनके काटने में भी मुझे मज़ा आया, मैंने भी इनको बहुत बार सीने पे काटा।
उसके बाद इन्होंने मेरी टाँगें खोल दी, मैंने भी चौड़ी कर दी, मुझे क्या पता था कि असली बात तो अब शुरू होगी।
बस जब टाँगें चौड़ी कर दी तो इन्होंने अपना लिंग मेरी योनि ( बाद में पता चला कि इसे चूत कहते हैं और उसे लंड) पे रख दिया।
मैं भी आराम से टाँगे चौड़ी करके के लेटी रही, ये मुझे चूमते रहे और मेरे बोबे दबाते रहे।
इसी मज़े मज़े में इन्होंने धक्का लगाया और इनके लंड की वो सुर्ख गुलाबी गेंद मेरी चूत में घुस गई।
‘आह!’ मेरे मुँह से तो चीख ही निकल गई।
मगर इन्होंने तो जैसे चीख को सुना ही नहीं, इन्होंने और ज़ोर लगाया और वो थोड़ा और मेरे बदन को बीच में चीरता हुआ और अंदर तक घुस गया।
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‘यह क्या कर रहे हो, निकालो इसको बाहर!’ मैं इन पर चिल्लाई।
‘अरे यही तो होता है सुहागरात पर!’ ये बोले।
‘मगर मुझे बहुत दर्द हो रहा है, मुझे नहीं करना!’ मैं बिलबिलाई।
‘करना तो पड़ेगा, आज नहीं तो कल, रोज़ रोज़ दर्द सहने से अच्छा है कि एक ही दिन सह लो उसके बाद सारी उम्र का आराम!’ ये बोले।
‘मगर मुझे बहुत दर्द हो रहा, प्लीज़ बाहर निकाल लो न!’ मैंने विनती की।
‘अब बाहर तो नहीं निकालूँगा, हाँ थोड़ी देर यहीं पे रखता हूँ, उसके बाद अंदर डालूँगा!’ ये बोले।
‘अरे नहीं बहुत बड़ा है, मैं मर जाऊँगी।’ मैं गिड़गिड़ाई।
‘बात सुन, अब तक तेरे घर में जितनी शादियाँ हुई हैं, क्या उनमें से कोई मरी है?’ इन्होंने पूछा।
‘तो क्या सबने यही किया?’ मैंने हैरान हो कर पूछा।
‘हाँ तेरी माँ ने, बहन ने भाभी ने, मेरी सब रिश्तेदार औरतों ने, कोई नहीं मरती, सब मज़े करती है, और अब तू भी कर!’ कह कर इन्होंने फिर से धक्का लगाया और अपना लंड थोड़ा सा और मेरी चूत में घुसाया।
मेरे को दर्द तो बहुत हुआ, पर यह सोच कर के सब के साथ होता है, मैं चुपचाप लेटी रही और इन्होंने अपना काला मूसल जैसा लंड मेरी गुलाबी चूत में घुसा कर मुझे कली से फूल बना दिया।
सिर्फ यहीं पे बस नहीं, एक बार जब सारा अंदर डाल दिया तो फिर उसे अंदर बाहर भी करने लगे।
उस वक़्त मुझे उसमें भी बहुत दर्द हुआ, हालांकि आज इसी काम में मुझे बहुत मज़ा आता है।
बहुत ज़ोर लगाया इन्होंने और मुझे जम कर पेला। मुझे उसमें भी कुछ कुछ मज़ा आ रहा था, मगर ज़्यादा मुझे दर्द ही हो रहा था। काफी देर करते रहने के बाद मुझे लगा जैसे कोई गर्म गर्म पानी सा मेरे अंदर गिरा है।
उसके बाद इन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और मेरे पेट पे गंदा गाढ़ा गाढ़ा से सफ़ेद सा पानी गिरा दिया, जो इनके लंड से निकला। मुझे तो उबकाई आ गई जिससे मेरे ब्रा पर भी कुछ बूंदें गिरी।
‘यह क्या गंद है?’ मैं तो उठ कर बाथरूम में भागी और धोकर आई।
मेरे पीछे पीछे ये भी आ गए, इन्होंने भी खुद को साफ किया और उसके बाद हम दोनों जाकर बेड पर लेट गए और सो गए।
सुबह जब मैं उठी तो मुझसे चला नहीं जा रहा था, मेरी ननद, जेठानी और घर की और रिश्तेदार औरतें सब देख कर हंस रही थी, मुस्कुरा रही थी और मैं शर्म से मरी जा रही थी।
उसके बाद तो यही रोज़ की कहानी हो गई मगर मेरे पति का ब्रा प्रेम आज भी ज़िंदा है। हमारे पास एक अलमारी है जो तरह तरह की ब्रा से भरी पड़ी है जिसमें मेरी और इनकी दोनों की ब्रा टंगी रहती हैं।
इनके इसी शौक की वजह से हमने अपने दोनों बच्चे बोर्डिंग हाउस में रखे ताकि उनसे उनके पिता का विचित्र शौक छुपा रहे।
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